दिनांक 29 जुलाई 2025
सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से की जाने वाली कोई भी चेष्टा अपराध मानी जा सकती है l
अपराधों की श्रेणियां – देखा जाये तो विश्व भर में अपराधों की अनेकों श्रेणियां हैं l कोई भी व्यक्ति, कोई भी व्यक्ति संगठन या कोई भी जन समूह बिना भय के, किसी न किसी रूप में, गुप्त और भ्रष्ट-तंत्र के अंतर्गत अमुक अपराध की श्रेणी में सक्रिय अवश्य रहता है l असंस्कारी होने के कारण – विश्वासघात करना, आत्मघात करना या आत्म हत्या करना “आत्मिक अपराध” है l परिवार में अपनों से आपसी मन मुटाव रखना, बात-चीत नहीं करना, लड़ाई - झगड़े, मारपीट करना और हिंसा करना “पारिवारिक अपराध” है l अवैध शरणार्थी होना, स्थान - स्थान पर हिंसा का तांडव करना, आतंक मचाना, जिहाद करना, महिलाओं का शोषण, अत्याचार अपमान, अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण करना “सामाजिक अपराध” है l भ्रष्टाचारी होना - चोरी, हेराफेरी, गबन करना, सरकारी कर न देना “आर्थिक अपराध” है l बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना, बाल - श्रम करवाना, शिक्षा का व्यपारीकरण करना “शैक्षणिक अपराध” है l दूसरों का हित से पहले अपना हित सोचना, कार्य करना “नैतिक अपराध” है l दूसरों की संस्कृति से प्रभावित होकर अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं का त्याग कर देना, संस्कृति भूल जाना, सांस्कृतिक अपमान करना, देखना, सहन करना, “सांस्कृतिक अपराध” है l अपने देवी – देवताओं की मूर्तियों, मंदिर भीति चित्रों, फूल-वनस्पति चित्र-कला की उपेक्षा करना, अपमान करना, सहन करना “कलात्मक अपराध” है l मूक दर्शक बनकर, राष्ट्र विरोधी कुचेष्टाएं - घुसपैठ, षड्यंत्र का समर्थन करना, साथ देना ”राजनैतिक अपराध” है और छल बल से दूसरों को छलना या बहुरूपिया बन कर लोगों को वेद ज्ञान के विपरीत मन, वचन और कर्म से भ्रमित करना “धार्मिक अपराध” है l
अपराधी – मात्र कोई अपराध करने वाला ही व्यक्ति अपराधी नहीं हो सकता - अपराधी का समर्थन करने वाला, अपराधी को शरण देने वाला, अपराधी को बचाने वाला और उसे पालने वाला व्यक्ति भी अपराधी ही होता है l
जब कोई छोटा- बड़ा अपराधी पकड़ा जाता है l उसे कारागार में डाला जाता है तो वह वेल पर तुरंत बाहर भी हो जाता है l इससे स्पष्ट है कि उसके सर पर किसी समर्थवान की कृपा का हाथ है l अगर वह बाहर न आए तब भी उसके समर्थकों के द्वारा बढ़ – चढ़कर उसकी महिमा मंडित की जाती है l वह उनका नेता बन जाता है l वह चुनाव के लिए अपना नामांकन भरता है, चुनाव लड़ता है l उसके समर्थक जनता को लालच देकर उसका प्रचार-प्रसार करते हैं l मूर्ख जनता उनके बहकावे में आकर उसके पक्ष में मतदान करती है l जनता की मुर्खता ही के कारण वह कारागार में रहकर भी चुनाव जीत जाता है l फिर वह वेल पर छूट जाता है l
