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श्रेणी: सामाजिक आलेख

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    “प्रत्याशी” जीतने की चाह !

    सामाजिक जन चेतना – 10

    भारत लोकतान्त्रिक देश में 18 वर्ष से ऊपर के हर नागरिक के द्वारा किसी भी प्रत्याशी को अपना मतदान करने का अधिकार प्राप्त है l चुनाव काल में मतदाता देश में अपनी पसंद के प्रत्याशी को अपना अमूल्य मतदान करके उसे चुनाव में विजय दिलाने का भरसक प्रयास करते हैं और प्रत्याशी को विजयी भी बनाते हैं l 

    लोकतान्त्रिक देश में किसी नेता, दल या दल की विचारधारा को लेकर उस बारे में मतदाता के द्वारा अपनी राय रखना, मत कहलाता है l इस समय देशभर में राजनीति से संबंधित कई विचार धाराएँ विद्यमान हैं l देखा जाये तो सभी विचारधाराओं के अपने-अपने राजनैतिक दल हैं और उनके विभिन्न उद्देश्य भी हैं l पर उन दलों में बहुत से नेता परिवार हित या दलहित के ही कार्य करने तक सीमित हैं l फिर भी देश हित में राष्ट्रहित में राष्ट्रवादी सोच रखने वाला, देश का मात्र एक बड़ा स्वयं सेवी संगठन और एक राजनैतिक दल भी है जो दोनों अपनी-अपनी लोकप्रिय कार्यशैली के धनी होने के कारण विश्वभर में सबसे बड़े सामाजिक और राजनैतिक संगठन माने जाते हैं l 

    लम्बे समय से मतदाता के द्वारा मतदान करने का अपना एक बहुत बड़ा महत्व रहा है l मतदाता अपना मतदान करके अपने ही पसंद के प्रत्याशी को चुनते हैं l उनके द्वारा चुने हुए प्रत्याशी आगे चलकर स्थानीय निकाय ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका, जिला परिषद् का ही नहीं विधान सभा और लोक सभा का भी गठन करते हैं l इस व्यवस्था से सरकार के द्वारा प्रारम्भ किये गये विकास कार्यों का लाभ व सुविधाएँ जन-जन तक पहुंचाई जाती हैं l

    मतदान दो प्रकार के होते हैं – पहला सबसे अच्छा चुनाव वह होता है जो निर्विरोध एवं सर्व सम्मति से सम्पन्न होता है l इसमें प्रतिस्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं होता है और दूसरा जो मतपेटी में प्रत्याशी के समर्थन में उसके चुनाव चिन्ह पर अपनी ओर से चिन्हित की गई पर्ची डालकर या ईवीएम में किसी प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव चिन्ह का बटन दबाकर अपना समर्थन प्रकट किया जाता है, मतदान कहलाता है l लेकिन प्रतिस्पर्धा मात्र दो ही प्रत्याशी प्रति द्वद्वियों में अच्छी होती है जिसमें अधिक अंक लेने वाले की जीत और कम अंक लेने वाले की हार निश्चित होती है l इसके आगे एक पद और उसके लिए कई प्रतिद्वद्वी प्रत्याशियों के होने को चुनाव-प्रणाली का मजाक उड़ाना ही कहें तो ज्यादा अच्छा होगा l

    जब भी देश में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका या जिला परिषद् के चुनाव होते हैं l उन चुनावों में देखने को मिलता है – “पद एक और प्रत्याशी अनेक” l प्रत्याशियों की भारी भीड़ देखकर लोग निर्णय नहीं कर पाते हैं कि वे अपना मत किसे दें ? एकल पद प्रधान, उप प्रधान तथा सात पद पंचों के, अनेकों प्रत्याशी जिनमें अपराध/भ्रष्ट प्रवृत्ति के लोग भी विद्यमान होते हैं, खड़े हो जाते हैं परन्तु वे समाज और राष्ट्रहित में क्या सोचते व करना चाहते हैं उनका घोषणा पत्र क्या है ? उसे लोग चुनाव हो जाने तक नहीं जान पाते हैं l किसी प्रत्याशी की मंशा जाने बिना, लोग उसे अपना मत कैसे दें ?

