मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



साल: 2018

  • श्रेणी:,

    1. साधक आत्मोवाच

    मातृवन्दना दिसम्बर 2018

     

    रख सके तो याद रख

    है तेरा पांच तत्व का शरीर – रथ

    जहाँ ले जाना चाहे इसको

    हांके ले जा, हो के मस्त   

    हैं नामी बलवान बहुत

    इसके दस इन्द्रिय घोड़े

    जब भी बे-लगाम हो जाये कोई

    दिशा छोड़ विषय रसास्वादन हेतु दौड़े

    शत्रु हैं भयानक अहं, मोह,

    लोभ, क्रोध और काम

    शुद्ध यत्न से जय हो जाएँ

    मन की जब उचित बने लगाम

     रचना चक्रव्यूह संसार बेधना

    नहीं यहाँ दुष्कर तेरे लिए है

    न्याय प्रिय, दूरदर्शी, कुशाग्र बुद्धि, योगी

    जब सन्मति सारथि तू संग लिए है

    यात्रा कर रहा प्रकाशित जो तेरे शरीर में

    मात्र एक स्वामी है, तेरा ही आत्मा

    कठिन नहीं है तुझे मंजिल प्राप्त करना

    जब हर डगर हो रहा सहायी परमात्मा

    शरीर तो तेरा है अमानत प्रभु का

    ठीक है समर्पित कर दे उसे आज ही

    कारण है नहीं इसमें किसी दुःख का

    प्राण आज नहीं तो जायेंगे छोड़ शरीर रथ – कल भी


  • श्रेणी:,

    2. भारत का भविष्य

    मातृवंदना अक्तूबर 2018 

    आश्चर्य है कि सनातन धर्म अति प्राचीन होने पर भी संपूर्ण संसार में आज तक हिन्दुओं का अपना कहीं एक भी हिन्दू राष्ट्र नहीं है, परन्तु धर्म से प्रेरित मुट्ठीभर लुटेरे, आतंकवादियों ने मात्र डेढ़ दो हजार वर्षों में ही धर्म के नाम पर छप्पन मुस्लिम देश और अस्सी ईसाई देश ही नहीं बना लिए बल्कि वे आज भी विश्व में लोगों को भ्रमित करके और उनमें तरह-तरह के आतंक फैलाकर नए देश बनाने के लिए सक्रिय एवंम कृत संकल्प हैं l
    भारतवर्ष में दुश्मनों के चहेते एवंम स्वार्थी जयचंदों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना उन धर्मांध आतंकवादियों का l देशभर में उनकी कहीं कोई कमी नहीं है l वे खाते हैं भारत का और गुण गाते हैं विदेश का l समय असमय भारत के साथ उन्होंने निजहित में छल ही किया है l देश को भांति-भांति की क्षति पहुंचाई है l उन्होंने दुश्मनों के समर्थकों को अपने यहाँ शरण दी है, स्वदेशियों की उपेक्षा करके विदेशियों को हर संभव सुख सुविधा प्रदान की है, परिणाम स्वरूप भारत बार-बार खंडित हुआ l इतना सब कुछ होने के पश्चात् भी आज हम उन्हें अपना मान रहे हैं, उन पर विश्वास कर रहे हैं l वास्तव में वे विश्वास करने योग्य हैं ही नहीं l
    वर्तमान भारत एक धर्म निरपेक्ष लोकतान्त्रिक देश है l पर देश में दुश्मनों के चहेते, मैकाले की सोच रखने वालों के कारण हर हिन्दू व्यथित है l इस समय भारत में सौ करोड़ हिन्दू हैं l भारतीय मुसलमान एवंम इसाई लोग जिनके पूर्वज कभी हिन्दू रहे हैं, पूर्व काल के आतंकियों के द्वारा उनका जबरन धर्म परिवर्तन किया गया था l वे सब भारतीय थे l उनके वंशज आज भी भारतीय हैं l उनमें मात्र मुट्ठीभर असामाजिक तत्व जो मुस्लिम और ईसाईयों को अपने-अपने गिरोहों में भर्ती करके देश विरुद्ध भांति-भांति के षड्यंत्र कर रहे हैं, वे अपने स्वार्थपूर्ण उदेश्यों की पूर्ति करने में लगे हुए हैं l
    परिणाम स्वरूप न चाहते हुए भी असंगठित, नीति और युक्ति विहीन हिन्दुओं को रातों-रात अपने कारोबार, घर, क्षेत्र ही नहीं राज्यों तक का भी त्याग करना पड़ रहा है l राज्य बहु संख्यक हिन्दुओं से अल्प संख्यक हिन्दू और फिर हिन्दू-मुक्त राज्य होते जा रहे हैं l वे असहाय होकर अपने ही देश में शरणार्थी बन रहे हैं l देश में असामाजिक तत्व संगठित हैं इसलिए वे कम होकर भी हिन्दुओं से अधिक बलशाली हैं l समझ नहीं आता, हिन्दू सौ करोड़ होकर भी उनके आगे दुर्बल कैसे हैं ? वे उनके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का संगठित होकर किसी ठोस नीति और युक्ति से सामना तो कर ही सकते हैं l
    यह बात सर्वविदित है – हिन्दुओं ने आज तक किसी पर आक्रमण नहीं किया है l वे कभी किसी शत्रु से स्वयं कमजोर भी नहीं रहे हैं l वे आक्रमणकारियों को मुंहतोड़ उत्तर देना भली प्रकार जानते हैं, पर वे किसी पर पहले कभी आक्रमण नहीं करते हैं, अगर उन पर कोई आक्रमण करता है तो वे उसे क्षमा भी नहीं करते हैं l वे जानते हैं कि जीना सबका जन्म सिद्ध अधिकार है l
    आज भी अपने ही देश में, देश के जयचंदों के संरक्षण में मुट्ठीभर असामाजिक तत्व सक्रिय हैं जो समाज पर अत्याचार करने हेतु हर समय उद्यत रहते हैं l वे आतंक, लव जिहाद, और धर्मांतरण जैसे दुष्कृत्य एवंम देश, धर्म को बांटने के षड्यंत्र कर रहे हैं l भारतीय नागरिक होने के नाते हमें अब मात्र सरकार पर ही निर्भर नहीं रहना है बल्कि पुरे उत्तरदायित्व के साथ देशहित में उसे अपना सहयोग भी देना है l
    हमें अपने गाँव-गाँव व शहर–शहर में सुरक्षा समितियां बनाकर देश के हर संदिग्ध व्यक्ति, संस्थान, धर्मस्थल की गतिविधियों पर दिन-रात अपनी पैनी दृष्टि रखनी होगी l हमें देश हित में प्रण करना होगा – हम भविष्य में देश की अखंडता के साथ आंतरिक या बाह्य दृष्टि से कोई भी समझौता नहीं होने देंगे l समय आ गया है – समस्त देश वासियों को हिंदुत्व की एक पताका तले संगठित होने का, आतंक के विरुद्ध हुंकार भरने का क्योंकि संगठन ही शक्ति है l

