दिनांक 21 सितम्बर 2025
“सत्यार्थ प्रकाश” के अनुसार - # अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र, सृष्टिकर्ता, सचिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी मात्र एक दाता ॐ सबका राम है और सकल संसार उसके आगे भिखारी है l*
वैदिक सत्सनातन ज्ञान व धर्म –
# सकल संसार में मात्र वैदिक ज्ञान ही सत्सनातन ज्ञान है, जिससे समस्त मानव जाति का कल्याण और उत्थान होता है l*
# वैदिक सत्सनातन ज्ञान मानव समाज को सदैव आपस में जोड़ता है, कभी बांटता नहीं है l*
# वैदिक सत्सनातन ज्ञान ही सत्य का मंडन और असत्य का खंडन करने वाला है, वह मनुष्य को अन्धकार से उजाले और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है l*
# वैदिक सत्सनातन ज्ञान सब जीवों का जीवन दाता है, किसी प्राणी का जीवन हरता नहीं है l*
# वैदिक सत्सनातन ज्ञान मानव समाज निर्माण की सशक्त जीवन पद्दति है, वैश्विक सत्सनातन धर्म है l*
सत्सनातन धर्म की मुख्य विशेषताएं -
# धरती की खुदाई करो या समुद्र में डुबकी लगाओ - मंदिर ही निकलता है, सत्सनातन धर्म विरोधी की चार पीढियां पीछे निहारो तो सनातनी दिखता है l यहाँ संसारभर में सब जगह सत्सनातन ही सनातन है !*
# गर्व की बात है कि वैदिक ज्ञान बल पर कभी हमारे सत्सनातन धर्म का संपूर्ण धरती पर एकछत्र राज विद्यमान था, वह सर्वव्याप्त था l*
# समस्त अभिभावक, गुरुजन बच्चों को संस्कार देते आये हैं, इससे पीढ़ी दर पीढ़ी सत्सनातन धर्म की रक्षा होती है, धर्म हमारी रक्षा करता है l*
# विश्वभर में वैदिक सत्सनातन धर्म ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है, वह मानव को श्रेष्ठ मानव बनने की सीख देता है l*
# मात्र विज्ञान सम्मत और अर्थ युक्त वैदिक मन्त्र ही मानव जीवन का प्रकाश है, शेष सब अंधकार है l*
सत्सनातन धार्मिक कार्य -
# देश सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा हेतु संस्कार, सद्भावना, त्याग, प्रेम और समर्पण भाव सदैव अपेक्षित रहते हैं l*
# कोई हजार करे तीर्थ, लाख करे स्नान, जिसका हृदय साफ नहीं, उसे कहीं नहीं मिलते हैं भगवान !*
# आइये ! हम सब पिछड़े/अभावग्रस्त लोगों की सहायता करें, उनकी आवश्यकतायें पूरी करें, उन्हें सहयोग दें, विश्वास कीजिये वही 95% कट्टर सनातनी लोग हमारा प्यार और बराबर का सम्मान पाना चाहते हैं l*
# सैनिक, जन रक्षक युद्कों से देश और समाज की रक्षा करते हैं तो अभिभावक व गुरुजन सत्सनातन धर्म - संस्कृति की शास्त्रों से भी रक्षा कर सकते हैं l*
# हमने दशकों से अपने “शास्त्र - संस्कार विद्या” – “दंड – युद्ध विद्या” त्याग दी है, परिणाम स्वरूप बहुत से सत्सनातनी परिवार और समाज उपद्रवी, उदंडी और उत्पाति बन गये हैं l यही सत्सनातन धर्म एवमं सांस्कृतिक पतन का मुख्य कारण है, हम सबकी सबसे बड़ी भूल है, सुधार करना अपेक्षित है l*
# “शास्त्र - संस्कार विद्या” ब्राह्मण की शक्ति और “दंड – युद्ध विद्या” क्षत्रिय का बल है l*
# “शास्त्र - संस्कार विद्या” – “दंड – युद्ध विद्या” विश्व शांति रक्षण, कल्याणकारी संसाधन हैं, न कि उपद्रव या उत्पात मचाने के l*
# जिस प्रकार घर पर कोई बच्चा उपद्रव, उत्पात मचाता है तो अभिभावक द्वारा उसे पहले प्यार