मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: 3 स्व रचित रचनाएँ

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    जो चाहो ले लो

    दुनियां से जो चाहो, तुम ले लो
    चाहो शूल, तो शूल मिलेंगे
    चाहो फूल, तो फूल मिलेंगे
    सूुई चुभाओ, तो शूल लगेंगे
    फूल बांटो, तो हार पड़ेंगे
    मुस्कुराहट छीनकर, शूल दर्द देता है
    दर्द लेकर, फूल हंसी लौटा देता है
    चाहो शूल, तुम शूल ले लो
    चाहो फूल, तुम फूल ले लो
    दुनियां से जो चाहो, तुम ले लो


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

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    भारतीय इतिहास

    भारतीय इतिहास को आजतलक भारत में जनित, संस्कारित एक भारतीय ने जितना अच्छा जाना हैै, विपरीत सभ्यता, संस्कृति में जनित, संस्कारित किसी विदेशी ने नहीं। उसने तो भारतीय इतिहास को कभी जानने का प्रयास ही नही किया, उसका मात्र एक यही उद्देश्य रहा है कि  किस तरह भारत की संगठित शक्ति एवं सुख समृद्धि को नष्ट करके उसे क्षीण, हीन बनाया जा सकता है?


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    क्रांति लाने हेतु

    जो भाई-बहन और नौजवान सकारात्मक सोच रखते हैं, उनसे हमारा विनम्र अनुरोध है कि वे रचनात्मक कार्य करने हेतु अपने-अपने गांव या शहर में शाखाओं का गठन करें और क्षेत्र में क्रांति लाने हेतु निम्न प्रयास तेज करके शिव-शक्ति ग्राम सेवा मंच के इस कार्यक्रम में सहयोग दें।
    शैक्षणिक क्रांति – वैदिक पाठशाला से प्रतिभाओं का उजागर, प्रोत्साहन, संरक्षण करना।
    शासनिक क्रांति – स्वशासन से राष्ट्र एवं समाज हित में सनातन धर्म और संस्कृति की सेवा, त्याग और बलिदान की भावना को बढ़ावा देना।
    जल क्रांति – वर्षा जल संग्रहण करना।
    हरित क्रांति – फुलवारी, बागवानी, पेड़-पौधों को बढ़ावा देना।
    श्वेत क्रांति – गाय सेवा से दूध उत्पादन को बढ़ावा देना।
    औद्योगिक क्रांति – ग्रामोद्योग से लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
    सहमत हैं? तो सांझा अवश्य करें।


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    मेरा गांव ‘सुल्याली’

