श्रेणी: 4 उन्नत राष्ट्र
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श्रेणी:भाषा
राष्ट्रीय समर्थ भाषा
वह समाज और राष्ट्र गूंगा है जिसकी न तो कोई अपनी भाषा है और न लिपि। अगर भाषा आत्मा है तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भाषा से किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र की अभिव्यक्ति होती हैं।
छमाही
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श्रेणी:भाषा
राष्ट्रीय समर्थ भाषा
वह समाज और राष्ट्र गूंगा है जिसकी न तो कोई अपनी भाषा है और न लिपि। अगर भाषा आत्मा है तो यह कहना आतिशयोक्ति नहीं होगी कि भाषा से किसी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र की अभिव्यक्ति होती हैं।
विश्व में व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का भौतिक विकास और आध्यात्मिक उन्नति के लिए स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय भाषाओं का सम्मान तथा उनसे प्राप्त ज्ञान की सतत वृद्धि करने में ही सबका हित है।
राष्ट्र की विभिन्न भाषाओ का सम्मान करने से राष्ट्रीय भाषा का सूर्य स्वयं ही दीप्तमान हो जाता है। राष्ट्रीय भाषा स्वच्छन्द विचरने वाली वह सुगंध युक्त पवन है जिसे आज तक किसी चार दीवारी में कैद करने का कोई भी महत्वाकांक्षी प्रयास सफल नहीं हुआ है।
स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय भाषाओँ के नाम पर भेद-भाव, वाद-विवाद और टकराव की मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा की जनक रहीं हैं जिससे कभी राष्ट्र हित नहीं हुआ है। विभिन्न मनोवृत्तियां महत्वाकांक्षा उत्पन्न होने से पैदा होती हैं और उसके मिटते ही वह स्वयं नष्ट हो जाती हैं।
संस्कृत व हिन्दी भाषाओं ने सदाचार, सत्य, न्याय, नीति, सदव्यवहार और सुसंस्कार संवर्धन करने के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई सदियां बीत जाने के पश्चात ही कोई एक भाषा राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा और फिर वह राष्ट्र की सर्व सम्मानित राजभाषा बन पाती है। भारत में कभी सर्वसुलभ बोली और समझी जाने वाली संस्कृत भाषा देश की वैदिक भाषा थी जिसमें अनेकों महान ग्रंथों की रचनाएं हुई हैं। संस्कृत भाषा को कई भाषाओं की जननी माना जाता है। इस समय हिन्दी भारत की राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा होने के साथ-साथ राजभाषा भी है। हमें उस पर गर्व है। भारत में हिन्दी भाषा अति सरल बोली, लिखी, पढ़ी, समझी और समझाई जा सकने वाली मृदु भाषा है। आशा है कि इसे एक न एक दिन संयुक्त राष्ट्र मंच पर उचित सम्मान अवश्य मिलेगा। भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपयी जी, संयुक्त राष्ट्र मंच पर अपने सर्वप्रथम भाषण में हिन्दी का प्रयोग करके इसका शुभारम्भ कर चुके हैं। वे राष्ट्र के महान सपूत हैं।
हिन्दी के प्रोत्साहन हेतु देश भर में अब तक हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/आयोजन के सरकारी अथवा गैर सरकारी अनेकों सराहनीय एवं प्रसंशनीय प्रयास हुए हैं। इससे आगे हमें हिन्दी दिवस/सप्ताह/पखवाड़ा/ आयोजनांे के स्थान पर हिन्दी मासिक/तिमाही/छःमाही और वार्षिक आयोजनों का आयोजन करना होगा। हिन्दी भाषा को अधिकाधिक प्रोत्साहित करने हेतु सरल सुबोध हिन्दी शब्द कोष कारगर सिद्ध हो सकते हैं जिन्हें प्रतियोगियों का साहस बढ़ाने हेतु पुरस्कार रूप में प्रदान किया जा सकता है और पुस्तकालयों में पाठकों की ज्ञानसाधनार्थ उपलब्ध करवाया जा सकता है।
सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थांओं के कार्यालयों में फाइलों व रजिस्टरों के नाम हिन्दी भाषा में लिखे जा सकते हैं। कार्यालयों की सब टिप्पणियां/आदेश/अनुदेश हिन्दी भाषी जारी किए जा सकते हैं। कार्यालयों में अधिकारी व कर्मचारी नाम पट्टिकाएं तथा उनके परिचय पत्र हिन्दी भाषी बनाए जा सकते हैं। कार्यालय संबंधी पत्र व्यवहार/बैठकें/संगोष्ठीयां/विचार विमर्श इत्यादि कार्य अधिक से अधिक हिन्दी भाषा में हो सकते हैं।
