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श्रेणी: 7 स्व रचित रचनाएँ

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    8. आदर्श समाज की कल्पना

    6 सितम्बर 2009  दैनिक कश्मीर टाइम्स सामाजिक जन चेतना

    आओ हम ऊँच-नीच का भेद मिटायें,

    सब समान हैं, चहुँ ओर संदेश फैलायें l

    भारतीय समाज में कोई जाति से बड़ा है तो कोई धर्म से, कोई पद से ऊँचा है तो कोई धनबल से l प्रश्न उठता है कि क्या ऐसा पहले भी होता था ? हाँ, होता था पर अब उसमें अंतर आ गया है l पहले हमारी सोच विकसित थी, हम हृदय से विशाल थे, हम निजहित से अधिक संसार का हित चाहते थे परन्तु वर्तमान में हमारी सोच बदल गई है l हमारा हृदय बदल गया है, हम मात्र निजहित चाहने लगे हैं l इसका मुख्य कारण यह है कि हम अध्यात्मिक जीवन त्यागकर निरंतर संसारिक भोग विलास की ओर अग्रसर हुए हैं l हमने योग मूल्य भूला दिए हैं जिनसे हमें सुख के स्थान पर दुःख ही दुःख प्राप्त हो रहे हैं l

    देखा जाए तो यह बड़प्पन या ऊँचापन मिथ्या है l पर जो लोग इसे सच मानते हैं अगर उनमें से किसी एक बड़े को उसके माता-पिता के सामने ले जाकर यह पूछा जाये कि वह कितना बड़ा बन गया है तो उनसे हमें यही उत्तर मिलेगा – वह हमारे लिए अब भी बच्चा ही है और सदा बच्चा ही रहेगा l उसके जीवनानुभवों की उसके माता-पिता के जीवनानुभवों से कभी तुलना नहीं की जा सकती l माता-पिता की निष्काम भावना की तरह उसकी सोच का भी जन कल्याणकारी होना अति आवश्यक है l अगर वह ऐसा नहीं करता है तो ऐसी स्थिति में उसे बड़ा या ऊँचा स्थान कदाचित नहीं मिल सकता l

    हमारा समाज मिथ्याचारी, बड़प्पन और ऊँचेपन की दलदल में धंसा हुआ है l वह तरह-तरह के कुपोषण, अत्याचार, जातिवाद, छुआछूत, अमीर-गरीब और बाहुबली व्यक्तियों के द्वारा बल के दुरूपयोग से पीड़ित है, जो अत्याधिक चिंता का विषय है l

    वास्तविकता तो यह है कि हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं, उसका दिव्यांश हैं l वह कण-कण में समाया हुआ है l प्राणियों में मानव हमारी जाति है l भले ही हमारे कार्य विभिन्न हैं पर हमारा धर्म “सनातन धर्म” है l इसलिए वैश्विक भोग्य सम्पदा पर हम सबका अपनी-अपनी योग्यता एवं गुणों के अनुसार अधिकार होना चाहिए l किसान और मजदूर खेतों में कार्य करते हैं तो विद्वान् लोग उनका मार्ग दर्शन भी करते हैं l

    जिस व्यक्ति का जितना ऊँचा स्थान होता है उसके अनुसार उसकी उतनी बड़ी जिम्मेदारी भी होती है l उसे पूरा करना उसका कर्तव्य होता है l उससे वह भ्रष्टाचार, किसी का कुपोषण, किसी पर अत्याचार, करने हेतु कभी स्वतंत्र नहीं होता है l बलशाली मनुष्य द्वारा उसके बल–पराक्रम का वहीँ प्रयोग करना उचित है जहाँ समाज विरोधी तत्व सक्रिय हों या वे अनियंत्रित हों l

    मनुष्य का बड़प्पन या उन्चापन उसके कार्य से दीखता है न कि उसके जन्म या वंश से l मनुष्य को चाहिए कि वह मानव जाति के नाते सब प्राणियों के साथ मनुष्यता का ही व्यवहार करे l उससे न तो किसी का कुपोषण होता है न किसी से अन्याय, न किसी पर अत्याचार होता है और न किसी का अपमान l सबमें बिना भेदभाव के समानता बनी रहती है l वैश्विक सम्पदा पर यथायोग्यता अनुसार स्वतः अधिकार बना रहता है l प्रशासनिक व्यवस्था सबके अनुकूल होती है l लोग उसका आदर करते हैं l इससे लोक संस्कृति की संरचना, संरक्षण, और संवर्धन होता है l

    मनुष्य जाति में पाया जाने वाला अंतर मात्र मनुष्य द्वारा किये जाने वाले कर्मों व उसके गुणों के अनुसार होता है l सद्गुण किसी में कम तो किसी में अधिक होते हैं l वे सब आपस में कभी एक समान नहीं होते हैं l इसलिए हमें सदा एक दुसरे का सम्मान करना चाहिए l