    ऐसे वातावरण में हर जागरूक मतदाता के मन में मतदान हेतु “मैं मत किसे दूँ?” से संबंधित अनेकों प्रश्न पैदा हो जाते हैं और वह निश्चय भी करता है कि मैं लहर नहीं, पहले व्यक्ति देखूंगा l मैं प्रचार नहीं, छवि देखूंगा l मैं धर्म नहीं, विजन देखूंगा l मैं दावे नहीं, समझ देखूगा l मैं नाम नहीं, नियत देखूंगा l मैं प्रत्याशी की प्रतिभा देखूंगा, मैं पार्टी को नहीं, प्रत्याशी को देखूंगा l मैं किसी प्रलोभन में नहीं आऊंगा l इस तरह मतदाता का जागरूक होना परम आवश्यक है और स्वभाविक भी l 

    चुनाव प्रचार के समय विभिन्न प्रत्याशियों के द्वारा गाँव की गलियों के मकानों व बाजार की दुकानों की दीवारों पर बड़े-बड़े पोस्टर लगवा दिए जाते हैं l जिन पर लिखा होता है – हमने काम किया है, काम करेंगे l आप अपना कीमती वोट विकास व समृद्धि के लिए कर्मठ, मेहनती, योग्य, जुझारू समाज सेवक को देकर कामयाब करें l आप अपना वोट शिक्षित, इमानदार, एवं सशक्त उम्मीदवार ही को दें l “एक कदम विकास की ओर” नेता नहीं, जन सेवक चुने l अगर यही प्रत्याशी चुनाव जीतकर अपने-अपने क्षेत्रों में इसी भावना, सोच एवं विचार से कार्य करें तो कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारत कुछ ही वर्षों में विश्व में पुनः सोने की चिड़िया बन सकता है, पर ऐसा होगा कब ?

    वर्तमान काल में बहुत से प्रत्याशियों के लिए राजनैतिक विषय समाज सेवा नहीं, मात्र एक व्यवसाय बनकर रह गया है l जितनी अधिक भीड़ किसी मेले में नहीं होती है, कहीं उससे अधिक चुनाव के समय प्रत्याशियों की देखी जा सकती है l ऐसे समय में वे मियां मिट्ठू अधिक दिखाई देते हैं, जबकि उनमें राष्ट्रीय भावना, धर्म-संस्कृति और देश से प्रेम का अभाव रहता है, उन्हें समाज सेवा कम और निजहित तथा परिवार हित अधिक दिखाई देता है l जिनसे आगे चलकर मानसिक कुवृत्तियों और अन्य अनेक प्रकार की सामाजिक विसंगतियों का जन्म होता है जो देश, धर्म और समाज किसी के लिए भी अहितकारी होती हैं l 

    स्थानीय चुनाव के इस सामाजिक पर्व में हर किसी मतदाता को अपना अमूल्य मतदान उसी प्रत्याशी को करना चाहिए जिस प्रत्याशी को देश, धर्म-संस्कृति का अच्छा ज्ञान हो l जिसमें देश, धर्म-संस्कृति की रक्षा और सेवा करने का दम हो l वही युवा प्रत्याशी राष्ट्र की रीढ़ है जो सुसंगठित, अनुशासित, चरित्रवान और कार्य कुशल हो l एक कदम “ग्राम स्वराज” की ओर, बढ़ने वाला नेता नहीं, जन सेवक होना चाहिये l चुनाव दलगत होकर भी निर्विरोध /सर्वसम्मति से संपन्न होने चाहियें l ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, नगर पालिका, जिला परिषद्, विधान सभा और लोक सभा के चुनावों में प्रत्याशियों की संख्या आम सहमति से कम से कम हो, उनमें से किसी एक प्रत्याशी की हार या एक की जीत रोमांचित तो अवश्य होनी ही चाहिए l

    प्रकाशित फरवरी 2021 मातृवंदना


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    निःस्वार्थ सेवा हेतु सद्भावना की आवश्यकता !

