भूजल स्तर में आ रही निरंतर गिरावट को जल का सदुपयोग करने से रोका जा सकता है। इससे भूजलस्तर की पुनः वृद्धि हो सकती है इसके लिए हमें आज ही से निरंतर जागरूक रहकर स्वयं कुछ प्रयास करने होंगे।
जब भी पानी पीना हो, स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, पीने के लिए सदा गहरे हैंडपंप, नलकूप, प्राकृतिक चश्में और बावड़ियों के पानी का ही प्रयोग करें। यह जल निरोग तथा स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
रसोई में खाद्य पदार्थो की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के लिए प्रयोग किया गया जल जो गंदा हो जाता है, उसे सदा पौधों व क्यारियों में ही डालें। आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए मग से जल का प्रयोग करें। जल प्रयोग करने के पश्चात नल बंद अवश्य कर देें।
अगर भूमिगत जल की टंकी में टोंटी का अभाव हो तो उसे वहां तुरंत लगा दें। नल सदा अच्छी तरह बंद करके रखें। पाइप पुरानी हो और वह कहीं से रिसाव करे तो उसे तुरंत बदलवा दें।
घर या सार्वजनिक स्नानगृह में खुले नल या शावर के नीचेे कभी स्नान न करें। खुले नल के आगेे कपड़े न धोएं, ब्रुश न करें, दाढ़ी न बनाएं। अच्छा है, बाल्टी में जल लेकर छोटे मग का ही प्रयोग करें। घर या सार्वजनिक स्थान पर नल धीमे से खोलें और जल बैंकराशि की तरह उपयोग करने के पश्चात उसे बंद कर दें।
घर या सार्वजनिक शौचालयों में जितनी अवश्यकता हो, उतने ही पानी का प्रयोग करें। किसी के द्वारा खुले छोड़े हुए नल को तुरंत बंद कर दें। भूजल की हानि को अपनी हानि समझें। घर या सार्वजनिक स्थान पर भूजल सरंक्षण के नियमों का पालन अवश्य करें। अगर भूजल आपूर्ति तंत्र में कहीं रिसाव होता हुआ दिखे तो स्थानीय निकायों को अवश्य सूचित करें।
घर, पशुशाला की सफाई करने के लिए झाड़ू और बाल्टी का तथा पशु और गाड़ी की सफाई हेतु बाल्टी और मग का प्रयोग करें ताकि भूजल का अधिक दुरुपयोग न हो।
आवश्यकता अनुसार मात्र फुहारे से क्यारी व पोैधों की सिंचाई करें। फसलों में पानी की आवश्यकता का हिसाब अवश्य रखें। खेत में जितनी आवश्यकता हो नलकूप से उतना ही पानी लगाएं। आवश्यकता से अधिक कभी भूजल दोहन न करें। फसल की बढ़ोतरी की दर से पानी के प्रयोग को घटाएं-बढ़ाएं। फसल, मिट्टी और जलवायु से अच्छी तरह मेल खाने वाली जल सिंचाई-प्रणाली ही का चुनाव करें और उसी के अनुसार खाली पड़ी भूमि पर फलदायक एवं भवन निर्माण संबंधि लकड़ी के लिए, नई पौध अवश्य लगाएं। सिंचाई समय बतलाने वाले सेंसरों का प्रयोग करें। ड्रिप एवं स्प्रिंकलर पद्धति का प्रयोग करें। स्प्रिंकलर पद्धति में रिसाव से बचने के लिए समय-समय पर जोड़ों और कपलिंगों की जांच करते रहें। सिंचाई प्रणाली का अच्छी तरह रख रखाव करें। सिंचाई के लिए सवेरे सूर्योदय से पहले लान पाट लें। उपयोगी जानकारी प्राप्त करके सिंचाई समय को ध्यान में रखें। सिंचाई समय सारिणी बनाएं और चयनित पद्धति से उचित समय पर सिंचाई करें। खेत, क्यारी की पूर्ण सिंचाई से थोड़ा पहले पानी बंद कर दें ताकि पूरे पानी का प्रयोग हो सके।
निर्माण कार्यों में भूजल का कभी प्रयोग न करें। उसके स्थान पर जोहड़, पोखर, तालाब, नदी. नाले तथा संचित वर्षा जल का ही प्रयोग करें। समाज में बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए परिवार नियोजन अपनाकर उसमें अपना योगदान दें और जहां तक संभव हो, कल के लिए भूजल पुनर्भरण अवश्य करें।
भूजल पुनर्भरण हेतु सदाबहार नालों पर आवश्यकता अनुसार लघु चैकडैम बनाएं। उनसे छोटे बिजली घर पनचक्कियों का निर्माण करके हम अपनी अवश्यक्ताओं की पूर्ति कर सकते हैं। इससे बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी और प्रतिवर्ष हमारे सिर पर मंडराने वाले बाढ़ के संकट भी कम होंगे। भूजल पुनर्भरण को प्रभावी बनाने हेतु गांव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार गहरे, तल से कच्चे जल पुनर्भरण हेतु तालाब और पोखरों का अधिक से अधिक नवनिर्माण एवं संरक्षण करके परम्परागत जल संचयन प्रणाली का सम्मान करें। अगर हम उपलिखित उपायों का अपने जीवन में चरित्रार्थ करें तो भविष्य में अवश्य ही भूजल स्तर में वृद्धि होगी। आईये! हम सब मिलकर राष्ट्रीय भूजल संरक्षण अभियान को सफल बनाएं।
महीना: दिसम्बर 2015
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श्रेणी:भू-जल भंडार
भूजल स्तर में कैसे होगी वृद्धि?
