मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 7 स्व रचित रचनाएँ

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    2. जय भारत देश महान

    आलेख - राष्ट्रीय भावना दैनिक जागरण 18 अगस्त 2007 
    वह भारत का स्वर्णयुग ही था जब देश का कोई भी नौजवान अपने बल, साहस, सुझबुझ और विद्या-ज्ञान आदि गुणों से सदैव परिपूर्ण रहता था l इसी कारण वह स्थानीय क्षेत्र से बढ़कर राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और समस्त विश्व स्तर पर भी पहुँच जाता था l वहां वह अपनी अद्भुत प्रतिभा और अपार प्रभावी क्षमताओं के कारण जाना-पहचाना जाता था l 

    उसका अपेक्षित संकल्प पूजनीय माता-पिता व् गुरु को कभी शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट पहुँचाने वाला नहीं होता था l उसकी अपनी कोई भी स्वार्थपूर्ण भावना प्यारे बहन भाई को बलात पीड़ा अथवा क्षति पहुँचाने वाली नहीं होती थी l उसका कोई भी विचार किसी व्यक्ति, जाति, वंश, मत, पंथ, सम्प्रदाय का ही नहीं बल्कि किसी भाषा, स्थानीय क्षेत्र, समाज और राष्ट्र के लिए भी कल्याणकारी होता था l वह सदैव वाद-विवाद से ऊँचा उठकर स्थानीय क्षेत्र, समाज और राष्ट्र की एकता एवंम अखंडता बनाये रखने में सहायक होता था l उसकी वाणी से कदाचित दूसरों का मन आहत और व्यथित नहीं होता था l वह किसी की उन्नति से घृणा, अथवा द्वेष नहीं करता था बल्कि उससे प्रेरणा और सहयोग लेकर अपने सन्मार्ग पर आगे बढ़ने का निरंतर प्रयास किया करता था l उसका अपना हर आचार-व्यवहार सर्व सुख-शांति प्रदाता होता था l वह वन सम्पदा, समस्त जीव जंतुओं और प्राकृतिक सौन्दर्य से भी उतना ही अधिक प्रेम किया करता था जितना कि अपने परिवार से l उसके दोनों हाथ सदैव किसी असहाय, पीड़ित, अपाहिज, बाल, वृद्ध रोगी, नर-नारी की निस्वार्थ सेवा सुश्रुसा और सहायता हेतु हर समय तत्पर रहते थे l उसका आहार सदैव बलवर्धक और पौष्टिकता से भरपूर रहता था l उसके पराक्रमी साहस के समक्ष स्थानीय क्षेत्र, समाज और राष्ट्र विरोधी तत्व भूलकर भी कोई अपराध करने का दुस्साहस नहीं कर पाते थे l इसी कारण स्थानीय क्षेत्र, समाज और राष्ट्र में सब ओर सुख-शांति और समृद्धि होने से भारत विश्व में सोने की चिड़िया के नाम से सर्व विख्यात हुआ था l


    आइये ! हम सब मिलकर आज कुछ ऐसा कर दिखाएँ कि जिससे भारत को उसका पुरातन खोया हुआ हुआ गौरव फिर से प्राप्त हो सके और विश्वभर में ये प्यारा संगीत सदा अनवरत, अविरल चहुँ ओर गूंजता रहे ---- “जय भारत देश महान , ऊँची तेरी शान----- ऊँची तेरी शान l”



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    1. आस्था की दहलीज

    आलेख - धर्म अध्यात्म संस्कृति  दैनिक जागरण 1.8.2007  

    हमारे देश में ऐसे अनेकों धार्मिक व तीर्थ स्थल हैं जिनके साथ हमारी पवित्र आस्थाएं जुड़ी हुई हैं l हम वहां अपनी किसी न किसी कामना सहित देव दर्शनार्थ जाते हैं और अपनी कामना पूरी होने पर उन्हें श्रद्धा सुमन भी अर्पित करते हैं l इससे हमें मानसिक शांति मिलती है l  पर दुर्भाग्य से इन्हीं धार्मिक व तीर्थ स्थलों पर समाज विरोधी तत्वों का साम्राज्य स्थापित हो गया है l मंदिर परिसरों में भारी भीड़, महिलाओं से छेड़-छाड़, दुर्व्यवहार, उनके कीमती जेवरों का छिना जाना और पुरुषों की जेब तक कट जाना प्रतिदिन एक गंभीर समस्या बनती जा रही है l ऐसा व्रत-त्योहार व मेलों में होता है l इस समस्या से निपटने के लिए आवश्यक है कि मंदिर प्रशासन और मेला आयोजकों के कार्यक्रमों को सुव्यवस्थित व अनुशासित बनाने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं को भी आगे आने का सुअवसर दिया जाये l उन्हें प्रशासन की ओर से पूर्ण सहयोग मिले ताकि हमारे मंदिर और तीर्थ स्थान आस्था के केंद्र बने रहें और श्रद्धालु, भक्त जनों को वहां सदा भय एवम् तनाव मुक्त वातावरण मिल सके l पंजाब से सीखना चाहिए कि इन स्थलों की शुचिता कैसे बनाये रखी जाती है l


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    19. पानी को बचाएं

    दैनिक जागरण 15 जून 2007 

    पानी लेकर बंद करना है नल
    भाई यों ही व्यर्थ नहीं बहाना है जल
    सब्जी या फलों को धोकर
    क्यारी में डाल देना है पानी
    क्यारी में नमी रहेगी
    नाली में नहीं जाने देना है पानी
    शेष बचा बोतल या बाल्टी का पानी
    है क्यारी के पौधों का पानी
    कल के लिए ढक कर
    आज रखना है पेयजल
    संभलकर कल भी
    प्रयोग करना है पेयजल



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    18. क्रांतिकारी

    दैनिक जागरण 13 जून 2007 

    पल भर नहीं जो कर्महीन रहता
    कुछ न कुछ करता रहता है
    रखता अज्ञान शोषण अत्याचार पर कड़ी नजर
    दहकते अंगारों पर बे खबर चलता है
    राह में मुसीबतें आएं चाहे जितनी
    वह नित आगे बढ़ता जाता है
    मौत भी सामने क्यों न आए
    वह खुशी से निज कण्ठ लगाता है
    क्रांति कभी आ नहीं सकती
    है यह तो उसमें दम नहीं
    चाहे क्रांति होती है बलवान बहुत
    पर देखा क्रांतिकारी भी कुछ कम नहीं



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    17. सीने में

    दैनिक जागरण 27 मई 2007 

    कोई चिंगारी शोला नहीं बन सकती
    ऐसा उसमें दम नहीं
    शोला चिंगारी से बनता है
    पर चिंगारी शोले से नहीं
    तिल भर चिंगारी में इतना दम है
    पल भर में उससे शोला बन जाता है
    शोला तो दहकता अंगारा है
    उससे सब कुछ राख हो जाता है
    सीने में जिसके आग दवी हो
    दवा ही उसको रहने दो
    पंखा न उसे करना कभी
    कहीं शोला न बन जाए वो