पर्यावरण चेतना – 3
भारत पाक विभाजन के पश्चात् बंगलादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी मुसलमानों का भारत में तेजी के साथ आगमन हुआ है l मुसलमानों में बहु विवाह करने, अनेकों पत्नियाँ रखने और हर पत्नी से दर्जनों बच्चे पैदा करने की परंपरा, का आज भी प्रचलन जारी है l इस कारण छह-सात दशकों से देश के राज्यों में उनकी जनसंख्या टिड्डी दल की भांति बड़ी तीव्र गति से बढ़ी है, जब कि हिन्दुओं की जनसंख्या में निरंतर कमी आई है l इस तरह देश के कई राज्य जिनमें कभी हिन्दू बहु-संख्यक थे, वे अब या तो अल्प संख्यक हो गये हैं या हिन्दू मुक्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं l
निरंतर जन संख्या के बढ़ने, उचित मात्रा में इमारती और फलदार पोध-रोपण न हो पाने, लोगों को रहने के लिए स्थान कम पड़ने के कारण सबके लिए मकान तथा सड़क निर्माण हेतु बार-बार अनगिनत पेड़ों के कटने से जंगलों का वृत्त सिमटता जा रहा है l बहुत से जंगली जीव लुप्तप्राय हो गये हैं अथवा लुप्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं l इससे पर्यावरण में असंतुलन पनपा है l वन्य जीव-जन्तु व वन्य संपदा निरंतर अभाव की ओर अग्रसर है l
देशभर में तेजी से शहरीकरण और सड़कों का निर्माण होने के कारण धरती की सतह सीमेंट व तारकोल से ढकती जा रही है जिससे वर्षा जल का बहुत सा भाग किसी नाली, नाला, या नदी में बेकार बह जाने से भूमि में प्रवेश नहीं हो पाता है l हाँ असंख्य नलकूपों से पानी अवश्य निकाला जाता है, पर कहीं कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण नाम मात्र ही होता है l निर्माण कार्य हेतु खनिजों की आपूर्ति के लिए नदी, नालों से खनिजों का दिन-रात भारी मात्रा में खनन जारी है जिससे धरती में निरंतर गहराई बढ़ रही है l बदले में भु-जल स्रोत प्रभावित हो रहे हैं और क्षेत्रीय भू-जल संकट बढ़ रहा है l
धरती के तापमान में निरंतर वृद्धि होने से वर्षभर जल आपूर्ति करने वाले ग्लेशियर, हिमनद, दिनों दिन पिघल ही नहीं रहे हैं, सिकुड़ भी रहे हैं l बारहमासी बहने वाली परंपरागत झीलें, झरने, नदियां और नहरें जो देश के लिए जल की आपूर्ति किया करती थीं, के जलस्तर में भारी कमी आई है l हर वर्ष गर्मी बढ़ने से प्राकृतिक जल स्रोत सूखते एवं सिकुड़ते जा रहे हैं l
ग्लेशियर, हिमनद, नदियाँ और नहरें जैसे सतही जल स्रोत जो वर्षभर निरंतर प्रवाहित होते थे, उनसे तालाब, कूप, डैम और नहरों का जल-स्तर पर्याप्त मात्रा में भरा रहता था l मानव के द्वारा आधुनिकता की अंधी दौड़ में पर्यावरण के साथ अनुचित छेड़-छाड़ करने से उसका सौन्दर्य बिगड़ा है l आवश्यकता है प्राकृतिक जल स्रोतों का अस्तित्व बचाने की, उन्हें निरंतर सक्रिय बनाये रखने की l आज इनके अस्तित्व पर संकट के बादल छाने के पीछे मानव की महत्वाकांक्षा और पर्यावरण के प्रति उसकी उपेक्षा का हाथ स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है l मनुष्य तीव्र गर्मी से राहत पाने के लिए जब-जब पहाड़ी क्षेत्रों की शीतल हरी - भरी बादियों, उनके रमणीय स्थलों की ओर भ्रमण करने निकलता है तो वह वापसी के दौरान वहां ढेरों गंदगी – पालीथीन लिफ़ाफ़े, प्लास्टिक बोतले और उनसे संबंधित अन्य कचरा भी छोड़ आता है जो पर्यावरण के लिए बड़ा घातक सिद्ध होता है l निर्माण कार्य करने, जीव जंतुओं को पीने के लिए, साफ-सफाई रखने और खेत, पेड़-पौधों की सिंचाई करने के लिए शुद्ध सतही जल ही काम आता है l मनुष्य को प्राकृतिक जल स्रोतों के किनारों पर साफ-सफाई का ध्यान रखना, फलदार और इमारती लकड़ी की पौध लगाना और उसके प्रति स्वयं जागरूक रहना अति आवश्यक है l
बंगलादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी मुसलमानों की अनवरत जन संख्या बढ़ने से भू-जल की मांग बढ़ी है l उससे अंधाधुध भू-जल दोहन होने लगा है l प्रदुषण फैल रहा है l निरंतर खनन होने व वन्य संपदा में कमी आने से जंगलों का वृत्त सिकुड़ रहा है l संतुलित वर्षा न हो पाने के कारण भी शुद्ध भू जल स्तर में कमी आ रही है l ऐसे में - कूप, नल कूप, नल, हस्त चालित नल, और बावड़ियाँ अपना-अपना अस्तित्व खो रहे हैं l सृष्टि में स्वच्छ जल की निरंतर हो रही कमी के कारण प्राणियों का जीवन संकट ग्रस्त है l
हमें जल उपयोग करने के लिए कठोर नियमों का पालन करना आवश्यक हो गया है l इसलिए नल या भू-जल का उपयोग समय पर और परिवार की आवश्यकता अनुसार ही करें l घर या सार्वजनिक नल अथवा भू-जल पाइप कभी लीक न होने दें l परिवार के सदस्य घर अथवा सार्वजनिक स्थलों पर सदैव बाल्टी और माघ से ही स्नान करें l जूठे वर्तनों और घर की साफ-सफाई तथा कपड़ों की धुलाई सदैव संग्रहित जल से ही करें l निर्माण कार्य हमेशा सतही जल- किसी झील, झरना, जलाशय, तालाब कूप, नदी या नहर से ही करें l ऐसा करने से हमें भूजल बचाने में कुछ लम्बे और अधिक समय तक सहायता अवश्य मिल सकती है l
हमारा भारत मुख्यतः छः ऋतुओं का देश है l उनमें वर्षा ऋतु का अपना ही महत्व है l आज देश भर में स्थिति ऐसी हो गई है कि कहीं वर्षा होती है तो कहीं होती ही नहीं है l जहाँ वर्षा होती है, वहां इतनी ज्यादा और भयानक होती है कि बाढ़ आ जाती है और वह अपने साथ जन, धन, सब कुछ बहाकर ले जाती है l यह सब अचानक इतनी जल्दी होता है कि किसी को अपनी स्थिति संभालने का समय भी नहीं मिलता है l जलधारा सायं-सायं करती हुई नाली, नाला, नदी का रूप धारण कर पहाड़ से जंगल और मैदान की ओर बढ़ जाती है l वह पहाड़ से निकलकर जलाशय की ओर बहती है और फिर सागर से मिलकर एकाकार हो जाती है l उसे तो बस बहना है l वर्षा जल आंधी बनकर आता है और तुफान् बनकर आगे बढ़ जाता है l इस तरह वह तीव्रगामी जलधाराधरती को विनाश के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं देती है l उससे कहीं भी भू-जल पुनर्भरण नहीं होता है l
भूजल बैक निरंतर खाली होता जा रहा है l इसका मुख्य कारण यह है कि हम भूजल बैंक से निरंतर अंधाधुंध जल दोहन किये जा रहे हैं पर उसमें कभी क़िस्त नहीं डालते हैं, कभी भी जल संग्रहण करने का प्रयास नहीं करते हैं l हमें जलस्तर में वृद्धि करनी होगी l जल संचयन करने हेतु परंपरागत बावड़ी, कूप, तालाब, जलाशयों का संरक्षण एवं उनका नव निर्माण करना होगा l खेत का पानी खेत में रहे, उसे वहीं रोककर, नदियों को स्वच्छ बनाकर, पर्यावरण का प्रदूषण भी हटाना होगा और सदाबहार नदी या नालों के जल को डैम या चैकडैम में बाँधकर तथा हर घर की छत के वर्षाजल का पाइप द्वारा भूमि में कृत्रिम भूजल पुनर्भरण करना होगा l भारत में मुस्लिम समुदाय की टिड्डी दल की भांति बढ़ रही जन संख्या पर नियंत्रण रखना होगा l इसके साथ ही साथ हमें हर वर्षा काल में अपने खेतों की मेड़ों पर तथा खाली पड़ी सरकारी और गैर सरकारी भूमि पर इमारती एवं फलदार पौध लगानी होगी l वर्षभर उनका पोषण करना होगा ताकि भावी पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक जंगल और वन्य संपदा को लम्बे समय तक बचाया जा सके l
मनवा प्यासी धरती करे पुकार, सुरक्षित भूजल भंडार सबका करे उद्दार l
प्रकाशित अगस्त 2019 मातृवंदना
श्रेणी: 4 पर्यावरण
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श्रेणी:हमारा पर्यावरण – आलेख
जल संकट और उसका समाधान
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श्रेणी:हमारा पर्यावरण – आलेख
छोटी छोटी असावधानियों से भूजल स्तर जाएगा पाताल!
