कश्मीर टाइम्स 6 मई 2012
जल है गुणों की खान,
धरती की बढ़ाये शान,
जल रहेगा,
जीवन बचेगा,
भू-जल बढ़ाओ,
जीवन बचाओ,
जल के संग,
जल के रंग,
जल है जहाँ,
जीवन है वहां,
जल, जीवन की आशा,
सूखा, निराशा ही निराशा,
जल की कहानी,
जीवन की कहानी,
जहाँ भू-जल सहारा है,
वहां जीवन हमारा है,
जल से पढ़, पेड़ों से जंगल,
सूखे में सबका करते मंगल,
पेड़, पानी हैं जीवन आधार,
बंद करो, इन पर अत्यचार,
जल संपदा, जंगल संग,
खिलता जीवन, भरता रंग,
जल मिलेगा जब तक,
जीवन रहेगा तब तक,
जल गुणों की खान,
बचाए हम सबकी जान,
भूजल के सहारे,
प्राण रहेंगे हमारे,
पेड़ों से शुद्ध मिलती है वायु,
वायु से लंबी होती है आयु,
जंगल संतुलित वर्षा हैं लाते,
हम सबका जीवन हैं बचाते,
जल, जमीन, जंगल संरक्षण प्रण हमारा,
पल-पल बारी जाये इन पर जीवन हमारा,
सूखी धरती करे पुकार,
मुझ पर करो यह उपकार,
बहते पानी पर बाँध बनाओ,
भूजल बढ़ाओ, पुनर्भरण अपनाओ,
जीवन होगा खुशहाल तभी,
जल बचायेंगे, जब हम सभी,
जल है,
जीवन है,
भूजल संचित,
जीवन सुरक्षित,
खुद जागो, दूसरों को जगाओ,
जल, जमीन, जंगल को बचाओ,
स्वच्छ बहे जल - धारा
स्वस्थ रहे जीवन हमारा,
बहते जल को बांधकर,
करो यह उपकार,
भूमि जलस्तर बढ़ेगा,
सम्पन्न होगा संसार,
श्रेणी: कश्मीर टाइम्स जम्मू
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1. स्लोगन जल बाईसा
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1. सनातन है जीने की कला !
15 जनवरी 2011 कश्मीर टाइम्स
किसी ने ठीक ही कहा है –
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत l
पारब्रह्म को पाइए, मन ही के प्रतीत”
अर्थात मन से हार मान लेने से मनुष्य की हार होना निश्चित है परन्तु हारकर भी मन से न हारना और युक्ति-युक्त होकर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रहने से, उसकी जीत अवश्य होती है l चाहे परम शांति पाने की ही बात क्यों न हो, उसके लिए बलशाली मन की भूमिका प्रमुख होती है l
“जीना एक कला है l” सब जानते हैं l पर जिया कैसे जाता है ? बलिष्ठ तन, पवित्र मन, तेजस्वी बुद्धि और महान आत्मा की उद्गति कैसे होती है ? इन प्रश्नों का उत्तर हमें भारतीय सत्सनातन जीवन पद्धति से मिलता है l
चिंता नहीं, चिन्तन करो :– भले ही जन साधारण का मन अत्याधिक बलशाली हो, परन्तु वह स्वभाव से कभी कम चंचल नहीं होता है l अपनी इसी चंचलता के कारण, वह दश इन्द्रिय घोड़ों पर सवार होकर, इन्द्रिय विषयों का रसास्वादन करने हेतु हर पल लालायत रहता है l वह अपने जीवन के अति आवश्यक कल्याणकारी उद्देश्य को भूलकर सत्य और धर्म-मार्ग से भी भटक जाता है l वह बार-बार भांति-भांति के निर्रथक प्रयास एवं चेष्टाएँ करता है जिनसे उसे असफलताएं या निराशाएं ही मिलती हैं l वह प्रभु-कृपा से अनभिज्ञ हो जाता है, अतः वह चिंताग्रस्त होकर दुःख पाता है l परन्तु सजग जिज्ञासु, युवा साधक और मुनिजन अपने नियंत्रित मन द्वारा, सत्य एवम् धर्म प्रिय कार्य करते हुए सदैव चिंता-मुक्त रहते हैं l वह अपने जीवन में सफलता और वास्तविक सुख-शांति प्राप्त करते हैं l
