बेटा-बेटी में भेदभाव -
- परिवार में बेटे के जन्म पर हर्ष परन्तु बेटी के जन्म पर निराशा क्यों ?
- बेटा एक ही परिवार का पालन-पोषण करता है पर बेटी दो परिवारों का ध्यान रखती है, फिर बेटी का जन्म लेने से किसी परिवार का अपमान कैसा ?
- बेटा एक परिवार का नाम रोशन करता है जबकि बेटी दोनों परिवारों का, फिर परिवार और समाज द्वारा बेटा-बेटी में भेद-भाव क्यों ?
- भूलकर बेटे का न करना अभिमान, बेटा हो या बेटी, दोनों एक समान l
बेटे से नहीं है बेटी कुछ भी कम, दोनों कुल का साथ निभाये हर दम l
बेटा-बेटी-
बाप का सपना जो पूरा करे, उसे बेटा कहते हैं और माँ की आशाओं के अनुरूप जो खरी उतरे, उसे बेटी कहते हैं l
श्रेणी: परिवार
-
श्रेणी:सन्तान बेटी – बेटा
सन्तान बेटा-बेटी
-
श्रेणी:पति-पत्नी
पति-पत्नी
नर - नारी -
सृष्टि में तीन तत्व ईश्वर, जीव और प्रकृति प्रमुख हैं । सृष्टि चलाने हेतु जुगल नर - नारी की आवश्यकता होती है । नारी के बिना किसी भी नर के लिए परिवार की कल्पना करना असंभव है । नारी अपने परिवार और समाज के कल्याणार्थ अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है ।
पति - पत्नी-
नर - नारी शादी के पश्चात् पति - पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं । बच्चे के जन्मदाता माता - पिता होते हैं । माता बच्चे को नौ मास तक अपने गर्भ में, तीन वर्ष तक अपनी बाहों में और जिंदगी भर अपने हृदय में रखती है । माता ही बच्चे को खड़े होना, चलना, बोलना, खाना, नहाना, कपड़े पहनना, सर पर कंघी करना आदि सब कार्य करना सिखाती है ।
-
श्रेणी:परिवार
परिवार
नारी आभाव -
जब कोई दो पहिया वाहन किसी एक पहिये के बिना नहीं चल सकता है तो नारी अभाव में परिवार मात्र नर से कैसे चल सकता है !
परिवार –
- जिस परिवार में आपसी प्रेम, सोहार्द व् शान्ति नहीं, उस घर की समस्त सुख-सुविधाएं किस काम की l
- परिवार एक वह ठोस इकाई है जिससे समाज, राष्ट्र और विश्व की संरचना होती है l
- पारिवारिक मतभेदों को परिवार में ही समाप्त कर लेना बुद्धिमानी है l
- पारिवारिक झगड़ों से बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, से बचना चाहिए l
- परिवार में बड़ों का उचित सम्मान और उनसे शिष्ट व्यवहार करने से जीवन - मार्गदर्शन मिलता है l
- आपसी झगड़ों व् तनाव से परिवारों को हानि पहुँचती है जबकि दुश्मन को लाभ होता है l
- पारिवारिक झगड़ों से परिवार का युवा मानसिक रूप से टूट जाता है l
-
श्रेणी:एकाकी परिवार
एकाकी परिवार
परंपरागत संयुक्त परिवार से वर्तमान एकाकी परिवार बहुत भिन्न हैं । इनमें मात्र माता - पिता और नौकर - चाकर ही होते हैं । पिता नौकरी करता है और माता घर का सब कार्य करती है या दोनों ही नौकरी करने बहार जाते हैं । अगर वे दोनों नौकरी करते हों तो घर और बच्चे की देख भाल के लिए उन्हें दूसरों पर या मात्र नौकर, आया या नौकरानी पर निर्भर रहना पड़ता है, जिनसे उन्हें संकट का भी सामना करना पड़ सकता है l
-
श्रेणी:संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार
विश्व भर में अन्य सभ्यताओं की अपेक्षा मात्र सत्सनातन समाज ही एक ऐसा समाज है जिसकी दृष्टि से देखने पर मातृ - पक्ष में नानी - नाना, मामी - मामा, मासी - मासड़ मिलते हैं जबकि पितृ - पक्ष में पति-पत्नी, बेटी - बेटा, दादी - दादा, चाची - चाचा, ताई - ताया, बुआ - फूफ़ा, बहन - बहनोई, भावी - भाई, देवरानी-देवर, जेठानी - जेठ मिलते हैं । इन दोनों परिवारों के सभी संस्करी लोग कभी अपने - अपने परिवार में संयुक्त रूप से रहते थे । वे आपस में मिलजुल कर कार्य करते थे और एकजुट रहकर पारिवारिक दुःख - सुख का भी सामना करते थे, बच्चों को सबका प्यार व अच्छे संस्कार मिलते थे । वह संयुक्त परिवार कहलाता था । लेकिन वर्तमान में भाग - दौड़ की जिन्दगी में ऐसे परिवार या तो लुप्त हो गए हैं या जो बचे हैं, वे लुप्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं ।