मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: आलेख

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    संगत और उसका प्रभाव

    दिनांक 24 सितंबर 2025 

    सत्सनातन अनास्था का दुष्प्रभाव –
    सत्सनातन धर्म के विरोधी जन और उनके समाज के द्वारा सत्सनातन धर्म और जन आस्था के विरुद्ध आचरण करने के कारण – धरती पर विशेष सम्प्रदाय के लोगों - आतताइयों की बाढ़ सी आ गई है l उनके द्वारा सत्सनातन धर्म के विरुद्ध स्थान - स्थान पर बात - बात पर उपद्रव मचाना, लूट-पाट करना, हिंसा करना, महिलाओं का ब्रेन वाश करके अपहरण, लव जिहाद, धर्मांतरण, अपमान करना वर्तमान में एक आम बात है l अब तक सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं और जागृत महानुभावों के द्वारा उनकी समाज विरोधी गतिविधियों पर विराम लगाने के सतत जो भी प्रयास हुए हैं, अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं l उन्हें तभी रोका जा सकता है जब संख्या आधारित आतताइयों के द्वारा किये जाने वाले किसी भी उपद्रव के अनुपात में उनके विपरीत सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों एवं सुप्त अवस्था से जागृत जन, समाज के द्वारा एक जुट होकर कोई सशक्त प्रयास हो l देश का शिक्षाविद, बुद्धि जीवी वर्ग इस समस्या को भली प्रकार जानता है और समझता भी है l आवश्यकता है - जन साधारण और समाज अनास्था और आतताइयों के कुकृत्यों एवं उनके दुष्प्रभाव से बचने/बचाने हेतु विद्वानों का महत्व समझे, उनका मिलकर साथ दे, उनके प्रति अपनी श्रद्धा, प्रेम, भक्ति और विश्वास बना कर रखे l
    विद्वानों की संगत -
    # विद्वानों के प्रति श्रद्धा, प्रेम, भक्ति और विश्वास रखने से हर समस्या का निदान होता है, यथार्थ वैदिक ज्ञान वर्धन होता है, तात्विक ज्ञान प्राप्त होता है l*
    # तात्विक ज्ञान से आत्म शांति मिलती है l*
    # आत्मशांति की प्राप्ति से जन जाग्रति आती है, उससे मानवीय, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय समस्याओं का हल निकलता है l*
    # जनजागृति से धार्मिक संस्कार मिलते हैं, विद्या ज्ञान प्राप्त होता है l*
    संगत से सद्भावना –
    # विद्वानों की संगत करने से सद्भावना पैदा होती है, इन्द्रिय सयम और मनो निग्रह का मार्ग प्रसस्त होता है, स्वयं किये जाने वाले कार्य में मनायोग बना रहता है, कार्य में सफलता मिलती है l*
    # इन्द्रिय सयम और मनो निग्रह से त्याग भावना बढ़ती है l*
    # त्याग भावना से माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि सेवा के प्रति मन में निस्वार्थ भाव उभरते हैं l *
    # निस्वार्थ सेवा भाव से मन में दान भावना उत्पन्न होती है l*
    सद्भावना से सद्विचार –
    # सद्भावना से सद्विचार उत्पन्न होते हैं, माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत, अतिथि, राष्ट्र और मानव समाज सेवा संबंधी अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं, जन चर्चायें होती हैं, जन संगोष्ठियाँ की जाती हैं, विचारों का अदान – प्रदान, प्रचार – प्रसार होता है l*
    # महत्वपूर्ण विचार प्रकाशित और चर्चायें करते समय मानवीय, पारिवारिक, सामजिक एवं राष्ट्रीय मान – मर्यादाओं का ध्यान रखा जाता है l*
    # मंच पर सबके सम्मुख अपना - अपना विचार रखने हेतु विभिन्न विचारकों को एक समान अवसर दिया जाता है l*
    # सभी के विचारों को ध्यान में रखते हुए सर्वहितकारी विचारों पर सर्व सहमती बनाई जाती है l*
    सद्विचारों से सत्कर्म –
    # सद्विचारों से कल्याणकारी सत्कर्म होते हैं l उन से माता - पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि की सेवा होती है, सामाजिक एकता बनती है, साहित्य, संगीत जन - संस्कार, कला - संस्कृति का रक्षण होता है l*
    # साहित्य, संगीत, जन - संस्कार, कला - संस्कृति के रक्षण से हस्त - ललित कलाओं का पोषण, वर्धन होता है, जन साधारण में प्रेम बढ़ता है l*
    # हस्त - ललित कलाओं से युवाओं को व्यवसाय मिलता है l*
    # व्यवसाय मिलने से कल्याणकारी (लंगर लगाना, नियमित हवन करना, स्वच्छता एवं पवित्रता बनाये रखना जैसे अनेकों कार्य) सत्कर्म किये जाते हैं l*
    सत्कर्मों से अच्छा परिणाम -
    # सत्कर्म करने से परिणाम सदैव अच्छा ही निकलता है l*
    # अच्छा कार्य मन को संतुष्टि प्रदान करता है l*
    # अच्छे कार्य से मन प्रसन्न और आनंदित होता है l*
    # अच्छा कार्य करने से मन प्रेम से अलाहादित होता है, जिससे वह किसी भी भौतिक वादी या अध्यात्मवादी कार्य को पहले से अधिक तन्मयता के साथ करने लगता है l*