अपराधी नेता – ऐसे अग्रज नेता प्रायः दूसरे देशों में बैठे अपने आकाओं की कठपुतली होते हैं l उन्हें विदेशों से अपार धन - बल मिलता है l इस कारण वे जिस देश में रहते हैं, जिस देश का खाते हैं, वे उसी का बुरा सोचते हैं, उसका बुरा करते हैं l वे कभी उस देशहित में नहीं होते हैं l सोचने वाली बात है - वे उस देश का संविधान ही नहीं मानते हैं या मानने का नाटक करते हैं l वे देश की सेना का कभी सम्मान नहीं करते हैं l उनसे उस देश का विकास सहन नहीं होता है l उन्हें देश हित की सरकार से हर काम का प्रमाण चाहिय l ऐसे अपराधी नेताओं के दूसरे देशों में बैठे हुए आकाओं के इशारों और उनके नेतृत्व से ही किसी देश में भय मुक्त घुसपैठिये आते हैं, अवैध शरणार्थी आते हैं, नागरिकता मिलती है और वे स्थान - स्थान पर हिंसा करते हैं l महिलाओं का अपमान करते हैं, उनका अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण भी होता है l ऐसी घटनाओं को प्रशासन द्वारा नकार दिया जाता है या वह मूक - दर्शक बना रहता है, कोई भी अधिकारी किसी पीड़ित/पीड़िता की पीड़ा नहीं सुनता है l
समाज विरोधी संगठन - विभिन्न विचार धाराओं के वेल पर छूटे हुए अन्य अपराधी नेता अपने-अपने संगठनों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं l समर्थकों का उन्हें समर्थन मिलता है l वे अपना उल्लू सीधा करने हेतु जनता को अपनी चिकनी - चुपड़ी बातों में उलझाते हैं l चुनाव में जीत होती है l उनकी सरकार बनती है l फिर उनके द्वारा अपराधियों को शरण दी जाती है, अपराधियों को दंड से बचाया जाता है l वे भय मुक्त रहते हैं l
समाज में - अपराधी नेताओं के नेतृत्व में ही सत्य, न्याय, नैतिकता, सदाचार, देश, सत्सनातन धर्म, संस्कृति के विरुद्ध मन, कर्म और वचन से निःसंकोच चेष्टाएँ होती हैं l समाज में अपराधों को बढ़ावा मिलता है, पल-प्रतिपल निर्दोषों को सताया जाता है l उन पर अनेकों अत्याचार होते हैं l गली - गली, दंगे होते हैं, हत्याएं होती हैं, समाज त्राहिमाम – त्राहिमाम करने लगता है l बहुसंख्यक अल्प संख्यक बनते जाते हैं l चहुँ ओर अराजकता, अशांति होती है l अपराधी इकट्ठे होकर, होटलों में पार्टियाँ करते हैं, अपनी जीत का आनंद मनाते हैं l किसी पीड़ित/पीड़िता को कभी कहीं न्याय नहीं मिलता है l
परिभाषा पुनर्विचार की आवश्यकता – संविधान की धाराओं में अपराध और अपराधियों की परिभाषा पर जब तक गहनता के साथ पुनर्विचार नहीं होगा, उनकी समीक्षा नहीं होगी, समाज के निर्दोष और अपराधी वर्ग को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया जायेगा, उनकी स्थाई पहचान नहीं होगी, उन अपराधियों पर अंकुश नहीं लगेगा, तब तक समाज में तूफान की गति समान बढ़ती हुई अपराधियों की जन - संख्या पर विराम लगना कठिन ही नहीं, असंभव भी होगा l
कठोर दंड व्यवस्था - समाज में जो अपराधी हैं, उन्हें उनके अपराध अनुपात के अनुसार इतना अधिक प्रतिशत कठोर दंड अवश्य मिलना चाहिए जितना संगीन उनका अपराध हो l समाज में अपराध या अपराध तंत्र का भय नहीं, कठोर दंड व्यवस्था का भय होना चाहिए l कठोर दंड भय व्यवस्था से ही स्वछंद हो रहे अपराधियों के अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकता है l निर्दोषों को बचाया जा सकता है l समाज में सुख – शांति, समृद्धि आ सकती है और राम- राज्य का सपना भी साकार हो सकता है l
श्रेणी: आलेख
-
श्रेणी:आलेख
सशक्त न्याय व्यवस्था की आवश्यकता
-
श्रेणी:आलेख
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन और जन्माष्टमी पर्व