    सामाजिक जन चेतना – 9

    साधू भूखा भाव का धन का भुखा नाहीं,

    धन का भूखा जो फिरे वो तो साधू नाहीं ll

    संत कवीर जी के इस कथनानुसार सज्जन या सत्पुरुष वही होता है जिसे किसी प्रकार का कोई लोभ न हो l लोभी पुरुष कभी साधू नहीं हो सकता l अगर धन संग्रह करने के उद्देश्य से कोई व्यक्ति लघु मार्ग से, सेवक का चोला धारण करके जनसेवा के पथपर चलता है तो उससे जनसेवा नहीं, निज की सेवा होती है जैसे कमीशन का जुगाड़ करना, रिश्वत लेना, घूस खाना और गवन करना l क्योंकि जन सेवा हेतु सीमित दृष्टिकोण या संकीर्ण विचारधारा की नहीं बल्कि विशाल हृदय, शांत मस्तिष्क और मात्र राष्ट्र एवम् जनहित के कार्य करने की आवश्यकता होती है l यह सब गुण सज्जन एवम् सत्पुरुषों में विद्द्यमान होते हैं l  

    जिस व्यक्ति का मन परहित के लिए दिन-रात तड़पता हो, बुद्धि परहित का चिंतन करती हो और हाथ परहित के कार्य करने हेतु सदैव तत्पर रहते हों – उसके लिए यह सारा संसार अपना और वह स्वयं सारे संसार का अपना होता है l इस प्रकार एक दिन वह व्यक्ति श्रीराम, या श्रीकृष्ण जी के समान भी गुणवान बन सकता है l परन्तु जो व्यक्ति मात्र दिखावे का सेवक बनकर मन से नित निजहित के लिए परेशान रहता हो, बुद्धि से निजहित सोचता हो और जिसके हाथ निजहित के कार्य करने हेतु व्याकुल रहते हों – उसके लिए जनसेवा का कोई अर्थ नहीं होता है l वह विश्व में किसी का अपना नहीं होता है और जो उसके अपने होते हैं वो भी दुःख में उसे अकेला छोड़ने वाले होते हैं l

    राष्ट्रहित, समाजहित और जनहित के लिए वह मुद्दे जो भारत के समक्ष उसकी स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उजागर हुए थे, वह आज भी ज्यों के त्यों बने हुए हैं l वह हमसे टस से मस इसलिए नहीं हो पाए हैं क्योंकि हमने उन्हें समाज या जन का सेवक बनकर कम और निज सेवक होकर अधिक निहारा है l सौभाग्य वश हमारा भारत लोकतान्त्रिक देश है जिसमें जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए सरकार बनाने का हमें संवैधानिक अधिकार प्राप्त है l हम अपने मतदान द्वारा अपना मनचाहा प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा या लोकसभा तक भेज सकते हैं l अगर हम उसके माध्यम से अपनी आवाज संसद भवन तक नहीं पहुंचाते हैं तो हमें किसी अन्य को दोष नहीं देना चाहिए l

    वर्तमान राष्ट्रहित में देश की एक ऐसी सशक्त एवम् सकारात्मक “राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली” होनी चाहिए जिसमें कलात्मक कृषि-बागवानी एवम् रोजगार प्रशिक्षण, व्यवहारिक, आत्मनिर्भरता, आत्मरक्षा एवम् जन सुरक्षा प्रशिक्षण, सृजनात्मक पठन-पाठन और रचनात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था हो l इससे भारत की दूषित शिक्षा-प्रणाली से जन साधारण को अवश्य ही राहत मिल सकती है l जनहित में जन साधारण को विश्वसनीय स्थानीय जन स्वास्थ्य सेवा मिलनी चाहिए l इसके लिए सुविधा सम्पन्न चिकित्सालय, सर्वसुलभ प्रसूति-गृह, उचित चिकित्सा सुविधाएँ, पर्याप्त औषध भंडार, योग्य डाक्टर व रोग विशेषज्ञ, रोगी की उचित देखभाल, स्वास्थ्य कर्मचारी वर्ग और त्वरित चिकित्सा-वाहन सेवा का होना अनिवार्य है l वह इसलिए कि त्रुटिपूर्ण और अभावग्रस्त जन स्वास्थ्य सेवा समाप्त हो सके l 