    अठाहरवीं सदी के अंत में और उन्नीसवीं सदी के पहले दूसरे दशक में गांव सुल्याली, एक बहुत बड़ा व्यापारिक केन्द्र रहा था। इस गांव के जाने माने धनाड्डयों में स्व0 श्री किरपा राम जी, वोटी, स्व0 भवानी शंकर जी व स्व0 श्री उग्रसेन जी, सौगुनी, स्व0 जयकरण जी पिता स्व0 श्री मुकुन्द लाल जी, चौधरी सुल्याली निवासी व स्व0 श्री दिवान चन्द जी, चौधरी , बकलोह निवासी, स्व0 श्री मल्हू राम जी पिता स्व0 श्री तुलसीराम जी, सुनार तथा स्व0 राधाकृष्ण  जी व स्व0 श्री रामचन्द जी, दुनेरा निवासी प्रतिष्ठित परिवार थे। यहां पर पठानकोट से चक्की के रास्ते वाया देवी भराड़ी से होते हुए ऊँट, खच्चर और घोड़ों पर खाने-पीने, पहनने और अन्य हर प्रकार का उपयोगी सामान आया करता था। इससे आगे उसकी यहां से 70-80 मील की परिधि में भरमौर, चम्बा, डलहौजी, चुआड़ी आदि दूरदराज के क्षेत्रों तक आपूर्ति की जाती थी।
    वर्तमान में इस गांव के बीचों-बीच एक अच्छा बाजार है जिसमें करयाना, बजाजी, हलवाई, इलैक्टरोनिक्स, मैडिकल स्टोर, स्टेश्नरी , सब्जी, दर्जी, नाई, तरखान आदि की दुकानें स्थित हैं। इनसे रोज-मररा की वस्तुएं आवश्यकता अनुसार गांव वासियों को सहजता से मिल जाती हैं।
    यहां की भूमि मैदानी, उपजाऊ होते हुए भी वर्षा जल पर निर्भर करती है। कनक, मक्का और धान यहां की मुख्य पैदावार है। यहां की माश और कुलथ की दालें बहूत मशहूर हैं।
    यहां देशी मीठे व आचारी आमों के अनेकों बाग हुआ करते थे। इस कारण यह गांव आम, आमपापड़, आमचूर और कुत्तरा (टुकड़ों में सूखाए हुए खट्टे आम) के लिए भी बहुत प्रसिद्ध था। अब इनका स्थान भले ही कलमी आमों ने ले लिया हो लेकिन अब भी यहां देशी आमों का अभाव नहीं है।
    स्व0 नित्यानन्द जी, गौड़ पुरोहित, सुल्याली निवासी की बहु श्रीमती निर्मला देवी जी धर्मपत्नी स्व0 श्री विशनदास जी ने बताया - स्वर्गीय गंगा राम जी, गौड़ पुरोहित, के पूर्वज जम्मू कश्मीर राज्य के बसोहली नगर से यहां आए थे। स्व0 श्री मल्हू राम जी व स्व0 नित्यानन्द जी उनके दो बेटे थे। श्री मल्हू राम जी की कोई संतान नही थी। स्व0 नित्यानन्द जी ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नि से एक लड़की हुई थी। कुछ समय पश्चात उनकी इस पत्नि की मृत्यु हो गई। इसके पष्चात् उन्होंने दूसरी शादी कर ली। उससे उनके छह बेटे स्व0 श्री त्रिलोकी नाथ जी, वासदेव जी, गोविंद राम जी, विशनदास जी, प्रेमनाथ जी तथा पुष्पराज जी हुए। इस समय श्री वासदेव जी का परिवार पठानकोट तथा शेष के सुल्याली में रहते हैं। श्री मल्हू राम जी, गौड़ पुरोहित, ज्योतिष विद्या के प्रकांड विद्वान थे। उनके जीवन काल में सुल्याली गांव ज्योतिष विद्या का गढ़ माना जाता था। यहां पर गुरुकुल प्रथा पर आधारित एक वैदिक पाठशाला भी चलाई जाती थी जिसमें ज्योतिष ज्ञान प्राप्ति करने के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी विद्या ग्रहण करने हेतु आया करते थे।
    गांव में डिब्बकेश्वर महादेव गुफा के अतिरिक्त पूजनीय बाबा सुखयाली जी की बाराहदरी के ठीक वाईं ओर पास ही में एक उतना ही पुराना प्राचीन दुर्गा मंदिर है जितना कि सुल्याली गांव। कालांतर में आक्रांताओं ने उसमें विराजित दुर्गा माता जी की मूर्ति खंडित कर दी थी। अब गांव वासियों ने उस मंदिर का जीर्णोद्वार कर उसमें पुनः माता जी की मूर्ति प्रतिष्ठित कर दी है।
    पूजनीय बाबा सुखयाली जी की चरण पादुका के पास श्री राधाकृष्ण जी, शनिदेव जी, मां दुर्गा जी, महादेव जी, यमराज जी, गोवर्धन धारी श्रीकृष्ण जी के मंदिर स्थित हैं। जन स्वास्थ्य केन्द्र, सुल्याली के पास पीपल पेड़ के नीचे शिवजी का मंदिर, बस ठहराव स्थल के पास पीपल पेड़ के नीचे एक और शिवजी का मंदिर, मकोड़ जामुन में मल्हमाता जी, सत्योति माता जी और शिवजी के मंदिर हैं। इसी तरह देवी भराड़ी में मां दुर्गा जी का एक भव्य मंदिर है।