दिनांक 21 जुलाई 2025
भगवान श्रीकृष्ण लगभग 5000 वर्ष ईश्वी पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ था। द्वापर युग, हिंदू धर्म के चार युगों में से दूसरा युग है। यह युग सत्ययुग के बाद और कलयुग से पहले आता है। द्वापर युग को धर्म, सत्य और सदाचार का युग माना जाता है। द्वापर युग में ही महाभारत का युद्ध हुआ था, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया था।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस की कारागार में हुआ था। कंस जो देवकी का भाई और मथुरा का राजा था, को भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी की आठवीं संतान उसका वध करेगी। सुनकर कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया था l कालचक्र घुमने के साथ-साथ जब भी उनके यहाँ कोई बच्चा पैदा होता तब कंस स्वयं आकर उसे मार देता था l इस प्रकार उसने एक-एक करके उनके सात सभी बच्चों को जन्म लेने के पश्चात तुरंत मार डाला था।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को मथुरा की कारागार में देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था l वे भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। उस समय भयंकर वर्षा और गगन में मेघों की भारी गरजना हो रही थी। श्रीकृष्ण के जन्म के समय, कारागार के सभी पहरेदार सो गए थे और भगवान विष्णु की अपार कृपा से, वासुदेव कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के पास पहुँचाने में सफल रहे l
भागवत पुराण के अनुसार – चंद्रदेव की इच्छा थी कि भगवान विष्णु उनके कुल में जन्म लें l श्रीकृष्ण, जो भगवान विष्णु के अवतार थे, चंद्रदेव को दिए गए वचन को पूरा करने के लिए ही भगवान कृष्ण ने आधी रात को जन्म लिया था क्योंकि वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे l यह माना जाता है कि उन्होंने कंस का वध करने के लिए जन्म लिया था l श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में अवतार लिया था ताकि लोगों को धर्म और सदाचार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकें। कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्रि के 12 बजे हुआ था । कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से भारत, नेपाल और अमेरिका सहित विश्वभर में मनाया जाता है।
जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है l धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था उस दिन को उत्सव, पूजा, और भक्ति के साथ मनाया जाता है l कृष्ण जन्माष्टमी, भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव, भारत में बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में जाते हैं, भजन गाते हैं, और भगवान कृष्ण की लीलाओं का भी पाठ करते हैं।
जन्माष्टमी का व्रत भगवान कृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में रखा जाता है। यह व्रत भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने की एक युक्ति है। इस दिन व्रत रखने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और माना जाता है कि इससे सुख, शांति और समृद्धि मिलती है।
