मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



साल: 2010

  • समृद्ध भारत और उसकी गरिमा
    श्रेणी:

    समृद्ध भारत और उसकी गरिमा

    दिसम्बर 2010 मातृन्दना

    विश्व  में  भारत आर्यवर्त के नाम से जाना जाता था। उसे समृद्धि के उच्चासन पर सुशोभित  करने का श्रेय देश  के उन वीर व वीरांगनाओं को जाता है जो भारत के इतिहास में नक्षत्रों की भांति दीप्यमान हैं। उन्होंने अपने समस्त सुखभोगों का परहित के लिए त्याग कर दिया था। उन्हें राष्ट्र, समाज और जन हित के कार्य अपने प्राणों से भी बढ़कर प्रिय थे। अधर्म, अज्ञानता, अकर्मण्यता, अन्याय और शोषण  उनके शत्रु थे। इन सबको सफलतापूर्वक परास्त करने हेतु उनके पास धर्म परायणता, ज्ञाननिष्ठा, कला-कौशल, शौर्यता  एवं पराक्रम जैसे अचूक संसाधन भी उपलब्ध थे। इनका उन्होंने अपनी क्षमता, आवश्यकता और परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर उचित प्रयोग करके कई बार नई सफलताएं अर्जित की थीं। उनकी प्रत्येक सफलता के पीछे जिस महान प्रेरक शक्ति का योगदान रहा है, वह शक्ति थी - उनके उच्च संस्कार जो उन्हें मिलते थे - पूर्व जन्म से, परिवार से, समाज से और गुरुकुल शिक्षा से। भारत में ऐसी व्यवस्था व्यवस्थित थी।
    संत-महापुरुषों  का कथन है कि जीवन में किसी बड़े उद्देश्य  की प्राप्ति के लिए मानव जीवन छोटा होने के कारण वह सदैव बड़ी-बड़ी चुनौतियों से घिरा रहता है। मृत्यु होने के पश्चात्य  पुनर्जन्म होने पर मनुष्य  उस कार्य को वहीं से आरम्भ करता है जहां पर उसने उसे पूर्व जन्म में अधूरा छोड़ा होता है। अथवा मृत्यु के समय उसका जिस कार्य में ध्यान रह जाता है। इस प्रकार उस प्राणी के जन्म-मृत्यु का चक्र तब तक चलता रहता है जब तक वह उस कार्य को अपनी ओर से सम्पन्न नहीं कर लेता है।
    परिवार में बड़ों के द्वारा बच्चे को जैसी शिक्षा मिलती है, वे उसके सामने जैसा आचरण करते हैं, बच्चा उन्हें जैसा आचरण करते हुए देखता है, वह उनका वैसा ही अनुसरण करता है। भले ही आरम्भ में बच्चे को अच्छे या बुरे कार्य का ज्ञान न हो पर उनका प्रभाव संस्कारों के रूप में उसके मन और मस्तिष्क  पर अवश्य  पड़ता है। विकसित अच्छे संस्कार उसके जीवन का उत्थान करते हैं जबकि बुरे संस्कार अवनति के गहन गर्त में धकेल देते हैं। इसलिए शिक्षक माता-पिता और गुरु को शास्त्र-नीति सावधान करते हुए कहती है कि बच्चों को अच्छी शिक्षा दो। उनके सामने अच्छा आचरण करो और स्वयं को सर्वदा बुरे आचरण से बचाओ। अन्यथा बच्चों पर दुष्प्रभाव  पड़ेगा और उनका भविष्य  अंधकारमय हो जाएगा। यह आपका दायित्व है।
