मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: सामाजिक जन चेतना – आलेख

  • श्रेणी:

    कर्तव्य-सेवा ज्ञान का महत्व

    आलेख – सामाजिक चेतना मातृवंदना 2023 फरवरी

    ईश्वर अजर, अमर, अविकारी, सर्वव्यापक और निराकार है l वह निर्जीव में भी है और सजीव में भी l वह सबके भीतर भी है और बाहर भी l अर्थात वह कण-कण में विद्यमान है lजीव ईश्वर का अंश है l मानव शरीर की आकृति का प्रादुर्भाव परिवर्तनशील प्रकृति जल, वायु, मिट्टी, अग्नि और आकाश से होता है l मनुष्यके जन्म का पहला साँस और मृत्यु के अंतिम साँस का मध्यकाल, उसका जीवन काल होता है l हर प्राणी की मृत्यु होना निश्चित है, मृत्यु अवश्य होती है, प्रकृति नाशवान है l

    ऋषियों ने मानव जीवन काल को चार अवस्थाएं प्रदान की हैं – ब्रह्मचर्य जीवन, गृहस्थ जीवन, वानप्रस्थ जीवन, और सन्यास जीवन l इनके सबके अपने -अपने दायित्व हैं l ब्रह्मचर्य जीवन में ज्ञान अर्जित करना, गृहस्थ जीवन में संतानोत्पत्ति करना, वानप्रस्थ जीवन में यम नियमों का पालन करते हुए शरीर, मन, बुद्धि का शुद्धिकरण करना एवंम सत्सनातन तत्व जानना और सन्यास जीवन में सत्सनातन तत्वका मन, कर्म और वचन से प्रचार-प्रसार करना दायित्व है l मानव जीवन का उद्देश्य-जीवन में चार फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति करना है l


    जीव को मानव शरीर में इन्द्रियां, मन, बुद्धि अज्ञान वश अपने अधीन करके रखती हैं, उनसे मनुष्य द्वारा जीव को सहज में मुक्त नहीं किया जा सकता, उसकीमुक्ति के लिए मनुष्य को वेद विधि-विधानानुसार यत्न करना पड़ता है l ऋषियों का मानना है कि परिवर्तनशील प्रकृति तीन सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों से युक्त है l नाशवान प्रकृति में रहते हुए जीव समय-समय पर इन त्रिगुणों से प्रभावित होता रहता है l

    त्रिगुण संपन्न प्रकृति से मनुष्य जाति के गुण, संस्कार और स्वभाव में समय-असमय पर बदलाव होते रहते हैं l अपनी मनोवृत्ति अनुसार मनुष्य कभी सात्विक ,कभी राजसिक और कभी तामसिक संगत करता है l ऐसी किसी संगत के ही अनुसार उसकी वैसी भावना उत्पन्न होती है l उस भावना अनुसार उस का वैसा विचार उत्पन्न होता है, अपने विचार के अनुसार वह वैसा कर्म करता है और फिर अंत में उसके द्वारा किये हुए कर्मानुसार ही उसे वैसा फल भी मिलता है l यही प्रकृति का अटूट नियम और
    सका कटु सत्य हैl

    सृष्टि में हर पहलु के अपने दो पक्ष होते हैं – अच्छा और बुरा l अच्छे कार्य का जनमानस पर अच्छा प्रभाव होता है l इसलिए समाज में उसकी हर स्थान पर प्रसंशा होती है और बुरे का बुरा प्रभाव होता है जिस कारण उसकी सर्वत्र निंदा होती है l अतः मनुष्य जाति का सदैव पहले वाले पक्ष का साथ देने और दूसरे का विरोध करना चाहिए l


    घर परिवार के आपसी व्यवहार में वाणी बहुत महत्वपूर्ण होती है l बोलचाल के ढंग ने जहाँ कई घरों को जोड़ा है, वहां अनेकों को तोड़ा भी है l रिश्ते निभाने में शब्द अमृत भी बन जाते हैं और जहर भी l शब्दों में आत्मीयता होनी चाहिए जिसमें भावनाएं भरी हों l हृदय से बोले और हृदय से सुने गए शब्द ही अमृत समान होते हैं l घर परिवार में एक दूसरे के प्रति विश्वास होना चाहिए l नहीं तो यह वो भूकंप है जो मधुर रिश्तों में दरार पैदा कर देता है और एक दिन उन्हें समाप्त भी कर देता है l सदा मीठा नहीं खाया जा सकता पर कुछ खट्टा, कुछ मीठा दोनों के स्वाद से हम अपनी परिवार रूपी बगिया को अवश्य महका सकते हैं l


