मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



महीना: फ़रवरी 2009

  • श्रेणी:

    स्वदेश के प्रति

    22 फरवरी 2009 कश्मीर टाइम्स

    न्याय प्रेमी, शांति के पुजारी प्यारे देश,
    हिम-किरीट स्वामी, जग से न्यारे देश,
    खड़ा अज्ञानी सीमा पर, कर रहा तन छारछार है,
    समझने पर टलता नहीं, कर रहा वार पर वार है,
    मार्ग दिखा कोई, राह पर लाना है उसे
    या मशाल लगा ध्वस्त करना है उसे?
    आदेश दे कोई, हम मिटाएँ तेरे घावों का क्लेश,
    न्याय प्रेमी, शांति के पुजारी प्यारे देश,
    निष्कपट, दयालु विशाल हृदय में बनें पंचशील जब,
    सुना, विचारा विश्व ने, था कहां? वह बहरा अल्पज्ञ तब,
    चाहते हैं उसको गले लगाना, विचारें हम ऐसा करें!
    शहीद हुए शूरवीर तेरे हित, कार्य कुछ ऐसा करें!
    तन, मन, धन वार प्रिय जनहित, काम करना है स्वदेश,
    न्याय प्रेमी, शांति के पुजारी प्यारे देश,


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    हमारी मांग

    15 फ़रवरी 2009 कश्मीर टाइम्स

    अनुशासित जीवन यापन जो करे,
    पार्टी टिकट उसी को मिले,
    किसी की मनमानी यहां चले नहीं,
    बयार, विपरीत दिशा कहीं बहे नहीं,
    सर्वहितकारी निर्णय निष्पक्ष जो करे,
    पार्टी टिकट उसी को मिले,
    खा-पीकर गलिकूचों में जो हो मतवाला,
    वहां उसका मुहं अवश्य हो काला,
    जीवन सम्पन्न हो जिसका सद्गुणों का
    और ध्यान निस्वार्थ सेवा में जो धरे,
    पार्टी टिकट उसी को मिले,
    स्वयं जागकर, अपना परिवार जगाने वाला,
    जगाकर परिवार, आस-पड़ोस जगाने वाला,
    जन से जन-जन को जगाने वाला,
    जगाकर गांव, शहर जागृत जो करे,
    पार्टी टिकट उसी को मिले,


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    बोलने की अपेक्षा

    प्रकाशित 8 फरवरी 2009 कश्मीर टाइम्स

    धर्म की जय हो l अधर्म का नाश हो l प्राणियों में सद्भावना हो l विश्व का कल्याण हो l गौमाता की जय हो l यह उपदेश देश के गाँव-गाँव व शहर-शहर के मन्दिरों में सुबह – शाम सुनाई देते हैं l यहाँ यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि हम वहां कौन सा उद्घोष कितने जोर से उच्च स्वर में उचारण करते हैं बल्कि वह यह है कि हम उसे आत्मसात भी करते हैं/आचरण में भी लाते हैं कि नहीं l 

    धर्म और अधर्म दोनों एक दूसरे के विपरीतार्थक शब्द हैं l जहाँ धर्म होता है वहां अधर्म किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व जमाने का प्रयास अवश्य करता है पर जहाँ अधर्म होता है वहां धर्म तभी साकार होता है जब वहां के लोग स्वयं जागृत होते हैं l लोगों की जाग्रति के बिना अधर्म पर धर्म की विजय हो पाना कठिन है l धर्म दूसरों को सुख-शांति प्रदान करता है, उनका दुःख-कष्ट हरता है जबकि अधर्म सबको दुःख-अशांति और पीड़ा ही पहुंचता है l

    सद्भावना सत्संग करने से आती है l सत्संग का अर्थ यह नहीं है कि भजन, कीर्तन, और प्रवचन करने के लिए बड़े-बड़े पंडाल लगा लिए जाएँ l लोगों की भारी भीड़ इकट्ठी कर ली जाये l स्पीकरों व डैक्कों से उच्च स्वर में सप्ताह या पन्द्रह दिनों तक खूब बोल लिया और फिर उसे भूल गए l सत्संग अर्थात सत्य का संग या उसका आचरण करना जो हमारे हर कार्य, बात और व्यवहार में दिखाई दिया जाना अनिवार्य है l जहाँ सत्संग होता है वहां सद्भावना अपने आप उत्पन्न हो जाती है l