पर्यावरण चेतना - 2
हमारी अनेकों समस्याएं हैं, वह थमने का नाम नहीं ले रही हैं। उन समस्याओं में गहरा होता जा रहा भूजल का गिरता स्तर, वर्तमान में राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया है। हम हर क्षण राष्ट्र के अधिकांश भूजल संसाधनों का कदम-कदम पर दुरुपयोग कर रहे हैं, परिणाम स्वरूप भूजल स्तर नीचे जा रहा है।
हम दैनिक उपयोग में अपनी आवश्यकता से कहीं अधिक भूजल दोहन करते हैं। हम रसोई में खाद्य पदार्थों की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के समय नल खुला रखते है। व्यर्थ और गंदा जल क्यारी में न डालकर, नाली में गिरा देते हैं। आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए हम खुले नल का प्रयोग करते हैं।
हम भूमिगत जल टंकी भरने के लिए उसमें टोंटी नहीं लगाते हैं। टोंटी लगी हो तो उसे खोल देते हैं या ढीली छोड़ देते हैं।
छत पर 500 या 1000 लीटर वाली पानी की टंकी भरने के लिए हम नल से सीधे जल उठाऊ मोटर का प्रयोग करते हैं। पानी से भर जाने के पष्चात् जल की टंकी से व्यर्थ में पानी बाहर बहता रहता है या उसमें दिन-रात जल का रिसाव होता रहता है।
घर अथवा सार्वजनिक स्नानगृह में हम खुले नल या शावर के नीचे लम्बे समय तक स्नान करते रहते हैं। खुले नल के आगे कपड़े धोते हैं, दंत-मंजन करते हैं, दाढ़ी बनाते हैं।
घर अथवा सार्वजनिक शौचालयों में नल का पानी बहता हुआ छोड़ देते हैं, बहता हुआ दिखे तो भी हम उसे बंद नहीं करते ।
नल से रबर पाइप लगाकर हम घर, पशुशाला ही की नहीं गाड़ी की भी सफाई करते हैं। रबड़ पाइप से जगह-जगह जल रिसाव भी होता रहता है।
नल से रबड़ पाइप लगाकर हम क्यारी व पौधों की सिंचाई करते हैं। खेत में सिंचाई हेतु यूं ही पटवन करते रहते हैं, उसे उचित समयक्रम से नहीं करते हैं। लान को बार-बार पाटते हैं। नलकूप द्वारा आवश्यकता से कहीं अधिक दोहन करते हैं। हम जलवायु के आधार पर परंपरागत खेती करना, फल, चारा व इमारती लकड़ी प्राप्त करने के लिए नई पौध लगाना, दिन प्रतिदिन भूलते जा रहे हैं। सिंचाई की पाइप के जोड़ों/कपलिंगों से जल रिसाव होता रहता है।
इस तरह थोड़ा-थोडा करके हम भूजल भंडार का कई हजार लीटर पानी यूं ही व्यर्थ में नष्ट कर देते हैं। जल को अमूल्य संसाधन समझने पर भी हम आज यह नहीं सोचते कि पानी न होगा तो कल क्या होगा?