    पूजनीय बाबा जी की चरण पादुका के पास एक अति प्राचीन श्रीराधा - कृष्ण जी का एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था जिसके पुजारी स्व0 पंडित श्री वीरभद्र जी थे। वे प्रायः ठाकुरों को गर्मियों में मकोड़ जामुन में स्थित एक अन्य मन्दिर में ले जाया करते थे, वहां से वे उन्हें सर्दियों में वापिस पहले वाले स्थान पर ले आया करते थे।
    मकोड़ जामुन स्थान का नामकरण मकोड़ जामुन इसलिए हुआ कि वहां कभी तीन-चार विशाल जामुन के पेड़ हुआ करते थे, में से अब मात्र एक पेड़ शेष रह गया है, के तनों से असंख्य मोटे ओर बड़े आकार के 'काढ़े' मकोड़े-चींटियां निकला करते थे। मकोड़ जामुन में परंपरागत हर वर्ष छिंज होती है और मेला भी लगता है। इसी तरह देवी भराड़ी में स्थित दुर्गा मां मंदिर के पास भी बैसाखी का मेला सजता है। इन मेलों में पहलवानों के तो दंगल होते ही हैं गांव वासियों द्वारा गांव के अन्य निश्चित स्थानों पर भी दंगल करवाए जाते हैं और जीतने वालों को उचित पारितोषिक दे कर नवाजा जाता है। यहां की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। स्थानीय लोग इसका भरपूर लाभ उठाते हैं।
    सदियों पूर्व से यहां होली और दशहरे के दिनों में देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करने के उपरांत असंख्य मनमोहक झांकियां निकाली जाती हैं जिनका प्रचलन आज भी देखा जा सकता है। यहां की रामलीला, जन्माष्टमी , गणेशोत्सव, गणेश -पूजन व गणेश -मूर्ति विसर्जन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने योग्य हैं।
    यहां के आसपास के ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों पर भेड़-बकरियों पर आश्रित लोगों का अपना एक अच्छा व्यवसाय है। सर्दी के मौसम में जब ऊँचे पहाड़ों पर बर्फ पड़ जाती है तो गद्दी, गुज्जर तथा बकरवाल अपने मवेशियों के साथ नीचे मैदानी क्षेत्रों में आ जाते हैं । जिन से यहां के लोगों को बढ़िया किसम की ऊन व पश्मीना मिल जाता है। यहां के हर घर में महिलाओं के पास अपना-अपना चरखा हुआ करता था जो अब नही है, फिर भी यहां ऊन, पश्मीना लोगों की जीविका का एक अनूठा संसाधन है। ऊन व पश्मीना से खड्डी पर बुन कर महिला व पुरुष वर्ग के लिए सर्दियों में ओढ़ी जाने वाली गर्म शालें व चादरें बनाई जाती हैं जिन्हें कांगड़ी शाल का नाम दिया गया है। इनकी बाजार में अच्छी विक्री हो जाया करती है। यहां का पुरुष वर्ग खेती-बाड़ी करता है। इसके अतिरिक्त सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में ऊँचे-ऊँचे पदों पर अपनी सेवाएं दे रहा है तथा सेवाएं देकर सेवा निवृत्त भी हो गये हैं ।
    कृषि प्रधान राष्ट्र होने के नातेे इस गांव के हर घर में दो-तीन गायें अवश्य हुआ करती थीं। इस कारण यहां दूध व घी की भी कोई कमी नहीं रहती थी। इसलिए यहां के नौजवानों का स्वास्थ्य भी सराहने योग्य था। आधुनिकता की दौड़, प्रयाप्त भूजल भंडार एवं सिंचाई के अभाव के कारण आज भले ही पशुपालन के स्तर में गिरावट आ गई हो पर गौ प्रेमियों ने अब भी अपने घरों में गौ-सेवा करना जारी रखा हुआ है। सदियों से यहां सभी वर्गों के लोग बड़े सौहार्द और प्रेम पूर्वक रहते आए हैं जो एक बड़ी अनूठी मिसाल है।
    सन् 1962 ई0 से लेकर 1968 तक बनकर तैयार होेेेने वाले देहाती पेयजल आपूर्ति योजना के अंतर्गत भवन जो लबीणेंयां दी बां (बावड़ी) से आगे चिंतपूर्णी मां के मंदिर के पास बनाया गया था, हिमाचल प्रदेश के भूतपूर्व राजस्व मंत्री श्री लालचंद प्रार्थी जी ने अपने कार्यकाल में सरकार की ओर से पेयजल वितरण प्रणाली का शुभारम्भ किया था। सुनने में आता है कि यहां सन् 1962 ई0 से पूर्व बहुत संख्या में वानर हुआ करते थे। पेयजल सेवा भवन निर्माण के पश्चात यहां उनकी संख्या नाम मात्र की रह गई है। सिंचाई व जन स्वास्थ्य विभाग कार्यालय के अभाव में पानी का बिल उगाही के लिए उससे संबंधित कर्मचारियों को यहां नूरपुर से आना पड़ता है।