जन-जन की सम्पर्क भाषा हिन्दी को राजभाषा में भली प्रकार विकसित करने का प्रयास सरकारी या स्वयं सेवी संस्थांओं द्वारा मात्र खानापूर्ति के आयोजनों तक ही सीमित होकर न रह जाए। इसके लिए प्रांतीय, शहरी और ग्रामीण स्तर के बाजारों में तथा सार्वजनिक स्थलों पर जैसे स्वयं सेवी संस्थाओ, दुकानों, पाठशालाओं, विद्यालयों, विश्व विद्यालयों रेलवे स्टेशनों और वाहनों आदि के नाम, परिचय, सूचना पट्ट इत्यादि हिन्दीभाषा में लिखकर यह अवश्य ही सुनिश्चित किया जा सकता है कि भारत देश की राष्ट्रीय सम्पर्क भाषा हिन्दी है और हिन्दी ही उसकी अपनी राजभाषा है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक और असम से सौराष्ट्र तक भारत एक अखण्ड देश है। हिन्दी भाषा अपने आप में हिन्द देश को सुसंगठित एवं अखण्डित बनाए रखने में पूर्ण सक्षम है। वह विश्व में अंग्रेजी के समकक्ष होने में हर प्रकार से समर्थ है।23 नवंबर 2008 कश्मीर टाइम्स
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बढ़ते कदम – सर्वोदय की ओर
2 मार्च 2008 दैनिक जागरण का प्रकाशित समाचार। ”गिफ्ट बैन – सरकारी समारोहों मे पाबंदी। 26 फरवरी को जारी पत्र संख्या (जीएडी-ए (ई) 4-1/89-थ्री) के मुताविक मुख्य सचिव की ओर से आदेश – मुख्यमंत्री के मामले में भी लागू होंगे। प्रदेश में सरकारी कार्य क्रमों में शिरकत करने वाले मुख्य अतिथियों को अब कोई गिफ्ट नहीं मिलेगा।“ इसके अनुसार सरकारी समारोह में मुख्य अतिथि को मात्र गुलदस्ता या एक फूल प्रदान करके, स्वागत किया जाएगा। यह आदेश सभी प्रशासनिक सचिवों, विभाग प्रमुखों, उपायुक्तों, बोर्ड निगमों के अध्यक्षों और सभी मंत्रियों के निजी सचिवों आदि पर लागू होगा। मंच पर बैठने वालों को हिमाचली टोपी और एक शाल गिफ्ट रूप में प्रदान की जाती थी। अब इस पर किए जाने वाले भारी खर्च की बचत होगी।“
मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल की प्रदेश हित में की गई यह उद्घोषणा एक साहसिक, सराहनीय और ऐतिहासिक कदम है। इससे पहले कि यह घोषणा अव्यावहारिक बनकर रह जाए, प्रशासन को स्वयं इसके प्रति सयंम, सतर्कता, समर्पित भाव और दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा। इनके बिना सार्वजनिक हित, हितकर न रहकर अहितकारी बन जाता है जिससे जन साधारण बेरोजगार, निर्धन और दुखी ही नहीं होता है अपितु वह मजबूर होकर हिंसा का भी दामन पकड़ लेता है।
विश्व में अपराधी, हिंसक वर्गों के उद्गम और उनके द्वारा समय-समय पर की जाने वाली वारदातें इसी का परिणाम रही हैं। इनके पीछे कहीं न कहीं सरकारी उपेक्षाएं होती रही हैं और तभी नक्सलवाद ओर उग्रवाद जैसे अपराधिक और हिंसक वर्गों की विश्व में वृद्धि हुई है।
हमें पुर्ण आशा है कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल जी के कुशल नेतृत्व में प्रदेश सरकार सर्वाेदय कार्यक्रम को बढ़ावा देगी जिसकी प्रेरणा से पड़ोस के अन्य प्रदेशों की सरकारें भी प्रेरित होंगी और उनके साथ योगदान अवश्य करेंगी।
स्मरण रहे कि किसी राज्य सरकार को मिलने वाली सफलता उस राज्य की जनता के द्वारा मिलने वाले सहयोग, विश्वास और त्याग से ही प्राप्त होती है। अगर वर्तमान सरकार राज्य की जनता को अपने साथ लेकर इस प्रकार के अन्य प्रयास करके उन्हें जारी रखती है तो निःसदेह वह दिन दूर नहीं कि सर्वोदय की मंजिल हमारे सम्मुख होगी जिससे एक दिन सबका भला अवश्य होगा।मई 2008
मातृवन्दना
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विलुप्त होंगी विश्व की हजारों भाषाएं!
