मई 2008 मातृवंदना
रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
अरमान अपना कर सम्पन्न
पांएगे लक्ष्य जो सामने खड़ा उत्पन्न
कार्य बना है आज प्रतिदवंदी सामने
जय चाहता है प्रभुत्व अपने
रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
आगे बढ़ना है हमने साहस के बहानेे
मात्र फूल शीश अर्पित करना हम हैं जाने
यहां लालसा तन मन धन कोई न मायने
निर्णय बुद्धि का हम सब माने
रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
जब तक प्रपंचात्मक हमने बनाई सृष्टि
नहीं कर सकता यहां कोई तृष्णातुष्टि
ऐसा यहां स्रष्टा का न कभी रहा है काल
मुक्त कर लेंगे खुद को काटना है जंजाल
रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
है यह चिंगारी नहीं आग
आग ही नहीं महाकाल व्याल
विध्वंस करती है नीचता का काम
समूल नष्ट करती राख बनाती है तमाम
रुकेंगे नहीं बिना किए निस्वार्थ काम
निश्चय है अपना करना है निस्वार्थ काम
श्रेणी: कवितायें
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2. चिंगारी
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1. अभिलाषा
फरवरी 2008 मातृवंदना
सेवा करना धर्म हमारा, सेवा करते जाएंगे,
दुःख-सुःख हैं हमारे साथी, हंस-हंस सहते जाएंगे,
हम संघर्ष करने वाले, रहते नहीं कभी संकल्पहीन,
बनाएंगे माँ तुझको हम जग में, अद्वितीय ओजस्विन,
तेरा पुनः हो आकर्षण असीम प्रतीक,
गए वापिस आएंगे, समझ निज प्यारा नीड़ मणिक,
हम सब मिलकर गीत खुशी के गाएंगे,
सेवा करना धर्म हमारा, सेवा करते जाएंगे,
धरती माँ हमारी, तू सब सुखदायनी है,
शीश पुष्प चरणार्पित करना हमनें ठानी है,
जहां गोदी में तेरी अगनित फूल खिले,
वहां महकें फुल बन हम भी, हमारा प्रण पले,
हम मिलकर अगनित पुष्प, नई सुषमा लाएंगे,
सेवा करना धर्म हमारा, सेवा करते जाएंगे,
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3. प्रभा प्रभात
29 फरवरी 2008 दैनिक जागरण
पशु धन से हो श्रृंगार घरघर का
पौष्टिकता से लहलहाएं सब खेत देश के
दूध दही घी से बलवान बने हर बच्चा घरघर का
तेजस्वी कहलाएं नौजवान देश के
घरघर पहुंचे फिर ऐसी शिक्षा
मांगे न कोई किसी से भिक्षा
हर हाथ रोजगाार दिलाए शिक्षा
बयार तो कोई लाल लाए शिक्षा
खुद समझे जो औरों को समझाए
सत्यअसत्य में भेद कर पाएं
ऐसे फिर किसी से न हो नादानी
कहना पड़े कि फुलफल रही बेईमानी
गुणों ही की अब आगे हो पूजा
मन कर्म वचन से न कोई कार्य हो दूजा
चापलूसों के सिर पर बरसें डंडे
पगपग अरमान भ्रष्टाचारी पड़ें ठंडे
देश विदेश में जनजन को पड़े कहना
बल बुद्धि विद्या और गुण भारत का है गहना
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2. हम वही हैं जो
19 फरवरी 2008 दैनिक जागरण
जो थे पहले हम कभी हैं आज
और रहेंगे कल भी
हमनें फिर दुनियां का संशय मिटाना है
लौह पुरुष बन दिखाना है
गर भारत की ओर कोई अंगुली उठे
उसे तुरन्त काट गिराना है
हमनें फिर दुनियां का संशय मिटाना है
जो थे पहले हम कभी हैं आज
और रहेंगे कल भी
कर्मशील रह कर हम निर्धनता मिटाने वाले
संस्कारवान हो कर मानवता दिखाने वाले
चरित्रवान बन कर हमने दुखियों का संताप मिटाना है
हमनें फिर दुनियां का संशय मिटाना है
जो थे पहले हम कभी हैं आज
और रहेंगे कल भी
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1. फौलादी सीना
दैनिक जागरण 1 जनवरी 2008
श श श सावधान सावधान
आ गया तूफान तूफान तूफान
श श श सावधान सावधान
समुद्री तूफान थम जाते हैं
किनारा ठोस रामसेतु होने दो
आंधी तूफान दिशा बदल लेते हैं
हर कदम अडिग हिमालय सा होने दो
तूफान जिन्दगी धराशायी हो जाते हैं
नेक इरादे इन्सान के होने दो