    शास्त्र -नीति आगे कहती है कि परिवार की भान्ति समाज भी बच्चों के जीवन का उत्थान और पतन करने में सहायक होता है। यह बात उस समाज की संगति पर निर्भर करती है कि वह कितनी सुसंस्कृत  और सभ्य है? एक सभ्य एवं सदाचारी समाज की संगति से बच्चे के जीवन का विकास होता है जबकि दुराचारी और असभ्य समाज की संगति उसे पथ-भ्रष्ट  कर देती है।
    भारत के गुरुकुल उच्च संस्कारों के संरक्षक, पोषक , संवर्धक होने के साथ-साथ कार्यशालाओं  के रूप में नव जीवन निर्माता भी थे। नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला और उनके सहायक विद्यालय तथा महाविद्यालयों से भारतीय कला-सस्ंकृति न केवल भली प्रकार से फूली-फली थी बल्कि उससे जनित उसकी समृद्धि की महक विदेशों  तक भी पहुंची थी। यहां के किसी गुरुकुल से कोई भी विद्यार्थी जब पूर्ण विद्या प्राप्त करके या स्नातक युवा होकर प्रस्थान करता था तो वह उस गुरुकुल की यह प्रेरणा भी अपने साथ लेकर जाता था कि उसका व्यक्तित्व संस्कारित  है और सार्वजनिक जीवन की नींव का ठोस पत्थर भी। वह नवयुवक अपने जीवन मेें कभी ऐसा कोई भी कार्य नहीं करेगा जिससे किसी को किसी प्रकार का कोई कष्ट  हो। वह वह सदैव देश  और समाज का हित चाहने, देखने, सुनने, बोलने और कार्य करने वाला है। वह अपने दिव्यपथ से कभी विचलित नहीं होगा, भले ही उसके मार्ग में लाखों बाधाएं आएं। वह हर समय, हर स्थान पर, हर परिस्थिति में और हर संकट से दो-दो हाथ करने में समर्थ होने के कारण उनसे लोहा लेने हेतु सदैव तैयार रहेगा। यह उसका कर्तव्य है।
    सोने की चिड़िया भारत वर्ष  को अति निकटता से निहारने, समझने और उससे अपने विभिन्न उद्द्रेश्यों  की पूर्ति के लिए विदेशी  लोग भारत आए और उचित समय पाकर उसके शासक भी बनें। उनमें मुट्ठी भर गोरे अंगे्रजों ने ब्रिटिश  साम्राज्य का विस्तार करने हेतु भारत में फूट डालो, राज करो नीति का अनुसरण किया और जी भर कर आतंक फैलाया।
    आईये! हम सब संगठित होकर भारतीय सस्ंकृति की रक्षा-सुरक्षा और उसके पोशण के लिए गुरुकुलों के नैतिक मूल्यों की पुर्नस्थापना करने का दृढ़ संकल्प लें। उनके लिए धरती उपलब्ध करवाएं ताकि बच्चों को चरित्रवान बनाया जा सके। भारत को फिर से नई पहचान और उसकी अपनी उपेक्षित गरिमा प्राप्त हो सके।


