मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 4 मानव

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    किशोर अवस्था

    इस अवस्था में बच्चे का ज्ञान और विवेक अपरिपक्व होता है l अच्छे बुरे या निषिद्ध कार्य का सही आंकलन नहीं होता है l वह जो भी कार्य करता है - उसे अच्छे बुरे या निषिद्ध कार्य का ज्ञान होना चाहिए l लेकिन वह कठिन और चुनौति पूर्ण जीवन यापन की अपेक्षा सुगम और सरल जीवन यापन करना अधिक पसंद करता है l कई बार अभिभावक की अनदेखी और कुसंगति में पड़कर वह अनुचित मार्ग की ओर भी अग्रसित हो जाता है l अगर समय रहते अभिभावक बच्चे का उचित मार्गदर्शन करें तो वह उस संकट से बच भी सकता है l 
    किशोर/किशोरियों के लिए यही समय सम्भलने का होता है । अगर इस समय उनके माता - पिता के द्वारा उन्हें अच्छे संस्कार, गुरु और अध्यापक द्वारा उचित शिक्षण - प्रशिक्षण प्राप्त हो तो वे अपने जीवन में संभल सकते हैं, वे दुर्व्यसनों का शिकार नहीं होते हैं । वे धैर्य और साहस के साथ अपने जीवन की चुनौतियों, बाधाओं, कठिनाइयों और दुःख - सुख का सामना करने में सक्षम होते हैं और दुर्व्यसनों का शिकार नहीं होते हैं l

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    बाल अवस्था

    यह वह अवस्था है जिसमें बच्चा नटखट होता है l कोई बच्चा बहुत नटखट होता तो कोई कम लेकिन होता अवश्य है l उसमें बोध और विवेक दोनों ही सुप्त अवस्था में होते हैं, जो उसकी आयु बढ़ने के साथ - साथ जागृत होते हैं l आरम्भ में उसे कुछ भी ज्ञान नहीं होता है, देखा देखी करता है l अकेले बच्चा नट - खट्टता कम करता है जबकि जोड़ी में बहुत अधिक l 

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    जीवन की चार अवस्थाएं

    सत्सनातन धर्म में मनीषियों के द्वारा मानव जीवन की चार अवस्थाएं - बाल अवस्था, किशोर अवस्था, युवा अवस्था, और वृद्ध अवस्था निर्धारित की गई हैं l 

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    सद्भावना और दुर्भावना

    भावनाएं दो प्रकार की होती हैं – सद्भावना और दुर्भावना l सद्भावना से मनुष्य का अपना और समाज का उत्थान होता है जबकि दुर्भावना से दोनों का पतन होता है l मनुष्य को किस भावना से कार्य करना चाहिए ? ये बात उसकी बुद्धि और प्रकृति पर निर्भर करती है l 
    सद्भावना और दुर्भावना में मात्र इतना अंतर है, सद्भावना गैर को भी अपना बनाती है जबकि दुर्भावना अपनो ही को गैर बना देती है l
    सद्भावना से बिखरा हुआ समाज एक सूत्र में पिरोया जा सकता है l

    सद्भावना से आत्मोत्थान और दुर्भावना से आत्म पतन होता है l
    मन में शुद्ध भाव रखने से आत्म विशवास बढ़ता है l
    प्रेम बल से दूरस्थ व्यक्ति भी समीप लगता है मगर द्वेष से समीप रहने वाला भी दूर होता है l
    दान, त्याग, समर्पण और सेवा भाव से कठिन से कठिन कार्य भी सहजता से सिद्ध हो जाते हैं l
    निराभिमान से लोकप्रियता बढ़ती है l
    सफल लोगों की दिनचर्या उनका मन नहीं, लक्ष्य तय करता है l
    जन सेवा हेतु समर्पित भाव से कार्य करना ही भक्तियोग है l


    सुख की कामना-
    दुःख का सामना किये बिना सुख की कभी कामना नहीं की जा सकती l दुःख सहन करने से ही सुख की प्राप्ति होती है l



  • श्रेणी:

    घर

    नारी एक - रूप अनेक -
    माँ, बहन, बहु और बेटी से ही हर घर संवरता है, इन्हें हर परिवार में उचित सम्मान मिलना चाहिए l
    घर स्वर्ग –
    धरती पर वह घर स्वर्ग समान है, जहाँ बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते हैं l
    घर तीर्थ –
    जो सन्तान आज्ञाकारी है, अपने माता-पिता की सेवा करती है, उसे किसी तीर्थ यात्रा पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं, वह घर स्वयं तीर्थ होता है l
    चिड़ियाँ रैन बसेरा –
    यह घर न तेरा है न मेरा है, चिड़ियों का रैन बसेरा है l