मई, 2007 | मानवता - Part 2

मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



महीना: मई 2007

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    15. कविता

    दैनिक जागरण 15 मई 2007 

    वीरों की तू पोषणहारी
    तू है कविता कवि की प्यारी
    देखा है मैंने तुझे सबके साथ
    पर वे सब तुझे नहीं लगाते हाथ
    अत्याचारी की तू हत्यारी
    तू है कविता कवि की प्यारी
    जिसने किया जब नीचता को सलाम

    तूने किया उसका काम तमाम
    दुराचारी की तू संहारणहारी
    तू है कविता कवि की प्यारी


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    14. ईर्ष्या – घृणा

    दैनिक जागरण 9 मई 2007

    आग से खेल रहा क्यों?
    वह राख बनाया करती है
    ईर्ष्या से भी प्रेम कर रहा
    हंसते को रुलाया करती है
    घृणा कर नीच विचारों से
    मगर इन्सान से नहीं
    करके ईर्ष्या घृणा इन्सान से
    रह सकता तू सुख शांति से नहीं



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    13. कोटि – कोटि प्रणाम

    दैनिक जागरण 3 मई 2007

    मातृ भूमि तुझको
    करूं मैं क्या अर्पण
    साहस नहीं मुझमें
    बिन देरी करूं मैं आत्म समर्पण
    बस कार्य के सिवाय
    फल की ओर न हो मेरा ध्यान
    सेवा की हो डगर अपनी
    और नित हो तुझे कोटि कोटि मेरा प्रणाम