मई, 2007 | मानवता

मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



महीना: मई 2007

  • श्रेणी:,

    17. सीने में

    दैनिक जागरण 27 मई 2007 

    कोई चिंगारी शोला नहीं बन सकती
    ऐसा उसमें दम नहीं
    शोला चिंगारी से बनता है
    पर चिंगारी शोले से नहीं
    तिल भर चिंगारी में इतना दम है
    पल भर में उससे शोला बन जाता है
    शोला तो दहकता अंगारा है
    उससे सब कुछ राख हो जाता है
    सीने में जिसके आग दवी हो
    दवा ही उसको रहने दो
    पंखा न उसे करना कभी
    कहीं शोला न बन जाए वो



  • श्रेणी:,

    1. श्रृंगार धौलाधार का

    पंजाब केसरी 21 मई 2007 

    कैसी सुंदर ओढ़ी बर्फीली
    चादर धौलाधार ने
    शुष्क मौसम से पाई
    मुक्ति धौलाधार ने
    नाले भरे नदियाँ सब बहने
    लगे हैं
    ताल बावड़ियाँ कूप सब
    जल से भरने लगे हैं
    धरती, खेतों, खलिहानों को
    मिलने लगा है पानी
    रिमझिम बरसने लगा है पानी
    बर्फ से किया फिर शृंगार
    धौलाधार ने
    आह! कैसी सुंदर ओढ़ी
    बर्फीली चादर धौलाधार ने




  • 1. श्रृंगार धौलाधार का

    पंजाब केसरी 21 मई 2007 

    कैसी सुंदर ओढ़ी बर्फीली
    चादर धौलाधार ने
    शुष्क मौसम से पाई
    मुक्ति धौलाधार ने
    नाले भरे नदियाँ सब बहने
    लगे हैं
    ताल बावड़ियाँ कूप सब
    जल से भरने लगे हैं
    धरती, खेतों, खलिहानों को
    मिलने लगा है पानी
    रिमझिम बरसने लगा है पानी
    बर्फ से किया फिर शृंगार
    धौलाधार ने
    आह! कैसी सुंदर ओढ़ी
    बर्फीली चादर धौलाधार ने




  • 1. श्रृंगार धौलाधार का

    पंजाब केसरी 21 मई 2007

    कैसी सुंदर ओढ़ी बर्फीली
    चादर धौलाधार ने
    शुष्क मौसम से पाई
    मुक्ति धौलाधार ने
    नाले भरे, नदियाँ सब बहने
    लगे हैं
    ताल, बावड़ियाँ, कूप सब
    जल से भरने लगे हैं
    धरती, खेतों, खलिहानों को
    मिलने लगा है पानी
    रिमझिम बरसने लगा है पानी
    बर्फ से किया फिर शृंगार
    धौलाधार ने
    आह ! कैसी सुंदर ओढ़ी
    बर्फीली चादर धौलाधार ने

  • श्रेणी:,

    16. भू – जल दोहन

    दैनिक जागरण 18 मई 2007

    बूंद बूंद से होता है भूजल पुनर्भरण
    सुनियोजित करना है भूजल दोहन व्यवहार
    सुरक्षित रखना है शुद्ध भूजल भंडार
    सुखी रहेगा मनमोहन संसार
    भूजल धरती की है अमूल्य सम्पत्ति
    व्यर्थ दोहन है आने वाली विपत्ति
    भूजल धरती का करता है श्रृंगार
    अनावश्यक दोहन सरासर है निराधार