कुछ मिलता है, भेंट देने के बाद l
तोडना पड़ता है नाता, मनः भुलानी पड़ती है याद ll
सदा चोट खाता है, तू बातों में गैरों की आ जाता है l
तेरे हित की होती हैं अपनी, मनः बात हितैषी की भूल जाता है ll
आग से खेलता है क्यों? वह रख बनाया करती है l
तू इर्ष्या करता है क्यों ? मनः हँसते हुए को रुलाया करती है ll