से समझाया जाता है, न माने तो दंड स्वरूप उसे आँख दिखाने या डांट लगाने पड़ती है फिर भी न माने तो मार पड़ती है, इसी प्रकार समाज में “शास्त्र - संस्कार विद्या” बल से शांति बनाये रखना अति आवश्यक है l बार - बार शांति प्रयास निष्फल रहने पर राजकीय मान्यता प्राप्त विधि - विधान के अंतर्गत “दंड – युद्ध विद्या” बल का भी उपयोग किया जा सकता है l*
# जीवन का अर्थ क्या है, जीवन का संबंध क्या है, आपसी संबंध क्यों हैं, आपसी संबंध कैसे हैं, आपसी संबंध किसलिए हैं, आपसी संबंध निभाये कैसे जाते हैं ? उत्तर पाने के लिए सत्सनातन धर्म का साहित्य, संगीत और कला (रामायण, गीता और महाभारत आदि ग्रन्थों को) पढ़ना - पढ़ाना, समझना – समझाना, स्वयं सीखना – सिखाना एवंम अच्छी बातों को अपने व्यवहार में लाना अति आवश्यक है l*
# हमें सत्सनातन धर्म विरोधी गुट का त्याग करने वाले महानुभावों का सदैव हार्दिक अभिनंदन करना चाहिए, हमारे लिए सत्सनातन धर्म से बढ़कर अन्य कुछ भी नहीं है ।*
# वे सभी महानुभाव अपने हैं जो हर समय देश, सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा हेतु अपनों के संग सीना ताने खड़े रहते हैं l*
# अभिभावकों एवं गुरुजनों के द्वारा बच्चों को “शास्त्र - संस्कार विद्या” और “दंड – युद्ध विद्या” बल में पारंगत करना चाहिए ताकि वे सभ्य, संस्कारी बन सकें, अपने समाज और राष्ट्र का भली प्रकार नेतृत्व एवं रक्षण कर सकें l*
सत्सनातन धर्म विरोधी कार्य -
# जिन्होंने हमारे करोड़ों वुजुर्गों के सर काटे और लाखों घर, मंदिर लुटे, तोड़े थे, हम उनकी कुरान, बाइबिल के आगे सदियों से अपना मस्तक फोड़ रहे हैं, क्यों ?*
# अगर हम मंदिर में भक्तिभाव से नहीं, पर्यटक बनकर जाते हैं तो वह हमारे लिए आस्था का केंद्र, पूजा स्थल नहीं रहेगा, पर्यटक स्थल होगा ।*
# वैदिक ज्ञान से जनित सत्सनातन धर्म ही विश्व को सिखाता है कि मनुष्य बनो l कुरान और बाइबल ज्ञान के संवाहक तो सदियों से जन, समाज, राष्ट्र जिहाद और धर्मांतरण कार्य करने में व्यस्त हैं l*
# देश, सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा कुरान, बाइबल के ज्ञान से नहीं, मात्र वैदिक ज्ञान से हो सकती है l*
सावधान –
# अगर हम जीवन चुनौतियों का सामना करने में “शास्त्र - संस्कार विद्या” - “दंड – युद्ध विद्याओं” में पारंगत नहीं हुए तो पिछले एक हजार वर्षों की भांति भविष्य में भी निरंतर विधर्मियों द्वारा बांस की भांति छिले जा सकते हैं l*
# अगर अभिभावक अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा नहीं देंगे तो कोई अन्य दुष्ट उन्हें अधर्म की राह दिखा देगा l*
# पाश्चात्य सभ्यता नग्नता, अश्लीलता की परम्परा कभी भारतीय सांस्कृतिक सुन्दरता नहीं बन सकती और अंग्रेजी सभ्यता कभी भारतीय परम्परागत गुरुकुल शिक्षा नहीं हो सकती l*
# अभिभावक, गुरु जन स्वयं वेद पठन - पाठन अवश्य करें, वे पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से प्रभावित न हों, उससे प्रभावित होने से बच्चों को वैदिक संस्कार नहीं मिलेंगे, इससे विधर्मियों को किसी भी प्रकार का जिहाद, धर्मांतरण करने का अवसर मिल सकता है l सत्सनातन धर्म का पतन होने के साथ - साथ वह एक दिन समाप्त हो भी हो सकता है, इसके उत्तरदायी हम होंगे, आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी क्षमा नहीं करेंगीं l*
श्रेणी: सत्सनातन धर्म
