मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 7 स्व रचित रचनाएँ

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    11. संकल्प

    21 जून 2009 कश्मीर टाइम्स  

    वह देखो! उधर सूखा है चहुं ओर,
    कैसी वीरानगी, उदासी छाई है?
    वहां हड्डी है, कोयला भी, मगर
    छाया कहीं नजर नहीं आई है,
    कार्य हमने अब कुछ ऐसा है करना,
    सूखे की ओर रुख नदी का है करना,
    मरु में लानी है हमनें हरित क्रांति,
    व्यर्थ बहते जल से, सूखे में हरित क्रांति,




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    10. भूजल पुनर्भरण

    14 जून 2009 कश्मीर टाइम्स

    भूजल पुनर्भरण होगा आज
    सुव्यवस्थित जलसंसाधन का,
    यहां-वहां पर करेंगे हम
    पुनर्जागरण जन-जन का,
    अनावश्यक जल को बांधकर
    सबका करेंगे उपकार,
    भूजल स्तर बढ़ता है इससे,
    संम्पन्न होता है संसार,
    सुखी धरती करती है पुकार,
    संचित भूजल सबका करता है उद्धार,


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    8. हमारी जिम्मेदारी

    24 मई 2009 कश्मीर टाइम्स

    कुछ ऐसी वस्तुओं का हमनें प्रयोग शुरू है करना,
    दूसरी बार जिनका प्रयोग हो न सके,
    प्लास्टिक, पॉलीथिन का प्रयोग बंद है करना,
    जिन वस्तुओं से पर्यावरण प्रदूषण रुक न सके,
    हटाना है हमने प्लास्टिक, पॉलीथिन वस्तुओं को,
    पर्यावरण प्रदूषण, फैलता है जिन वस्तुओं से,
    अपनाना है, हमनें फिर से उन वस्तुओं को,
    पर्यावरण प्रदूषण न फैले, जिन वस्तुओं से,
    पर्यावरण प्रदूषण की वस्तुओं का, हमने करना है उत्पादन
    तो उन्हें हटाने की भी हम क्यों न जिम्मेदारी लें
    उपभोक्ता नहीं चाहते पर्यावरण प्रदूषण और उत्पादन,
    आओ! पर्यावरण प्रदूषण मिटाने की हम जिम्मेदारी लें




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    7. शिक्षा —–

    3 मई 2009 कश्मीर टाइम्स

    कार्य प्रयास करें जो सबका भला,
    सबके काम आएं जो विधि-विधान,
    संस्कारों का आचरण सदा यथार्थ हो,
    कार्य-व्यवहार करें जीवनोपयोगिता बयान,
    ज्ञान बढ़े और हो जिससे आत्मरक्षा,
    स्वास्थ्य वर्धन करे और रहे सामाजिक सुरक्षा,
    देगा कौन? हमें ऐसी शिक्षा,
    मिलेगी कहां? हमें ऐसी शिक्षा,




  • 5. दिल प्रीतम का घर है
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    5. दिल प्रीतम का घर है

    19 अप्रैल 2009 दैनिक कश्मीर टाइम्स

    महात्मा गांधी जी का कथन है कि जिस तरह हमें अपना शरीर कायम रखने के लिए भोजन जरूरी है, आत्मा की भलाई के लिए प्रार्थना कहीं उससे भी ज्यादा जरूरी है। प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं वरन हृदय से होता है। इसलिए गूंगे , तुतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। जीभ पर अमृत - राम नाम हो और हृदय में हलाहल - दुर्भावना तो जीभ का अमृत किस काम का?
    उपरोक्त विचारों से स्पष्ट   है कि प्रार्थना या भजन हृदय से किया जाता है जिससे मनुष्य  का हृदय शुद्ध होता है। ऐसा करने के लिए उसे वाह्य संसाधनों अथवा संयत्रों की कभी आवश्यकता नहीं होती है बल्कि उसे आत्मावलोकन एवं स्वाध्य करना होता है आत्म शुद्धि करनी होती है। जिस मनुष्य के  हृदय में दुर्भावना एवं अज्ञान होता है वह समाज का न तो हित चाहता है और न कभी भलाई के कार्य ही करता है।
    इसी कारण आज देश  का प्रत्येक व्यक्ति, परिवार गांव और शहर पलपल ध्वनि प्रदूषण  का शिकार हो रहा है। उसकी दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। उससे समस्त जन जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। ध्वनि प्रदूषण  के कारण समाज में बहरापन रोग भी बढ़ रहा है। इसका उत्तरदायी कौन है?
    वर्तमान में विवाह, पार्टी, घर व दुकानों में रेडियो दूरदर्शन, टेपरिकार्डर, डैक एवं मंदिर, गुरुद्वारा मस्जिद पर टंगे बड़े-बड़े स्पीकर तथा जगराता पार्टियां बे रोक-टोक ध्वनि प्रदूषण  फैला रहे हैं।
    बच्चों के पढ़ने व रोगी के आराम करने के समय पर संयत्रों के उच्च स्वर सुनाई देते हैं। उनसे मनचाहा उच्च स्वरोच्चारण होता है। शायद ऐसा करने वाले भक्तजन व विद्वान लोगों को भजन कीर्तन सुनना कम और सुनाना ज्यादा अच्छा लगता होगा। क्या उससे बच्चे पढ़ाई कर पाते है? क्या इससे किसी दुःखी, पीड़ित या रोगी को पूरा आराम मिल पाता है?
    स्मरण रहे कि प्रार्थना या भजन स्पीकरों या डैक से नहीं मानसिक या धीमी आवाज में ही करना श्रेष्ठ व हितकारी है। उससे किसी को दुःख या कष्ट  नहीं होता है। इसी कारण बहुत से लोग आत्मचिंतन करते हैं तथा मानसिक नाम का जाप करते हैं। उन्हें किसी को सुनाने की आवश्यकता  नहीं होती है।
    रोगी, दुखियों  को कष्ट  पहुंचाना और विद्यार्थियों की पढ़ाई में बाधा डालना इंसान का नहीं शैतान का कार्य है। अगर हम मनुष्य  हैं तो हमें मनुष्यता  धारण कर मनुष्य  के साथ मनुष्य  जैसा व्यवहार आवश्य  करना चाहिए, शैतान सा नहीं।
    प्रार्थना या भजन करना हो तो हृदय से करो, वह जीवनामृत है। शैतान और अज्ञानी होकर विभिन्न संयत्रों से उच्च स्वर बढ़ाकर उसे समाज के लिए विष  मत बनाओ।
    समाज में ध्वनि प्रदूषण  न फैल सके, इसके लिए प्रशासन के द्वारा ध्वनि विस्तार रोधक कानून से अंकुश  लगाया जाना आवश्यक  है। हम सबको इस कार्य में योगदान करना चाहिए। किसी ने ठीक ही कहा है कि दिल एक मंदिर है। प्यार की जिसमें होती है पूजा, वह  प्रीतम का घर है।


    19 अप्रैल 2009 दैनिक कश्मीर टाइम्स