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    विश्वव्यापी सत्सनातन धर्माध्यात्म – संस्कृति

    दिनांक 21 सितम्बर 2025

    “सत्यार्थ प्रकाश” के अनुसार - # अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र, सृष्टिकर्ता, सचिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी मात्र एक दाता ॐ सबका राम है और सकल संसार उसके आगे भिखारी है l*

    वैदिक सत्सनातन ज्ञान व धर्म –
    # सकल संसार में मात्र वैदिक ज्ञान ही सत्सनातन ज्ञान है, जिससे समस्त मानव जाति का कल्याण और उत्थान होता है l*
    # वैदिक सत्सनातन ज्ञान मानव समाज को सदैव आपस में जोड़ता है, कभी बांटता नहीं है l*
    # वैदिक सत्सनातन ज्ञान ही सत्य का मंडन और असत्य का खंडन करने वाला है, वह मनुष्य को अन्धकार से उजाले और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है l*
    # वैदिक सत्सनातन ज्ञान सब जीवों का जीवन दाता है, किसी प्राणी का जीवन हरता नहीं है l*
    # वैदिक सत्सनातन ज्ञान मानव समाज निर्माण की सशक्त जीवन पद्दति है, वैश्विक सत्सनातन धर्म है l*

    सत्सनातन धर्म की मुख्य विशेषताएं -
    # धरती की खुदाई करो या समुद्र में डुबकी लगाओ - मंदिर ही निकलता है, सत्सनातन धर्म विरोधी की चार पीढियां पीछे निहारो तो सनातनी दिखता है l यहाँ संसारभर में सब जगह सत्सनातन ही सनातन है !*
    # गर्व की बात है कि वैदिक ज्ञान बल पर कभी हमारे सत्सनातन धर्म का संपूर्ण धरती पर एकछत्र राज विद्यमान था, वह सर्वव्याप्त था l*
    # समस्त अभिभावक, गुरुजन बच्चों को संस्कार देते आये हैं, इससे पीढ़ी दर पीढ़ी सत्सनातन धर्म की रक्षा होती है, धर्म हमारी रक्षा करता है l*
    # विश्वभर में वैदिक सत्सनातन धर्म ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है, वह मानव को श्रेष्ठ मानव बनने की सीख देता है l*
    # मात्र विज्ञान सम्मत और अर्थ युक्त वैदिक मन्त्र ही मानव जीवन का प्रकाश है, शेष सब अंधकार है l*