वर्षाकाल में अपने मकान की छतों से गिरने वाले पानी के संग्रह की हमे व्यवस्था कर लेनी चाहिए। सदाबहार बहते नाले में चैकडैम बनवाकर जल संग्रहण करना चाहिए। पुराने तालाब, पोखर, कुंओं का पुनरोद्वार करना चाहिए।
परिवार नियोजन की उपेक्षा में जनसंख्या बढ़ने, प्रौद्योगिकी के विस्तार और शहरीकरण होने के कारण प्रतिदिन भूजल की मांग में अत्याधिक वृद्धि हुई है जबकि भूजल पुनर्भरण की प्रतिशत मात्रा कम रही है। नव निर्माण कार्यों में हम भूजल का बहुत ज्यादा प्रयोग करते हैं। अगर हम समय रहते स्वयं जागरूक नहीं हुए, स्वेच्छा और आवश्यकता से अधिक भूजल का युं ही दोहन एवं दुरुपयोग करते रहे तो वह दिन दूर नहीं कि भूजल स्तर पाताल गमन अवश्य करेगा। ऐसी स्थिति में क्या हम उसे रोकने के लिए प्रयासरत हैं ? क्या हम उसे सहजता से रोकने में सफल हो पाएंगे?
प्रकाशित मातृवंदना अगस्त 2015
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श्रेणी:भू-जल भंडार
भूजल स्तर में कैसे होगी वृद्धि?
भूजल स्तर में आ रही निरंतर गिरावट को जल का सदुपयोग करने से रोका जा सकता है। इससे भूजलस्तर की पुनः वृद्धि हो सकती है इसके लिए हमें आज ही से निरंतर जागरूक रहकर स्वयं कुछ प्रयास करने होंगे।
जब भी पानी पीना हो, स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, पीने के लिए सदा गहरे हैंडपंप, नलकूप, प्राकृतिक चश्में और बावड़ियों के पानी का ही प्रयोग करें। यह जल निरोग तथा स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
रसोई में खाद्य पदार्थो की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के लिए प्रयोग किया गया जल जो गंदा हो जाता है, उसे सदा पौधों व क्यारियों में ही डालें। आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए मग से जल का प्रयोग करें। जल प्रयोग करने के पश्चात नल बंद अवश्य कर देें।
अगर भूमिगत जल की टंकी में टोंटी का अभाव हो तो उसे वहां तुरंत लगा दें। नल सदा अच्छी तरह बंद करके रखें। पाइप पुरानी हो और वह कहीं से रिसाव करे तो उसे तुरंत बदलवा दें।
घर या सार्वजनिक स्नानगृह में खुले नल या शावर के नीचेे कभी स्नान न करें। खुले नल के आगेे कपड़े न धोएं, ब्रुश न करें, दाढ़ी न बनाएं। अच्छा है, बाल्टी में जल लेकर छोटे मग का ही प्रयोग करें। घर या सार्वजनिक स्थान पर नल धीमे से खोलें और जल बैंकराशि की तरह उपयोग करने के पश्चात उसे बंद कर दें।
घर या सार्वजनिक शौचालयों में जितनी अवश्यकता हो, उतने ही पानी का प्रयोग करें। किसी के द्वारा खुले छोड़े हुए नल को तुरंत बंद कर दें। भूजल की हानि को अपनी हानि समझें। घर या सार्वजनिक स्थान पर भूजल सरंक्षण के नियमों का पालन अवश्य करें। अगर भूजल आपूर्ति तंत्र में कहीं रिसाव होता हुआ दिखे तो स्थानीय निकायों को अवश्य सूचित करें।
घर, पशुशाला की सफाई करने के लिए झाड़ू और बाल्टी का तथा पशु और गाड़ी की सफाई हेतु बाल्टी और मग का प्रयोग करें ताकि भूजल का अधिक दुरुपयोग न हो।
आवश्यकता अनुसार मात्र फुहारे से क्यारी व पोैधों की सिंचाई करें। फसलों में पानी की आवश्यकता का हिसाब अवश्य रखें। खेत में जितनी आवश्यकता हो नलकूप से उतना ही पानी लगाएं। आवश्यकता से अधिक कभी भूजल दोहन न करें। फसल की बढ़ोतरी की दर से पानी के प्रयोग को घटाएं-बढ़ाएं। फसल, मिट्टी और जलवायु से अच्छी तरह मेल खाने वाली जल सिंचाई-प्रणाली ही का चुनाव करें और उसी के अनुसार खाली पड़ी भूमि पर फलदायक एवं भवन निर्माण संबंधि लकड़ी के लिए, नई पौध अवश्य लगाएं। सिंचाई समय बतलाने वाले सेंसरों का प्रयोग करें। ड्रिप एवं स्प्रिंकलर पद्धति का प्रयोग करें। स्प्रिंकलर पद्धति में रिसाव से बचने के लिए समय-समय पर जोड़ों और कपलिंगों की जांच करते रहें। सिंचाई प्रणाली का अच्छी तरह रख रखाव करें। सिंचाई के लिए सवेरे सूर्योदय से पहले लान पाट लें। उपयोगी जानकारी प्राप्त करके सिंचाई समय को ध्यान में रखें। सिंचाई समय सारिणी बनाएं और चयनित पद्धति से उचित समय पर सिंचाई करें। खेत, क्यारी की पूर्ण सिंचाई से थोड़ा पहले पानी बंद कर दें ताकि पूरे पानी का प्रयोग हो सके।
निर्माण कार्यों में भूजल का कभी प्रयोग न करें। उसके स्थान पर जोहड़, पोखर, तालाब, नदी. नाले तथा संचित वर्षा जल का ही प्रयोग करें। समाज में बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए परिवार नियोजन अपनाकर उसमें अपना योगदान दें और जहां तक संभव हो, कल के लिए भूजल पुनर्भरण अवश्य करें।
भूजल पुनर्भरण हेतु सदाबहार नालों पर आवश्यकता अनुसार लघु चैकडैम बनाएं। उनसे छोटे बिजली घर पनचक्कियों का निर्माण करके हम अपनी अवश्यक्ताओं की पूर्ति कर सकते हैं। इससे बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी और प्रतिवर्ष हमारे सिर पर मंडराने वाले बाढ़ के संकट भी कम होंगे। भूजल पुनर्भरण को प्रभावी बनाने हेतु गांव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार गहरे, तल से कच्चे जल पुनर्भरण हेतु तालाब और पोखरों का अधिक से अधिक नवनिर्माण एवं संरक्षण करके परम्परागत जल संचयन प्रणाली का सम्मान करें। अगर हम उपलिखित उपायों का अपने जीवन में चरित्रार्थ करें तो भविष्य में अवश्य ही भूजल स्तर में वृद्धि होगी। आईये! हम सब मिलकर राष्ट्रीय भूजल संरक्षण अभियान को सफल बनाएं।
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श्रेणी:हमारा पर्यावरण – आलेख
पाॅलीथीन प्रतिबंधित हुआ, परंतु…….
हिमाचल सरकार पाॅलीथीन पर प्रतिबंध लगा चुकी है। जम्मू कश्मीर सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन प्रांतीय सरकारों का यह कार्य प्रयास चहुं ओर प्रशंसनीय रहा है। अब इन प्रांतों के हर शहर व गांव की गलियों व नालियों में पाॅलीथीन लिफाफे तो कम अवश्य हुए हैं पर वह अभी समाप्त नहीं हुए हैं। उन पर मात्र प्रतिबंध लगा है। सरकार द्वारा लगाया गया यह प्रतिबंध, पूर्ण प्रतिबंध सार्थक तब होगा जब पाॅलीथीन परिवार के अन्य हानिकारक उत्पादों का जन साधारण द्वारा विरोध किया जाएगा। पाॅलीथीन का उत्पादन एवं प्रयोग होना बंद हो जाएगा।
देखने में आ रहा है कि अनाज, दालें, तिलहन, दूध, दही, पनीर, मक्खन, घी, सब्जी तथा श्रृंगार का सामान मोमी पारदर्शी लिफाफों प्लास्टिक की बोतलों में सिले सिलाए वस्त्र, प्रिंटेड मोमी थैलों और डिब्बों में पैक करके बाजार में ग्राहकों को बेचे जाते हैं जो पर्यावरण हित में नहीं है।
