दैनिक जागरण 15 मई 2007
वीरों की तू पोषणहारी
तू है कविता कवि की प्यारी
देखा है मैंने तुझे सबके साथ
पर वे सब तुझे नहीं लगाते हाथ
अत्याचारी की तू हत्यारी
तू है कविता कवि की प्यारी
जिसने किया जब नीचता को सलाम
तूने किया उसका काम तमाम
दुराचारी की तू संहारणहारी
तू है कविता कवि की प्यारी
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: 3 स्व रचित रचनाएँ
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ईर्ष्या घृणा
दैनिक जागरण 9 मई 2007
आग से खेल रहा क्यों?
वह राख बनाया करती है
ईर्ष्या से भी प्रेम कर रहा
हंसते को रुलाया करती है
घृणा कर नीच विचारों से
मगर इन्सान से नहीं
करके ईर्ष्या घृणा इन्सान से
रह सकता तू सुख शांति से नहीं
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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कोटि कोटि प्रणाम
दैनिक जागरण 3 मई 2007
मातृ भूमि तुझको
करूं मैं क्या अर्पण
साहस नहीं मुझमें
बिन देरी करूं मैं आत्म समर्पण
बस कार्य के सिवाय
फल की ओर न हो मेरा ध्यान
सेवा की हो डगर अपनी
और नित हो तुझे कोटि कोटि मेरा प्रणाम
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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स्नान गृह में
दैनिक जागरण 29 अप्रैल 2007
दाढ़ी बना ले चाहे तू दांत साफ कर ले
पर भाई चल पहले नल बंद कर दे
भूजल अनावश्यक बाहर आ रहा
भूजल स्तर नीचे जा रहा
अब फव्वारे से या टब में नहीं है नहाना
बाल्टी भर पानी से ठीक है नहाना
जब बाल्टी भर पानी से नहाया जा सके
दो बाल्टी भर पानी बहाना है क्यों
भूजल संरक्षण अभियान सफल बनाया जा सके
अनावश्यक दोहन करके जल संकट बनाना है क्यों
साबुन या धोने का पाउडर पहले है लगाना
फिर कपड़ा भली प्रकार है धोना
अनावश्यक जल नल से नहीं है बहाना
ऐसे कल का जल संरक्षण नहीं है होना
नल बंद करके साबुन है लगाना
फिर साबुन धोने को नल है चलाना
ऐसी नहीं करनी है नादानी
कहना पड़े कि अब नहीं रहा है पानी
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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समय का स्वभाव
दैनिक जागरण 24 अप्रैल 2007
समय तो बहता जल है
वह बहता जाता गाता है
तू संभाल पलपल की करता चल
जीवन पलपल से बन पाता है
गोली छूटती है बन्दूक से
फिर कभी नहीं आती है हाथ
सकल दिवस जाता पलपल में
घड़ी भी नहीं देती है साथ
चेतन कौशल "नूरपुरी"