    प्रेम, त्याग, समर्पण, सहयोग, सहभागिता और सेवा की भावना परिवारके मुख्य गुण है, परिवार को संगठित और सशक्त करते हैं l जिस परिवार में ऐसे गुण विद्यमान होते हैं, उस परिवार के किसी भी व्यक्ति को अन्यत्र स्वर्ग ढूंढने की आवश्यकता नहीं होती है l सशक्त परिवार अर्थात माता-पिता ही बच्चों को अच्छे संस्कार दे सकते हैं, उन्हें सशक्त बना सकते हैं l


    माँ के गर्भ में पोषित होने से लेकर, बच्चे का जन्म लेने के पश्चात् पाठशाला जाने तक पहला और दूसरा गुरु माता-पिता ही होते हैं l माता-पिता बच्चों को संस्कार देते हैं l तीसरा गुरु विद्यालय में गुरुजन होते हैं जो उन्हें तात्विक या विषयक शिक्षण-प्रशिक्षण देकर उनका भविष्य निर्माण करते हैं l तीनों गुरु पूजनीय हैं l माता-पिता के रहते हुए घर और गुरु के रहते हुए विद्यालय दोनों विद्या मंदिर होते हैं l घर में माता-पिता के सान्निध्य में रहकर बच्चे संस्कारवान बनते हैं जबकि विद्यालय में गुरु के सान्निध्य में रहने से शिष्य अपने विषय में पारंगत, समर्थ, सशक्त युवा बनते हैं l सशक्त युवाओं के कन्धों पर ही भारत का भविष्य टिका हुआ है l


    सशक्त युवाओं को उनके गुण, संस्कार और स्वभाव से जाना जाता है l सशक्त युवाओं से सशक्त परिवार बनता है l सशक्त परिवार सशक्त गाँव का निर्माण करते हैं l सशक्त गाँवों से सशक्त राज्य बनते हैं l सशक्त राज्यों से देश सशक्त होता है l सशक्त देश से सशक्त विश्व की आशा की जा सकती है l यह बात किसी को नहीं भूलनी चाहिए कि मनुष्य को उसके कर्मों से जाना जाता है, उसके परिवार से नहीं l


    ब्रह्म भाव में स्थिर रहकर ब्रह्मतत्व का विश्व कल्याण हेतु प्रचार-प्रसार करने वाला कोई भी युवा ब्रह्मज्ञानी ज्ञानवीर हो सकता है l क्षत्रिय भाव में स्थिर रहकर जन, समाज और राष्ट्रहित में कार्य करने वाला कोई भी युवा शूरवीर हो सकता है l वैश्य भाव में स्थिर रहकर गौ-सेवा, कृषि और व्यापार से जन, समाज और राष्ट्रहित में कार्य करने वाला कोई भी युवा धर्मवीर हो सकता है l शूद्र्भाव में स्थिर रहकर हस्त-ललित कला, लघु एवंम कुटीर उद्योग से जन, समाज और राष्ट्रहित में कार्य करने वाला कोई भी युवा कर्मवीर हो सकता है l


    संसार में हर युवा को उसके गुण, स्वभाव और संस्कार से जाना जाता है l इसी कारण ज्ञानवीर की तत्वज्ञान से, रणवीर की पराक्रम से, धर्मवीर की कर्तव्य परायणता से और कर्मवीर की कर्मशीलता से पहचान होती है l वह अपने गुण, संस्कार और स्वभाव के अनुसार अपने माता-पिता, गुरु, समाज, राष्ट्र और संसार की सेवा/कल्याणकारी कार्य करता है और बदले में उसे धन, बल व यश की प्राप्ति होती है l

    चेतन कौशल “नूरपुरी”


  • श्रेणी:

    आर्य जन

    सशक्त समाज 

    # हम सब आर्य पुत्र/पुत्रियाँ हैं, हमें अपने देश भारत पर गर्व है l*

    # हम आर्यों का राष्ट्र – “आर्यावर्त” ही महान “अखंड भारत” है l*


    # हम आर्यों का राष्ट्र - गांवों का देश, हमारी कर्म भूमि है l*


    # हम आर्यों के गाँव की संपदा - जल, जंगल और जमीन हम सब आर्यों का हित करने वाली है l*


    # ग्राम्य संपदा का लंबे समय तक उपयोग करने के लिए, उसका संरक्षण, पोषण, संवर्धन करना हम आर्यों का दायित्व है l*


    # माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, पति, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि की सेवा, रक्षा करना हम आर्यों दायित्व है l*