    सत्सनातन धार्मिक कार्य -
    # देश सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा हेतु संस्कार, सद्भावना, त्याग, प्रेम और समर्पण भाव सदैव अपेक्षित रहते हैं l*
    # कोई हजार करे तीर्थ, लाख करे स्नान, जिसका हृदय साफ नहीं, उसे कहीं नहीं मिलते हैं भगवान !*
    # आइये ! हम सब पिछड़े/अभावग्रस्त लोगों की सहायता करें, उनकी आवश्यकतायें पूरी करें, उन्हें सहयोग दें, विश्वास कीजिये वही 95% कट्टर सनातनी लोग हमारा प्यार और बराबर का सम्मान पाना चाहते हैं l*
    # सैनिक, जन रक्षक युद्कों से देश और समाज की रक्षा करते हैं तो अभिभावक व गुरुजन सत्सनातन धर्म - संस्कृति की शास्त्रों से भी रक्षा कर सकते हैं l*
    # हमने दशकों से अपने “शास्त्र - संस्कार विद्या” – “दंड – युद्ध विद्या” त्याग दी है, परिणाम स्वरूप बहुत से सत्सनातनी परिवार और समाज उपद्रवी, उदंडी और उत्पाति बन गये हैं l यही सत्सनातन धर्म एवमं सांस्कृतिक पतन का मुख्य कारण है, हम सबकी सबसे बड़ी भूल है, सुधार करना अपेक्षित है l*
    # “शास्त्र - संस्कार विद्या” ब्राह्मण की शक्ति और “दंड – युद्ध विद्या” क्षत्रिय का बल है l*
    # “शास्त्र - संस्कार विद्या” – “दंड – युद्ध विद्या” विश्व शांति रक्षण, कल्याणकारी संसाधन हैं, न कि उपद्रव या उत्पात मचाने के l*
    # जिस प्रकार घर पर कोई बच्चा उपद्रव, उत्पात मचाता है तो अभिभावक द्वारा उसे पहले प्यार से समझाया जाता है, न माने तो दंड स्वरूप उसे आँख दिखाने या डांट लगाने पड़ती है फिर भी न माने तो मार पड़ती है, इसी प्रकार समाज में “शास्त्र - संस्कार विद्या” बल से शांति बनाये रखना अति आवश्यक है l बार - बार शांति प्रयास निष्फल रहने पर राजकीय मान्यता प्राप्त विधि - विधान के अंतर्गत “दंड – युद्ध विद्या” बल का भी उपयोग किया जा सकता है l*
    # जीवन का अर्थ क्या है, जीवन का संबंध क्या है, आपसी संबंध क्यों हैं, आपसी संबंध कैसे हैं, आपसी संबंध किसलिए हैं, आपसी संबंध निभाये कैसे जाते हैं ? उत्तर पाने के लिए सत्सनातन धर्म का साहित्य, संगीत और कला (रामायण, गीता और महाभारत आदि ग्रन्थों को) पढ़ना - पढ़ाना, समझना – समझाना, स्वयं सीखना – सिखाना एवंम अच्छी बातों को अपने व्यवहार में लाना अति आवश्यक है l*
    # हमें सत्सनातन धर्म विरोधी गुट का त्याग करने वाले महानुभावों का सदैव हार्दिक अभिनंदन करना चाहिए, हमारे लिए सत्सनातन धर्म से बढ़कर अन्य कुछ भी नहीं है ।*
    # वे सभी महानुभाव अपने हैं जो हर समय देश, सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा हेतु अपनों के संग सीना ताने खड़े रहते हैं l*
    # अभिभावकों एवं गुरुजनों के द्वारा बच्चों को “शास्त्र - संस्कार विद्या” और “दंड – युद्ध विद्या” बल में पारंगत करना चाहिए ताकि वे सभ्य, संस्कारी बन सकें, अपने समाज और राष्ट्र का भली प्रकार नेतृत्व एवं रक्षण कर सकें l*