    दिसम्बर 2010 मातृन्दना

  • राष्ट्रीय समर्थ भाषा
    श्रेणी:

    राष्ट्रीय समर्थ भाषा

    2010 छमाही ज्ञान वार्ता

    वह समाज और राष्ट्र  गूंगा है जिसकी न तो कोई अपनी भाषा  है और न लिपि। अगर भाषा  आत्मा है तो यह कहना अतिश्योक्ति  नहीं होगी कि भाषा  से किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र  की अभिव्यक्ति होती हैं।
    विश्व में व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का भौतिक विकास और आध्यात्मिक उन्नति के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं का सम्मान तथा उनसे प्राप्त ज्ञान की सतत वृद्धि करने में ही सबका हित है।
    राष्ट्र की विभिन्न भाषाओं का सम्मान करने से राष्ट्रीय  भाषा  का सूर्य स्वयं ही दीप्तमान हो जाता है।राष्ट्रीय  भाषा  स्वच्छन्द विचरने वाली वह सुगंध युक्त पवन है जिसे आज तक किसी चार दीवारी में कैद करने का कोई भी महत्वाकांक्षी प्रयास सफल नहीं हुआ है।
    स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय भाषाओं के नाम पर भेद-भाव, वाद-विवाद और टकराव की मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा की जनक रहीं हैं जिससे कभी राष्ट्र  हित नहीं हुआ है। विभिन्न मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा उत्पन्न होने से पैदा होती हैं और उसके मिटते ही वह स्वयं नष्ट  हो जाती हैं।
    संस्कृत व हिन्दी भाषाओं ने सदाचार, सत्य, न्याय, नीति, सदव्यवहार और सुसंस्कार संवर्धन करने के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई सदियां बीत जाने के पश्चात  ही कोई एक भाषा  राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा  और फिर वह राष्ट्र  की सर्व सम्मानित राजभाषा बन पाती है। भारत में कभी सर्वसुलभ बोली और समझी जाने वाली संस्कृत भाषा  देश  की वैदिक भाषा  थी जिसमें अनेकों महान ग्रंथों की रचनाएं हुई हैं। संस्कृत भाषा  को कई भाषाओं की जननी माना जाता है। इस समय हिन्दी भारत की राष्ट्रीय  सम्पर्क भाषा  होने के साथ-साथ राजभाषा  भी है। हमें उस पर गर्व है। भारत में हिन्दी भाषा  अति सरल बोली, लिखी, पढ़ी, समझी और समझाई जा सकने वाली मृदु भाषा  है। आशा  है कि इसे एक न एक दिन संयुक्त राष्ट्र मंच पर उचित सम्मान अवश्य  मिलेगा। भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपयी जी, संयुक्त राष्ट्र  मंच पर अपने सर्वप्रथम भाषण में हिन्दी का प्रयोग करके इसका शुभारम्भ कर चुके हैं। वे राष्ट्र  के महान सपूत हैं।
    हिन्दी के प्रोत्साहन हेतु देश  भर में अब तक हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/आयोजन के सरकारी अथवा गैर सरकारी अनेकों सराहनीय एवं प्रसंशनीय प्रयास हुए हैं। इससे आगे हमें हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/ आयोजनों  के स्थान पर हिन्दी मासिक/तिमाही/छःमाही और वार्षिक आयोजनों का आयोजन करना होगा। हिन्दी भाषा को अधिकाधिक प्रोत्साहित करने हेतु सरल सुबोध हिन्दी शब्द कोष कारगर सिद्ध हो सकते हैं जिन्हें प्रतियोगियों का प्रोत्साहन बढ़ाने हेतु पुरस्कार रूप में प्रदान किया जा सकता है और पुस्तकालयों में पाठकों की ज्ञानसाधनार्थ उपलब्ध करवाया जा सकता है।
    सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थांओं के कार्यालयों में फाइलों व रजिस्टरों के नाम हिन्दी भाषा  में लिखे जा सकते हैं। कार्यालयों की सब टिप्पणियां/आदेश /अनुदेश  हिन्दी भाषी  जारी किए जा सकते हैं। कार्यालयों में अधिकारी व कर्मचारी नाम पट्टिकाएं तथा उनके परिचय पत्र हिन्दी भाषी बनाए जा सकते हैं। कार्यालय संबंधी पत्र व्यवहार/बैठकें/संगोष्ठियाँ /विचार विमर्श  इत्यादि कार्य अधिक से अधिक हिन्दी भाषा में हो सकते हैं।
    जन-जन की सम्पर्क भाषा  हिन्दी को राज भाषा में भली प्रकार विकसित करने का प्रयास सरकारी या स्वयं सेवी संस्थांओं द्वारा मात्र खानापूर्ति के आयोजनों तक ही सीमित होकर न रह जाए। इसके लिए प्रांतीय, शहरी और ग्रामीण स्तर के बाजारों में तथा सार्वजनिक स्थलों पर जैसे स्वयं सेवी संस्थाओ, दुकानों, पाठशालाओं, विद्यालयों, विश्व  विद्यालयों रेलवे स्टेशनों  और वाहनों आदि के नाम, परिचय, सूचना पट्ट इत्यादि हिन्दी भाषा  में लिखकर यह अवश्य  ही सुनिश्चित  किया जा सकता है कि भारत देश  की राष्ट्रीय  सम्पर्क भाषा  हिन्दी है और हिन्दी ही उसकी अपनी राजभाषा  है। कन्याकुमारी से कश्मीर  तक और असम से सौराष्ट्र  तक भारत एक अखण्ड देश  है। हिन्दी भाषा   अपने आप में हिन्द देश  को सुसंगठित एवं अखण्डित बनाए रखने में पूर्ण सक्षम है। वह विश्व  में अंग्रेजी के समकक्ष होने में हर प्रकार से समर्थ है।