दैनिक अमर उजाला में प्रकाशित 24 फरवरी 2008 का समाचार। संयुक्त राष्ट्र ने चेताया – ”विलुप्त होने के कगार पर हैं दुनियां की हजारों भाषाएं। संयुक्त राष्ट्र ने बर्ष 2008 को अंतरराष्ट्रीय भाषा घोषित किया है। 96 फीसदी भाषाएं केवल चार फीसदी लोगों के द्वारा बोली जाती हैं।“ समाचार के अनुसार – ”अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की शुरुआत बर्ष 2000 में हुई थी। 2008 को अन्तरराष्ट्रीय भाषा का बर्ष घोषित करने का उद्देश्य विश्व के बहुभाषी रूप को सहेजना है।“ युनेस्को ने चेेेेताया है – ”जब किसी भाषा का लोप होता है तो मात्र एक भाषा का नहीं बल्कि अवसरों, परंपराओं, यादों, सोचने और अभिव्यक्त करने के जरियों का लोप होता है जबकि बेहतर भविष्य के लिए इनकी बेहद जरूरत होेेती है।“
उपरोक्त विचारों से विश्व के उन महानुभावों को खुली चेतावनी है जो अल्पभाषी लोगों पर अपनी बहुभाषी भाषा का जबरन प्रत्यारोपण करना निज की शान समझते हैं। वे यह नहीं जानते हैं कि उनके द्वारा जो अतिक्रमण किया जा रहा है उससे अल्पभाषी लोगों की भाषा क्षीण ही नहीं होती है बल्कि उसका दुनियां से नाम तक मिट जाता है। ऐसे बहुभाषी लोग अल्प भाषी भाषाओं को क्या सहेजेंगे जो उनका न तो आदर करना जानते हैं और न उन्हें पनपने का अवसर ही देते हैं। उनके द्वारा अल्प भाषी भाषाओं को अभय प्रदान करना तो दुर की बात है।
यही कारण है कि इस समय दुनियां की ”सयुक्त राष्ट्र के आकलन द्वारा 6700 भाषाओं में से आधी विलुप्ति के कगार पर हैं जिनमें 96 फीसदी भाषाएं केवल चार फीसदी लोगों के द्वारा बोली जाती हैं। अगर इन्हें सहेज कर नहीं रखा गया तो एक दिन उन्हें ढुंढने पर वह हमें कहीं नहीं मिलेगी।“
समस्त विश्व जो कभी साम्राज्यवादी महाशक्तियों के आंतक से पीड़ित रहा है, उसके कई देश आज तक उस पीड़ा से स्वयं को नहीं उबार सके हैं। उनमें भारत बर्ष भी अपने आप में एक राष्ट्र है। भारत बर्ष को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त हुए 60 बर्ष व्यतीत हो चुके हैं। भारत के राष्ट्रीय नेताओं ने हिन्दी भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाने का सपना संजोया था पर आज तक वे उसे वह गौरव प्रदान नहीं कर सके हैं जो उसे मिल जाना चाहिए था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी साम्राज्यवादी भाषा अंग्रेजी भारत के राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और जन मानस पर निरंकुश राज कर रही है। होना यह चाहिए था कि हम अंग्रेजी भाषा की मान्यता समाप्त करके उसके स्थान पर हिन्दी को सुशोभित करते, पर हमने ऐसा नहीं किया। यह हमारी कमजोरी नहीं तो और क्या है? आज राष्ट्र भारत और उसकी राष्ट्रीय भाषा को सशक्त कौन बनाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि हिन्दी भाषा भी अंग्रेजी भाषा के भय से विश्व की हजारों भाषाओं में विलुप्त होने जा रही हो!