जन्माष्टमी का व्रत रखने के और भी कई कारण हैं – जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव है, और इस दिन व्रत रखने से भगवान कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति व्यक्त की जाती है। जन्माष्टमी का व्रत रखने से पिछले जन्मों के पापों का नाश होता है और इस जन्म में भी शुभ फल प्राप्त होते हैं। जन्माष्टमी का व्रत रखने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में खुशहाली आती है। जन्माष्टमी का व्रत आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं, भजन-कीर्तन और भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं l
जन्माष्टमी व्रत के दिन निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है – ब्रह्मचर्य का पालन करना । जन्माष्टमी के व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना । व्रत को रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद या अगले दिन सूर्योदय के बाद खोलना । जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के मंदिर जाना । सुबह और रात में विधि-विधान से भगवान कृष्ण की पूजा करना । व्रत के दौरान दिन में नहीं सोना । किसी को अपशब्द नहीं कहना ।
जन्माष्टमी व्रत के दौरान, भक्त जन भगवान कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पित होकर भक्ति के साथ व्रत का पालन करते हैं – सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करना । घर के मंदिर को साफ करना और लड्डू गोपाल को स्नान कराना । लड्डू गोपाल को सुंदर वस्त्र, मुकुट, माला पहनाना और चंदन का तिलक लगाना । लड्डू गोपाल को झूले में बैठाना और उन्हें झूला झुलाना । भगवान को फल, मिठाई, पंचामृत, पंजीरी आदि का भोग लगाना । रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद विधि-विधान से पूजा करना । भगवान की आरती करना और प्रसाद चढ़ाना । भगवान को अर्पित किए गए प्रसाद को ग्रहण करके व्रत खोलना ।
कुछ और विशेष बातें – जन्माष्टमी के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना, काले रंग के वस्त्रों का उपयोग नहीं करना । महिलाओं का अपने बाल बांधकर रखना । गोमाता की सेवा करना । व्रत के दौरान सात्विक भोजन करना । पूरे दिन राधा-कृष्ण के नाम का जप करना । भगवान कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करना । किसी से झगड़ा नहीं करना और क्रोध से बचना । इन नियमों का पालन करके जन्माष्टमी का व्रत रखने से भक्तों को भगवान कृष्ण की अपार कृपा प्राप्त हो सकती है ।
-
श्रेणी:आलेख
स्थानीय ब्राह्मण सभा पुनर्गठन की आवश्यकता
दिनांक 22 मार्च 2025
धर्म और अधर्म - समय सूचक यंत्र की भांति समय वृत्त निरंतर घूम रहा है । परिवर्तन प्रकृति का नियम है । दिन के पश्चात रात और रात के पश्चात दिन का आगमन अवश्य होता है । विश्व में कभी धर्म का राज स्थापित होता है तो कभी अधर्म का । सृष्टि में सत्सनातन धर्म का होना नितांत आवश्यक है । असत्य, अधर्म, अन्याय और दुराचार को अधर्म पसंद करता है लेकिन धर्म नहीं । युद्ध चाहे राम - रावण का हो या महाभारत का, धर्म और अधर्म के महा युद्ध में जीत सदैव धर्म की होती है, अधर्म की नहीं ।
