29 जून 1996 दैनिक कश्मीर टाइम्स
स्वामी सबका ईश्वर है,
प्राणी हैं अनेक,
जीवन सबका समान है,
देख सके तो मन से देख,
नारी सबकी जननी है,
माताएं हैं अनेक,
बच्चे सबके समान हैं
देख सके तो मन से देख,
ज्ञान जननी बुद्धि है,
मस्तिष्क हैं अनेक,
आत्म - ज्ञान समान है,
देख सके तो मन से देख,
खून सबका लाल है,
विचार हैं अनेक,
प्रेम से सब समान हैं,
देख सके तो मन से देख,
जाति सबकी मानव है,
नर – नारी हैं अनेक,
जन्म से सब समान हैं,
देख सके तो मन से देख,
धर्म सबका मानवता है,
संप्रदाय हैं अनेक,
अपने – पराय सब समान है,
देख सके तो मन से देख,
धरती सबकी सांझी है,
परंपरायें हैं अनेक,
मिलकर सब समान हैं,
देख सके तो मन से देख,
श्रेणी: 7 स्व रचित रचनाएँ
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5. देख सके मन से देख
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4. शाख – शाख पर
24 जून 1996 कश्मीर टाइम्स
जिधर देखूं,
उधर अजगर,
इधर अजगर,
उधर अजगर,
आगे अजगर,
पीछे अजगर,
नीचे अजगर,
ऊपर अजगर,
अंदर अजगर,
बाहर अजगर,
छोटा अजगर,
बड़ा अजगर,
जिधर देखूं,
उधर अजगर,
अजगर ही अजगर
हो जायेंगे जब हर शाख पर,
बता चेतन चहकेंगे पंछी,
कैसे? शाख शाख पर,
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3. घृणा – फूट
24 जून 1996 कश्मीर टाइम्स
भड़कने नहीं देंगे, हम फिर
घृणा-फूट की ज्वाला,
अवरुध्द करेंगे, बढ़ती इस
भयानक आंधी को,
दुश्मनों का दिल तो है
पहले से ही काला,
सीने पर लगने नहीं देंगे, अब
कोई गोली किसी गांधी को,
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2. चाहेंगे हम
18 जून 1996 कश्मीर टाइम्स
दे सकते हैं, हम सत्ता जिन शासकों को,
हटा सकते हैं, हम उनको भी शासन से,
लोकतांत्रिक हैं, हम बोलेंगे उन शासकों को,
गद्दारी मत करना, तुम भूलकर भी स्वशासन से,
दे सकते हो, कुशल और स्वच्छ प्रशासन देना,
सुख समृद्धि देना और कल्याणकारी प्रशासन देना,
नहीं तो फिर हमने तुम्हारा स्थान खाली कर देना,
चाहेंगे हम तुम्हारा स्थान खाली कर देना,
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1. किस काम का
कश्मीर टाइम्स 18 जून 1996
सेवा जो कर न सके,
वह तन है किस काम का ?
नाम जो जाप न सके,
वह मन है किस काम का ?
कार्य जो सिद्ध कर न सके,
वह धन है किस काम का ?
सन्मार्ग जो दिखा न सके,
वह ज्ञान है किस काम का ?
जीवन-रस जो भर न सके,
वह धर्म है किस काम का ?
जीवन सृजन जो कर न सके,
वह दाम्पत्य है किस काम का ?