    जनहित देखते हुए आज बारह मासी स्थानीय व्यवसायिक व्यवस्था की महती आवश्यकता है l इसके लिए सहकारीता आन्दोलन को पुनः जीवित किया जा सकता है जिसके अंतर्गत पशुधन, पौष्टिक खाद, पर्याप्त सिंचाई सुविधाएँ, जल, जंगल, जमीन का सरंक्षण सहकारी वाणिज्य-व्यापार, स्वरोजगार, सहकारी ग्रामाद्द्योग तथा सहकारी सम्पदा का संवर्धन हो सके ताकि सहकारी खेती को बढ़ावा मिल सके l जन साधारण को मात्र 100, 200 दिनों तक का नहीं बल्कि पुरे 365 दिनों का व्यवसाय मिल सके l

    जन-जन हित में स्थानीय जानमाल की रक्षा-सुरक्षा को सुनिश्चित बनाए रखने के लिए जरूरी है पीने का स्वच्छ पानी, पौष्टिक खाद्द्य वस्तुएं व पेय पदार्थ, रसोई गैस, मिटटी का तेल, विद्दुत ऊर्जा, स्थानीय नागरिकता की विश्वसनीय पहचान और स्थानीय जानमाल की रक्षा-सुरक्षा समितियों का गठन किया जाना ताकि जन साधारण की जीवन रक्षक आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकें और उसे आतंकवाद, उग्रवाद जिहाद, अपहरण, धर्मांतरण, बलात्कार तथा हिंसा से अभय प्राप्त हो सके l इस प्रकार राष्ट्रीय जनहित में आवश्यक है – सशक्त एवम् सकारात्मक राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली, विश्वसनीय जन स्वास्थ्य सेवा, बारह मासी स्थानीय व्यवसायिक व्यवस्था और जानमाल रक्षा-सुरक्षा की सुनिश्चितता l ऐसा कार्य मात्र परहित चाहने वाले न्याय प्रिय, दूरदर्शी राजनीतिज्ञ, नीतिवान और धर्मात्मा लोग ही कर सकते हैं l अगर हम परहित करना चाहते हैं तो हमें सत्पुरुषों और परमार्थियों को ही अपना प्रतिनिधि बनाना होगा l उन्हें उनके क्षेत्र से विजयी करवाने हेतु अपनी ओर से उनकी हर संभव सहायता करनी होगी l अन्यथा निजहित चाहने वालों के मायाजाल से हमें कभी मुक्ति नहीं मिलेगी l बस हमें मिलती रहेगी मात्र दूषित शिक्षा, त्रुटिपूर्ण व अभावग्रस्त जन स्वास्थ्य सेवा, 100, 150 और 200 दिनों का व्यवसाय की लालीपाप l

    देशवासियो ! यदि सोये हुए हो तो जाग जाओ और स्वयं जागने के साथ-साथ दूसरों को भी जगा लो l निजहित चाहने वाले बेचारे अपनी आदत से बड़े मजबूर हैं l बे मजबूर ही रहेंगे क्योंकि उन्होंने निजहित में कमीशन जुटाना है, रिश्वत लेनी है, घूस खानी है, राष्ट्र तथा समाज की सम्पदा डकारनी है तथा भ्रष्टाचार ही फैलाना है l आप उनसे राष्ट्रहित, जनहित और समाजहित की चाहना रखना छोड़ दो l यह आपकी आशा पूर्ण होने वाली नहीं है l उनके पास अतिरिक्त कार्य करने का समय नहीं है l इसका निर्णय अब आपने मतदान करके करना है l निडर होकर मतदान कीजिये और अपनी पसंद के उम्मीदवार को विजयी बनाइए l देखना कहीं आपसे चूक न हो जाये l

    प्रकाशित 19 जनवरी 2022@ फरवरी 2022 मातृवंदना


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    ठगी का नया दौर !

