मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: सशक्त मानव

  • श्रेणी:

    सद्भावना और दुर्भावना

    भावनाएं दो प्रकार की होती हैं – सद्भावना और दुर्भावना l सद्भावना से मनुष्य का अपना और समाज का उत्थान होता है जबकि दुर्भावना से दोनों का पतन होता है l मनुष्य को किस भावना से कार्य करना चाहिए ? ये बात उसकी बुद्धि और प्रकृति पर निर्भर करती है l 
    सद्भावना और दुर्भावना में मात्र इतना अंतर है, सद्भावना गैर को भी अपना बनाती है जबकि दुर्भावना अपनो ही को गैर बना देती है l
    सद्भावना से बिखरा हुआ समाज एक सूत्र में पिरोया जा सकता है l

    सद्भावना से आत्मोत्थान और दुर्भावना से आत्म पतन होता है l
    मन में शुद्ध भाव रखने से आत्म विशवास बढ़ता है l
    प्रेम बल से दूरस्थ व्यक्ति भी समीप लगता है मगर द्वेष से समीप रहने वाला भी दूर होता है l
    दान, त्याग, समर्पण और सेवा भाव से कठिन से कठिन कार्य भी सहजता से सिद्ध हो जाते हैं l
    निराभिमान से लोकप्रियता बढ़ती है l
    सफल लोगों की दिनचर्या उनका मन नहीं, लक्ष्य तय करता है l
    जन सेवा हेतु समर्पित भाव से कार्य करना ही भक्तियोग है l


    सुख की कामना-
    दुःख का सामना किये बिना सुख की कभी कामना नहीं की जा सकती l दुःख सहन करने से ही सुख की प्राप्ति होती है l



  • श्रेणी:

    सशक्त मानव


    जीवन लक्ष्य
    जीवन लक्ष्य की प्राप्ति, चुनौतियों का सामना किये बिना संभव नहीं l
    जीवन सार
    जीवन – सार सबकी समझ में आने वाली वस्तु नहीं है l वह सत्य है और ये झूठ l वह दिन है और ये रात l


  • श्रेणी:

    सात्विक बुद्धि

    वेद और वैदिक ज्ञान के बिना मनुष्य जाति में सात्विक बुद्धि नहीं आ सकती l