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विश्वव्यापी सत्सनातन धर्माध्यात्म – संस्कृति
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सनातन धर्म के सोलह संस्कार
दिनांक 20 जुलाई 2025
सनातन धर्म के सोलह संस्कारसनातन धर्म में मानव जीवन के सोलह संस्कारों का प्रावधान है जो जीवन के समस्त क्रिया-कलापों को दर्शाते हैं, ज्ञान-विज्ञान सम्मत हैं l1 गर्भादान संस्कार – युवा स्त्री-पुरुष अर्थात पति-पत्नी उत्तम सन्तान प्राप्ति के लिए विशेष तत्परता से प्रसन्नता पूर्वक गर्भादान करें l
2 पुंसवन संस्कार – जब गर्भ की स्थिति का ज्ञान हो जाये, तब दूसरे या तीसरे मास में गर्भ की रक्षा के लिए स्त्री-पुरुष प्रतिज्ञा लेते हैं कि हम आज ऐसा कोई भी कार्य नहीं करेंगे जिससे गर्भ गिरने का भय हो l
3 सीमन्तोन्नयन संस्कार – यह संस्कार गर्भ के चौथे मास में बच्चे की मानसिक शक्तियों की वृद्धि के लिए किया जाता है l इसमें ऐसे साधन प्रस्तुत किये जाते हैं जिससे स्त्री प्रसन्न रहे l
4 जातकर्म संस्कार – यह संस्कार बच्चे के जन्म लेने पर होता है l इसमें पिता या वृद्ध सोने की सलाई द्वारा घी या शहद से बच्चे की जिह्वा पर ॐ लिखते हैं और कान में वेदोआस्मी कहते हैं l
5 नामकरण संस्कार – जन्म के पश्चात एक या सवा मास के भीतर बालक का नामकरण संस्कार किया जाता है l
6 निष्क्रमण संस्कार – यह संस्कार जन्म के चौथे मास, उसी तिथि पर जिसमें बालक का जन्म हुआ हो, किया जाता है l इसका उद्देश्य बालक को शुद्ध उद्यान की शुद्ध वायु का सेवन और सृष्टि के अवलोकन का प्रथम शिक्षण है l
7 अन्नप्राशन संस्कार – छठे या आठवें मास में जब बालक की शक्ति अन्न पचाने की हो जाये तब यह संस्कार किया जाता है l
8 चुडाकर्म – मुंडन संस्कार – पहले या तीसरे वर्ष में बालक के बाल कटाने के लिए किया जाता है l
9 कर्ण-वेधन संस्कार – कई रोगों को दूर करने के लिए बच्चे के कर्ण बींधे जाते हैं l
10 उपनयन संस्कार – जन्म से आठवें वर्ष में इस संस्कार द्वारा बच्चे को यज्ञोपवीत पहनाया जाता है l
11 वेदारम्भ संस्कार – उपनयन संस्कार के दिन या एक वर्ष के भीतर ही गुरुकुल में वेदों का आरम्भ गायत्री मन्त्र से किया जाता है l
12 समावर्तन संस्कार – जब ब्रह्मचर्य व्रत की समाप्ति कर वेद-शास्त्र पढ़ने के पश्चात गुरुकुल से घर आता है तब यह संस्कार होता है l
13 विवाह संस्कार – विद्या प्राप्ति के पश्चात लड़का, लड़की भली भांति पूर्ण योग्य बनकर घर जाते हैं तब विवाह दोनों का गुण कर्म स्वभाव देखकर किया जाता है l
14 वानप्रस्थ संस्कार – इसका समय 50 वर्ष के उपरांत है जब घर में पुत्र का पुत्र हो जाये, तब गृहस्थ के दायित्वों में फंसे रहना अधर्म है l उस समय यह संस्कार होता है l
15 सन्यास संस्कार – वानप्रस्थी वन में रहकर जब सब इन्द्रियों को जीत ले, किसी में शोक या मोह न रहे, तब केवल संस्कार हेतु सन्यास आश्रम में प्रवेश किया जाता है l
16 अंत्येष्ठी संस्कार – मनुष्य शरीर का यह अंतिम संस्कार है जो मृत्यु के पश्चात शरीर को जलाकर किया जाता है l