मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: सामाजिक आलेख

  • श्रेणी:

    ब्राह्मण वर्ण

    चेतन विचार - सामाजिक वर्ण व्यवस्था 


    # जो व्यक्ति असत्य, अधर्म, अन्याय और अनीति के विरुद्ध कलम उठाता है, ब्राह्मण कहलाता है ।*
    चतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    समर्थन

    चेतन विचार - जन चेतना 

    # अगर मैं देश सनातन - धर्म, संस्कृति के हित में हूं तभी आप मेरा समर्थन करें अन्यथा नहीं।*
    चेतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    मक्कारी

    चेतन विचार - सामाजिक बुरायाँ 

    # समाज में क्षेत्र, भाषा, जाति, धर्म, ऊंच-नीच, रंग, मत, पंथ, संप्रदाय, लिंगादि भेद-भाव फैलाना और सनातनी समाज, देश, धर्म- संस्कृति को मिटाना ही मक्कारों की राजनीति है। *
    चेतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    समय की मांग

    कश्मीर टाइम्स 30 नवम्बर 2008  

    वह भी एक समय था जब देश में हर नौजवान किसी न किसी हस्त–कला अथवा अपने रोजगार से जुड़ा हुआ रहता था l चारों ओर सुख समृद्धि थी l देश में कृषि योग्य भूमि की कहीं कमी नहीं थी l पर ज्यों-ज्यों देश की जन संख्या टिड्डीदल की भांति बढ़ती गई, त्यों-त्यों उसकी उपजाऊ धरती और पीने के पानी में भी भारी कमी होने लगी है l प्रदूषण अनवरत बढ़ने लगा है l मानों समस्याओं की बाढ़ आ गई हो l इससे पहले कि यह समस्यायें अपना विकराल रूप धारण कर लें, हमें इन्हें नियंत्रण में लाने के लिए विवेक पूर्ण कुछ प्रयास अवश्य करने होंगे l

    हमने कृषि योग्य भूमि पर औद्योगिक इकाइयां या कल-कारखानों की स्थापना नहीं करनी है जिनसे कि कृषि उत्पादन प्रभावित हो l उसके लिए अनुपजाऊ बंजर भूमि निश्चित करनी है और सदैव प्रदूषण मुक्त ही उत्पादन को बढ़ावा देना है l

    हमने देश में पशु-धन बढ़ाना है ताकि हमें पर्याप्त मात्रा में देशी खाद प्राप्त हो सके l हमने रासायनिक खादों और कीट नाशक दवाइयों का कम से कम उपयोग करना है ताकि मित्र कीट-जीवों एवं अन्य प्राणियों की भी सुरक्षा और हम सभी का स्वास्थ्य ठीक बना रह सके l

    हमने घरेलू दुधारू पशुओं को कहीं खुला और सड़क पर नहीं छोड़ना है और न ही उन्हें कभी कसाइयों तक जाने देना है l अगर किसी कारण वश हम स्वयं उनका पालन-पोषण न कर सकें तो हमने उन्हें स्थानीय सहकारी संस्थाओं द्वारा संचालित पशु-शालाओं को ही देना है ताकि वहां उनका भली प्रकार से पालन पोषण हो सके और हमें मनचाहा ताजा व शूद्ध उत्पाद दूध, घी, पनीर, पौष्टिक खाद और अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएं मिल सकें l

    हमने नहाने, कपड़े धोने, और साफ-सफाई के लिए भूजल स्रोतों – हैन्डपम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का स्वयं कभी प्रयोग नहीं करना है और न ही किसीको करने देना है बल्कि टंकी, तालाब, नदी या नाले के स्वच्छ रोग कीटाणु रहित पानी का प्रयोग करना है और दूसरों को करने के लिए प्रेरित करना है l 

    सिंचाई के लिए हमने विभिन्न विकल्पों द्वारा जल संचयन करना है और खेती सींचने के लिए वैज्ञानिक विधियों द्वारा फव्वारों को माध्यम बनाना है l हमने भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन नहीं करना है l भूजल हम सबका जीवन अधार होने के साथ-साथ सुरक्षित पेय जल भंडार भी है l वह हमारे लिए दीर्घ कालिक रोग मुक्त और संचित पेय जल स्रोत है जो हमने मात्र पिने के लिए प्रयोग करना है l

    स्थानीय वर्षा जल–संचयन के लिए तालाब, पोखर जोहड़ और चैकडैम अच्छे विकल्प हैं l इनसे जीव जंतुओं को पीने का पानी मिलता है l हमने स्थानीय लोगों ने मिलकर इनका नव निर्माण करना है  तथा पुराने जल स्रोतों का जीर्णोद्वार करके इन्हें उपयोगी बनाना है ताकि ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल -संचयन हो सके और सिंचाई कार्य वाधित न हो l