    # समग्र प्रकृति की सृजनहार स्वयं माँ जगदंबा हैं l माँ जगदंबा की कृपा से समग्र प्रकृति का दिया हुआ हम आर्यों के पास सब कुछ है l*


    # प्राकृतिक संसाधनों का सुनियोजित ढंग से दोहन करके अभाव ग्रस्तों तक पहुंचाना और उनकी तन, मन, धन से सेवा करना हम सब आर्यों का कर्तव्य है l*


    # हम सब आर्य हैं जो ज्ञान में ब्राह्मण भाव, वीरता में क्षत्रिय भाव, व्यापार में वैश्य भाव और सेवा में शुद्र भाव रखते हैं,, हाँ, हाँ हम ही आर्य हैं l*


    # हम आर्यों ने कर्माधारित वर्ण व्यवस्था को जन्माधारित जातियां समझने की भूल कर दी, वरना विश्व हमें आर्य संबोधन से पहचानता था l*
    # देश में जब तक पाश्चात्य शिक्षा जारी रहेगी तब तक युवा आर्य नौकर ही बनेंगे, लेकिन जब उन्हें परंपरागत वैदिक शिक्षा मिलेगी वे नौकर नहीं, फिर से स्वामी बन जायेंगे l*


    # हम सब आर्य हैं, इसलिए हम सब एक हैं l*


    # अगर 30 करोड़ का पाकिस्तान इस्लामिक देश बन सकता है तो 100 करोड़ आर्यों का भारत भी दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति से पुनः आर्यवर्त हो सकता है l*


    # आर्य बिना कारण किसी का अहित नहीं करता है, कोई उसे छेड़ता है तो वह उसे कभी छोड़ता भी नहीं है l*


    # दुश्मन, कभी आर्यों का हित नहीं चाहता है, वह उनके विरुद्ध हर समय कोई न कोई षड्यंत्र रचता रहता है l*


    # आर्य की किसी के प्रति दुर्भावना नहीं हो सकती और दुश्मन की आर्यों के प्रति कभी सद्भावना नहीं होती है l*


    # आर्य ही देश, धर्म – संस्कृति और सभ्यता के प्रति सजग और सतर्क रह सकते हैं l*


    # आर्य धर्मयोद्धा ही देश, धर्म - संस्कृति की आन, वान और शान हैं l*


    # आर्य भारत के वंशज थे, वंशज हैं और वंशज ही रहेंगे l*


    # भारत भूमि की रक्षा हेतु जीवन समर्पित करने वाला हर बलिदानी, क्रन्तिकारी आर्य है, हमें उस पर गर्व है l*


    # देश, धर्म – संस्कृति और सभ्यता की रक्षा हेतु खड़ा होने वाला हर व्यक्ति धर्म योद्धा आर्य है l*

    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    समर्थन

    चेतन विचार - जन चेतना 

    # अगर मैं देश सनातन - धर्म, संस्कृति के हित में हूं तभी आप मेरा समर्थन करें अन्यथा नहीं।*
    चेतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    समय की मांग

    कश्मीर टाइम्स 30 नवम्बर 2008  

    वह भी एक समय था जब देश में हर नौजवान किसी न किसी हस्त–कला अथवा अपने रोजगार से जुड़ा हुआ रहता था l चारों ओर सुख समृद्धि थी l देश में कृषि योग्य भूमि की कहीं कमी नहीं थी l पर ज्यों-ज्यों देश की जन संख्या टिड्डीदल की भांति बढ़ती गई, त्यों-त्यों उसकी उपजाऊ धरती और पीने के पानी में भी भारी कमी होने लगी है l प्रदूषण अनवरत बढ़ने लगा है l मानों समस्याओं की बाढ़ आ गई हो l इससे पहले कि यह समस्यायें अपना विकराल रूप धारण कर लें, हमें इन्हें नियंत्रण में लाने के लिए विवेक पूर्ण कुछ प्रयास अवश्य करने होंगे l