निद्रा का त्याग करो :- सत्य और धर्म के मार्ग से भ्रमित पुरुष पतित, मनोविकारी, स्वार्थवश अँधा एवम् इन्द्रिय दास होता है l वह धार्मिक शिक्षा, संस्कार एवं समय पर उचित मार्ग-दर्शन के अभाव में अपने हितैषियों के साथ सर्व प्रिय कार्यों का सहभागी न बनकर मनोविकार, अपराध, और षड्यंत्रों में लिप्त रहता है l यही उसकी निद्रा है l इसी निद्रावश वह अपनी आत्मा, परिवार, गाँव, राज्य और विश्व विरुद्ध कार्य करता है, उनका शत्रु बनता है l वह स्वयं पीड़ित होकर शारीरिक, मानसिक और आर्थिक आधार पर सत्ता, पद, धन, बाहुबल और अमूल्य समय का दुरूपयोग करता है l इससे किसी का भी हित नहीं होता है, अतः नित नये-नये संकट, कठिनाइयाँ, समस्याएं, बाधाएं और चुनौतियाँ पैदा होती हैं l परिणाम स्वरूप वह प्रभु-कृपा से वंचित रहता है l लेकिन सजग, जिज्ञासु, युवा साधक और मुनिजन सर्व प्रिय कार्य एवं आत्मोन्नति करते हुए प्रभु-कृपा के पात्र बनते हैं l
स्वयं की पहचान करो :- युद्ध कर्म में परिणत कुरुक्षेत्र में गीता उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण जी, कहते हैं – “हे अर्जुन ! स्वयं को जानो l इसके लिए सर्व प्रथम तुम जीवनोद्देश्य में सफलता पाने हेतु अपने मनोविकारों के प्रति, प्रतिपल सजग और सतर्क रहकर युक्ति-युक्त अभ्यास एवं वैराग्य–श्रम करो l अपने मन का स्वामी बनो l स्थितप्रज्ञ, धर्मपरायण एवं कर्तव्यनिष्ठ होकर, सर्व हितकारी लक्ष्य बेधन अर्थात युद्ध करो l तदुपरांत सृजनात्मक, रचनात्मक, सकारात्मक तथा जन हितकारी कर्मों को व्यवहारिक रूप दो l तुम्हारी विजय निश्चित है l इसमें तुम किसी प्रकार का संदेह न करो, मोह त्याग दो l सत्य और धर्म की रक्षा हेतु धर्मयुद्ध करो l इस समय तुम्हारा यही कर्तव्य है l” निस्संदेह यह उपदेश अर्जुन जैसे किसी भी जिज्ञासु, युवा साधक और मुनि के लिए आत्म-जागरण और उस पर प्रभु-कृपा का कार्य कर सकता है, करना चाहिए l
प्रभु-कृपा का पात्र बनो :– ऐसे जिज्ञासु युवा साधक, मुनि और योगीजन जो बहुजन हिताए – बहुजन सुखाये नीति के अंतर्गत सर्व प्रिय कार्य (मन से रामनाम का जाप और शरीर से सांसारिक कार्य) करते हैं, उनसे इनका अपना तो भला होता ही है, साथ ही साथ दूसरों को भी लाभ मिलता है l “वसुधैव कुटुम्बकम” में युगों से भक्त जन, साधक परिवार के सदस्य बनते रहे हैं, मानों कोई सरिता समुद्र में समा रही हो l इसे देख मन अनायास ही हिलोरे लेने लग जाता है l
“राम नाम की लूट है, लुट सके तो लुट l
अंतकाल पछतायेगा, जब प्राण जायेंगे छुट ll”