    हमने समस्त भू-जल स्रोतों की पहचान करके उन्हें सरंक्षित करने हेतु उनके आस-पास अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने हैं l इससे भू संरक्षण होगा l इनसे जीवों के प्राण रक्षार्थ प्राण-वायु तथा जल की मात्रा में वृद्धि होगी और जीव जंतुओं के पालन-पोषण हेतु चारा तथा पानी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होगा l 

    हमने आवासीय कालोनी, मुहल्लों को साफ-सुथरा व रोग मुक्त रखने के लिए घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों को सीवरेज व्यवस्था के अंतर्गत लाकर मल निकासी तंत्र-प्रणाली को विकसित करना है और मल को तुरंत खाद में भी परिणत करना है ताकि दूषित जल रिसाव से स्थानीय भू-जल स्रोत – हैण्ड-पम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का शुद्ध पेयजल कभी दूषित न हो सके l वह हम सबके लिए सदैव उपयोगी बना रहे l

    हमने घर पर स्वयं शुद्ध और ताजा भोजन बनाकर खाना है l डिब्बा–लिफाफा बंद या पहले से तैयार भोजन अथवा जंक फ़ूड का प्रयोग नहीं करना है ताकि हम स्वस्थ रह सकें और हमारी आय का मासिक बजट भी संतुलित बना रहे l

    युवा वर्ग को बेरोजगार नहीं रहना है l उसे धार्मिक व सामाजिक दृष्टि से रोजगार के विकल्पों की तलाश करनी है और उन्हें व्यवहारिक रूप में लाना है l योग्य इच्छुक बेरोजगार युवावर्ग के लिए हस्तकला, ग्रामोद्योग, वाणिज्य, कृषि उत्पादन, वागवानी, पशुपालन, ऐसे अनेकों रोजगार संबंधी विकल्प हैं जिनसे वह घर पर रहकर स्वरोजगार से जुड़ सकता है l उसे सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाशने की आवश्यकता नहीं होगी l

    निराश युवावर्ग को सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाश नहीं करनी है बल्कि स्वरोजगार पैत्रिक व्यवसाय तथा सहकारिता की ओर ध्यान देना है l इससे उसकी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ परंपरागत स्थानीय क्षेत्रीय और राष्ट्रीय कला-संस्कृति व साहित्य की नवींन संरचना, रक्षा, और उसका विकास तो होगा ही – इसके साथ ही साथ उनकी अपनी पहचान भी बनेगी l 

    स्थानीय बेरोजगार युवावर्ग गाँव में रहकर अधिक से अधिक हस्त कला, निर्माण, उत्पादन, कृषि-वागवानी, और पशुपालन संबंधी रोजगार तलाशने और स्वरोजगार शुरू करने के लिए संबंधित विभाग से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है ताकि उसे स्वरोजगार मिल सके और गाँव छोड़कर दूर शहर न जाना पड़े l

    हमने अपने परिवार में बेटा या बेटी में भेद नहीं करना है l दोनों एक ही माता-पिता की संतान हैं l हम सबने परिवार नियोजन प्रणाली के अंतर्गत सीमित परिवार का आदर्श अपनाना है और बेटा-बेटी या दोनों का उचित पालन-पोषण करना है l उन्हें उच्च शिक्षा देने के साथ-साथ उच्च संस्कार भी देने हैं ताकि भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सके l

    यह सब कार्य तब तक मात्र किसी सरकार के द्वारा भली प्रकार से आयोजित या संचालित नहीं किये जा सकते, और वह कारगर भी प्रमाणित नहीं हो सकते हैं, जब तक जन साधारण के द्वारा इन्हें अपने जीवन में व्यवहारिक नहीं लाया जाता l अगर हम इन्हें व्यवहारिक रूप प्रदान करते हैं तो यह सुनिश्चित है कि हम आधुनिक भारत में भी प्राचीन भारतीय परंपराओं के निर्वाहक हैं और हम अपनी संस्कृति के प्रति उत्तरदायी भी l
    चेतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    समाज के प्रति सजगता

    सामाजिक जन चेतना – 16

    नैतिक शक्ति से व्यक्तित्व निर्माण होता है जबकि अनुशासन से जन शक्ति, ग्राम शक्ति एवं राष्ट्र शक्ति का l इसी प्रकार कुशल नेतृत्व में अनुशासित संगठन शक्ति द्वारा संचालित जो शासन भेदभाव रहित सबके हित के लिए एक समान न्याय करता है, वह सुशासन होता है l

    जन्म लेने के पश्चात् जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है उसे सबसे पहले माँ का परिचय मिलता है फिर बाप का l उसे पता चलता है कि उसकी माँ कौन है और बाप कौन ? उसके माता-पिता उसे हर पग पर उचित कार्य करने और गलत कार्य न करने के लिए उसका साथ देते हैं l इससे वह सीखता है कि उसे क्या अच्छा करना है और क्या बुरा नहीं ?