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का ससम्मान प्रचार-प्रसार करने हेतु अपने-अपने कार्यालयों का हर कार्य सम्पर्क भाषा हिन्दी के रूप में करने के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को भी प्रोत्साहन दें। इससे हमें निजी लोक गीत-संगीत, पहनावा, रहन-सहन, खान-पान, सोच-विचार, संस्कार और परंपराओं के दर्शन होंगे। हमें इनका हार्दिक सम्मान करते हुए, इन्हें परंपरागत अपने जीवन में अपनाकर अवश्य ही सहेजना होगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि विश्व में 6700 भाषाओं में से आधी भाषाओं के साथ 96 प्रतिशत भाषाएं जो 4 प्रतिशत लोगों द्वारा बोली जाती हैं और लुप्त होने के कगार पर हैं – वे धीरे-धीरे लुप्त हो जांएगी। देश की आघोषित एवं अव्यावहारिक राष्ट्रीय भाषा हिन्दी और उसके साय में पनपने वाली अनेकों क्षेत्रीय एवं लोक भाषाएं जिन्हें हम कभी ढूंढना चाहेंगे तो वह हमें कहीं नहीं मिलेंगी। तब विश्व में मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हमारा कुछ कर सकेगा क्या?।मई 2008
मातृवन्दना
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श्रेणी:4 उन्नत राष्ट्र
भारत-श्रीलंका संबंध
26 दिसम्बर 2007 के दिन दैनिक जागरण में प्रकाशित ”रामायण में वर्णित स्थलों को विकसित करेगी श्रीलंका सरकार – दुनियां को रामायण की लंका का न्योता“ एक सुखद समाचार है। इस समाचार के अनुसार – ”श्रीलंका सरकार रामायण में आए लंका प्रकरण से जुड़े तमाम स्थलों को प्रयटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है। इस परियोजना पर अध्ययन करने के लिए उसने एक टीम भारत भेजी है जो रामायण में दिए गए ”सोने की लंका“ के ब्योरे को समझेगी, उसका खाका तैयार करेगी“ इससे लंका आने वाले विदेशी, विशेष कर भारतीय प्रयटकों को रावण की लंका और रामायण से संबंधित लंका के स्थलों को देखने का सुअवसर मिलेगा।
इस शुभ समाचार से राम भक्तों का हृदय बेहद गर्वित और हर्षित हुआ है। यह भारत में सत्तासीन उन राजनीतिज्ञों के लिए सीख है जो श्रीराम के अस्तित्व को नकार रहे हैं। रामायण के पात्रों के मात्र कवि की कल्पना बता रहे हैं और उन्हें नाटक ही के पात्र कह रहे हैं। यह सर्वविदित है कि आयोध्या नरेश दशरथ नन्दन श्रीराम का लंका नरेश रावण के मध्य धर्म-अधर्म का युद्ध हुआ था उस धर्म-युद्ध में विजयी श्रीराम ने धर्म परायण रावण के छोटे भाई विभीषण को लंका का राज्य सोंपा था और लंका के साथ ठोस रामसेतु के समान अजीवन अपने प्रगाढ़ संबंध बनाए थे जिसका आज तक विश्व में उदाहरण ढुंढने पर कहीं भी मिलता नहीं है।
धर्म-संस्कृति और समाज के प्रति जागृत आज श्रीलंका सरकार ने भारत के साथ मधुर संबंध बनाने के लिए स्वंय अपेक्षा की है। उसने सहायता पाने के लिए अपना हाथ भी बढ़ाया है। इस पर भारत की वर्तमान सरकार को संकोच क्यों? उसे चाहिए कि वह राम-रावण जीवन से संबंधित रामायण में वर्णित स्थल जो दोनों देशों के लोगों की धार्मिक आस्था ही नहीं सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है, को विकसित करने की श्रीलंका सरकार की भांति परियोजना बनाए और उसे साकार भी करे।
आज भारत को श्रीलंका के साथ जोड़ने के लिए जहाज रानी-मार्ग की नहीं, रामसेतु की ज्यादा आवश्यकता है। भारत की वर्तमान सरकार को उसकी रक्षा करनी चाहिए, जीर्णोंद्वार करना चाहिए ताकि भारत की विदेश नीति राम-विभीषण की मित्रता पर आधारित, श्रीलंका-भारत को जोड़ने वाले ठोस रामसेतु के रूप में युग-युगों तक सुदृढ़ बनी रह सके।30 जनवरी 2008 दैनिक जागरण