इस प्रकार विश्व में सभी ओर प्रभु-कृपा, आनंद ही आनंद और परमानंद दिखाई देता है l धर्म-कर्म है जहाँ, प्रभु-कृपा है वहां l भारतीय “सत्सनातन जीवन पद्दति” के इस उद्घोष को साकार करने हेतु प्रत्येक भारतीय जिज्ञासु युवा साधक और मुनि में बलशाली मन द्वारा निश्चित कर्म करने के साथ-साथ अपने लक्ष्य बेधन की प्रबल इच्छा-शक्ति और कार्य क्षमता अवश्य होनी चाहिए l जो गर्व के साथ भारत का माथा ऊँचा कर सके l जो उचित समय पर विश्व में अपना लोहा मनवा सके l जिससे भारत का खोया हुआ पुरातन गौरव पुनः प्राप्त हो सके l
जन-जन के हृदय से निकलें शुद्ध विचार,
भारत “सोने की चिड़िया” सपना करें साकार,
“वसुधैव कुटुम्बकम - साधक परिवार,”
घर-घर पहुंचाए धर्म, सांस्कृतिक विचार l
प्रकाशित 15 जनवरी 2011कश्मीर टाइम्स
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4. वेद महिमा
कश्मीर टाइम्स 3 अक्तूबर 2010
वेद भारती संस्कृति, वेद भारती समृद्धि, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
वेद भारती आयना, वेद भारती आत्मा, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
वेद भारती ज्ञान, वेद भारती विज्ञान, सत्यमेव-------सत्यमेव
वेद आर्य कर्म, वेद आर्य धर्म, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
वेद मान भारती, वेद प्राण भारती, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
वेद भू भारती, आर्य भू भारती, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
वेद भाग्य विधाता, वेद मुक्तिदाता, सत्यमेव------- जयते
वेद प्रयास महान, जाने सकल जहान, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
वेद भू नमन, आर्य भू नमन, सत्यमेव जयते-------सत्यमेव जयते
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3. चोर
21 मार्च 2010 कश्मीर टाइम्स
काला होता है मन मेरा, काला ही सबको कहता हूँ,
चोर भाव छुपाता है मन मेरा, चोर ही सबको कहता हूँ,
नजर मेरी सबको देखती है, पर खुद को न कभी देख पाई है,
ढूंढता हूँ बाहर, छुपाए चोर भीतर, नहीं बात समझ में आई है,
चोर हूँ, क्यों न चोरी छोड़ूँ! कुछ ऐसे भी कर लूँ काम,
सज्जन मैं भी बन जाऊं, दुर्जनों के सब छोड़ दूँ काम,
छोटी-छोटी चीज के लिये, क्यों नियत खराब कर लूँ मैं?
इज्जत हो जमाने में मेरी भी, वस्तु पूछकर क्यों न ले लूँ मैं?
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2. भटका राही
कश्मीर टाइम्स 21 फरवरी 2010
भटक गया हूँ, राह से
राह मैं अपनी भूलकर
सही राह पर, आऊं भी तो
कैसे? मैं राह खुद की खुद पहचानकर
इच्छा और आशाओं के गहन अंधेरे में
खो गया मेरा जीवन है
तालाश खुद की, खुद करूँ कैसे?
मैं नाहक बन गया दीन हीन हूँ
क्या है अच्छा, क्या है बुरा?
उलझन में उलझकर रह गया हूँ
मैं खुद को देखू कैसे, हूँ कहां?
पता नहीं, मैं कर रहा हूँ क्या?
ऊपर मेरे नीली चादर,
खड़ा मैं तपती जमी पर,
करना है मैनें, जाने क्या
और किधर है अपनी मेरी डगर?