कश्मीर टाइम्स 21 फरवरी 2010
भटक गया हूँ, राह से
राह मैं अपनी भूलकर
सही राह पर, आऊं भी तो
कैसे? मैं राह खुद की खुद पहचानकर
इच्छा और आशाओं के गहन अंधेरे में
खो गया मेरा जीवन है
तालाश खुद की, खुद करूँ कैसे?
मैं नाहक बन गया दीन हीन हूँ
क्या है अच्छा, क्या है बुरा?
उलझन में उलझकर रह गया हूँ
मैं खुद को देखू कैसे, हूँ कहां?
पता नहीं, मैं कर रहा हूँ क्या?
ऊपर मेरे नीली चादर,
खड़ा मैं तपती जमी पर,
करना है मैनें, जाने क्या
और किधर है अपनी मेरी डगर?
चेतन कौशल "नूरपुरी"
महीना: फ़रवरी 2010
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श्रेणी:कवितायें
भटका राही
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श्रेणी:कवितायें
चैक डैम
कश्मीर टाइम्स 7 फरवरी 2010
थम जा,
ये जल की धारा!
छोड़ उतावली,
बहे जाती है किधर?
मुंह उठा,
देख तो जरा,
चैक डैम
बन गया है इधर
तू बाढ़ का
भय दिखाना पीछे,
पहले गति
मंद करले अपनी,
तू भूमि
कटाव भी करना पीछे,
पहले चाल
धीमी करले अपनी,
यहां रोकना है,
थोड़ी देर,
रुक सके
तो रुक जाना,
करके सूखे
स्रोतों का पुनर्भरण,
चाहे तू
आगे बढ़ जाना,
चैक डैम पर
जलचर, थलचर,
नभचरों ने
आना है,
मंडराना है
तितली-भौरों ने
फुल-वनस्पतियों पर
गुनगुनाना है,
प्रकृति का
दुःख मिटने को,
पर्यावरण की
हंसी लौटने को,
थोड़ा थम जा,
ये जल की धरा!
जरा रुक जा,
ये जल की धरा!
चेतन कौशल "नूरपुरी"