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श्रेणी:भाषा
राष्ट्रीय समर्थ भाषा
वह समाज और राष्ट्र गूंगा है जिसकी न तो कोई अपनी भाषा है और न लिपि। अगर भाषा आत्मा है तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भाषा से किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र की अभिव्यक्ति होती हैं।
विश्व में व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का भौतिक विकास और आध्यात्मिक उन्नति के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं का सम्मान तथा उनसे प्राप्त ज्ञान की सतत वृद्धि करने में ही सबका हित है।
राष्ट्र की विभिन्न भाषाओं का सम्मान करने से राष्ट्रीय भाषा का सूर्य स्वयं ही दीप्तमान हो जाता है।राष्ट्रीय भाषा स्वच्छन्द विचरने वाली वह सुगंध युक्त पवन है जिसे आज तक किसी चार दीवारी में कैद करने का कोई भी महत्वाकांक्षी प्रयास सफल नहीं हुआ है।
स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय भाषाओं के नाम पर भेद-भाव, वाद-विवाद और टकराव की मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा की जनक रहीं हैं जिससे कभी राष्ट्र हित नहीं हुआ है। विभिन्न मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा उत्पन्न होने से पैदा होती हैं और उसके मिटते ही वह स्वयं नष्ट हो जाती हैं।
संस्कृत व हिन्दी भाषाओं ने सदाचार, सत्य, न्याय, नीति, सदव्यवहार और सुसंस्कार संवर्धन करने के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई सदियां बीत जाने के पश्चात ही कोई एक भाषा राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा और फिर वह राष्ट्र की सर्व सम्मानित राजभाषा बन पाती है। भारत में कभी सर्वसुलभ बोली और समझी जाने वाली संस्कृत भाषा देश की वैदिक भाषा थी जिसमें अनेकों महान ग्रंथों की रचनाएं हुई हैं। संस्कृत भाषा को कई भाषाओं की जननी माना जाता है। इस समय हिन्दी भारत की राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा होने के साथ-साथ राजभाषा भी है। हमें उस पर गर्व है। भारत में हिन्दी भाषा अति सरल बोली, लिखी, पढ़ी, समझी और समझाई जा सकने वाली मृदु भाषा है। आशा है कि इसे एक न एक दिन संयुक्त राष्ट्र मंच पर उचित सम्मान अवश्य मिलेगा। भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपयी जी, संयुक्त राष्ट्र मंच पर अपने सर्वप्रथम भाषण में हिन्दी का प्रयोग करके इसका शुभारम्भ कर चुके हैं। वे राष्ट्र के महान सपूत हैं।
हिन्दी के प्रोत्साहन हेतु देश भर में अब तक हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/आयोजन के सरकारी अथवा गैर सरकारी अनेकों सराहनीय एवं प्रसंशनीय प्रयास हुए हैं। इससे आगे हमें हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/ आयोजनों के स्थान पर हिन्दी मासिक/तिमाही/छःमाही और वार्षिक आयोजनों का आयोजन करना होगा। हिन्दी भाषा को अधिकाधिक प्रोत्साहित करने हेतु सरल सुबोध हिन्दी शब्द कोष कारगर सिद्ध हो सकते हैं जिन्हें प्रतियोगियों का प्रोत्साहन बढ़ाने हेतु पुरस्कार रूप में प्रदान किया जा सकता है और पुस्तकालयों में पाठकों की ज्ञानसाधनार्थ उपलब्ध करवाया जा सकता है।
सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थांओं के कार्यालयों में फाइलों व रजिस्टरों के नाम हिन्दी भाषा में लिखे जा सकते हैं। कार्यालयों की सब टिप्पणियां/आदेश /अनुदेश हिन्दी भाषी जारी किए जा सकते हैं। कार्यालयों में अधिकारी व कर्मचारी नाम पट्टिकाएं तथा उनके परिचय पत्र हिन्दी भाषी बनाए जा सकते हैं। कार्यालय संबंधी पत्र व्यवहार/बैठकें/संगोष्ठियाँ /विचार विमर्श इत्यादि कार्य अधिक से अधिक हिन्दी भाषा में हो सकते हैं।
जन-जन की सम्पर्क भाषा हिन्दी को राज भाषा में भली प्रकार विकसित करने का प्रयास सरकारी या स्वयं सेवी संस्थांओं द्वारा मात्र खानापूर्ति के आयोजनों तक ही सीमित होकर न रह जाए। इसके लिए प्रांतीय, शहरी और ग्रामीण स्तर के बाजारों में तथा सार्वजनिक स्थलों पर जैसे स्वयं सेवी संस्थाओ, दुकानों, पाठशालाओं, विद्यालयों, विश्व विद्यालयों रेलवे स्टेशनों और वाहनों आदि के नाम, परिचय, सूचना पट्ट इत्यादि हिन्दी भाषा में लिखकर यह अवश्य ही सुनिश्चित किया जा सकता है कि भारत देश की राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा हिन्दी है और हिन्दी ही उसकी अपनी राजभाषा है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक और असम से सौराष्ट्र तक भारत एक अखण्ड देश है। हिन्दी भाषा अपने आप में हिन्द देश को सुसंगठित एवं अखण्डित बनाए रखने में पूर्ण सक्षम है। वह विश्व में अंग्रेजी के समकक्ष होने में हर प्रकार से समर्थ है।छमाही
ज्ञान वार्ता