जून 2011 मातृवन्दना
सिंहनी बलवान सिंह जन्म देकर
सदा अभय होकर सोती है
गधी दस गधों की माँ होकर भी
दुःख पाती, बोझा ढोती है
सौ पुत्र थे, गन्धारी- धृतराष्ट्र के,
दुःख ही दुःख पाया था
पांच थे कुंती के प्यारे पांडव,
दुःख में भी सुख पाया था
माँ ! तू जनना धर्म परायण,
ज्ञाननिष्ठ, कला प्रेमी और शूरवीर
नहीं तो बाँझ ही रहना भला,
व्यर्थ न बहाना कभी नैन नीर
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