    सत्सनातन धर्म विरोधी कार्य -
    # जिन्होंने हमारे करोड़ों वुजुर्गों के सर काटे और लाखों घर, मंदिर लुटे, तोड़े थे, हम उनकी कुरान, बाइबिल के आगे सदियों से अपना मस्तक फोड़ रहे हैं, क्यों ?*
    # अगर हम मंदिर में भक्तिभाव से नहीं, पर्यटक बनकर जाते हैं तो वह हमारे लिए आस्था का केंद्र, पूजा स्थल नहीं रहेगा, पर्यटक स्थल होगा ।*
    # वैदिक ज्ञान से जनित सत्सनातन धर्म ही विश्व को सिखाता है कि मनुष्य बनो l कुरान और बाइबल ज्ञान के संवाहक तो सदियों से जन, समाज, राष्ट्र जिहाद और धर्मांतरण कार्य करने में व्यस्त हैं l*
    # देश, सत्सनातन धर्म - संस्कृति की रक्षा कुरान, बाइबल के ज्ञान से नहीं, मात्र वैदिक ज्ञान से हो सकती है l*

    सावधान –
    # अगर हम जीवन चुनौतियों का सामना करने में “शास्त्र - संस्कार विद्या” - “दंड – युद्ध विद्याओं” में पारंगत नहीं हुए तो पिछले एक हजार वर्षों की भांति भविष्य में भी निरंतर विधर्मियों द्वारा बांस की भांति छिले जा सकते हैं l*
    # अगर अभिभावक अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा नहीं देंगे तो कोई अन्य दुष्ट उन्हें अधर्म की राह दिखा देगा l*
    # पाश्चात्य सभ्यता नग्नता, अश्लीलता की परम्परा कभी भारतीय सांस्कृतिक सुन्दरता नहीं बन सकती और अंग्रेजी सभ्यता कभी भारतीय परम्परागत गुरुकुल शिक्षा नहीं हो सकती l*
    # अभिभावक, गुरु जन स्वयं वेद पठन - पाठन अवश्य करें, वे पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से प्रभावित न हों, उससे प्रभावित होने से बच्चों को वैदिक संस्कार नहीं मिलेंगे, इससे विधर्मियों को किसी भी प्रकार का जिहाद, धर्मांतरण करने का अवसर मिल सकता है l सत्सनातन धर्म का पतन होने के साथ - साथ वह एक दिन समाप्त हो भी हो सकता है, इसके उत्तरदायी हम होंगे, आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी क्षमा नहीं करेंगीं l*



















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    2. भक्ति, श्रद्धा, प्रेम का पर्व श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

    भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका  जन्म द्वापर युग में हुआ था। द्वापर युग, हिंदू धर्म के चार युगों में से दूसरा युग है। यह युग सत्ययुग के बाद और कलयुग से पहले आता है। द्वापर युग को धर्म, सत्य और सदाचार का युग माना जाता है। द्वापर युग में ही महाभारत का युद्ध हुआ था, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया था। 
    भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस की कारागार में हुआ था। कंस जो देवकी का भाई और मथुरा का राजा था, को भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी की आठवीं संतान उसका वध करेगी। सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया था l कालचक्र घुमने के साथ - साथ जब भी उनके यहाँ कोई बच्चा पैदा होता तब कंस स्वयं आकर उसे मार देता था l इस प्रकार उसने एक - एक करके उनके सात सभी बच्चों को जन्म लेने के पश्चात तुरंत मार डाला था।
    भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा की कारागार में देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था l वे भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। उस समय भयंकर वर्षा और गगन में मेघों की भारी गरजना हो रही थी। श्रीकृष्ण के जन्म के समय, कारागार के सभी पहरेदार सो गए थे और भगवान विष्णु की अपार कृपा से, वासुदेव कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के पास पहुँचाने में सफल रहे l
    कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्रि के 12 बजे हुआ था l कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव, भारत में बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में जाते हैं, भजन गाते हैं, और भगवान कृष्ण की लीलाओं का भी पाठ करते हैं।
    जन्माष्टमी का व्रत भगवान कृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में रखा जाता है। यह व्रत भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने की एक युक्ति है। इस दिन व्रत रखने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और माना जाता है कि इससे सुख, शांति और समृद्धि मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
    यह पर्व समाज को सत्य, धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है l श्रीकृष्ण के आदर्श जीवन से हमें अन्याय के विरुद्ध संघर्ष, सयम और अध्यात्मिक जागरूकता का संदेश प्राप्त होता है l”
    जन्माष्टमी का व्रत पूरे दिन रखा जाता है और रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोला जाता है । इस दिन लोग उपवास रखते हैं, भजन - कीर्तन और भगवान कृष्ण की पूजा - अर्चना करते हैं l जन्माष्टमी व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना, जन्माष्टमी के व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना, व्रत को रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना, जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के मंदिर जाना, सुबह और रात में विधि - विधान से भगवान कृष्ण की पूजा करना, भगवान को अर्पित किये गए प्रसाद को ही ग्रहण करके व्रत खोलना, व्रत के दौरान दिन में नहीं सोना, किसी को अपशब्द नहीं कहना अदि नियमों का पालन किया जाता है l
    सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करना । घर के मंदिर को साफ करना और लड्डू गोपाल को स्नान कराना। लड्डू गोपाल को सुंदर वस्त्र, मुकुट, माला पहनाना और चंदन का तिलक लगाना । लड्डू गोपाल को झूले में बैठाना और उन्हें झूला झुलाना । भगवान को फल, मिठाई, पंचामृत, पंजीरी आदि का भोग लगाना । रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद विधि - विधान से पूजा करना । भगवान की आरती करना और प्रसाद चढ़ाना । भगवान को अर्पित किए गए प्रसाद को ग्रहण करके व्रत खोलना । पूरे दिन राधा-कृष्ण के नाम का जप करना । भगवान कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करना । किसी से झगड़ा नहीं करना और क्रोध से बचना । इन नियमों का पालन करके जन्माष्टमी का व्रत रखने से भक्तों को भगवान कृष्ण की अपार कृपा प्राप्त हो सकती है ।

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    1. कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था एवं ब्राह्मण समाज

