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श्रेणी: कवितायें

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    1. न्याय

     18 जनवरी 2009 कश्मीर टाइम्स

    होगा फिर न्याय, बस न्याय होगा
    नहीं तो और कुछ न होगा,
    मांगनी नहीं स्वत्वों की भिक्षा,
    मिली है हृदय जन्य की शिक्षा,
    करना है मानवधर्म का सृजन,
    सुलझेगा पेचीदा सदियों का प्रश्न,
    होगी खुशहाली, बस न्याय होगा,
    नहीं तो और कुछ न होगा,
    खून शेर दौड़ता है निज शिराओं में,
    होते गीदड़ न बसते शहरों में,
    बपुरा चिरकाल फंसा विपत्ति,
    तड़पता कारागार पाँवर की तृप्ति,
    परहित त्राण, बस न्याय होगा,
    नहीं तो और कुछ न होगा,
    प्रचलन रहा, हमेशा जहां रिश्वत का,
    आरक्षण का और सिफारिश का,
    कंचन कांति योग्यता ने तोड़े दम,
    जो है गहरा गर्त, जानते है हम,
    प्रगति द्वंद नहीं, बस न्याय होगा,
    नहीं तो और कुछ न होगा,
    नहीं खेलेंगे, हम अब खून की होली,
    चलेगी मिलकर, हम सब जन की टोली,
    चाहे बध हो हमारा, न होगा प्रयाण,
    क्षीणहीन का करेंगे कल्याण,
    घातक आभाव न्याय, बस न्याय होगा,
    नहीं तो और कुछ न होगा,




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    4 विषधर

    कश्मीर टाइम्स 21 दिसम्बर 2008 

    समझ सके, समझ ले भाई
    चापलूस, सांप दोनों हैं सगे भाई
    चापलूस चापलूसी करता है
    जहर सांप उगला करता है
    चपलूस नहीं साथी किसी का
    मतलब निकाला करता है
    दूध पिलाओ चाहे जितना
    सांप डंक मारा करता है
    बात जान ले सारा यह जहान
    चापलूस, सांप दोनों एक समान

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    3. सार्थक दीपावली

    26 अक्तूबर 2008 कश्मीर टाइम्स

    नगर देखो! सबने दीप जलाए हैं द्वार-द्वार पर,
    घर आने की तेरी ख़ुशी में मेरे राम!
    तुम आओगे कब? मेरे मन मंदिर,
    अँधेरा मिटाने मेरे राम!
    आशा और तृष्णा ने घेरा है मुझको,
    स्वार्थ और घृणा ने दबोचा है मुझको,
    सीता को मुक्ति दिलाने वाले राम!
    विकारों की पाश काटने वाले राम !
    दीप बनकर मैं जलना चाहूँ,
    दीप तो तुम्हीं प्रकाशित करोगे मेरे राम!
    अँधेरा खुद व खुद दूर हो जाएगा,
    हृदय दीप जला दो मेरे राम !
    सार्थक दीपावली हो मेरे मन की,
    घर-घर ऐसे दीप जलें मेरे राम!
    रहे न कोई अँधेरे में संगी-साथी दुनियां में,
    सबके हो तुम उजागर मेरे राम!



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    2. राजभाषा हिंदी

    5 अक्तूबर 2008 कश्मीर टाइम्स

    मेरे मन भाया तेरा विचार, भाषा हिंदी,
    इसकी लिपि बनी भाषा उसकी, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    फोन कन्याकुमारी से पहुंचता कश्मीर, भाषा हिंदी,
    फैक्स गुजरात से पहुंचती आसाम, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हर व्यक्ति की सांस, हिन्द की धड़कन, भाषा हिंदी,
    हर स्थान की बोली, हिन्द की पहचान, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हम बोल, लिख सकते, भाषा हिंदी,
    हम सीखकर कार्य कर सकते, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हम मनाएंगे नहीं पखवाड़े, सब जानते, भाषा हिंदी,
    सरकारी, गैरसरकारी कार्य करेंगे पूरा साल, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,




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    1. शहरी नाले की व्यथा

    27 जुलाई 2008 कश्मीर टाइम्स

    अपना भी स्वच्छ जल था मेरा
    सदा स्वच्छ ही नीर बहता था
    हर जगह उपयोगी पानी चाहने बालो
    मुझमें गंदगी बहाओ न
    मुझे और दूषित बनाओ न
    तुम सुबहशाम आकर यहीं नहाते थे
    धोकर कपड़े साहिल पर ही सुखाते थे
    बना शिकार मच्छली चाव से खाने बालो
    मुझमें गंदगी बहाओ न
    मुझे और दूषित बनाओ न
    मेरे जल संग जल गंदा गंदगी बहाने बालो!
    मुझसे लिफाफे पालीथिन बोतलें प्लास्टिक नहीं गलाए जाते
    गड्ढे नालियों में रोग किटाणुओं को बढा़ने बालो
    मुझमें गंदगी बहाओ न
    मुझे और दूषित बनाओ न
    तुम चाहो तो स्वच्छ उपयोगी बनाए रखो मुझको
    दूसरों की रक्षा करो और सुरक्षित रखो खुद को
    कोई गंदगी फेैलाए न परदोष निहारने बालो
    मुझमें गंदगी बहाओ न
    मुझे और दूषित बनाओ न