इन्सान हूं मैं
भेड़िए की खाल पहने हुए हूं, क्यों?
बातें धर्म की करता हूं, मैं
लहु बे गुनाहों का बहाता हूं, क्यों?
करता हूं धर्म नाम पर हिंसा
धर्म और पशुता में अन्तर रहा क्या
मैं इन्सान कहलाता हूं
बन गया पशु, अर्थ रहा क्या?
हिंसा तो है धर्म पशु का
सबको मरने की राह दिखाई है
हिंसा न कर वास्ता धर्म का
चेतन बात तेरी समझ आई है क्या?
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: कवितायें
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इन्सान
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श्रेणी:कवितायें
आत्मावलोकन
था इन्सान मगर मैने
खुद से खुद वैर किया है
शैतान तो खुद बन बैठा हूं
प्रभु को मैंने भुला दिया है
देखा न कभी मैंने खुद को
पूछता हूं, तू है कौन?
जान लूं मैं खुद को पहले
फिर पूछूं, बता तू है कौन?
दूसरों का चेहरा दिख जाता
अपना कभी दिखता नहीं
हर दोष दूसरों का दिख जाता
अपना एक भी दिखता नहीं
पहले दूसरों को न देख
"चेतन" तू खुद ही को देख
खुद की कर दूर बुराई
पहले दूसरों की अच्छाई देख
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
आत्म विस्मरण
सदा चोट खाता हूं मैं
बातों में, गैरों की आता हूं
मेरे हित की होती हैं
बात हितैशी की भूल जाता हूं
इन्सान था पर मैंने
खुद से खुद वैर किया है
शैतान बना लिया मैने खुद को
प्रभु को मैंने भुला दिया है
जानता नहीं मैं खुद को
पूछता हूं, तू है कौन?
क्या जान लूं? मैं पहले खुद को
फिर पूछूं, बता तू है कौन?
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
आत्म विश्वास
विषय वस्तु समझ आ जाएगी
लोक-भ्रमण करके देख ले
बात ज्ञान-विज्ञान की समझ आएगी
सुसंगत करके देख ले
विषय-वस्तु का ज्ञान-वर्धन हो जाएगा
साहित्य-ग्रंथ पढ़कर देख ले
योग्यता में निखार आ जाएगा
कलात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण ले कर देख ले
सांसारिक ज्ञान मिल जाएगा
सत्यनिष्ठ रह कर देख ले
आत्म ज्ञान-विज्ञान बढ़ जाएगा
विरही आंतरिक जिज्ञासा जगा कर देख ले
ज्ञान-विज्ञान का विस्तार हो जाएगा
शैक्षणिक वातावरण बना कर देख ले
दूसरों तक ज्ञान जाएगा
कलात्मक अभिनय करके देख ले
मेरी बात पर न हो विश्वास
अपने जीवन में उतार कर देख ले
अगर स्वयं पर हो विश्वास
तो मेरी बात मान कर देख ले
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
आत्म-प्रकाश
मैं क्यों बुद्धि का अंधा हो गया हूं?
दो-तीन गुणों का तो मालिक बन गया हूं
जो भी मैं बड़ाई प्राप्त करता हूं
क्यों उसमें खुद को खुद भूल गया हूं
धन्य है कि बड़ाई मेरे पास आती है
पर वह मुझ में विराजित दिव्यांश को जाती है
बस यह धारणा मेरी गलत हो गई
राह भी मेरी आगे की आसान हो गई
अब अन्तरात्मा मेरा प्रकाशित है
यह तन मात्र पुतला मिट्टी है
और समझ में भी मेरे आया है
घमंड करके मैंने बहुमूल्य जीवन गंवाया है
चेतन कौशल "नूरपुरी"