मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



महीना: सितम्बर 2015

  • श्रेणी:,

    3. स्थानीय विकास और जन सहयोग

    मातृवंदना सितम्बर 2015 

    सेवा के नाम पर मानव जहाँ एक ओर समाज का विकास करता है तो दूसरी ओर जाने-अनजाने में उससे तरह-तरह के प्राकृतिक एवंम सामाजिक अपराध व शोषण भी हो जाते हैं l देखने, पढने और सुनने में समस्या गंभीर है पर जटिल नहीं l समाज का विकास होना आवश्यक है l ध्यान रहे ! वह विकास पोषण पर आधारित हो, शोषण पर नहीं l हमारी प्रकृति शोषण पर आधारित किसी भी मूल्य पर होने वाले विकास को कभी सहन नहीं करती है l ऐसा विकास प्राकृतिक आपदा बनकर अपना रौद्र रूप अवश्य दिखाता है l
    स्थापना, उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि, न्यूनता, और विनाश प्राकृतिक नियम है l इन्हें सदा रखना चाहिए l
    वन, फूल-फल, वनस्पतियाँ, लताएँ, कंदमूल, पत्त्तियाँ और जड़ी-बूटियों से पाकृतिक सौन्दर्य में निखार आता है l इन्हें सुरक्षित रखने से ही समस्त जीवों की रक्षा, उनकी सन्तति एवंम वृद्धि होती है l उन्हें नष्ट करना अथवा उनका शोषण करना उनके प्रति अन्याय है l
    धन सम्पदा, जंगल, वन्य जीव-जंतु, एवंम कीट-पतंगे, प्राकृतिक जल भंडार, कृषि योग्य भूमि, गौधन, चारागाह तथा जीवन उपयोगी पशु-पक्षियों से मानव जाति की विभिन्न आवश्यकतायें पूर्ण होती हैं l इन्हें नष्ट करना दानवता है, अपराध है l
    मनुष्य को जलवायु अनुकूल उपयोगी वस्त्र, शृंगार एवंम सजावट संबंधी सामग्री प्रकृति से प्राप्त होती हैं l उसके पोषण का ध्यान रखते हुए उसका दोहन किया जाना सर्व हितकारी है जबकि उसका शोषण विनाश को आमंत्रित करता है l गाँव व शहर का परिवेश, घर, गलियां, नालियां, बाजार, एवंम सड़क स्वच्छ रखने, प्रदूषण मुक्त आवागमन के संसाधनों का प्रयोग करने, घर-घर में शौचालय और सार्वजनिक स्थानों पर शुलभ शौचालय निर्माण करने तथा लोगों के द्वारा उनका उचित प्रयोग करने से पर्यावरण स्वच्छ रहता है l
    दूर संचार एवंम प्रचार-प्रसारण सामग्री का सदुपयोग करने एवंम उनका उचित रखरखाव का ध्यान रखने से जन, समाज और राष्ट्र की भलाई होती है l
    नैतिक शिक्षा, व्यवसायक शिक्षा, अध्यात्मिक शिक्षा तथा कलात्मक शिक्षा विद्यार्थी के गुण, संस्कार और स्वभाव के अनुकूल सत्य पर आधारित दी जाती है l इससे उनकी योग्यता में निखार आता है l उससे समाज व राष्ट्र को योग्य नेता, योग्य अधिकारी तथा योग्य कर्मचारी मिलते हैं l
    रुचिकर व्यवसाय में युवा, नौजवान की प्रतिभा के दर्शन होते हैं l ईश्वरीय तत्व ज्ञान का सृजन ज्ञानवीर करते हैं l तत्वज्ञानी बनकर विश्व कल्याणकारी कार्य किया जाता है l जल, जंगल, जमीन, जन और जीव-जन्तुओं का रक्षण शूरवीर करते हैं l पराक्रम दिखाकर सबके साथ न्याय और सबका संरक्षण किया जाता है l पर्यावरण – जल,जंगल, पेड़, बाग़-बगीचे, फुलवारियां, जमीन जन, और जीव-जन्तुओं का पोषण और संवर्धन धर्मवीर करते हैं l व्यक्तिगत या जन समूह में कर्तव्य समझकर विश्व कल्याणकारी सृजनात्मक, रचनात्मक और सकारात्मक कार्य किया जाता है l अभिरुचि अनुसार कार्य कर्मवीर करते हैं l ज्ञानवीर, शूरवीर, धर्मवीर और कर्मवीर एक दुसरे के पूरक होते हैं l