मानवता

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1. जल – धारा से

मातृवन्दना अक्तूबर 2013 

थम जा, ऐ जल की धारा !
छोड़ उतावली, बहे जाती है किधर?
मुंह उठा, देख तो जरा
चैकडैम बन गया है इधर
तू बाढ़ का भय दिखाना पीछे
पहले गति मंद कर ले अपनी
तू भूमि कटाव भी करना पीछे
पहले चाल धीमी कर ले अपनी
यहाँ रोकना है थोड़ी देर
रुक सके तो रुक जाना
करके सूखे स्रोतों का पुनर्भरन
चाहे तू आगे बढ़ जाना
चैक डैम पर जलचर, थलचर,
नभचरों ने आना है
मंडराना तितली, भोरों ने
फूल – वनस्पतियों पर गुनगनाना है
प्रकृति का दुःख मिटाने को
पर्यावरण की हंसी लौटने को
थोड़ा थम जा, ऐ जल की धारा !
जरा रुक जा, ऐ जल की धारा !



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