    सामाजिक जन चेतना – 8

    जहाँ भारत को जिस तेजी के साथ विश्व की भावी आर्थिक शक्ति माना जाने लगा है, उससे भी तीव्र गति से देश में सक्रिय कुछ देशी, विदेशी अंतर्राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उनके एजेंटों की अनैतिक गति विधियों के द्वारा लोगों की जेबों में दिन – दिहाड़े डाका भी डाला जा रहा है l

    यह कंपनियां और उनके एजेंट पहले गाँव-गाँव और शहर-शहर में जाकर, लोगों को बहला-फुसलाकर अपना जाल बिछाते हैं l उन्हें सब्ज-बाग दिखाते हैं l वे उनके साथ मीठी-मीठी बातें करके उन्हें अपनी आकर्षक परियोजनाओं के माध्यम से ढेरों पैसे कमाने के ऊँचे-ऊँचे सपने दिखाते हैं l इस तरह धीरे-धीरे वह बड़ी चतुराई के साथ, अल्पाब्धि में ही उनसे लाखों, करोड़ों रूपये इकठ्ठा करके रातों-रात अरब-खरब पति बनकर अपना बोरी-विस्तर भी समेट लेते हैं l आये दिन देश भर में देशी, विदेशी अंतर्राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उनके एजेंटों की अनैतिक गतिविधियां बढ़ रही हैं l इनसे लोगों के दिनों का चैन खो गया है और रातों की नींद उड़ गई है फिर भी हमारी सरकारें कुम्भकर्ण की नींद सो रही हैं l

    भारत के राज्यों में पंजीकृत कंपनियों की शृंखला में, मलटी लेवल मार्केटिंग के आधार पर, चेनेई, तमिलनाडु में पंजीकृत और बंगलौर से संचालित होने वाली विजर्व पावर्ड वाई युनि पे 2 यू टीऍम कम्पनी ने, अपनी आकर्षक प्रयोजनानुसार देश भर में स्वयं से संबंधित हर व्यक्ति को दस महीने के पश्चात्, अधिक से अधिक लाभांश सहित, उसकी पूरी राशि लौटानी थी पर उसने अक्तूबर 2010 से अप्रैल 2011 तक लोगों का कोई भी भुगतान नहीं किया है l

    केंद्र और प्रान्तों के सरकारी विभागों में कार्यरत ऐसे कई अधिकारी और कर्मचारी भी हैं जो कंपनी के लिए एजेंट का काम कर रहे हैं l उन्होंने अपने-अपने विभागों और आसपास के जाने-पहचाने लोगों से लाखों, करोड़ों रूपये इकट्ठे कर लिए हैं l पर लोगों को अब तक उनका अपना पैसा न मिलने के कारण, उन्हें संदेह है कि वह पैसा एजेंटों के द्वारा कम्पनी के खाते में डाला भी गया है कि नहीं ! इस पर एजेंटों का कहना है कि लोगों का पैसा इंटर नैट द्वारा कंपनी के खाते में जमा हो चुका है l वह जल्दी ही, अधिक धन राशि सहित उनके अपने-अपने बैंक खातों में आ जायेगा l वे निराश लोगों को रोजाना इंटर नैट पर कंपनी की कार्रवाई देखने को कहते हैं और कंपनी इंटर नैट पर प्रतिदिन मात्र झूठे संदेश और आश्वासन देकर उनका पेट भरने का असफल प्रयास कर रही है l लोगों को उसके संदेशों और आश्वासनों की नहीं, धन की आवश्यकता है जो उन्होंने अपने खून पसीने की कमाई का एक बड़ा भाग, भाविष्य निधि निकलवाकर और बैंक से ऋण लेकर उन एजेंटों के माध्यम द्वारा, कंपनी में लगाया हुआ है – उनका क्या होगा ! एजेंट तो कमीशन लेकर अपनी लाखों की चल-अचल संपत्ति बना चुके हैं l उन्होंने अब पीड़ितों से और क्या लेना है ?

