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श्रेणी: भू-जल भंडार

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    भू-जल

    भू-जल 
    जल है तो जीवन है l
    आज है और कल भी ll

    चेतन कौशल "नूरपुरी"


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    छोटी छोटी असावधानियों से भूजल स्तर जाएगा पाताल!

    मातृवंदना अगस्त 2015

    हमारी अनेकों समस्याएं हैं, वह थमने का नाम नहीं ले रही हैं। उन समस्याओं में गहरा होता जा रहा भूजल का स्तर वर्तमान में राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया है। हम हर क्षण राष्ट्र के अधिकांश भूजल संसाधनों का कदम-कदम पर दुरुपयोग कर रहे हैं, परिणाम स्वरूप भूजल स्तर नीचे जा रहा है।

    हम दैनिक उपयोग में अपनी आवष्यकता से कहीं अधिक भूजल दोहन करते हैं। हम रसोई में खाद्य पदार्थों की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के समय नल खुला रखते है। व्यर्थ और गंदा जल क्यारी में न डालकर, नाली में गिरा देते हैं। आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए हम खुले नल का प्रयोग करते हैं।


    हम भूमिगत जल टंकी भरने के लिए उसमें टोंटी नहीं लगाते हैं। टोंटी लगी हो तो उसे खोल देते हैं या ढीली रखते हैं।


    छत पर 500 या 1000 लीटर वाली पानी की टंकी भरने के लिए हम नल से सीधे जल उठाऊ मोटर का प्रयोग करते हैं। पानी से भर जाने के पष्चात् जल की टंकी से व्यर्थ में पानी बाहर बहता रहता है या उसमें दिन-रात जल का रिसाव होता रहता है।


    घर अथवा सार्वजनिक स्नानगृह में हम खुले नल या शावर के नीचे लम्बे समय तक स्नान करते रहते हैं। खुले नल के आगे कपड़े धोते हैं, दंत-मंजन करते हैं, दाढ़ी बनाते हैं।


    घर अथवा सार्वजनिक शौचालयों में नल का पानी बहता हुआ छोड़ देते हैं, बहता हुआ दिखे तो भी हम उसे बंद नहीं करते ।


    नल से रबर पाइप लगाकर हम घर, पशुशाला ही की नहीं गाड़ी की भी सफाई करते हैं। रबर पाइप से जगह-जगह जल रिसाव भी होता रहता है।


    नल से रबर पाइप लगाकर हम क्यारी व पौधों की सिंचाई करते हैं। खेत में सिंचाई हेतु यूं ही पटवन करते रहते हैं, उसे उचित समयक्रम से नहीं करते हैं। लान को बार-बार पाटते हैं। नलकूप द्वारा आवश्यकता से कहीं अधिक दोहन करते हैं। हम जलवायु के आधार पर परंपरागत खेती करना, फल, चारा व इमारती लकड़ी प्राप्त करने के लिए नई पौध लगाना, दिन प्रतिदिन भूलते जा रहे हैं। सिंचाई की पाइप के जोड़ों/कपलिंगों से जल रिसाव होता रहता है।


    इस तरह थोड़ा-थोड़ा करके हम भूजल भंडार का कई हजार लीटर पानी यूं ही व्यर्थ में नष्ट कर देते हैं। जल को अमूल्य संसाधन समझने पर भी हम यह नहीं सोचते कि पानी न होगा तो क्या होगा?


    वर्षाकाल में अपने मकान की छतों से गिरने वाले पानी के संग्रह की हमे व्यवस्था कर लेनी चाहिए। सदाबहार बहते नाले में चैकडैम बनवाकर जल संग्रहण करना चाहिए। पुराने तालाब, पोखर, कुंओं का पुनरोद्वार करना चाहिए।


    परिवार नियोजन की उपेक्षा में जनसंख्या बढ़ने, प्रौद्योगिकी के विस्तार और शहरीकरण होने के कारण प्रतिदिन भूजल की मांग में अत्याधिक वृद्धि हुई है जबकि भूजल पुनर्भरण की प्रतिशत मात्रा कम रही है। नव निर्माण कार्यों में हम भूजल का बहुत ज्यादा प्रयोग करते हैं। अगर हम समय रहते स्वयं जागरूक नहीं हुए, स्वेच्छा और आवश्यकता से अधिक भूजल का युं ही दोहन एवं दुरुपयोग करते रहे तो वह दिन दूर नहीं कि भूजल स्तर पाताल गमन अवश्य करेगा। ऐसी स्थिति में क्या हम उसे रोकने के लिए प्रयासरत हैं? क्या हम उसे सहजता से रोकने में सफल हो पाएंगे?