    इससे हम छुआछूत, सामाजिक, आर्थिक, एवं न्यायिक असमानता को बड़ी सुगमता से दूर कर सकते हैं l हमारा हर कदम राम-राज्य की ओर बढ़ता हुआ एक आदर्श समाज की कल्पना को साकार कर सकता है l

    प्रकाशित 6 सितम्बर 2009  दैनिक कश्मीर टाइम्स


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    1. पन्द्रह अगस्त

    अगस्त 2009 मातृवंदना

    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है
    जीने का अधिकार सबने पाया है
    रिश्वत किसी से नहीं लेनी थी इसने
    घूस किसी को नहीं देनी थी उसने
    तूने कमिशन खाने का अधिकार किससे पाया है
    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है
    यहांवहां गबनों का दौर चल रहा है
    आए दिन घेटालों का पिटारा खुल रहा है
    पलपल माल चोरी का जाता है मोरी में
    यहां मानसिक गुलामी को किसने बुलाया है
    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है
    तू इतनी जल्दी भूल गया कैसे
    आजादी इसी दिन हमें मिली थी
    था हर जिगर का टुकड़ा विछुड़ गया कैसे
    आहत हुआ नारीवक्ष घाव नहीं भर पाया है
    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है
    अब शोषण हम यहां किसी का नहीं होने देंगे
    अधिकार गरीब दुखिया अनाथ का नहीं खोने देंगे
    दलितों को उठाकर हमने गले लगाना है
    तूने मनमानी करने का अधिकार किससे पाया है
    आज दिन पन्द्रह अगस्त का आया है




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    14. क्या तुम ———-?

    कश्मीर टाइम्स 23 अगस्त 2009 

    जब निजहित तुम्हारा होगा देशहित से ऊँचा,
    और निज सुख तुम्हें दिखने लगेगा महान,
    तब क्यों कोई देशहित की बात करेगा?
    क्यों देशहित में कोई करेगा काम?
    जब देश नहीं रहेगा समृद्धि-सुरक्षा का अधिकारी,
    तब तुम क्या कर लोगे? निजहित में,
    जगह-जगह बनें हो नन्द भाई, भ्रष्टाचारी,
    क्यों धंसे हो? तुम भोग विलासी दलदल में,
    क्या जागेगा फिर कोई चाणक्य प्यारा?
    गाँठ चोटी खोलकर भरेगा हुंकार,
    क्या ढूंढेगा वह कोई चन्द्रगुप्त न्यारा?
    और नेकदिल जननायक करेगा तैयार,
    जब वह बजाएगा ईंट से ईंट तुम्हारी,
    तब तुम क्या कर लोगे? निज सुख में,
    जगह-जगह बनें हो नन्द भाई, भ्रष्टाचारी,
    क्यों धंसे हो? तुम भोग विलासी दलदल में,





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    13. मुफ्त प्रदूषण

    2 अगस्त 2009 कश्मीर टाइम्स 

    कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में,
    मानव ही प्रदूषण फैलाता है,
    जगह-जगह ढेर लगाता है गंदगी के,
    पास से नहीं निकला जाता है,
    कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में
    पॉलिथीन लिफाफे, प्लास्टिक सामान बनाती हैं फैक्ट्रियां,
    बांधकर गांठे शहर-शहर पहुंचाती हैं फैक्ट्रियां,
    शहरी प्रदुषण फैले तो फैले, उन्हें क्या?
    कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में
    अच्छा होता, अगर इनका प्रचलन न होता,
    पॉलिथीन, प्लास्टिक सामान का कहीं निशान न होता,
    हर कोई स्वस्थ होता, अगर मुफ्त प्रदूषण न होता,
    कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में




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    7. पालीथीन प्रतिबंधित हुआ, परन्तु —

    12 जुलाई 2009 कश्मीर टाइम्स पर्यावरण चेतना 

    हिमाचल सरकार पालीथीन पर प्रतिबंध लगा चुकी है l जम्मू कश्मीर सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है l इन प्रांतीय सरकारों का यह कार्य प्रयास चहुँ ओर प्रशंसनीय रहा है l अब इन प्रान्तों के शहर व गाँव की गलियों व नालियों पालीथीन लिफ़ाफ़े तो कम अवश्य हुए हैं पर वह अभी समाप्त नहीं हुए हैं l उन पर मात्र प्रतिबंध लगा है l सरकार द्वारा लगाया गया यह प्रतिबन्ध, पूर्ण प्रतिबन्ध सार्थक तब होगा जब पालीथीन परिवार के अन्य हानिकारक उत्पादों का जन साधारण द्वारा विरोध किया जायेगा l पालीथीन का उत्पादन एवम प्रयोग होना बंद हो जायेगा l  

