मातृवंदना मार्च अप्रैल 2017
हमारा भारत ग्रामों का राष्ट्र है l भारत तब पुनः विश्व शक्ति अथवा विश्वगुरु बन जायेगा, जब देश के समस्त गाँव विकसित हो जायेंगे l देश के हर गाँव में एक चिकित्सालय अवश्य होना चाहिए जिसमें चिकित्सक और चिकित्सा कर्मियों की कोई कमी न हो l हर चिकित्सालय, हर चिकित्सा सुविधा से संपन्न हो l वहां हर प्रकार की दवाइयाँ उपलब्ध हों ताकि दवाई लेने के लिए रोगी के साथ आये हुए सहायक को बाहर कहीं बाजार में न भटकना पड़े l
प्राचीन काल से ही देशभर में विद्यालय और चिकित्सालय सरकारी और सामाजिक अनुदान पर निर्भर, निशुल्क संचालित होते रहे हैं l लेकिन वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से विद्यालय और चिकित्सालय दोनों का स्वार्थी लोगों द्वारा तेजी से व्यवसायीकरण हुआ है, जो देश हित के लिए घातक है l गाँववासियों का जीवन आनंदमय हो, इसके लिए परंपरागत पर्यावरण अर्थात जल, जंगल और जमीन का संरक्षण अवश्य हो, उसको बढ़ावा मिले, इसके प्रति लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए l इससे समस्त जीव-जंतुओं के भरण-पोषण, संवर्धन में वृद्धि हो सकती है l
ग्राम विकास हेतु ग्राम पंचायतों का सशक्त होना बहुत जरूरी है l ग्राम पंचायतों में उनके सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका हर समय बनी रहती है l अगर वे ईमानदारी से अपने-अपने बार्डों में निहारकर यह सुनिश्चित कर लें कि अन्त्योदय नामांकन सूचि में दर्शाए गए परिवारों के नाम यथार्थ ही उस सूचि में रखने योग्य हैं ? उनके द्वारा शुद्ध अन्त्योदय नामांकन सूचि जारी हो सकती है l इस तरह सरकारी अन्त्योदय कार्यक्रम के अंतर्गत आने वाले समस्त परिवारों को सरकार की ओर से सीधे उस योजना से संबधित समस्त सुख-सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं l
गांवों की सुख-शांति बनाये रखने के लिए सही दिशा से भ्रमित हो चुके असामाजिक तत्वों पर नकेल बनाये रखना मात्र प्रशासन का ही दायित्व नहीं है l उसके सहयोग के लिए ग्रामों में नौजवानों की अपनी रक्षा-सुरक्षा समितियों का गठन किया जाना आवश्यक है l ताकि शिष्ट नौजवान स्वयं कड़े अनुशासन में रहकर अपने परिवार और समाज के प्रति जागरूक होकर कर्तव्य का पालन कर सकें l सरकार को ग्राम विकास हेतु कार्य योजना में स्थानीय श्रमिकों को ही सर्व प्राथमिकता देनी चाहिए l
सुख-सुविधा संपन्न स्वच्छ मकान, संतुलित पौष्टिक भोजन, सस्ती बिजली, समुचित जल संग्रहण, त्वरित उपयुक्त चिकित्सा, श्मशानघाट, विद्यालय, खेल व योग-प्राणायम करने का उचित स्थान, देवालय एवंम सत्संग भवन, पशु चिकित्सालय, प्रदुषण मुक्त आवागमन के संसाधन, बारातघर, समुदायक भवन, पुस्तकालय, ग्राम पंचायत घर, सड़क, पुल, बाजार, पक्की गलियां, अनाज व सब्जी मंडी, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और ग्रामीण बैंक, एटीएम इत्यादि आज गाँवों की अपनी मूल आवश्यकताएं हैं l इन्हें स्थानीय स्तर पर सरकारी व गैर सरकारी, सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं द्वारा जल्द से जल्द पूरा कर देना चाहिए l
अगर योजना गाँव की है, धरती गाँव की है, धन भी गाँव का है और कार्य करने हेतु वहां श्रमिक बाहर से आयें तो गाँव का धन गाँव में कभी नहीं रहेगा l गाँव का धन गाँव के बाहर नहीं जाना चाहिए l स्थानीय श्रमिकों को अपने ही क्षेत्र में कोई न कोई कार्य करने के लिए अवश्य मिलना चाहिए l ताकि गांवों की बेरोजगारी दूर हो और हमारे गाँव सुख समृद्धि से संपन्न हो सकें l देश के हर गाँव में एक ग्राम सामुदायक भवन अवश्य होना चाहिए ताकि गाँववासी सामूहिक अथवा व्यक्तिगत रूप से विवाह, भगवत्कथा आदि करवा सकें l इससे गांववासियों का बहुत सा धन और समय अपने पास बच सकता है l
ग्राम विकास हेतु प्रशासन को समय-समय पर ग्राम के राष्ट्रीय पर्व व स्थानीय परंपरागत दंगल, धार्मिक मेलों के आयोजन में सहयोग देना चाहिए l कार्यक्रमों में, उससे संबंधित विशेषज्ञों, गाँव के गणमान्य सदस्यों तथा श्रमिकों को बुलाया जा सकता है l इससे लोगों को अच्छी जानकारी मिल सकती है l बाहर से लोग आयेंगे तो गाँव के बाजार में रौनक भी आयेगी l स्थानीय उत्पादों का विक्रय भी होगा और गाँव को आर्थिक लाभ भी l
गांवों में जिस कार्य को करवाने के लिए बहुत से स्थानीय लोग तैयार हों और वह कार्य संपूर्ण गाँव के हित में हो तो ऐसे जनमत को स्थानीय विकास कार्यक्रम में प्रोत्साहन अवश्य मिलना चाहिए l ध्यान रहे ! कि कोई भी ग्राम विकास योजना अमुक गाँव की अपनी ही आवश्यकता के अनुरूप हो, न कि वह उस पर बलात थोपी जाये l
मनुष्य को जलवायु अनुकूल उपयोगी वस्त्र, शृंगार एवंम सजावट संबंधी सामग्री प्रकृति से प्राप्त होती है l उसके पोषण का ध्यान रखते हुए उसका दोहन किया जाना सर्वश्रेष्ठ, सर्व हितकारी है जबकि उसका शोषण विनाश को आमंत्रित करता है l गाँव व शहर का परिवेश, घर, नालियाँ, गलियां, बाजार एवंम सड़क स्वच्छ रखने, प्रदूषण मुक्त आवागमन के संसाधनों का प्रयोग करने, घर-घर में शौचालय और सार्वजनिक स्थानों पर सुलभ शौचालय निर्माण करने तथा लोगों के द्वारा उनका उचित प्रयोग करने से पर्यावरण स्वच्छ रहता है l
ग्राम का विकास होना आवश्यक है l ध्यान रहे ! वह विकास पोषण पर आधारित हो, शोषण पर नहीं l हमारी प्रकृति शोषण पर आधारित किसी भी मूल्य पर होने वाले विकास को कभी सहन नहीं करती है l ऐसा विकास प्राकृतिक आपदा बनकर अपना रौद्र रूप अवश्य दिखाता है l
ग्राम का विकास के लिए गांवों में कलात्मक लघु एवंम कुटीर ग्रामाद्योग, कृषि, गौ-पालन, बागवानी और व्यपार को बढ़ावा मिले l इसके लिए नौजवानों को प्रेरित करके प्रशिक्षित किया जा सकता है l उन्हें गाँव छोड़कर किसी अन्य स्थान पर न जाना पड़े, बल्कि कुछ ऐसा हो कि बाहर जा चुके नौजवान वापिस आ जाएँ l गाँव के नौजवानों को गाँव ही में रोजगार मिल जाये तो इससे बढ़कर और अच्छी बात क्या हो सकती है ?
इस तरह देश में ग्राम विकास का सपना अवश्य साकार हो सकता है, जब हम खुले मन से सर्वजन हिताय- सर्वजन सुखाये निति के अंतर्गत अपने-अपने घर की सीमाओं से बाहर निकलकर, विशाल आकाश की भांति समस्त समाज, देश और विश्व कल्याण का चिंतन करेंगे l
आइये ! हम सब मिलकर इस पुनीत कार्य में तन, मन धन से सहयोग देकर इसे सफल बनाएं l