    मातृवन्दना जुन 2025                                                

    धर्म और अधर्म - समय सूचक यंत्र की भांति समय वृत्त निरंतर घूम रहा है । परिवर्तन प्रकृति का नियम है । दिन के पश्चात रात और रात के पश्चात दिन का आगमन अवश्य होता है । विश्व में कभी धर्म का राज स्थापित होता है तो कभी अधर्म का । सृष्टि में सत्सनातन धर्म का होना नितांत आवश्यक है । असत्य, अधर्म, अन्याय और दुराचार को अधर्म पसंद करता है लेकिन धर्म नहीं । युद्ध चाहे राम - रावण का हो या महाभारत का, धर्म और अधर्म के महा युद्ध में जीत सदैव धर्म की होती है, अधर्म की नहीं ।
    मानव जाति का पतन और उत्थान - प्राणी जगत में जब एक ओर मनुष्य जाति के मानसिक विकार अपना उग्र रूप धारण करते हैं तो दूसरी ओर उसका बौध्दिक पतन भी अवश्य होता है । काम - कामुकता वश नर के द्वारा स्थान - स्थान पर नारी जाति का अपहरण, बलात्कार, धर्मांतरण किया जाता है, उसका अपमान, शारीरिक - मानसिक शोषण होता है । इससे अब नर जाति भी अछूती नहीं रही है । मदिरा पान से नर - नारी अपना - पराया संबंध भूल जाते हैं । क्रोध में वह झगड़े, मारपीट, करते हैं । वह आतंकी, उग्रवादी, जिहादी बन जाते हैं । वह हिंसा, तोड़फोड़, अग्निकांड करते हैं । लोभ में वह चोरी, ठगी, तस्करी, धन गबन, घोटाले ही नहीं करते हैं, वह छल - कपट, षड्यंत्र भी करते हैं । मोह में वह अपना और अपनों का ही हित चाहते हैं, उससे संबंधित चेष्टायें करते हैं । अहंकार में वह दूसरों को तुच्छ और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं ।
    संगत से भावना और भावना से विचार उत्पन्न होते हैं । विचारानुसार कर्म, कर्मानुसार निकलने वाला अच्छा और बुरा परिणाम उसका फल - मनुष्य की मानसिक प्रवृत्ति पर निर्भर करता है । वह जैसा चाहता है, बन जाता है । पौष्टिक संतुलित भोजन से शरीर, श्रद्धा, प्रेम - भक्ति भाव से मन, स्वाध्यय से बुद्धि और भजन, समर्पण से उसकी आत्मा को बल मिलता है । इससे मनुष्य के पराक्रम, यश, मान और प्रतिष्ठा का वर्धन होता है । मनुष्य की आयु बढ़ती है । उसके लिए लोक - परलोक का मार्ग प्रशस्त होता है ।
    समर्थ सामाजिक वर्ण व्यवस्था - प्राचीन भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, क्योंकि यह अपने समृद्ध संसाधनों, सत्सनातन धर्म, वैभवशाली संस्कृति और सम्पन्न अर्थ - व्यवस्था के कारण विश्व की सबसे धनी सभ्यताओं में से एक था । इसके पीछे सत्सनातन धर्म का रक्षण – पोषण, संवर्धन करने वाली आर्यवर्त मनीषियों की सर्व कल्याणकारी सोच थी जो कर्म आधारित व्यापक और सशक्त वैश्विक सत्सनातनी सामाजिक वर्ण - व्यवस्था के नाम से जानी गई है । इसके अनुसार मानव शरीर के चार अवयव प्रमुख माने गए हैं । मुख से ब्राह्मण, पेट से वैश्य, बाजुओं से क्षत्रिय और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई, मानी गई है । यह एक दूसरे के पूरक हैं । जिस प्रकार शरीर के चार अवयवों में से किसी एक अवयव के बिना अन्य अवयव का कभी पोषण, रक्षण नहीं हो सकता, उसी प्रकार समाज की वर्ण - व्यवस्था में जो उसके चार अभिन्न वर्ण विभाग हैं - एक दूसरे के पूरक, पोषक और रक्षक भी हैं ।
    सर्व व्यापक सामाजिक वर्ण - व्यवस्था आर्यवर्त काल से सुचारू रूप से चली आ रही है जिसके अंतर्गत वर्ण - व्यवस्था के चार वर्ण विभाग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण अपने - अपने गुण, संस्कार और स्वभाव के अनुसार सबके हित के लिए कर्म करते हुए सुख - शांति का माध्यम बनते थे । उससे राष्ट्र वैभव सम्पन्न और समृद्धशाली बना था । समय के थपेड़ों ने इस कर्म प्रधान वर्ण - व्यवस्था को जातियों में विभक्त कर दिया । उसने उसमें छुआ - छूत वाली गहरी खाई खोद दी है । उसकी मनचाही कहानी गढ़कर, उसे ठेस पहुंचाई है जो किसी नीच सोच का ही परिणाम है । समर्थ सामाजिक वर्ण - व्यवस्था कर्म आधारित, कर्म प्रधान थी, न कि जन्म आधारित या जाति आधारित । योग्य ब्राह्मण/ आचार्य समाज में प्रतिभाओं की खोज एवं योग्य विद्यार्थियों का चयन करते थे l वे प्रतिभाओं को अपना संरक्षण और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देते थे l उन प्रतिभाओं के जीवन में विद्यमान सर्व कलाओं का विकास करने में सहयोग करते थे l प्रतिभागियों के लिए वैदिक ज्ञान – विज्ञान की प्रतियोगिताओं का आयोजन करते थे l जीवन में आने वाले संकट, चुनौतियाँ, विपदाओं से निपटने हेतु विद्यार्थियों को आत्म-रक्षा हेतु तैयार करते थे l उन्हें वैदिक शिक्षण – प्रशिक्षण देकर समर्थवान बनाते थे l इस प्रकार समाज के सर्वंगीन उत्थान में उनकी अग्रणीय भूमिका रहती थी l





