मानवता सेवा की गतिविधियाँ
लुटाया था अपना आप उसने तो तू उन्हें पूज रहा lक्यों पूजेगा, कौन तुझे ? मनः तू तो सबको लूट रहा ll
चेतन कौशल
सुहागा सत्य है, आग अहिंसा, सोना शरीर तपा ले lसांचे में खुद को ढाल, मनः मानव जीवन संवार ले l
सुन बात दूसरों की, कर ले भली प्रकार विचार lहृदय की बात पत्थर की लकीर, मनः कर तुरंत व्यवहार ll
पिछला काम निपटा दे, फिर तू बढ़ आगे lगति बना तू कुछ ऐसी अपनी, मनः तन आलस छोड़ कर भागे ll
बातों में उनको न लगा, तू मुर्ख क्यों बनता है ?रह मग्न तू अपने कर्म में. मनः जीवन सफल बनता है l