मानव जाति का पतन और उत्थान - प्राणी जगत में जब एक ओर मनुष्य जाति के मानसिक विकार अपना उग्र रूप धारण करते हैं तो दूसरी ओर उसका बौध्दिक पतन भी अवश्य होता है । काम - कामुकता वश नर के द्वारा स्थान - स्थान पर नारी जाति का अपहरण, बलात्कार, धर्मांतरण किया जाता है, उसका अपमान, शारीरिक - मानसिक शोषण होता है । इससे अब नर जाति भी अछूती नहीं रही है । मदिरा पान से नर - नारी अपना - पराया संबंध भूल जाते हैं । क्रोध में वह झगड़े, मारपीट, करते हैं । वह आतंकी, उग्रवादी, जिहादी बन जाते हैं । वह हिंसा, तोड़फोड़, अग्निकांड करते हैं । लोभ में वह चोरी, ठगी, तस्करी, धन गबन, घोटाले ही नहीं करते हैं, वह छल - कपट, षड्यंत्र भी करते हैं । मोह में वह अपना और अपनों का ही हित चाहते हैं, उससे संबंधित चेष्टायें करते हैं । अहंकार में वह दूसरों को तुच्छ और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं ।
संगत से भावना और भावना से विचार उत्पन्न होते हैं । विचारानुसार कर्म, कर्मानुसार निकलने वाला अच्छा और बुरा परिणाम उसका फल - मनुष्य की मानसिक प्रवृत्ति पर निर्भर करता है । वह जैसा चाहता है, बन जाता है । पौष्टिक संतुलित भोजन से शरीर, श्रद्धा, प्रेम - भक्ति भाव से मन, स्वाध्यय से बुद्धि और भजन, समर्पण से उसकी आत्मा को बल मिलता है । इससे मनुष्य के पराक्रम, यश, मान और प्रतिष्ठा का वर्धन होता है । मनुष्य की आयु बढ़ती है । उसके लिए लोक - परलोक का मार्ग प्रशस्त होता है ।
समर्थ सामाजिक वर्ण व्यवस्था - प्राचीन भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, क्योंकि यह अपने समृद्ध संसाधनों, सत्सनातन धर्म, वैभवशाली संस्कृति और सम्पन्न अर्थ - व्यवस्था के कारण विश्व की सबसे धनी सभ्यताओं में से एक था । इसके पीछे सत्सनातन धर्म का रक्षण – पोषण, संवर्धन करने वाली आर्यवर्त मनीषियों की सर्व कल्याणकारी सोच थी जो कर्म आधारित व्यापक और सशक्त वैश्विक सत्सनातनी सामाजिक वर्ण - व्यवस्था के नाम से जानी गई है । इसके अनुसार मानव शरीर के चार अवयव प्रमुख माने गए हैं । मुख से ब्राह्मण, पेट से वैश्य, बाजुओं से क्षत्रिय और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई, मानी गई है । यह एक दूसरे के पूरक हैं । जिस प्रकार शरीर के चार अवयवों में से किसी एक अवयव के बिना अन्य अवयव का कभी पोषण, रक्षण नहीं हो सकता, उसी प्रकार समाज की वर्ण - व्यवस्था में जो उसके चार अभिन्न वर्ण विभाग हैं - एक दूसरे के पूरक, पोषक और रक्षक भी हैं ।
सर्व व्यापक सामाजिक वर्ण - व्यवस्था आर्यवर्त काल से सुचारू रूप से चली आ रही है जिसके अंतर्गत वर्ण - व्यवस्था के चार वर्ण विभाग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण अपने - अपने गुण, संस्कार और स्वभाव के अनुसार सबके हित के लिए कर्म करते हुए सुख - शांति का माध्यम बनते थे । उससे राष्ट्र वैभव सम्पन्न और समृद्धशाली बना था । समय के थपेड़ों ने इस कर्म प्रधान वर्ण - व्यवस्था को जातियों में विभक्त कर दिया । उसने उसमें छुआ - छूत वाली गहरी खाई खोद दी है । उसकी मनचाही कहानी गढ़कर, उसे ठेस पहुंचाई है जो किसी नीच सोच का ही परिणाम है । समर्थ सामाजिक वर्ण - व्यवस्था कर्म आधारित, कर्म प्रधान थी, न कि जन्म आधारित या जाति आधारित ।