    हमने कृषि योग्य भूमि पर औद्योगिक इकाइयां या कल-कारखानों की स्थापना नहीं करनी है जिनसे कि कृषि उत्पादन प्रभावित हो l उसके लिए अनुपजाऊ बंजर भूमि निश्चित करनी है और सदैव प्रदूषण मुक्त ही उत्पादन को बढ़ावा देना है l

    हमने देश में पशु-धन बढ़ाना है ताकि हमें पर्याप्त मात्रा में देशी खाद प्राप्त हो सके l हमने रासायनिक खादों और कीट नाशक दवाइयों का कम से कम उपयोग करना है ताकि मित्र कीट-जीवों एवं अन्य प्राणियों की भी सुरक्षा और हम सभी का स्वास्थ्य ठीक बना रह सके l

    हमने घरेलू दुधारू पशुओं को कहीं खुला और सड़क पर नहीं छोड़ना है और न ही उन्हें कभी कसाइयों तक जाने देना है l अगर किसी कारण वश हम स्वयं उनका पालन-पोषण न कर सकें तो हमने उन्हें स्थानीय सहकारी संस्थाओं द्वारा संचालित पशु-शालाओं को ही देना है ताकि वहां उनका भली प्रकार से पालन पोषण हो सके और हमें मनचाहा ताजा व शूद्ध उत्पाद दूध, घी, पनीर, पौष्टिक खाद और अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएं मिल सकें l

    हमने नहाने, कपड़े धोने, और साफ-सफाई के लिए भूजल स्रोतों – हैन्डपम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का स्वयं कभी प्रयोग नहीं करना है और न ही किसीको करने देना है बल्कि टंकी, तालाब, नदी या नाले के स्वच्छ रोग कीटाणु रहित पानी का प्रयोग करना है और दूसरों को करने के लिए प्रेरित करना है l 

    सिंचाई के लिए हमने विभिन्न विकल्पों द्वारा जल संचयन करना है और खेती सींचने के लिए वैज्ञानिक विधियों द्वारा फव्वारों को माध्यम बनाना है l हमने भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन नहीं करना है l भूजल हम सबका जीवन अधार होने के साथ-साथ सुरक्षित पेय जल भंडार भी है l वह हमारे लिए दीर्घ कालिक रोग मुक्त और संचित पेय जल स्रोत है जो हमने मात्र पिने के लिए प्रयोग करना है l

    स्थानीय वर्षा जल–संचयन के लिए तालाब, पोखर जोहड़ और चैकडैम अच्छे विकल्प हैं l इनसे जीव जंतुओं को पीने का पानी मिलता है l हमने स्थानीय लोगों ने मिलकर इनका नव निर्माण करना है  तथा पुराने जल स्रोतों का जीर्णोद्वार करके इन्हें उपयोगी बनाना है ताकि ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल -संचयन हो सके और सिंचाई कार्य वाधित न हो l

    हमने समस्त भू-जल स्रोतों की पहचान करके उन्हें सरंक्षित करने हेतु उनके आस-पास अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने हैं l इससे भू संरक्षण होगा l इनसे जीवों के प्राण रक्षार्थ प्राण-वायु तथा जल की मात्रा में वृद्धि होगी और जीव जंतुओं के पालन-पोषण हेतु चारा तथा पानी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होगा l 

    हमने आवासीय कालोनी, मुहल्लों को साफ-सुथरा व रोग मुक्त रखने के लिए घरेलू व सार्वजनिक शौचालयों को सीवरेज व्यवस्था के अंतर्गत लाकर मल निकासी तंत्र-प्रणाली को विकसित करना है और मल को तुरंत खाद में भी परिणत करना है ताकि दूषित जल रिसाव से स्थानीय भू-जल स्रोत – हैण्ड-पम्प, नलकूप, बावड़ियों और कुओं का शुद्ध पेयजल कभी दूषित न हो सके l वह हम सबके लिए सदैव उपयोगी बना रहे l

    हमने घर पर स्वयं शुद्ध और ताजा भोजन बनाकर खाना है l डिब्बा–लिफाफा बंद या पहले से तैयार भोजन अथवा जंक फ़ूड का प्रयोग नहीं करना है ताकि हम स्वस्थ रह सकें और हमारी आय का मासिक बजट भी संतुलित बना रहे l

