दैनिक जागरण 24 अप्रैल 2007
समय तो बहता जल है
वह बहता जाता गाता है
तू संभाल पलपल की करता चल
जीवन पलपल से बन पाता है
गोली छूटती है बन्दूक से
फिर कभी नहीं आती है हाथ
सकल दिवस जाता पलपल में
घड़ी भी नहीं देती है साथ
श्रेणी: कवितायें
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11. समय का स्वभाव
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10. आलस्य
दैनिक जागरण 18 अप्रैल 2007
प्राप्त वस्तु से संतुष्ट हुआ
तूने मेहनत करना छोड़ा क्यों
कोई वस्तु रहेगी कब तक पास तेरे
कर्म से तूने नाता तोड़ा क्यों
आलस्य में क्यों बैठ गया
तू अपने हाथपांव पसार
मिट्टी का खिलौना मिट्टी में मिला दे
देख मेहनत का भी चमत्कार
आलसी नहीं आलस्य भगा दे
तू अगल बगल से दूर
घोड़ा तन है तेरा
चाबुक मेहनत मार भरपूर
लगेगी भूख भागेगा सरपट
अपनी ही मंजिल ओर
चाहे कठिन है राह तेरी अपनी
पाएगा तू जरूर मंजिल छोर
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3. मेहनत
अमर उजाला 4 अप्रैल 2007
कली से बनते हैं फूल
खिलते हैं फूल कांटों में
अभ्यास बनती है मेहनत
रहती नहीं है मेहनत बातों में
खोज जिसे होती है
मंजिल पा ही लेता है
बिना परिश्रम किए जो ढूंढता है
अपना समय नष्ट कर लेता है
मेहनत से मिलता है मान
मेहनत से बनती है शान
पहचान बनाती मेहनत अपनी
मेहनत से मिलता है भगवान
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9. धौलाधार का शृंगार
दैनिक जागरण 30 मार्च 2007
आहा कैसी सुन्दर ओढ़ी बर्फीली चादर धौलाधार ने
शुष्क मौसम से पाई मुक्ति धौलाधार ने
नाले झरने नदियां सब फिर बहने लगे हैं
ताल बावडि़यां कूप जल से भरने लगे हैं
धरती खेत खलिहानों को मिलने लगा है पानी
रिमझिम रिमझिम बरसने लगा है पानी
बर्फ से किया है फिर श्रृंगार धौलाधार ने
आहा कैसी सुन्दर ओढ़ी बर्फीली चादर धौलाधार ने
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2. सुख – शांति का रास्ता
अमर उजाला 30 मार्च 2007
जातियां होती हैं जीव जंतुओं की
मनुष्य नर नारी की नहीं
करके जातिगत बंटवारा समाज का
पा सकता तू सुख शांति नहीं
कौन सी जाति क्या है जाति
इससे नहीं है तेरा कोई वास्ता
हर प्राणी है रूप ईश्वर का
सुख शांति का और न कोई रास्ता