    छमाही ज्ञान वार्ता

  • श्रेणी:

    भारत माँ

    मातृवन्दना नवम्बर 2010 

    तू धरती, हमारी माता,
    गुण तेरे सारा जग गाता,
    करते हैं हम तुझे प्रणाम,
    भारत माँ -------------भारत माँ,
    सागसब्जी, तू तिलहन उपजाती,
    अनाज, कंदमूल हमें खिलाती,
    तू माँ, हम तेरी संतान,
    भारत माँ -------------भारत माँ
    तुझे दुःख हमसे मिलते,
    युग बीत गए पीड़ा सहते,
    तू देती नहीं ध्यान,
    भारत माँ --------भारत माँ
    पूत कपूत हो जाता,
    पर नहीं होती माता, कुमाता,
    तू करती सबका गुणगान,
    भारत माँ ---------भारत माँ
    मन आता, जा दुश्मन से टकराएँ,
    करनी का सबक, उसे सिखाएं,
    दुश्मनी का वह भूल जाए नाम,
    भारत माँ ------------भारत माँ

    चेतन कौशल "नूरपुरी"

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    वेद महिमा

    कश्मीर टाइम्स 3 अक्तूबर 2010 

    वेद भारती संस्कृति, वेद भारती समृद्धि, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
    वेद भारती आयना, वेद भारती आत्मा, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
    वेद भारती ज्ञान, वेद भारती विज्ञान, सत्यमेव-------सत्यमेव
    वेद आर्य कर्म, वेद आर्य धर्म, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
    वेद मान भारती, वेद प्राण भारती, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
    वेद भू भारती, आर्य भू भारती, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
    वेद भाग्य विधाता, वेद मुक्तिदाता, सत्यमेव------- जयते
    वेद प्रयास महान, जाने सकल जहान, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
    वेद भू नमन, आर्य भू नमन, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते

    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    हिंदी भाषा संकल्प

    मातृवन्दना सितम्बर 2010 

    हिंदी हो, हिन्द की भाषा,
    हिंदी से हिन्द की पहचान हो,
    हम सब बोलें भाषा हिंदी,
    यही संकल्प हमारा हो
    घर हो या दफ्तर,
    गली चाहे कोई दुकान हो,
    निःसंकोच हम बोलें भाषा हिंदी,
    यही संकल्प हमारा हो
    बात हो पत्र लिखने की
    या विज्ञापन प्रकाशन हो,
    लिखें हम भाषा हिंदी,
    यही संकल्प हमारा हो
    हिंदी जोड़े गांव-गांव
    अखंड भारत सजने दो,
    हिंदी छाए सारे जगत में,
    यही संकल्प हमारा हो
    अहिन्दी राज्य टकराना भूलें,
    राष्ट्रीय संचालन हिंदी हो,
    कोई बैरी न तोड़े प्यारा भारत,
    यही संकल्प हमारा हो
    हिंदी राज हो भारत में,
    अन्य भाषाओँ का भी सम्मान हो,
    जन-जन की हो भाषा हिंदी,
    यही संकल्प हमारा हो

    चेतन कौशल "नूरपुरी"