    युवा वर्ग को बेरोजगार नहीं रहना है l उसे धार्मिक व सामाजिक दृष्टि से रोजगार के विकल्पों की तलाश करनी है और उन्हें व्यवहारिक रूप में लाना है l योग्य इच्छुक बेरोजगार युवावर्ग के लिए हस्तकला, ग्रामोद्योग, वाणिज्य, कृषि उत्पादन, वागवानी, पशुपालन, ऐसे अनेकों रोजगार संबंधी विकल्प हैं जिनसे वह घर पर रहकर स्वरोजगार से जुड़ सकता है l उसे सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाशने की आवश्यकता नहीं होगी l

    निराश युवावर्ग को सरकारी या गैर सरकारी नौकरी तलाश नहीं करनी है बल्कि स्वरोजगार पैत्रिक व्यवसाय तथा सहकारिता की ओर ध्यान देना है l इससे उसकी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ परंपरागत स्थानीय क्षेत्रीय और राष्ट्रीय कला-संस्कृति व साहित्य की नवींन संरचना, रक्षा, और उसका विकास तो होगा ही – इसके साथ ही साथ उनकी अपनी पहचान भी बनेगी l 

    स्थानीय बेरोजगार युवावर्ग गाँव में रहकर अधिक से अधिक हस्त कला, निर्माण, उत्पादन, कृषि-वागवानी, और पशुपालन संबंधी रोजगार तलाशने और स्वरोजगार शुरू करने के लिए संबंधित विभाग से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है ताकि उसे स्वरोजगार मिल सके और गाँव छोड़कर दूर शहर न जाना पड़े l

    हमने अपने परिवार में बेटा या बेटी में भेद नहीं करना है l दोनों एक ही माता-पिता की संतान हैं l हम सबने परिवार नियोजन प्रणाली के अंतर्गत सीमित परिवार का आदर्श अपनाना है और बेटा-बेटी या दोनों का उचित पालन-पोषण करना है l उन्हें उच्च शिक्षा देने के साथ-साथ उच्च संस्कार भी देने हैं ताकि भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सके l

    यह सब कार्य तब तक मात्र किसी सरकार के द्वारा भली प्रकार से आयोजित या संचालित नहीं किये जा सकते, और वह कारगर भी प्रमाणित नहीं हो सकते हैं, जब तक जन साधारण के द्वारा इन्हें अपने जीवन में व्यवहारिक नहीं लाया जाता l अगर हम इन्हें व्यवहारिक रूप प्रदान करते हैं तो यह सुनिश्चित है कि हम आधुनिक भारत में भी प्राचीन भारतीय परंपराओं के निर्वाहक हैं और हम अपनी संस्कृति के प्रति उत्तरदायी भी l
    चेतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    समाज के प्रति सजगता

    सामाजिक जन चेतना – 16

    नैतिक शक्ति से व्यक्तित्व निर्माण होता है जबकि अनुशासन से जन शक्ति, ग्राम शक्ति एवं राष्ट्र शक्ति का l इसी प्रकार कुशल नेतृत्व में अनुशासित संगठन शक्ति द्वारा संचालित जो शासन भेदभाव रहित सबके हित के लिए एक समान न्याय करता है, वह सुशासन होता है l

    जन्म लेने के पश्चात् जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है उसे सबसे पहले माँ का परिचय मिलता है फिर बाप का l उसे पता चलता है कि उसकी माँ कौन है और बाप कौन ? उसके माता-पिता उसे हर पग पर उचित कार्य करने और गलत कार्य न करने के लिए उसका साथ देते हैं l इससे वह सीखता है कि उसे क्या अच्छा करना है और क्या बुरा नहीं ?

    यही कारण है कि जब बालक बचपन छोड़कर किशोरावस्था में प्रवेश करता है तो वह अपने घर के लिए अच्छे या बुर कार्यों को भली प्रकार समझने लगता है l वह जान जाता है कि घर की संपत्ति पूरे परिवार की संपत्ति होती है l वह तब ऐसा कोई भी कार्य नहीं करता है जिससे उसका अपना या अपने घर का कोई अहित हो l

    जब वह रोजगार हेतु सरकारी या गैर सरकारी कार्यक्षेत्र में प्रविष्ट हो जाता है तब वह अपने घर में मिली उस बहुमूल्य शिक्षा को भूल जाता है कि जिस प्रकार माँ-बाप द्वारा बनाई गई सारी संपत्ति पूरे परिवार की अपनी संपत्ति होती है उसी प्रकार सरकारी या गैर सरकारी संस्थान की भी पूरे समाज या राष्ट्र की अपनी संपत्ति होती है तथा वह स्वयं उस संपत्ति का रक्षक भी होता है l