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    आर्य समाज – सशक्त समाज

    दिनांक 19.11.2024


    # हम सब आर्य पुत्र/पुत्रियाँ हैं, हमें अपने देश भारत पर गर्व है l*
    # हम आर्यों का राष्ट्र – “आर्यावर्त” ही महान “अखंड भारत” है l*
    # हम आर्यों का राष्ट्र – “आर्यावर्त” ही महान “अखंड भारत” है l*
    # हम आर्यों का राष्ट्र – गांवों का देश, हमारी कर्म भूमि है l*
    # हम आर्यों के गाँव की संपदा – जल, जंगल और जमीन हम सब आर्यों का हित करने वाली है l*
    # ग्राम्य संपदा का लंबे समय तक उपयोग करने के लिए, उसका संरक्षण, पोषण, संवर्धन करना हम आर्यों का दायित्व है l*
    # माता – पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, पति, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि की सेवा, रक्षा करना हम आर्यों दायित्व है l*
    # समग्र प्रकृति की सृजनहार स्वयं माँ जगदंबा हैं l माँ जगदंबा की कृपा से समग्र प्रकृति का दिया हुआ हम आर्यों के पास सब कुछ है l*
    # प्राकृतिक संसाधनों का सुनियोजित ढंग से दोहन करके अभाव ग्रस्तों तक पहुंचाना और उनकी तन, मन, धन से सेवा करना हम सब आर्यों का कर्तव्य है l*
    # हम सब आर्य हैं जो ज्ञान में ब्राह्मण भाव, वीरता में क्षत्रिय भाव, व्यापार में वैश्य भाव और सेवा में शुद्र भाव रखते हैं, हाँ, हाँ हम ही आर्य हैं l*
    # हम आर्यों ने कर्माधारित वर्ण व्यवस्था को जन्माधारित जातियां समझने की भूल कर दी, वरना विश्व हमें आर्य संबोधन से पहचानता था l*
    # देश में जब तक पाश्चात्य शिक्षा जारी रहेगी तब तक युवा आर्य नौकर ही बनेंगे, लेकिन जब उन्हें परंपरागत वैदिक शिक्षा मिलेगी वे नौकर नहीं, फिर से स्वामी बन जायेंगे l*

    # हम सब आर्य हैं, इसलिए हम सब एक हैं l*
    # अगर 30 करोड़ का पाकिस्तान इस्लामिक देश बन सकता है तो 100 करोड़ आर्यों का भारत भी दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति से पुनः आर्यवर्त हो सकता है l*
    # अगर 30 करोड़ का पाकिस्तान इस्लामिक देश बन सकता है तो 100 करोड़ आर्यों का भारत भी दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति से पुनः आर्यवर्त हो सकता है l*
    # आर्य बिना कारण किसी का अहित नहीं करता है, कोई उसे छेड़ता है तो वह उसे कभी छोड़ता भी नहीं है l*
    # दुश्मन, कभी आर्यों का हित नहीं चाहता है, वह उनके विरुद्ध हर समय कोई न कोई षड्यंत्र रचता रहता है l*
    # आर्य की किसी के प्रति दुर्भावना नहीं हो सकती और दुश्मन की आर्यों के प्रति कभी सद्भावना नहीं होती है l*
    # आर्य ही देश, धर्म – संस्कृति और सभ्यता के प्रति सजग और सतर्क रह सकते हैं l*
    # आर्य धर्मयोद्धा ही देश, धर्म – संस्कृति की आन, वान और शान हैं l*
    # आर्य भारत के वंशज थे, वंशज हैं और वंशज ही रहेंगे l*
    # भारत भूमि की रक्षा हेतु जीवन समर्पित करने वाला हर बलिदानी, क्रन्तिकारी आर्य है, हमें उस पर गर्व है l*
    # देश, धर्म – संस्कृति और सभ्यता की रक्षा हेतु खड़ा होने वाला हर व्यक्ति धर्म योद्धा आर्य है l*






























    चेतन कौशल “नूरपुरी”