वृद्ध अवस्था में मानव की कृश-काया भले ही उसका साथ न दे, पर वह अपने पिछले दीर्घ काल में किये गए कार्य अनुभवों से सम्पन्न अवश्य होता है l उसकी सन्तान चाहे तो उन अभिभावक के सानिध्य में बैठकर उनके कार्य अनुभवों से बहुत कुछ सीख सकती है l
श्रेणी: जीवन की चार अवस्थाएं
-
श्रेणी:वृद्ध अवस्था
वृद्ध अवस्था
-
श्रेणी:युवा अवस्था
युवा अवस्था
युवा अवस्था में बच्चे का ज्ञान और विवेक परिपक्व हो जाता है l वह अपने जीवन में l अच्छे, बुरे या निषिद्ध कार्य का सही आंकलन कर सकता है l उसे अच्छे, बुरे या निषिद्ध कार्य का ज्ञान होता है l अभिभावक का उस पर सदैव आशीर्वाद बना रहना चाहिए l वह अपने जीवन में कोई भी उचित निर्णय ले सकता है l
-
श्रेणी:किशोर अवस्था
किशोर अवस्था
इस अवस्था में बच्चे का ज्ञान और विवेक अपरिपक्व होता है l अच्छे बुरे या निषिद्ध कार्य का सही आंकलन नहीं होता है l वह जो भी कार्य करता है - उसे अच्छे बुरे या निषिद्ध कार्य का ज्ञान होना चाहिए l लेकिन वह कठिन और चुनौति पूर्ण जीवन यापन की अपेक्षा सुगम और सरल जीवन यापन करना अधिक पसंद करता है l कई बार अभिभावक की अनदेखी और कुसंगति में पड़कर वह अनुचित मार्ग की ओर भी अग्रसित हो जाता है l अगर समय रहते अभिभावक बच्चे का उचित मार्गदर्शन करें तो वह उस संकट से बच भी सकता है l
-
श्रेणी:बाल अवस्था
बाल अवस्था
यह वह अवस्था है जिसमें बच्चा नटखट होता है l कोई बच्चा बहुत नटखट होता तो कोई कम लेकिन होता अवश्य है l उसमें बोध और विवेक दोनों ही सुप्त अवस्था में होते हैं, जो उसकी आयु बढ़ने के साथ - साथ जागृत होते हैं l आरम्भ में उसे कुछ भी ज्ञान नहीं होता है, देखा देखी करता है l अकेले बच्चा नट - खट्टता कम करता है जबकि जोड़ी में बहुत अधिक l
-
श्रेणी:जीवन की चार अवस्थाएं
जीवन की चार अवस्थाएं
सत्सनातन धर्म में मनीषियों के द्वारा मानव जीवन की चार अवस्थाएं - बाल अवस्था, किशोर अवस्था, युवा अवस्था, और वृद्ध अवस्था निर्धारित की गई हैं l