    इसका कारण यह है कि उसे मिली शिक्षा अभी अधूरी है क्योंकि कभी-कभी वह अपने कार्य क्षेत्र में तरह-तरह के फेरबदल, हेराफेरी और गबन इतिआदि कार्य करने से ही नहीं हिचकचाता या डरता बल्कि अपने से नीचे कार्यरत कर्मचारियों का तन, मन, धन संबंधी शोषण और उन पर तरह-तरह के अत्याचार भी करता है, मानों वे उसके गुलाम हों l लालच उसकी नश-नश में भरा हुआ होता है l

    मनुष्य की आवश्यकता है – संपूर्ण जीवन विकास l जीवन का विकास मात्र ब्रह्म विद्या कर सकती है l वह सिखाती है कि निष्काम भाव से कार्य कैसे करें और अपनी अभिलाषाएं कैसे कम करें ? जब हमारी इच्छायें कम होंगी तब हम और हमारा समाज सुखी अवश्य होगा l

    वन्य संपदा में पेड़-पौधे, जंगल दिन प्रतिदिन कम हो रहे हैं l उनकी कमी होने से जंगली पशु-पक्षियों व जड़ी-बूटियों का आभाव हो रहा है l भूमि कटाव बढ़ रहा है l बाढ़ का प्रकोप सूरसा माई की तरह अपना मुंह निरंतर फैलाये जा रही है l वन्य संपदा के आभाव, धरती कटाव और बाढ़ रोकने के लिए आवश्यक है जंगलों का संरक्षण किया जाना l वन्य पशु-पक्षियों को मारने पर प्रतिबंध लगाना l जड़ी-बूटियों को चोरी से उखाड़ने वालों से कड़ाई से निपटा जाना l यह सब रचनात्मक कार्य ग्राम जन शक्ति से किये जा सकते हैं l

    वर्तमान समय में विभिन्न राष्ट्रों के आपसी राजनैतिक मतभेद और संघर्षों के कारण हर राष्ट्र और राष्ट्रवादी दुखी व निराश है l जब भी युद्ध होते हैं, निर्दोष जीव व प्राणी मारे जाते हैं l राष्ट्रों का आपसी विरोध व शत्रुता कम होने के स्थान पर और अधिक बढ़ जाती है l ऐसे संघर्ष रोकने के लिए सारी धरती गोपाल की, भावना का विस्तार करना आवश्यक है l अगर हममें आपसी भाईचारा व बन्धुत्व भाव होगा तो हम अपना दुःख-सुख आपस में बाँटकर कम कर सकते हैं l

    संसार में जहाँ प्रतिदिन, प्रतिक्षण के हिसाब से लाखों में जनसंख्या बढ़ रही है तो पौष्टिक पदार्थों के कम होने के साथ-साथ धरती भी सिकुड़ती जा रही है l नये-नये कारखाने, सड़क, बाँध, भवन बनते जा रहे हैं l युवावर्ग में शारीरिक दुर्बलता, विषय-वासनाओं के प्रति मानसिक दासता बढ़ रही है l हमें चाहिए कि सयंम रहित जनन क्रिया को सामाजिक समस्या समझा जाये l समाज की समस्या परिवार की और परिवार की समस्या अपनी समस्या होती है या वह समस्या बन जाती है l इसलिए परिवार का सीमित होना अति आवश्यक है l 

    कोई भी रोग किसी को हो सकता है l उसकी दवाई होती है या दवाई बना ली जाती है l  रोगोपचार के लिए रोगी को दवाई दी जाती है l उसका उपचार किया जाता है और वह एक दिन रोग-मुक्त भी हो जाता है l विशाल समाज ऐसे विभिन्न रोगों से रोगग्रस्त हो गया है l सब रोगों की एक ही दवाई है ब्रह्म विद्या, जो मात्र सरस्वती विद्या मंदिरों के माध्यम से संस्कारों के रूप में. रोग निदान हेतु वितरित की जा सकती है l आइये ! हम विस्तृत समाज में ब्रह्म विद्या के सरस्वती विद्या मंदिरों की स्थापना करके इस पुनीत कार्य को संपूर्ण करें l

    प्रकाशित 21 नवंबर 1996