ब्राह्मण आचार्य - वह व्यक्ति ब्राह्मण / आचार्य कहलाता था जो वैदिक ज्ञान का सृजन, पोषण, संवर्धन करता था । जो ब्रह्म विद्या का पंडित होता था । जो ईश्वरीय तत्व के ज्ञान का सृजन करता था । जो असत्य, अधर्म, अन्याय और अनाचार के विरूद्ध कलम उठाता था । जो लोगों को जागरूक करता था, उनका मार्ग दर्शन करता था ।
सत्सनातन धर्म का संवाहक होने के नाते ब्राह्मण / आचार्य समाज में वैदिक ज्ञान - विज्ञान वृद्धि हेतु हर गाँव के विशाल मंदिर में एक गुरुकुल, एक धार्मिक पुस्तकालय, एक गौशाला और एक आयुर्वेदिक चिकित्सालय की स्थापना करते थे । वह सत्सनातन धर्म - संस्कृति, समाज, राष्ट्र की सेवा और रक्षा के प्रति विद्यार्थियों को गुण, संस्कार और स्वभाव अनुसार शिक्षण – प्रशिक्षण देते थे । वह समाज के सभी बच्चों की बिना भेदभाव निशुल्क शिक्षा, चिकित्सा प्रदान करते थे । वह ब्रह्मभाव में स्थिर रहकर शस्त्र - शास्त्र संबंधी सभी विद्याओं से युक्त सर्व कल्याणकारी कार्य करने हेतु विद्यार्थियों को विद्वान्, – ज्ञानवीर, शूरवीर, धर्मवीर और कर्मवीर बनाते थे ।
-
श्रेणी:आलेख
आर्य समाज – सशक्त समाज
दिनांक 19.11.2024
# हम सब आर्य पुत्र/पुत्रियाँ हैं, हमें अपने देश भारत पर गर्व है l*
# हम आर्यों का राष्ट्र – “आर्यावर्त” ही महान “अखंड भारत” है l*
# हम आर्यों का राष्ट्र – “आर्यावर्त” ही महान “अखंड भारत” है l*
# हम आर्यों का राष्ट्र – गांवों का देश, हमारी कर्म भूमि है l*
# हम आर्यों के गाँव की संपदा – जल, जंगल और जमीन हम सब आर्यों का हित करने वाली है l*
# ग्राम्य संपदा का लंबे समय तक उपयोग करने के लिए, उसका संरक्षण, पोषण, संवर्धन करना हम आर्यों का दायित्व है l*
# माता – पिता, गुरु, गंगा, गौ, गीता, पति, वृद्ध, ब्राह्मण, संत और अतिथि की सेवा, रक्षा करना हम आर्यों दायित्व है l*
# समग्र प्रकृति की सृजनहार स्वयं माँ जगदंबा हैं l माँ जगदंबा की कृपा से समग्र प्रकृति का दिया हुआ हम आर्यों के पास सब कुछ है l*
# प्राकृतिक संसाधनों का सुनियोजित ढंग से दोहन करके अभाव ग्रस्तों तक पहुंचाना और उनकी तन, मन, धन से सेवा करना हम सब आर्यों का कर्तव्य है l*
# हम सब आर्य हैं जो ज्ञान में ब्राह्मण भाव, वीरता में क्षत्रिय भाव, व्यापार में वैश्य भाव और सेवा में शुद्र भाव रखते हैं, हाँ, हाँ हम ही आर्य हैं l*
# हम आर्यों ने कर्माधारित वर्ण व्यवस्था को जन्माधारित जातियां समझने की भूल कर दी, वरना विश्व हमें आर्य संबोधन से पहचानता था l*
# देश में जब तक पाश्चात्य शिक्षा जारी रहेगी तब तक युवा आर्य नौकर ही बनेंगे, लेकिन जब उन्हें परंपरागत वैदिक शिक्षा मिलेगी वे नौकर नहीं, फिर से स्वामी बन जायेंगे l*
# हम सब आर्य हैं, इसलिए हम सब एक हैं l*
# अगर 30 करोड़ का पाकिस्तान इस्लामिक देश बन सकता है तो 100 करोड़ आर्यों का भारत भी दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति से पुनः आर्यवर्त हो सकता है l*
# अगर 30 करोड़ का पाकिस्तान इस्लामिक देश बन सकता है तो 100 करोड़ आर्यों का भारत भी