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2. शिक्षा और अध्यात्म ने जोड़ा है बिखरा समाज

मातृवंदना अप्रैल 2011 

सत्य ब्रह्म है और ब्रह्म ही सत्य है l ऐसा वेद कहते हैं l वेद भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के दिव्य आधार स्तंभ रहे हैं जो सदियों से मानव जाति में सत्य, कर्म, धर्म और शौर्यता का संचार करते आये हैं l हमारे पूर्वज आर्य थे l आर्य सत्यप्रिय, कर्मनिष्ठ, धार्मिक और शूरवीर थे l इसी आधार पर भारत में नैतिक, सामाजिक, अध्यात्मिक, राजनैतिक और आर्थिक शक्तियों का संपूर्ण विकास हुआ था l इस कार्य को सफल बनाने वाली थी, भारतीय गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली l
भारतीय शिक्षा-प्रणाली संसार और अध्यात्म दोनों की प्रिय रही है l वह सत्य पर आधारित थी l इससे विद्यार्थी द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया जाता था l विद्यार्थी अन्तर्मुखी हो जाता था l इससे उसकी आत्म साक्षात्कार करने की दिशा निर्धारित होती थी l
भारतीय शिक्षा कर्म प्रधान थी l वह सर्वजन हिताय – सर्व जन सुखाय का बोध करवाती थी l उसमें जीव जंतुओं के हित और उनके सुख का भी विशेष ध्यान रखा जाता था l पर्यावरण सुरक्षा में लेश मात्र भी उपेक्षा नहीं की जाती थी और प्रदूषण कहीं दिखाई नहीं देता था l
भारतीय शिक्षा धार्मिक और संस्कारित थी l विद्यार्थी का जीवन धार्मिक और संस्कारवान होता था l वह जीवन में कभी नीच कर्म करने का दुस्साहस नहीं करता था l अगर उससे कभी ऐसा हो भी जाता था तो गुरुकुल या गुरु के द्वारा उसका सुधार कर लिया जाता था l उसकी सोच पवित्र हो जाती थी l वह किसी का दुःख अपना दुःख समझकर उसे दूर करने का प्रयास करता था l वह सदैव माँ-बाप, गुरु, वृद्ध और महिलाओं का सम्मान किया करता था l उसकी जीवन शैली महान थी l
भारतीय शिक्षा बच्चों को पराक्रमी बनाती थी l उससे विद्यार्थी अपने जीवन में किसी भी दुःख या कष्ट का सामना करने में सक्षम हो जाते थे l वह राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का डटकर सामना करने के लिए सदैव तैयार ही नहीं रहते थे बल्कि उनका सामना भी करते थे l इससे बिखरे हुए समाज को अज्ञान के अँधेरे में सत्य का प्रकाश मिलता था l उसे सत्कर्म करने की प्रेरणा मिलती थी l धर्म और संस्कारों से उसे जीने-मरने की कला का ज्ञान होता था और इसके साथ ही साथ उसे शूरवीरता से जान-माल की रक्षा-सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना करने का साहस भी मिलता था l
इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय शिक्षा और अध्यात्म बिखरे हुये समाज को जोड़ने में ज्ञान, कर्म, धर्म, और शौर्यता इत्यादि सर्व गुणों से संपन्न, समर्थ और सक्षम रहा है l यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजों के द्वारा भारतीय गुरुकुल शिक्षा–प्रणाली प्रथा को हतोत्साहित करके धीमें-धीमें समाप्त कर दिया गया l राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात स्वार्थवश हमने इस ओर देखने का साहस तक नहीं किया जिसकी हमें आज अत्याधिक आवश्यकता है l आइये ! हम सब इसकी पुनर्स्थापना करने का मिलकर प्रयास करें ताकि भारत का खोया हुआ पुरातन गौरव पुनः प्राप्त हो सके l

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