दिव्य हिमाचल 23 दिसम्बर 2004
नभ से बूंदाबांदी होती टिप टिप टिप
धरा पर इधर उधर गिरती पड़ती टिप टिप टिप
सांए सांए करती जलधारा बन कर
नाली नाला नदी रूप बन कर
पहाड़ से जंगल और मैदान की ओर
जलधारा बढ़ती जलाश्य की ओर
उसे बहना है वह बहती जाती है
पहाड़ से चलती सागर से मिल जाती है
वर्षा जल आता आंधी बन कर
बढ़ जाता आगे तूफान बन कर
भूजल धरती को नहीं मिल पाता है
कष्ट सहती धरती ज्यादा नहीं सहा जाता है
गर्म सीना धरती का जलता जा रहा
भूमि का जल स्तर घटता जा रहा
मनवा प्यासी धरती करे पुकार
सुरक्षित भूजल भंडार सबका करे उद्धार
चेतन कौशल "नूरपुरी"
महीना: दिसम्बर 2004
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श्रेणी:कवितायें
भूजल भंडार करे उद्धार
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श्रेणी:कवितायें
जल संकट नहीं होने देंगे
दिव्य हिमाचल 7 दिसम्बर 2004
जल की हर बूंद है अनमोल
जल से जीवन का है मोल
बूंदबूंद से भर जाता है घड़ा
पगपग पर जल करना है खड़ा
बावड़ी बना कर कूप बना कर
तालाब बना कर जलाशय बना कर
बावड़ी यहां पर कूप वहां पर
तालाब यहां पर जलाशय वहां पर
भूजल का स्तर बढ़ाना है
नमीदार पेड़ जंगल उगाना है
नदियों को स्वच्छ बनाना है
पर्यावरण का प्रदूषण हटाना है
मनवा अब हम कोई बूंद व्यर्थ नही होने देंगे
यहां वहां कल का जल संकट नही होने देंगे
चेतन कौशल "नूरपुरी"