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मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: कवितायें

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    1. जय राष्ट्रीय निशान

    मातृवन्दना अगस्त 2007  

    जय राष्ट्रीय निशान
    रहे सदा तेरी पहचान
    केसरिया वीरता उत्साह त्याग का सूचक
    आन शान मान का पूजक
    नहीं था तू अनादर करने के योग्य
    जलते देखते हैं यहां वहां हमारे प्राण
    जय राष्ट्रीय निशान
    श्वेत सत्य पवित्रता शांति का प्रतीक
    नहीं है आज यहां सब दिखता ठीक
    गए कहां गुरु देते थे जो हमें सीख
    कर्तव्य अपना भूल गए होता नहीं भान
    जय राष्ट्रीय निशान
    हरा श्रद्धा विश्वास वैभव का द्योतक
    तू तो था दुखसुख का बोधक
    ह्रास त्रास दिखता यहां वहां अत्याचार
    अनाचार नहीं करना था परहित परत्राण
    जय राष्ट्रीय निशान
    काली छाया ने आ ढक लिया है
    तुझे सहने हर संताप दिया है
    फड़कती हैं भुजाएं हमारीे टकराने को
    देकर भी शीश तेरा करेंगे त्राण
    जय राष्ट्रीय निशान



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    19. पानी को बचाएं

    दैनिक जागरण 15 जून 2007 

    पानी लेकर बंद करना है नल
    भाई यों ही व्यर्थ नहीं बहाना है जल
    सब्जी या फलों को धोकर
    क्यारी में डाल देना है पानी
    क्यारी में नमी रहेगी
    नाली में नहीं जाने देना है पानी
    शेष बचा बोतल या बाल्टी का पानी
    है क्यारी के पौधों का पानी
    कल के लिए ढक कर
    आज रखना है पेयजल
    संभलकर कल भी
    प्रयोग करना है पेयजल



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    18. क्रांतिकारी

    दैनिक जागरण 13 जून 2007 

    पल भर नहीं जो कर्महीन रहता
    कुछ न कुछ करता रहता है
    रखता अज्ञान शोषण अत्याचार पर कड़ी नजर
    दहकते अंगारों पर बे खबर चलता है
    राह में मुसीबतें आएं चाहे जितनी
    वह नित आगे बढ़ता जाता है
    मौत भी सामने क्यों न आए
    वह खुशी से निज कण्ठ लगाता है
    क्रांति कभी आ नहीं सकती
    है यह तो उसमें दम नहीं
    चाहे क्रांति होती है बलवान बहुत
    पर देखा क्रांतिकारी भी कुछ कम नहीं



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    17. सीने में

    दैनिक जागरण 27 मई 2007 

    कोई चिंगारी शोला नहीं बन सकती
    ऐसा उसमें दम नहीं
    शोला चिंगारी से बनता है
    पर चिंगारी शोले से नहीं
    तिल भर चिंगारी में इतना दम है
    पल भर में उससे शोला बन जाता है
    शोला तो दहकता अंगारा है
    उससे सब कुछ राख हो जाता है
    सीने में जिसके आग दवी हो
    दवा ही उसको रहने दो
    पंखा न उसे करना कभी
    कहीं शोला न बन जाए वो



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    1. श्रृंगार धौलाधार का

    पंजाब केसरी 21 मई 2007 

    कैसी सुंदर ओढ़ी बर्फीली
    चादर धौलाधार ने
    शुष्क मौसम से पाई
    मुक्ति धौलाधार ने
    नाले भरे नदियाँ सब बहने
    लगे हैं
    ताल बावड़ियाँ कूप सब
    जल से भरने लगे हैं
    धरती, खेतों, खलिहानों को
    मिलने लगा है पानी
    रिमझिम बरसने लगा है पानी
    बर्फ से किया फिर शृंगार
    धौलाधार ने
    आह! कैसी सुंदर ओढ़ी
    बर्फीली चादर धौलाधार ने