    स्व0 त्रिलोक सिंह पठानियां जी, सुल्याली निवासी तथा उनके भागीदारों ने गांव वासियों के स्वास्थ्य लाभ हेतु भूदान करके वहां एक स्लेटपोश प्राथमिक आयुर्वेदिक चिकित्सालय का निर्माण करवाया था जो अब दस विस्तरों वाला आयुर्वेदिक चिकित्सालय के नाम से जाना जाता है।
    ग्राम सरपंच स्व0 श्री ध्यान सिंह पठानियां जी, सुल्याली निवासी तथा उनके भागीदारों ने बच्चों के शिक्षण हेेतु सुल्याली विद्यालय के लिए भूदान किया था। वहां अब राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला विद्यमान है।
    कैप्टन स्व0 श्री विशन सिंह पठानियां जी, सुल्याली निवासी तथा उनके भागीदारों ने विद्यालय के बच्चों कोे खेल का मैदान के लिए सुल्याली विद्यालय के लिए भूदान किया था। इसके चारों ओर अब राजकीय वरिश्ठ माध्यमिक पाठशाला के अंतर्गत एक ऊँची चार दीवारी का नवनिर्माण कर दिया गया है। इस समय हटली, सिंबली, वारड़ी, नेरा, सुल्याली, लुहारपुरा और देवी भराड़ी में राजकीय प्राथमिक पाठशालाएं स्थित हैं।
    सड़क के अभाव में यहां गांव के लोग पैदल आया जाया करते थे। गांव में डाकघर का काम किसी दुकान या घर में किया जाता था। नूरपुर से डाक घोडे़ से लाई जाती थी। यह काम स्व0 श्री रामप्रसाद जी, भटारा किया करते थे। सड़क बन जाने के पश्चात गांव के बाजार में वृद्धि हुई है और गांव का डाकघर अब ठीक बाजार के मध्य स्थित है। इसका भवन स्व0 श्रीमती कलावती, सेवा निवृत्त सरकारी शिक्षा विभाग, (हिमाचल प्रदेश) ने डाक विभाग को दान किया था।
    गांव वासियों के हित में यहां पहले मात्र एक ही उचित मूल्य की सरकारी दुकान हुआ करती थी। पर अब उसके स्थान पर दो हो गई हैं।
    यहां पर लोक निर्माण विभाग का भी कार्यालय स्थित है जिसमें गांव वासियों की सेवा में उससे संबंधित कार्य किया जाता है तथा विभाग का यहां अपना एक भ्ंडार भी है।
    बस ठहराव स्थल के पास यहां गांव वासियों की सेवा के लिए, विद्युत विभाग का कार्यालय खुल जाने से अब उन्हें बिल जमा करवाने हेतु नूरपुर नहीं जाना पड़ता है अथवा नूरपुर से किसी सरकारी कर्मचारी को बिल उगाही हेतु यहां नहीं आना पड़ता है।
    गांव वासियों के पालतु पशुओं के स्वास्थ्य लाभ हेतु पहले नूरपुर जाना पड़ता था पर अब यहां के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठषाला के पास सरकारी विभाग ने अपना पशु चिकित्सालय भवन निर्माण कर लिया है। इसके लिए श्री संदीप सिंह जी, सपुत्र स्व0 श्री बलवीर सिंह जी, पठानियां ने भवन निर्माण हेतु भूदान किया है।
    गांव की सम्पूर्ण धरती का उचित व्योरा रखने हेतु यहां के बस ठहराव स्थल के पास गांव का अपना पटवार खाना स्थित है।
    बस ठहराव स्थल के पास गांव वासियों की सुविधा के लिए यहां ग्रामीण बैंक खुल गया है। इससे गांव के वृद्धजनों को धनराशि जमा करवाने अथवा निकलवाने हेतु नूरपुर के चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं। इस तरह उनका अपना काफी धन और समय बच जाता है।

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    वर्षाजल संचयन

    भूजल न्यूज़ लेटर 2006-2007 

    की एक-एक बून्द को
    भू भीतर पहुँचाना है,
    भू के जलस्तर को
    ऊपर लाना है,
    वर्षा जल संचयन करता
    भू जल पुनर्भरण,
    प्राणी जीवन सुरक्षित रहता है,
    होता है सबका संवर्धन,
    पेड़, पौधे, झाड़ों को मेड़ पर उगाओ,
    बहते पानी को अवरोध लगाओ,
    भूक्षरण को रोको,
    बसुधा पर स्वर्ग बसाओ,


    चेतन कौशल "नूरपुरी"