    चेतन कौशल “नूरपुरी”


  • भूजल स्तर में कैसे होगी वृद्धि?
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    भूजल स्तर में कैसे होगी वृद्धि?

    भूजल स्तर में आ रही निरंतर गिरावट को जल का सदुपयोग करने से रोका जा सकता है। इससे भूजलस्तर की पुनः वृद्धि हो सकती है इसके लिए हमें आज ही से निरंतर जागरूक रहकर स्वयं कुछ प्रयास करने होंगे।
    जब भी पानी पीना हो, स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, पीने के लिए  सदा गहरे हैंडपंप, नलकूप, प्राकृतिक चश्में और बावड़ियों के पानी का ही प्रयोग करें। यह जल निरोग तथा स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
    रसोई में खाद्य पदार्थो की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के लिए प्रयोग किया गया जल जो गंदा हो जाता है, उसे सदा पौधों व क्यारियों में ही डालें। आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए मग से जल का प्रयोग करें। जल प्रयोग करने के पश्चात नल बंद अवश्य  कर देें।
    अगर भूमिगत जल की टंकी में टोंटी का अभाव हो तो उसे वहां तुरंत लगा दें। नल सदा अच्छी तरह बंद करके रखें। पाइप पुरानी हो और वह कहीं से रिसाव करे तो उसे तुरंत बदलवा दें।
    घर या सार्वजनिक स्नानगृह में खुले नल या शावर के नीचेे कभी स्नान न करें। खुले नल के आगेे कपड़े न धोएं, ब्रुश न करें, दाढ़ी न बनाएं। अच्छा है, बाल्टी में जल लेकर छोटे मग का ही प्रयोग करें। घर या सार्वजनिक स्थान पर नल धीमे से खोलें और जल बैंकराशि की तरह उपयोग करने के पश्चात उसे बंद कर दें।
    घर या सार्वजनिक शौचालयों में जितनी अवश्यकता हो, उतने ही पानी का प्रयोग करें। किसी के द्वारा खुले छोड़े हुए नल को तुरंत बंद कर दें। भूजल की हानि को अपनी हानि समझें। घर या सार्वजनिक स्थान पर भूजल सरंक्षण के नियमों का पालन अवश्य करें। अगर भूजल आपूर्ति तंत्र में कहीं रिसाव होता हुआ दिखे तो स्थानीय निकायों को अवश्य सूचित करें।
    घर, पशुशाला की सफाई करने के लिए झाड़ू और बाल्टी का तथा पशु और गाड़ी की सफाई हेतु बाल्टी और मग का प्रयोग करें ताकि भूजल का अधिक दुरुपयोग न हो।
    आवश्यकता अनुसार मात्र फुहारे से क्यारी व पोैधों की सिंचाई करें। फसलों में पानी की आवश्यकता का हिसाब अवश्य रखें। खेत में जितनी आवश्यकता हो नलकूप से उतना ही पानी लगाएं। आवश्यकता से अधिक कभी भूजल दोहन न करें। फसल की बढ़ोतरी की दर से पानी के प्रयोग को घटाएं-बढ़ाएं। फसल, मिट्टी और जलवायु से अच्छी तरह मेल खाने वाली जल सिंचाई-प्रणाली ही का चुनाव करें और उसी के अनुसार खाली पड़ी भूमि पर फलदायक एवं भवन निर्माण संबंधि लकड़ी के लिए, नई पौध अवश्य लगाएं। सिंचाई समय बतलाने वाले सेंसरों का प्रयोग करें। ड्रिप एवं स्प्रिंकलर पद्धति का प्रयोग करें। स्प्रिंकलर पद्धति में रिसाव से बचने के लिए समय-समय पर जोड़ों और कपलिंगों की जांच करते रहें। सिंचाई प्रणाली का अच्छी तरह रख रखाव करें। सिंचाई के लिए सवेरे सूर्योदय से पहले लान पाट लें। उपयोगी जानकारी प्राप्त करके सिंचाई समय को ध्यान में रखें। सिंचाई समय सारिणी बनाएं और चयनित पद्धति से उचित समय पर सिंचाई करें। खेत, क्यारी की पूर्ण सिंचाई से थोड़ा पहले पानी बंद कर दें ताकि पूरे पानी का प्रयोग हो सके।
    निर्माण कार्यों में भूजल का कभी प्रयोग न करें। उसके स्थान पर जोहड़, पोखर, तालाब, नदी. नाले तथा संचित वर्षा जल का ही प्रयोग करें। समाज में बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए परिवार नियोजन अपनाकर उसमें अपना योगदान दें और जहां तक संभव हो, कल के लिए भूजल पुनर्भरण अवश्य करें।
    भूजल पुनर्भरण हेतु सदाबहार नालों पर आवश्यकता अनुसार लघु चैकडैम बनाएं। उनसे छोटे बिजली घर पनचक्कियों का निर्माण करके हम अपनी अवश्यक्ताओं की पूर्ति कर सकते हैं। इससे बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी और प्रतिवर्ष हमारे सिर पर मंडराने वाले बाढ़ के संकट भी कम होंगे। भूजल पुनर्भरण को प्रभावी बनाने हेतु गांव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार गहरे, तल से कच्चे जल पुनर्भरण हेतु तालाब और पोखरों का अधिक से अधिक नवनिर्माण एवं संरक्षण करके परम्परागत जल संचयन प्रणाली का सम्मान करें। अगर हम उपलिखित उपायों का अपने जीवन में चरित्रार्थ करें तो भविष्य में अवश्य ही भूजल स्तर में वृद्धि होगी। आईये! हम सब मिलकर राष्ट्रीय भूजल संरक्षण अभियान को सफल बनाएं।