    इस प्रकार जहाँ सद्भावना होती है वहां दूसरों की भलाई के कार्य होना आरम्भ हो जाते हैं l इसी विस्तृत कार्य-प्रणाली को परोपकार कहा गया है l जिस व्यक्ति में परोपकार की भावना होती है और वह परोपकार भी करता है, उससे उसका परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व प्रभावित अवश्य होता है l परोपकार से विश्व कल्याण होना निश्चित है l

    गौ माता की जय करने के लिए गाये के आहार हेतु चारा, पीने के लिए पानी के साथ-साथ रहने के लिए गौशाला और उसकी उचित देखभाल भी करना जरूरी है l उसे  कसाई घर और कसाई से बचाना धर्म है l जो व्यक्ति और समाज ऐसा करता है, उसे उद्घोषणा करने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ती है बल्कि वह गौ-सेवा कार्य को अपने कार्य प्रणाली से प्रमाणित करके दिखाता है l

    वास्तव में धर्म की जय, अधर्म का नाश, प्राणियों में सद्भावना, विश्व का कल्याण और गौ माता की जय तभी होगी जब हम सब सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्य करेंगे l यदि विश्व में मात्र बोलने से सब कार्य हो जाते तो यहाँ हर कोई बोलने वाला ही होता, कार्य करने वाला नहीं l संसार में कभी किसी को कोई कार्य करने की आवश्यकता न पड़ती l 

    प्रकाशित 8 फरवरी 2009 कश्मीर टाइम्स


  • भूतपूर्व सैनिकों  के बुलंद हौंसले
    श्रेणी:

    भूतपूर्व सैनिकों के बुलंद हौंसले

    1 फरवरी 2009 दैनिक कश्मीर टाइम्स

    अभी कुछ समय पूर्व इंगलिश  व हिंदी समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार भूतपूर्व सैनिकों  की आगामी लोकसभा के लिए कांगड़ा क्षेत्र से चुनाव में उतरने की तैयारी से उनके हौंसले बुलंद दिखाई दे रहे हैं जो सैनिक सेवा निवृत्ति के पश्चात  भी कम नहीं हुए हैं बल्कि और अधिक बढ़े हैं। उनके द्वारा लिया गया यह निर्णय एक उचित कदम इसलिए है  कि युद्ध की समाप्ति के पश्चात  हमारा समाज उन सैनिकों की सेवाओं और कुर्बानियों को पूरी तरह भुल जाता है। वह उनकी विधवाओं की पीड़ा व उनके माता पिता के दुख में शामिल होकर उन्हें दिलासा देने तक खानापूर्ति तो करता है पर इससे आगे उनके जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं  की हर स्थान पर उपेक्षा होती है।
    सैनिक जब सेवा निवृत्त होकर निजघर पहुंचते हैं तब उनके पास जिंदगी गुजारने के लिए मात्रा उनकी पेंशन के अतिरिक्त कोई अन्य आय का स्रोत नहीं होता है जिससे कि वह अपने परिवार और रिश्ते -नाते के सुख-दुख में को समान रूप से भागीदार हो सके। वह उससे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिला पाते हैं। उन्हें सैनिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होते हुए भी वह उनका उपयोग नहीं कर पाते हैं क्योंकि वह गांव से बहुत दूर होती हैं। जान-माल की रक्षा करने वाले व सुरक्षा रखने वाले उनके कठोर हाथ असंगठित होने के कारण कुछ नहीं कर पाते हैं। भले ही उनका कठोर अनुशासन राष्ट्र  की उन्नति करने व उसकी एकता एवं अखंडता बनाए रखने में सहायक भी क्यों न हो। इसलिए उचित यही था के वह किसी राजनैतिक दल में शामिल हो जाते या वे अपना कोई अलग से संगठन बना लेते। उन्होंने अब संगठित होकर लोकसभा चुनाव लड़ने और अपनी अवाज को लोकसभा में पहुंचाने का निर्णय कर लिया है जो चहुं ओर स्वागत करने योग्य है और हिमाचल के पड़ोसी  राज्यों को प्रेरणा दायक भी है।
    सेवानिवृत्त सैनिकों  के बुलंद हौंसले  कह रहे हैं कि -
    सेना से सेवानिवृत्त हो गए तो क्या हुआ,
    जिंदगी गुजारना अभी बाकी है,
    देश सेवा करना अभी बाकी है।


    1 फरवरी 2009 दैनिक कष्मीर टाइम्स