मातृवन्दना अक्तूबर 2013
थम जा, ऐ जल की धारा !
छोड़ उतावली, बहे जाती है किधर?
मुंह उठा, देख तो जरा
चैकडैम बन गया है इधर
तू बाढ़ का भय दिखाना पीछे
पहले गति मंद कर ले अपनी
तू भूमि कटाव भी करना पीछे
पहले चाल धीमी कर ले अपनी
यहाँ रोकना है थोड़ी देर
रुक सके तो रुक जाना
करके सूखे स्रोतों का पुनर्भरन
चाहे तू आगे बढ़ जाना
चैक डैम पर जलचर, थलचर,
नभचरों ने आना है
मंडराना तितली, भोरों ने
फूल – वनस्पतियों पर गुनगनाना है
प्रकृति का दुःख मिटाने को
पर्यावरण की हंसी लौटने को
थोड़ा थम जा, ऐ जल की धारा !
जरा रुक जा, ऐ जल की धारा !
श्रेणी: कवितायें
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1. जल – धारा से
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1. जल संचयन
ज्ञान वार्ता छमाही 2013
हमने बात वर्षा जल संचयन करने की मानी है,
कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण करने की ठानी है,
बावड़ी, कुआँ, तलब, पोखर, जोहड़ का पानी,
जंगल, पेड़-पोधे, खेतों में लाता है हरियाली,
भू-जल दोहन नियम से अपनाओ,
भू-जल बचाओ और जीवन बचाओ,
आज बचाए पानी ने कल सबको बचाना है,
बाग़ - बगीचे, फूलों पर भंवरों ने गुनगनाना है,
परागण होगा इससे, फसलें होंगी भरपूर,
निर्धनता, मजबूरी, भूख, लाचारी होगी दूर,
आओ ! मिलकर जल संचयन अपनाएँ,
भू-जल पुनर्भरण कार्य सफल बनाएं,
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1. जल संचयन
मातृवन्दना जून 2012
हमने बात वर्षा जल संचयन करने की मानी है,
कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण करने की ठानी है,
बावड़ी, कुआँ, तलब, पोखर, जोहड़ का पानी,
जंगल, पेड़-पोधे, खेतों में लाता है हरियाली,
भू-जल दोहन नियम से अपनाओ,
भू-जल बचाओ और जीवन बचाओ,
आज बचाए पानी ने कल सबको बचाना है,
बाग़ - बगीचे, फूलों पर भंवरों ने गुनगनाना है,
परागण होगा इससे, फसलें होंगी भरपूर,
निर्धनता, मजबूरी, भूख, लाचारी होगी दूर,
आओ ! मिलकर जल संचयन अपनाएँ,
भू-जल पुनर्भरण कार्य सफल बनाएं,
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1. स्लोगन जल बाईसा
कश्मीर टाइम्स 6 मई 2012
जल है गुणों की खान,
धरती की बढ़ाये शान,
जल रहेगा,
जीवन बचेगा,
भू-जल बढ़ाओ,
जीवन बचाओ,
जल के संग,
जल के रंग,
जल है जहाँ,
जीवन है वहां,
जल, जीवन की आशा,
सूखा, निराशा ही निराशा,
जल की कहानी,
जीवन की कहानी,
जहाँ भू-जल सहारा है,
वहां जीवन हमारा है,
जल से पढ़, पेड़ों से जंगल,
सूखे में सबका करते मंगल,
पेड़, पानी हैं जीवन आधार,
बंद करो, इन पर अत्यचार,
जल संपदा, जंगल संग,
खिलता जीवन, भरता रंग,
जल मिलेगा जब तक,
जीवन रहेगा तब तक,
जल गुणों की खान,
बचाए हम सबकी जान,
भूजल के सहारे,
प्राण रहेंगे हमारे,
पेड़ों से शुद्ध मिलती है वायु,
वायु से लंबी होती है आयु,
जंगल संतुलित वर्षा हैं लाते,
हम सबका जीवन हैं बचाते,
जल, जमीन, जंगल संरक्षण प्रण हमारा,
पल-पल बारी जाये इन पर जीवन हमारा,
सूखी धरती करे पुकार,
मुझ पर करो यह उपकार,
बहते पानी पर बाँध बनाओ,
भूजल बढ़ाओ, पुनर्भरण अपनाओ,
जीवन होगा खुशहाल तभी,
जल बचायेंगे, जब हम सभी,
जल है,
जीवन है,
भूजल संचित,
जीवन सुरक्षित,
खुद जागो, दूसरों को जगाओ,
जल, जमीन, जंगल को बचाओ,
स्वच्छ बहे जल - धारा
स्वस्थ रहे जीवन हमारा,
बहते जल को बांधकर,
करो यह उपकार,
भूमि जलस्तर बढ़ेगा,
सम्पन्न होगा संसार,
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2. माँ
जून 2011 मातृवन्दना
सिंहनी बलवान सिंह जन्म देकर
सदा अभय होकर सोती है
गधी दस गधों की माँ होकर भी
दुःख पाती, बोझा ढोती है
सौ पुत्र थे, गन्धारी- धृतराष्ट्र के,
दुःख ही दुःख पाया था
पांच थे कुंती के प्यारे पांडव,
दुःख में भी सुख पाया था
माँ ! तू जनना धर्म परायण,
ज्ञाननिष्ठ, कला प्रेमी और शूरवीर
नहीं तो बाँझ ही रहना भला,
व्यर्थ न बहाना कभी नैन नीर