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    पेयजल स्रोत के चारों ओर फैली गंदगी

    अक्सर दूसरों को हम साफ-सफाई का उपदेश देते हैं पर स्वयं उस पर कम अमल करते हैं। अपना घर साफ-सुथरा रखकर घर का सारा कूड़ा-कचरा ऐसी जगह फैंक देते हैं जो सार्वजनिक होती हैं। इसी तरह मनुष्य किसी पेयजल स्रोत या देवालय को दूषित करने से भी नहीं हिचकचाता है। देखने में आता है कि जहां से लोगों को पेयजल की आपूर्ति की जाती है उस जगह गंदगी फैली रहती है। ऐसे में गंदा व दूषित पानी पीने से बीमारियों फैलने का खतरा बना रहता है।
    सुल्याली गांव में स्थित डिब्केश्वर  महादेव मंदिर के साथ लगता कंगर नाला पर बने प्राकृतिक जल स्रोत के चारों ओर गंदगी का साम्राजय है। जहां से पाईप द्वारा पेयजल का पास ही में जल भण्डारण किया जाता है। वह कंगर नाला का एक छोर है जब कि जल वितरण व्यवस्था के लिए दूसरी ओर जल भण्डारण किया जाता है। यह जल न केवल सुल्याली गांव की जल आपूर्ति करता है बल्कि उसके आस-पास के कई क्षेत्रों जैसे नेरा, लुहारपूरा, बारड़ी, बलारा, हटली, सोहड़ा, देव-भराड़ी आदि को भी जल उपलब्ध करवाता है। दुखद है कि कंगर नाला में स्थानीय लोग खुला शौच करते हैं जिससे कंगर नाला में स्थित पेयजल भण्डार की शुद्धता और डिब्बकेश्वर महादेव मंदिर की पवित्रता अनवरत नष्ट हो रही है। हिमाचल सरकार द्वारा राज्य के हर गांव में निर्धन परिवारों का ध्यान रखकर एक-एक शौचालय बनवाने में आर्थिक सहायता दी जाती है और बनवाए भी हैं फिर भी न जाने क्यों? लोग खुला शौच करना ज्यादा पसंद करते हैं।
    सुल्याली गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर बने कंगर नाला पुल से नीचे पेय जलस्रोत तक हमें ऐसी ही गंदगी देखने को मिल जाएगी जो जल प्रदूषण के साथ-साथ डिब्बकेश्वर महादेव मंदिर के लिए शुभ संकेत नहीं है।
    आज डिब्बकेश्वर मंदिर एक दर्शनीय मंदिर परिसर बन चुका है। यहां दूर-दूर से लोग दर्शन हेतु आते हैं और धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। अगर समाज के जागरूक स्थानीय लोग इस ओर ध्यान दें, इसे रोकने का प्रयत्न करें तो तभी पेयजल स्रोत साफ-सुथरे रह सकते हैं।
    16 मार्च 2008 दैनिक जागरण