    अगर देशवासी अल्पाब्धि में ही समृद्ध होने या अधिक लाभांश पाने हेतु, लोभ और स्वार्थ की दलदल में धंसते रहेंगे तो इससे अवैध और काला धन जो अनैतिक गतिविधियों द्वारा निजी सुख हेतु इकठ्ठा कर लिया जाता है या फिर उसे चोरी-छिपे विदेशी बैंकों में पहुंचा दिया जाता है, को ही बढ़ावा मिलेगा l क्या उससे राष्ट्र का निर्माण हो सकेगा ? क्या उससे कभी भारतीय समाज को सुख-शांति मिल पायेगी, उसका विकास हो पायेगा ?

     भारत सरकार और प्रांतीय सरकारों के द्वारा अपने यहाँ सर्व प्रथम उन सभी कंपनियों की भली प्रकार से जाँच-परख कर लेनी चाहिए, तद्पश्चात पंजीकृत विभिन्न कंपनियों और उनके वैद्य-अवैद्य एजेंटों की पल-पल की गति विधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए, राष्ट्रहित में “नागरिक आर्थिक सतर्कता” समितियों का गठन करना चाहिए l इससे किसी अवैद्य कंपनी अथवा उसके अपराधिक एजेंटों के द्वारा, भविष्य में देश के अमुक क्षेत्र का, कोई व्यक्ति अथवा उसका परिवार पुनः पीड़ित नहीं हो सकेगा l

    प्रकाशित मातृवंदना सितंबर 2011


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    जनहित विरोधी मानसिकता

    सामाजिक जन चेतना – 7    

    “भारत देश महान” जैसी बातें अब नीरस और खोखली लगने लगी हैं l मन्दिर समान पवित्र घर और विद्यालयों में जहाँ कभी ज्ञान, श्रद्धा, प्रेम-भक्ति और विश्वास पाया जाता था, वहां पर अज्ञान, अश्रद्धा, अवज्ञा, अविश्वास होने के साथ-साथ अवैध संबंध, भ्रूण हत्याएं, बात-बात पर वाद-विवाद, मार-पीट, मन-मुटाव, अपमान, घृणा, द्वेष, आत्म तिरस्कार और आत्म हत्याएं होती हैं l  

    अध्यात्म प्रिय होने के कारण देश के अधिकांश परिवार प्रकृति प्रेमी होते थे l परन्तु वह भौतिकवादी हो जाने से जीवन देने वाले पर्यावरण के भी शत्रु बन गए हैं l इस कारण भौतिकवाद की अंधी दौड़ में वन-संपदा, प्राकृतिक सौन्दर्य और समस्त जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ लुप्तप्रायः होती जा रही हैं l मात्र मनुष्य जाति की भीड़ और उसका कंकरीट का जंगल ही बढ़ रहा है l पेयजल और कृषि योग्य भूमि का अस्तित्व संकट में है और प्राद्योगिकी प्रदूषण के साथ-साथ धरती का ताप भी बढ़ रहा है जिससे हिमनद और ग्लेशियर तेजी से पिघलते जा रहे हैं l

    धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए लगनशील, उद्यमी युवा-वर्ग में बल, बुद्धि, विद्या, वीर्य, सद्गुणों का सृजन, संवर्धन और संरक्षण करने के स्थान पर नशा-धुम्रपान करने, क्लब, वैश्यालय एवम् नृत्यशालाओं में जाने का प्रचलन बढ़ गया है l अध्यात्मिक उपेक्षा करने से वह एड्स जैसे भयानक रोगों का शिकार हो रहा है l 

    समाज में अज्ञानता, अपराध, अपहरण, यौन शोषण, बलात्कार, अन्याय, बाल-श्रम, बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी, अत्याचार, हत्यायें, अग्निकांड, उग्रवाद, अशांति, अराजकता होती है l स्थानीय क्षेत्र, समाज और राष्ट्र में जाति, भाषा, धर्म, क्षेत्र के नाम पर वाद-विवाद खड़ा करके आपसी फुट डाली जाती है और उन्हें स्वार्थ सिद्धि के लिए आपस में भी बांटा जाता है l 