गंदे पाॅलीथीन, मोमी, पारदर्शी लिफाफों को खाकर पशु मर जाते हैं। नालियां गंदगी से अवरुद्ध हो जाती हैं। स्वाइन फ्लू जैसे भयानक जानलेवा घातक रोग पैदा होते हैं। गंदा पानी रिसकर पेयजल स्रोतों की उपयोगिता नष्ट करता है। पाॅलीथीन, मोमी लिफाफों से पेयजल स्रोत अवरुद्ध हो जाते हैं। वे अपना जल प्रवाह की दिशा बदल लेते हैं, नष्ट हो जाते हैं।
पाॅलीथीन, मोमी लिफाफे लम्बे समय तक नष्ट नहीं होते हैं। उनसे खेतों की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है। खेत बंजर हो जाते हैं। बरसात के दिनों में जगह-जगह पर गंदगी फैल जाने से सफाई कर पाना अति कठिन हो जाता है। इसका यह अर्थ हुआ कि हम सफाई पसंद नहीं करते हैं। हम दूसरों का सफाई का कार्यभार कम करने की अपेक्षा उसे और अधिक बढ़ाते हैं।
बात स्पष्ट है कि पाॅलीथीन, मोमी लिफाफे, प्लास्टिक की बोतलें व पैकिंग का सामान बनाने की वर्तमान वैज्ञानिक तकनीक पर्यावरण विरुद्ध है। वह पर्यावरण का मित्र न होकर शत्रु बन चुकी है। वैज्ञानिकों के द्वारा अब नई एक ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जो पर्यावरण की सुरक्षा कर सके जिससे पर्यावरण विरोधी उत्पादों की वृद्धि न हो बल्कि पर्यावरण स्वच्छ एवं संतुलित बन सके।
पर्यावरण में बढ़ता तापमान और निरंतर पिघलते हुए ग्लेशियर इस बात का प्रमाण हैं कि हमारा भविष्य सुरक्षित नहीं है। हमें भविष्य में कल-कल करती नदियां झर-झर करते झरने मीठे-मीठे जल के चश्में और मनमोहक झीलें कहीं दिखाई नहीं देंगी। पेय जलस्रोत न रहने के कारण हम जीवित नहीं रहेंगे, ऐसा जानते हुए भी हम पर्यावरण विरुद्ध कार्य करते जा रहे हैं।
सावधान! हमें पर्यावरण विरुद्ध किए जाने वाले ऐसे सभी कार्य तत्काल बंद कर देने होंगे और एक ऐसी तकनीक का विकास करना होगा जिससे मानव जाति में पर्यावरण प्रेम जागृत हो। वह निजहित की चार दीवारी से बाहर निकल कर जन हित एवं समाज कल्याण का कार्य कर करे। उससे किसी जानमाल की हानि न हो। हर तरफ हर कोई सुख शांति से जी सके।
सरकार द्वारा पर्यावरण सुरक्षा बनाए रखने हेतु ऐसा विधेयक पारित किया जाना चाहिए उत्पादकों को विशेष निर्देश दिया गया हो कि वे अपने यहां उत्पादित उपयोगी पाॅलीथीन, मोमी लिफाफे और प्लास्टिक के सामान पर वैधनिक चेतावनी लिखने के साथ-साथ उन्हें अनुपयोगी होने पर, जल्द नष्ट करने की हानि रहित विधि भी सुनिश्चित करें जिससे पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण रोकने में सरकार को जन साधारण का सहयोग मिल सके।
अतः पाॅलीथीन तो अभी प्रतिबंधित हुआ है। उस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना शेष है। आइए! हम सब वैज्ञानिक, उत्पादक, भण्डारपाल, व्यापारी, दुकानदार, ग्राहक और गृहणियां सरकार द्वारा पाॅलीथीन विरुद्ध लगाए गए प्रतिबंध को पूर्ण प्रतिबंध में परिणत करने हेतु रचनात्मक एवं सकारात्मक कार्य करें और उन सब वस्तुओं को सदा के लिए भूल जाएं जिनसे पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण फैलता है। इन्हें भूल जाने में ही हमारी सबकी समझदारी और भलाई है।
12ण्7ण्2009
कष्मीर टाइम्स
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श्रेणी:धरती
