उद्देश्य – विश्व कल्याण हेतु ज्ञान विज्ञान का सृजन, पोषण और संवर्धन करना l
- ब्रह्मा जी का मुख ब्राह्मण होने के कारण ज्ञानी, विद्वान्, बुद्धिमान, वैज्ञानिक, न्यायविद, गुरु, आचार्य, अध्यापक, शिक्षक और अभिभावक ब्राह्मण हैं l - ज्ञान बुद्धि का आभूषण है जिसे ब्राह्मण धारण करता है l - # ब्राह्मण एक वह वास्तुकार है जो अपनी कला से विद्यार्थी को तराशकर सत्यनिष्ठ, धर्मपरायण, न्यायप्रिय और नीतिवान बना सकता है।* - # जो व्यक्ति असत्य, अधर्म, अन्याय और अनीति के विरुद्ध कलम उठाता है, ब्राह्मण कहलाता है ।* - ब्राह्मण स्वयं ज्ञान का सृजन, पोषण वर्धन करता है, वह विद्या - पंडित होने के कारण संपूर्ण मानव समाज का मार्ग दर्शन करता है । - ईश्वरीय तत्व ज्ञान का सृजन, पोषण और वर्धन ब्राह्मण करते हैं । - समाज का कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है । - उसके द्वारा ब्रह्मभाव से युक्त तत्व ज्ञानी बनकर शस्त्र - शास्त्र विद्या ज्ञान से विश्व कल्याणकारी कार्य किया जाता है । - जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है, वह ब्राह्मण नहीं हो सकता ।
- # परिवार में बच्चों को संस्कार मिलते हैं। गुरुकुल में उनका पोषण और संवर्धन होता है ।* - # संस्कार विहीन शिक्षा समाज के लिए अभिशाप है।* - आत्मानुशासन की शिक्षा परम्परागत गुरुकुल से ही मिल सकती है – माता-पिता के सानिध्य में पहला गुरुकुल घर है और दूसरा गुरु-आचार्य के सानिध्य में उनका गुरुकुल l - मैकाले एवं ब्रिटिश साम्राज्य से जनित, पोषित 1947 से जारी अंग्रेजी शिक्षा आत्मानुशासन की शिक्षा क्या देगी ! जिसका मात्र धन उगाही करना ही लक्ष्य हो l
- # विद्यार्थी को तराशकर एक योग्य ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कोई बना सकता है तो वह गुरु ही हो सकता है l* - दूषित राजनीति से छुटकारा दिलाने हेतु चाणक्य जैसे आचार्यों को, चन्द्र गुप्त मौर्य जैसे विद्यार्थियों के साथ, आगे अवश्य आना पड़ता है l - जब जब चाणक्य जैसा कोई आचार्य किसी मुरां पुत्र चन्द्र गुप्त जैसे विद्यार्थी को सम्राट चन्द्र गुप्त मौर्य बनाने में समर्थ होता है, तब तब नन्द जैसे मक्कार और क्रूर शासकों का भी पतन निश्चित होता है l इससे लोकतंत्र की स्थापना होती है और अखंड भारत का सपना साकार होता है l