    देखने में आ रहा है कि अनाज, दालें, तिलहन, दूध, दही, पनीर, मक्खन, घी, सब्जी, टाफी, तथा श्रृंगार का सामान मोमी पारदर्शी लिफाफों, प्लास्टिक की बोतलों में सिले सिलाये वस्त्र प्रिंटिंग मोमी थैलों और डिब्बों में पैक करके बाजार में ग्राहकों को बेचे जाते हैं जो पर्यावरण हित में नहीं है l    

      गंदे पालीथीन, मोमी पारदर्शी लिफ़ाफों को खाकर पशु मर जाते हैं l नालियां गंदगी से अवरुद्ध हो जाती हैं l स्वाइन फ्लू जैसे भयानक जानलेवा घातक रोग पैदा होते हैं l गंदा पानी रिसकर पेयजल स्रोतों की उपयोगिता नष्ट करता है l पालीथीन, मोमी लिफ़ाफों से पेयजल स्रोत अवरुद्ध हो जाते हैं l वे अपना या तो जल प्रवाह की दिशा बदल लेते हैं, या नष्ट हो जाते हैं l

    पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे लम्बे समय तक नष्ट नहीं होते हैं l उनसे खेतों की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है l खेत बंजर हो जाते हैं l बरसात के दिनों में जगह-जगह पर गंदे पालीथीन, मोमी पारदर्शी लिफ़ाफों से गंदगी फ़ैल जाने से सफाई कर पाना अति कठिन हो जाता है l इसका यह अर्थ हुआ कि हम सफाई पससंड नहीं करते हैं l हम दूसरों का सफाई का कार्यभार कम करने की अपेक्षा उसे और अधिक बढ़ा देते हैं l

    बात स्पष्ट है कि पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे, प्लास्टिक की बोतलें व पैकिंग का सामान बनाने की वर्तमान वैज्ञानिक तकनीक पर्यावरण विरुद्ध है l वह पर्यावरण मित्र न होकर, शत्रु बन चुकी है l वैज्ञानिकों के द्वारा अब नई एक ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जो पर्यावरण की अविलम्ब निर्विघ्न सुरक्षा कर सके जिससे पर्यावरण विरोधी उत्पादों की वृद्धि न हो बल्कि पर्यावरण स्वच्छ एवं संतुलित बन सके l 

    पर्यावरण में बढ़ता हुआ तापमान और निरंतर पिघलते हुए ग्लेशियर इस बात का प्रमाण हैं कि हमारा भविष्य सुरक्षित नहीं है l हमें भविष्य में कल-कल करती नदिया, झर-झर करते झरने, मीठे-मीठे  जल के चश्मे और मनमोहक झीलें कहीं दिखाई नहीं देंगी l शुद्ध पेयजल स्रोत सुरक्षित न रहने के कारण हम रोग मुक्त एवं सुरक्षित नहीं रहेंगे, ऐसा जानते हुए भी हम पर्यावरण विरुद्ध कार्य कर रहे हैं l

    सावधान ! हमें पर्यावरण विरुद्ध किये जाने वाले ऐसे सभी कार्य तत्काल बंद कर देने होंगे और एक ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जिससे मानव जाति में पर्यावरण प्रेम जागृत हो l वह निजहित की चार दीवारी से बाहर निकलकर जनहित एवं समाज कल्याण के कार्य करे l उससे किसी जानमाल की हानि न हो l हर तरफ हर कोई सुख शांति से जी सके l 

    सरकार द्वारा पर्यावरण सुरक्षा बनाये रखने हेतु ऐसा विधेयक पारित किया जाना चाहिए जिससे उत्पादकों को विशेष निर्देश दिया गया हो कि वे अपने यहाँ उत्पादित उपयोगी पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे, प्लास्टिक की बोतलें व पैकिंग के सामान पर वैधानिक चेतावनी लिखने के साथ-साथ उन्हें अनुपयोगी हो जाने पर, जल्द नष्ट करने या रिसाईकलिंग करने की विधि भी सुनिश्चित करें जिससे पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण रोकने में सरकार को जन साधारण का सहयोग मिल सके l

    अतः पालीथीन तो अभी प्रतिबंधित हुआ है l उस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना शेष है l  आइये ! हम सब वैज्ञानिक, उत्पादक, भंडार पाल, व्यापारी, दुकानदार, ग्राहक और गृहणिया सरकार द्वारा पालीथीन विरुद्ध लगाये गए प्रतिबंध को पूर्ण प्रतिबंध में परिणत करने हेतु रचनात्मक एवं सकारात्मक कार्य करें और उन सब वस्तुओं को सदा के भूल जायें जिनसे पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण बढ़ता और फैलता है l इन्हें भूल जाने में ही हमारी सबकी समझदारी और भलाई है l 

    प्रकाशित 12 जुलाई 2009 कश्मीर टाइम्स