पॉलीथिन का साम्राज्य
अगर विश्व में कहीं प्राकृतिक संकट पैदा होता है तो मनुष्य द्वारा साहस के साथ उसका सामना किया जा सकता है परन्तु मनुष्य ही कोई भयानक संकट पैदा कर ले तो उसका सामना कौन और कैसे करे? है न समस्या गम्भीर।
खुशनसीब है जम्मू क्षेत्र जो किसी प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित है पर वह बडा़ बदनसीब है। वह स्थानीय लोगों के द्वारा स्वयं ही पैदा किए हुए संकट से संकट ग्रस्त है। भौतिकवाद की अंधी दौड़ में स्थानीय लोग पाॅलीथीन लिफाफों, प्लास्टिक बोतलों वनायलॉन और रबड़ की बनी जीवनोपयोगी वस्तुओं का तो धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं पर उन्हें अनुपयोगी हो जाने पर वह उनका उचित विसर्जन नहीं कर पा रहे हैं ताकि उन्हें तुरंत किसी अन्य उत्पाद में परिणत किया जा सके। जम्मू क्षेत्र में पाॅलीथीन लिफाफों का प्रचलन इस हद तक बढ़ चुका है कि उन्हें अब हर घर की नाली में और आस-पास के छोटे-बड़े नालों के किनारों पर पड़े देखा जाने लगा है।
लोगों को उनमें बाजार से किसी भी समय घरेलू सामान की खरीद करते हुए और घर ले जाते हुए देखा जा सकता है। ऐसा करना उन्हें जाने क्यों अच्छा लगता है, वे यह तो भली प्रकार जानते हैं कि उनके द्वारा उन्हें नाली में या सड़क पर फेंकने से कितने भयानक दुष्परिणाम निकलते हैं?
वर्तमानकाल में जम्मू क्षेत्र के किसी मुहल्ले या कालोनी की कोई नाली, सड़क या नालों के किनारे पर फेैले गन्दगी युक्त पाॅलीथीन लिफाफों, प्लास्टिक बोतलों और दुर्गन्ध युक्त कूड़ा-कचरा के अम्बार राह में चलते और जाने-अनजाने उन लोगों के लिए मुसीबत बने हुए हैं जो पास ही के रास्ते से निकलते हैं। उन्हें सांस तक लेना दूभर हो जाता है। शुद्ध वायु के शुद्ध वातावरण में जीना व रहना तो हर कोई चाहता है पर वैसा वातावरण बनाए रखना भी तो हमारा अपना ही कार्य है। अगर हम यह कार्य स्वयं नहीं करेगे तो और कौन करेगा। समस्त मानव जाति का मात्र एक सफाई वर्ग पर पूर्ण आश्रित हो जाने से तो काम नहीं चलेगा। उसके कार्य में हम सबको मिलकर सहयोग करना होगा। क्षेत्र का हरा- भरा और प्रदूषण व रोग मुक्त बनाए रखने हेतु जरूरी है स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न मुहल्लों में संबंधित समितियों का गठन किया जाना जो गन्दगी फैलाने वालों पर कड़ी नजर रखेंगी। वह हर घर से निकलने वाले अनुपयोगी घरेलू सामान व कूड़ा-कचरा की उचित निकासी पौध-रोपण और सफाई के लिए लोगों का सही मार्ग दर्शन करेंगी। राज्य सरकार को चाहिए कि वह अपने पड़ोसी राज्य सरकारों की भांति जम्मू कश्मीर राज्य में भी पाॅलीथीन लिफाफों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दे और अधिक से अधिक पौधरोपण करवाए। वह अवहेलना करने वालों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कारर्वाई करे ताकि राज्य में व्याप्त पाॅलीथीन का साम्राज्य समाप्त हो सके। इस प्रकार जम्मू कश्मीर स्वच्छ और सुन्दर राज्य बन सकता है। उसके आकर्षण से आकर्षित होकर दुनियां का कोई भी पर्यटक वर्ग खुशी से उसकी ओर ज्यादा से ज्यादा की संख्या में आएगा और उसकी वादियों का मनचाहा आनन्द भी ले सकेगा।29 जून 2008 कश्मीर टाइम्स