दैनिक जागरण 25 नवंबर 2006
अपने ही छूट जाते हैं बहुत दूर
छोटी सी जिन्दगी की लम्बी राह पर
सदा नहीं रहता साथ यहां स्वदेह का भी
बस पानी बुलबुला है सत्य की राह पर
साथ नहीं देता हर कोई हर कहीं
हर पल और हर डगर पर
राह में लगती हैं ठोकरें कदम कदम पर
चलना पड़ता है अकेला ही संभल कर
उठता नहीं गिर कर चलता नहीं जो संभल कर
कठिन राह अपनी आगे की समझ कर
गिर जाता है वह फिर अन्य कोई ठोकर खाकर
और कोसने लगता है भाग्य अपना खुद दुख पाकर
चेतन कौशल "नूरपुरी"
महीना: नवम्बर 2006
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श्रेणी:कवितायें
जिन्दगी की राह
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श्रेणी:कवितायें
संघर्ष की जिंदगी
दैनिक जागरण 18 नवंबर 2006
है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
डगमगाना नहीं है प्रण से
विचलित नहीं होना है पथ से
आज का काम करना है आज
कल पर नहीं छोड़ना है आज
है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
जिंदगी अपनी है ही क्या
भयभीत रहे मंजिल मिलेगी क्या
सामना करना है जीवन संघर्ष से
जीवन संवारना है जीवन संघर्ष से
है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
आशीर्वाद बड़ों का लेकर साथ
हाथ छोेटों का भी थामकर हाथ
हर कदम बढ़ाना है मंजिल की ओर
पूर्व में देखो हो रही भोर
है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
चेतन कौशल "नूरपुरी"