दृढ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति से पुनः आर्यवर्त हो सकता है l*
# आर्य बिना कारण किसी का अहित नहीं करता है, कोई उसे छेड़ता है तो वह उसे कभी छोड़ता भी नहीं है l*
# दुश्मन, कभी आर्यों का हित नहीं चाहता है, वह उनके विरुद्ध हर समय कोई न कोई षड्यंत्र रचता रहता है l*
# आर्य की किसी के प्रति दुर्भावना नहीं हो सकती और दुश्मन की आर्यों के प्रति कभी सद्भावना नहीं होती है l*
# आर्य ही देश, धर्म – संस्कृति और सभ्यता के प्रति सजग और सतर्क रह सकते हैं l*
# आर्य धर्मयोद्धा ही देश, धर्म – संस्कृति की आन, वान और शान हैं l*
# आर्य भारत के वंशज थे, वंशज हैं और वंशज ही रहेंगे l*
# भारत भूमि की रक्षा हेतु जीवन समर्पित करने वाला हर बलिदानी, क्रन्तिकारी आर्य है, हमें उस पर गर्व है l*
# देश, धर्म – संस्कृति और सभ्यता की रक्षा हेतु खड़ा होने वाला हर व्यक्ति धर्म योद्धा आर्य है l*
चेतन कौशल “नूरपुरी”
-
श्रेणी:आलेख
अति वृष्टिपात और बाढ़-संकट
मातृवन्दना अगस्त 2023
जल, वायु, अग्नि, धरती और आकाश सृष्टि के पंच महाभूत, सर्व विदित हैं L धरती पर वायु अग्नि और जल तत्वों की प्रतिशत मात्रा जब कभी कम या अधिक हो जाती है तब उस पर असंतुलन पैदा हो जाता है L वायु का दबाव कम या अधिक होने पर आंधी या तूफ़ान आने और पेड़, जंगल के अभाव में वायुमंडल में ताप अधिक बढ़ने से जंगल में आग लगने का भय बना रहता है L इसी प्रकार धरती पर जब कभी भारी वृष्टिपात होता है तो वर्षाजल बाढ़ के रूप में परिवर्तित हो जाता है और उससे धरती का कटाव होता है, जान-माल की हानि होती है L
बाढ़ आने का कारण -
अवैध खनन – कभी नदियों और नालों में विद्यमान बड़े-बड़े पत्थर जल बहाव की गति को कम किया करते थे L लोगों के मकान मिट्टी, लकड़ी के बने होते थे L वे उसी में संतुष्ट रहते थे L परन्तु जबसे पक्के भवन, पुल और मकानों के निर्माण हेतु नदियों और नालों में पत्थर, रेत और बजरी का अवैध खनन किया जाने लगा है तब से उनमें वर्षा काल में जल बहाव की गति भी तीव्र होने लगी है और उसे बाढ़ के नाम से जाना जाता है L
अवैध पेड़-कटान से वन्य क्षेत्रफल की कमी – अवैध पेड़ कटान होने से धरती का निरंतर चीर-हरण किया जा रहा है L धरती हरित पेड़, पौधे, झाड़ियों और घास के अभाव में बे-सहारा/नग्न होती जा रही है जिससे कम बर्षा होने पर भी वह वर्षाजल का वेग सहन नहीं कर पाती है, निरंकुश बाढ़ बन जाती है और वह विनाश लीला करने लगती है L
नदियों के किनारे पर बढ़ती जन संख्या – नदी, नालों के किनारों पर अन्यन्त्रित जन संख्या बढ़ने से दिन-प्रतिदिन हरे पेड़, पौधे, झाड़ियों और घास का आभाव हो रहा है L जिससे जल बहाव मार्ग परिवर्तित होता रहता है L जल बहाव को तो उसका मार्ग मिलना चाहिए, उसे नहीं मिलता है L उसके मार्ग में अवैध निर्माण होते हैं L अगर मनुष्य जाति नदी, नालों में अपने लिए आवासीय घर, पार्क और अन्य आवश्यक निर्माण करवाती है तो नदी, नाला भी अपने बहाव के लिए मार्ग तो बनाएगा ही L जल प्रलय अवश्य आएगी L धरती के रक्षण हेतु नदी, नालों के किनारों पर तो अधिक से अधिक हरे पेड़, पौधे, झाड़ियां और घास होने चाहिए, न कि मनुष्य द्वारा निर्मित कंक्रीट, पत्थरों का जंगल L