    देश के सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों में आर्थिक भ्रष्टाचार, गबन, घोटाले होकर वे अग्निकांड के द्वारा अग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं l न्यायिक प्रणाली अधिक महंगी, दीर्घ प्रक्रियाओं में से निकलने वाली, दूरस्थ, दैनिक वेतन भोगी, कम वेतन मान पाने वाले एवं निर्धनों की पहुँच से दूर, आमिर-गरीब में असमानता रखने वाली और मात्र किताबी कानून तक अव्यवहारिक होने के कारण – राष्ट्रीय न्यायलयों से जन साधारण का विश्वास दिन-प्रतिदिन उठता जा रहा है l इस प्रकार परिवार, विद्यालय, समाज और राष्ट्र के प्रति जन साधारण में आस्था, विश्वास, प्रेम और जनहित का आभाव दिखाई देने लगा है जो एक विचारणीय विषय है l हमें इस ज्वलंत समस्या का समाधान निकालने के लिए ध्यान देने के साथ-साथ विचार अवश्य करना चाहिए l

    प्रकाशित 25 अगस्त 2007 दैनिक जागरण


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    जन मानस विरोधी कदम

    सामाजिक चेतना – 6

    मातृवन्दना जून 2007 अंक में पृष्ठ संख्या 8 आवरण आलेखानुसार “कुछ वर्ष पूर्व “नासा” द्वारा उपग्रह के माध्यम से प्राप्त चित्रों और सामग्रियों से यह ज्ञात हुआ है कि श्रीलंका और श्रीरामेश्वरम के बीच 48 किलोमीटर लम्बा तथा लगभग 2 किलोमीटर चौड़ा सेतु पानी में डूबा हुआ है और यह रेत तथा पत्थर का मानव निर्मित सेतु है l भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु का जलयान मार्ग हेतु भारत और श्रीलंका के बीच अवरोध मानकर “सेतु समुद्रम-शिपिंग-केनल प्रोजेक्ट” को भारत सरकार ने 2500 करोड़ रूपये के अनुबंध पर तोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है” यह भारतीय संस्कृति की धरोहर पर होने वाला सीधा कुठाराघात ही है जिसे जनांदोलन द्वारा तत्काल नियंत्रित किया जाना अनिवार्य है l

    जुलाई 2007 मातृवन्दना अंक के पृष्ठ संख्या 11 धरोहर आलेख “वैज्ञानिक तर्क” के अनुसार “धनुषकोटि” के समीप जलयान मार्ग के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो सकता है l” इस सुझाव पर विचार किया जा सकता है परन्तु इसकी अनदेखी की जा रही है l एक तरफ भारत की विदेश नीति पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश, भूटान आदि के साथ आपसी संबंध सुधारने की रही है l उन्हें सड़कों के माध्यम द्वारा आपस में जोड़कर उनमें आपसी दूरियां मिटाई जा रही हैं तो दूसरी ओर भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित इस प्राचीनतम सेतु को तोड़ा जा रहा है l इसे वर्तमान सरकार का जन भावना विरोधी उठाया गया कदम कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि इसके साथ देश-विदेश के असंख्य श्रद्धालुओं की अपार धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं l इससे उन्हें आघात पहुँच रहा है l

    कितना अच्छा होता ! अगर श्रीराम युग की इस बहुमूल्य धरोहर रामसेतु का एक वार जीर्णोद्वार अवश्य हो जाता l उसे नया स्वरूप प्रदान किया जाता l  इसके लिए श्रीलंका और भारत सरकार मिलकर प्रयास कर सकती हैं l दोनों देशों के संबंध और अधिक प्रगाढ़ और मधुर हो सकते हैं l इस भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की किसी भी मूल्य पर रक्षा अवश्य की जानी चाहिए l

    प्रकाशित नवंबर 2007 मातृवन्दना