दिनांक 24 सितंबर 2025
सत्सनातन अनास्था का दुष्प्रभाव –
सत्सनातन धर्म के विरोधी जन और उनके समाज के द्वारा सत्सनातन धर्म और जन आस्था के विरुद्ध आचरण करने के कारण – धरती पर विशेष सम्प्रदाय के लोगों - आतताइयों की बाढ़ सी आ गई है l उनके द्वारा सत्सनातन धर्म के विरुद्ध स्थान - स्थान पर बात - बात पर उपद्रव मचाना, लूट-पाट करना, हिंसा करना, महिलाओं का ब्रेन वाश करके अपहरण, लव जिहाद, धर्मांतरण, अपमान करना वर्तमान में एक आम बात है l अब तक सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं और जागृत महानुभावों के द्वारा उनकी समाज विरोधी गतिविधियों पर विराम लगाने के सतत जो भी प्रयास हुए हैं, अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं l उन्हें तभी रोका जा सकता है जब संख्या आधारित आतताइयों के द्वारा किये जाने वाले किसी भी उपद्रव के अनुपात में उनके विपरीत सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों एवं सुप्त अवस्था से जागृत जन, समाज के द्वारा एक जुट होकर कोई सशक्त प्रयास हो l देश का शिक्षाविद, बुद्धि जीवी वर्ग इस समस्या को भली प्रकार जानता है और समझता भी है l आवश्यकता है - जन साधारण और समाज अनास्था और आतताइयों के कुकृत्यों एवं उनके दुष्प्रभाव से बचने/बचाने हेतु विद्वानों का महत्व समझे, उनका मिलकर साथ दे, उनके प्रति अपनी श्रद्धा, प्रेम, भक्ति और विश्वास बना कर रखे l
विद्वानों की संगत -
# विद्वानों के प्रति श्रद्धा, प्रेम, भक्ति और विश्वास रखने से हर समस्या का निदान होता है, यथार्थ वैदिक ज्ञान वर्धन होता है, तात्विक ज्ञान प्राप्त होता है l*
# तात्विक ज्ञान से आत्म शांति मिलती है l*
# आत्मशांति की प्राप्ति से जन जाग्रति आती है, उससे मानवीय, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय समस्याओं का हल निकलता है l*
# जनजागृति से धार्मिक संस्कार मिलते हैं, विद्या ज्ञान प्राप्त होता है l*
संगत से सद्भावना –
# विद्वानों की संगत करने से सद्भावना पैदा होती है, इन्द्रिय सयम और मनो निग्रह का मार्ग प्रसस्त होता है, स्वयं किये जाने वाले कार्य में मनायोग बना रहता है, कार्य में सफलता मिलती है l*
# इन्द्रिय सयम और मनो निग्रह से त्याग भावना बढ़ती है l*
# त्याग भावना से माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि सेवा के प्रति मन में निस्वार्थ भाव उभरते हैं l *
# निस्वार्थ सेवा भाव से मन में दान भावना उत्पन्न होती है l*
सद्भावना से सद्विचार –
# सद्भावना से सद्विचार उत्पन्न होते हैं, माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत, अतिथि, राष्ट्र और मानव समाज सेवा संबंधी अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं, जन चर्चायें होती हैं, जन संगोष्ठियाँ की जाती हैं, विचारों का अदान – प्रदान, प्रचार – प्रसार होता है l*
# महत्वपूर्ण विचार प्रकाशित और चर्चायें करते समय मानवीय, पारिवारिक, सामजिक एवं राष्ट्रीय मान – मर्यादाओं का ध्यान रखा जाता है l*
# मंच पर सबके सम्मुख अपना - अपना विचार रखने हेतु विभिन्न विचारकों को एक समान अवसर दिया जाता है l*
# सभी के विचारों को ध्यान में रखते हुए सर्वहितकारी विचारों पर सर्व सहमती बनाई जाती है l*
सद्विचारों से सत्कर्म –
# सद्विचारों से कल्याणकारी सत्कर्म होते हैं l उन से माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि की सेवा होती है, सामाजिक एकता बनती है, साहित्य, संगीत जन - संस्कार, कला - संस्कृति का रक्षण होता है l*
# साहित्य, संगीत, जन - संस्कार, कला - संस्कृति के रक्षण से हस्त - ललित कलाओं का पोषण, वर्धन होता है, जन साधारण में प्रेम बढ़ता है l*
# हस्त - ललित कलाओं से युवाओं को व्यवसाय मिलता है l*
# व्यवसाय मिलने से कल्याणकारी (लंगर लगाना, नियमित हवन करना, स्वच्छता एवं पवित्रता बनाये रखना जैसे अनेकों कार्य) सत्कर्म किये जाते हैं l*
सत्कर्मों से अच्छा परिणाम -
# सत्कर्म करने से परिणाम सदैव अच्छा ही निकलता है l*
# अच्छा कार्य मन को संतुष्टि प्रदान करता है l*
# अच्छे कार्य से मन प्रसन्न और आनंदित होता है l*
# अच्छा कार्य करने से मन प्रेम से अलाहादित होता है, जिससे वह किसी भी भौतिक वादी या अध्यात्मवादी कार्य को पहले से अधिक तन्मयता के साथ करने लगता है l*
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