  • श्रेणी:,

    1. जागेगा स्वाभिमान जमाना देखेगा

    आलेख – राष्ट्रीय भावना मातृवंदना जनवरी 2018 
    प्राचीन काल से ही हमारा देश एक अध्यात्म प्रिय देश रहा है भारत के ऋषि-मुनियों का संपूर्ण जीवन ज्ञान-विज्ञान अनुसन्धान एवंम शिक्षण-प्रशिक्षण कार्य में व्यतीत हुआ है उन्होंने सनातन संस्कृति में मानव जीवन को ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास जीवन चार श्रेणियों में विभक्त किया था l वे संपूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ व्यक्तिगत ध्यानस्थ होकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं – “हे प्रभु ! तू मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चल l अँधेरे से उजाले की ओर ले चल l मृत्यु से अमरता की ओर ले चल l” उनका मानना है कि “आत्म सुधार करने से मानव जाति का सुधार होता है l” जीवन सब जीते हैं  पर जीवन जीना इतना सरल नहीं, जितना कि कहना l वह हर पल कष्ट, दुःख, कठिनाइयों और चुनौतियों से घिरा रहता है l   
    मात्र विवेकशील मनुष्य समय और परिस्थिति अनुसार बुद्धि से निर्णय लेते हैं l वे भली प्रकार जानते हैं की संसार में जीवन नश्वर है l सुख-दुःख बादल समान हैं, वे आते हैं तो चले भी जाते हैं l वह जीवन में जनहित, समाजहित और राष्ट्रहित में कुछ नया करना चाहते हैं, जबकि अन्य मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से बचने के लिए सरल एवंम लघु मार्ग ढूंढ़ते हैं l इस प्रकार दोनों की सोच दूसरे के विपरीत हो जाती है l मानव जीवन में फुलों भरा सरल एवंम लघु मार्ग ढूँढने वाले लोग मात्र मन की बात मानते हैं l वे उसी पर चलते हैं l वे नैतिकता और मानवता की तनिक भी प्रवाह नहीं करते हैं l
    ऐसे लोगों के द्वारा स्थापित शिक्षा केन्द्रों के पाठ्यक्रमों में देश का इतिहास, वास्तविक इतिहास नहीं होता है l उसमें सच्ची घटनाओं का सदैव अभाव रहता है l समाज परंपरागत सभ्यता एवंम संस्कृति से कटता जाता है और वह धीरे-धीरे उसे भूल भी जाता है l वे सत्ता पाने के लिए नैतिकता के साथ-साथ मानवता को भी ताक पर रख देते हैं, वे व्यक्ति विशेष, परिवार-वंश की महिमा मंडित करते कभी थकते नहीं हैं l वे क्षेत्रवाद, जातिवाद, धर्म-संप्रदाय वाद को बढ़ावा देते हैं l इससे देश की एकता एवंम अखंडता कमजोर होती है l अपने हित के लिए दंगे करवाए जाते हैं l विवेकशील मनुष्य नैतिकता, मानवता और मान-मर्यादाओं को पसंद करते हैं l स्मरण रहे ! कि ऐसे ही लोगों के प्रयासों से हमारा भारत अखंड भारत “सोने की चिड़िया” बना था l वे निजी जीवन में जनहित, समाजहित और राष्ट्रहित में कष्ट, दुःख, कठिनाइयों और चुनौतियों से सीधा सामना करने की विभिन्न प्रतिज्ञाएँ करते हैं, वह विपरीत परिस्थितयों से लोहा लेने के लिए हर समय तैयार रहते हैं l उनके लिए सबका हित सर्वोपरी होता है l
    उनके द्वारा संचालित विद्या केन्द्रों से बच्चों को अच्छी, संस्कारित, गुणात्मक एवंम उच्चस्तरीय शिक्षा मिलती है l उससे उनका चहुंमुखी विकास होता है l उनके प्रशासन की नीतियां सर्व कल्याणकारी होती हैं l उपरोक्त बातों से स्पष्ट हो जाता है कि समस्त मानव जाति के पास जीवन यापन करने के सरल या कठिन मात्र दो ही मार्ग होते हैं l एक मार्ग उसे पतन – असत्य, अन्धकार और दुःख-मृत्यु की ओर ले जाता है तो दूसरा उत्थान – सत्य, प्रकाश और सुख-अमरता की ओर l हमें किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए ? उसे हमारे लिए जानना और समझना अति आवश्यक है l