    यही कारण है कि जब बालक बचपन छोड़कर किशोरावस्था में प्रवेश करता है तो वह अपने घर के लिए अच्छे या बुर कार्यों को भली प्रकार समझने लगता है l वह जान जाता है कि घर की संपत्ति पूरे परिवार की संपत्ति होती है l वह तब ऐसा कोई भी कार्य नहीं करता है जिससे उसका अपना या अपने घर का कोई अहित हो l

    जब वह रोजगार हेतु सरकारी या गैर सरकारी कार्यक्षेत्र में प्रविष्ट हो जाता है तब वह अपने घर में मिली उस बहुमूल्य शिक्षा को भूल जाता है कि जिस प्रकार माँ-बाप द्वारा बनाई गई सारी संपत्ति पूरे परिवार की अपनी संपत्ति होती है उसी प्रकार सरकारी या गैर सरकारी संस्थान की भी पूरे समाज या राष्ट्र की अपनी संपत्ति होती है तथा वह स्वयं उस संपत्ति का रक्षक भी होता है l

    इसका कारण यह है कि उसे मिली शिक्षा अभी अधूरी है क्योंकि कभी-कभी वह अपने कार्य क्षेत्र में तरह-तरह के फेरबदल, हेराफेरी और गबन इतिआदि कार्य करने से ही नहीं हिचकचाता या डरता बल्कि अपने से नीचे कार्यरत कर्मचारियों का तन, मन, धन संबंधी शोषण और उन पर तरह-तरह के अत्याचार भी करता है, मानों वे उसके गुलाम हों l लालच उसकी नश-नश में भरा हुआ होता है l

    मनुष्य की आवश्यकता है – संपूर्ण जीवन विकास l जीवन का विकास मात्र ब्रह्म विद्या कर सकती है l वह सिखाती है कि निष्काम भाव से कार्य कैसे करें और अपनी अभिलाषाएं कैसे कम करें ? जब हमारी इच्छायें कम होंगी तब हम और हमारा समाज सुखी अवश्य होगा l

    वन्य संपदा में पेड़-पौधे, जंगल दिन प्रतिदिन कम हो रहे हैं l उनकी कमी होने से जंगली पशु-पक्षियों व जड़ी-बूटियों का आभाव हो रहा है l भूमि कटाव बढ़ रहा है l बाढ़ का प्रकोप सूरसा माई की तरह अपना मुंह निरंतर फैलाये जा रही है l वन्य संपदा के आभाव, धरती कटाव और बाढ़ रोकने के लिए आवश्यक है जंगलों का संरक्षण किया जाना l वन्य पशु-पक्षियों को मारने पर प्रतिबंध लगाना l जड़ी-बूटियों को चोरी से उखाड़ने वालों से कड़ाई से निपटा जाना l यह सब रचनात्मक कार्य ग्राम जन शक्ति से किये जा सकते हैं l

    वर्तमान समय में विभिन्न राष्ट्रों के आपसी राजनैतिक मतभेद और संघर्षों के कारण हर राष्ट्र और राष्ट्रवादी दुखी व निराश है l जब भी युद्ध होते हैं, निर्दोष जीव व प्राणी मारे जाते हैं l राष्ट्रों का आपसी विरोध व शत्रुता कम होने के स्थान पर और अधिक बढ़ जाती है l ऐसे संघर्ष रोकने के लिए सारी धरती गोपाल की, भावना का विस्तार करना आवश्यक है l अगर हममें आपसी भाईचारा व बन्धुत्व भाव होगा तो हम अपना दुःख-सुख आपस में बाँटकर कम कर सकते हैं l

    संसार में जहाँ प्रतिदिन, प्रतिक्षण के हिसाब से लाखों में जनसंख्या बढ़ रही है तो पौष्टिक पदार्थों के कम होने के साथ-साथ धरती भी सिकुड़ती जा रही है l नये-नये कारखाने, सड़क, बाँध, भवन बनते जा रहे हैं l युवावर्ग में शारीरिक दुर्बलता, विषय-वासनाओं के प्रति मानसिक दासता बढ़ रही है l हमें चाहिए कि सयंम रहित जनन क्रिया को सामाजिक समस्या समझा जाये l समाज की समस्या परिवार की और परिवार की समस्या अपनी समस्या होती है या वह समस्या बन जाती है l इसलिए परिवार का सीमित होना अति आवश्यक है l 

    कोई भी रोग किसी को हो सकता है l उसकी दवाई होती है या दवाई बना ली जाती है l  रोगोपचार के लिए रोगी को दवाई दी जाती है l उसका उपचार किया जाता है और वह एक दिन रोग-मुक्त भी हो जाता है l विशाल समाज ऐसे विभिन्न रोगों से रोगग्रस्त हो गया है l सब रोगों की एक ही दवाई है ब्रह्म विद्या, जो मात्र सरस्वती विद्या मंदिरों के माध्यम से संस्कारों के रूप में. रोग निदान हेतु वितरित की जा सकती है l आइये ! हम विस्तृत समाज में ब्रह्म विद्या के सरस्वती विद्या मंदिरों की स्थापना करके इस पुनीत कार्य को संपूर्ण करें l

    प्रकाशित 21 नवंबर 1996