पहाड़ों पर अधिक सड़क निर्माण – विकास की दौड़ के अंतर्गत मैदानी क्षेत्रों में चार, छेह लेन के राष्ट्रीय राज-मार्ग निर्माण कार्य जोरों से हो रहा है L उससे पहाड़ी राज्य-क्षेत्र अछूते नहीं रहे हैं L वहां भी चार लेन की सडकें बननी आरंभ हो गई हैं L इससे भूमि का कटाव जोरों पर है L लाखों पेड़ों की बलि दी जा रही है L धरती हरे पेड़, पौधे, झाड़ियां और घास से विहीन होती जा रही है L वृहत जंगल वृत्त, वन्य संपदा के सिकुड़ने से, असंतुलित वृष्टिपात होने तथा बाढ़ आने से धरती का कटाव बढ़ रहा है L
देश, धर्म-संस्कृति के प्रति बढ़ती मानवीय उदासीनता - संपूर्ण धरा पर मानव और दानव दो जातियां पाई जाती हैं L नर और मादा उनके दो रूप हैं L वेदज्ञान मानव को ही मानव नहीं बनाये रखता है बल्कि दानवों को भी मानव बनाने की क्षमता रखता है L जब तक मनुष्य वेद सम्मत अपना जीवन यापन करता रहा, वह मानव ही बना रहा L वह देश, सनातन धर्म-संस्कृति का भी सम्मान करता था पर जब से वह वेद विमुख हुआ है, तब से वह दानव बन गया है L वेदज्ञान जल, वायु, अग्नि, आकाश और धरती की पूजा के साथ-साथ धरती पर विद्यमान पहाड़, नदियों, पत्थर, पेड़, फूल-वनस्पतियों जीवों के भरन-पोषण का ध्यान रखने में मानव को सन्मार्ग पर चलने हेतु मार्ग-दर्शन करते थे L मानव की स्वार्थ पूर्ण दानव प्रवृत्ति बढ़ने से अब वह देश, धर्म-संस्कृति के विरुद्ध आचरण करने लगा है, जो उसके विनाश का कारण बनता जा रहा है L
बाढ़ का दुष्प्रभाव –
बाढ़ आने से नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है L खेतों की फसल नष्ट हो जाती है L स्कूल, विद्यालय, महाविद्यालय बंद हो जाते हैं L व्यापारिक, व्यवसायिक, कार्यशालाओं की गतिविधियाँ मंद पड़ जाती हैं L नदियों के किनारे की वस्तियाँ उजड़ जाती हैं L राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं L पेय जलस्रोत नष्ट हो जाते हैं L जल बाँध टूट जाते हैं L खेत–खलिहान, वस्तियाँ जलमग्न हो जाती हैं L राष्ट्रीय संपदा की भारी हानि होती है L यह सब चिंता के ऐसे ज्वलंत विषय हैं जिन्हें समय रहते सुलझा लेना अति आवश्यक है L
बाढ़ की रोक-थाम के उपाए -
नदी, नालों के किनारों पर आवासीय वस्तियाँ वसाने के स्थान पर अधिक से अधिक पोधा-रोपण किया जाना चाहिए L नदियों और पहाड़ों का खनन रोका जाना चाहिए L नदियों के किनारे पर और अधिक वस्तियों को नहीं वसाना चाहिए L नदियों नालों के किनारों से अवैध कब्जे हटाए जाने चाहिए L कार्यशालाओं के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए L विकास की आड़ और अंधी दौड़ में पहाड़ों का सीना छलनी न किया जाना चाहिए L नदी नालों में प्लास्टिक कचरा नहीं बहाना चाहिए L वन काटुओं व खनन माफियाओं पर नकेल कसी जानी चाहिए L
इस कार्य को कार्यान्वित करने हेतु सरकार, प्रशासन, प्रशासकों, आचार्यों, विद्यार्थियों, स्वयंसेवी संस्थाओं, स्वयं सेवकों को व्यवस्था के अंतर्गत आगे बढ़कर अपना-अपना दायित्व निभाना चाहिए ताकि आने वाले महा विनाश से देश, धर्म-संस्कृति और मानवता की रक्षा सुनिश्चित हो सके L
आलेख - पर्यावरण चेतना मातृवन्दना अगस्त 2023
चेतन कौशल "नूरपुरी"