अगर बेटी का कोई अपराध ही नहीं तो माँ-बाप उसे जन्म लेने से पहले मार क्यों देते हैं ? ऐसा करने से कहीं उनका सम्मान बढ़ता है क्या ?
भ्रूण-हत्या को सदा के लिए भूल ही जाना होगा, ये किसी सभी समाज की संस्कृति नहीं है l
बेटे की लालसा में बेटी की भ्रूण-हत्या एक जघन्य अपराध नहीं तो और क्या है ?
पहले अभिभावक उस बेटी का अपराध तो बता दें, जिसे जन्म लेने से पहले वे उसे मार देना चाहते हैं l
जन्म लेने से पूर्व बेटी की हत्या करके, समाज में नर- नारी असंतुलन बढ़ाकर माँ-बाप अपना कौनसा दायित्व पूरा कर लेंगे ?
श्रेणी: माता – पिता
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भ्रूण ह्त्या
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माता-पिता का आशीर्वाद
माता-पिता के मन से निकला हुआ प्रत्येक आशीर्वाद सन्तान के लिए जन्म-जन्मान्तरण तक सुरक्षा कवच बन जाता है l
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बेटा – बेटी में भेदभाव
परिवार में बेटे के जन्म पर हर्ष परन्तु बेटी के जन्म पर निराशा क्यों ?
बेटा एक ही परिवार का पालन-पोषण करता है पर बेटी दो परिवारों का ध्यान रखती है, फिर बेटी का जन्म लेने से किसी परिवार का अपमान कैसा ?
बेटा एक परिवार का नाम रोशन करता है जबकि बेटी दोनों परिवारों का, फिर परिवार और समाज द्वारा बेटा-बेटी में भेद-भाव क्यों ?
भूलकर बेटे का न करना अभिमान, बेटा हो या बेटी, दोनों एक समान l
बेटे से नहीं है बेटी कुछ भी कम, दोनों कुल का साथ निभाये हर दम l
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माता – पिता
सृष्टि में तीन तत्व ईश्वर, जीव और प्रकृति प्रमुख हैं । सृष्टि चलाने हेतु जुगल नर - नारी की आवश्यकता होती है । नारी के बिना किसी भी नर के लिए परिवार की कल्पना करना असंभव है । नारी अपने परिवार और समाज के कल्याणार्थ अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है ।
परिवार में माता - पिता द्वारा संस्कारित, गुरु द्वारा दीक्षित और अध्यापक द्वारा शिक्षित - प्रशिक्षित स्नातक युवा ही अपने जीवन की चुनौतियों, बधाओं, कठिनाइयों और दुःख - सुख का धैर्य और साहस के साथ सामना करने में सक्षम होते हैं । इससे वे सामाजिक एवंम राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को भी भली प्रकार निभाते हैं ।
नर - नारी शादी के पश्चात् पति - पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं । बच्चे के जन्मदाता माता - पिता होते हैं । माता बच्चे को नौ मास तक अपने गर्भ में, तीन वर्ष तक अपनी बाहों में और जिंदगी भर अपने हृदय में रखती है । माता ही बच्चे को खड़े होना, चलना, बोलना, खाना, नहाना, कपड़े पहनना, सर पर कंघी करना आदि सब कार्य करना सिखाती है ।
गुरु माता – पिता बच्चे को वेद सम्मत संस्कार देते हैं । इसके साथ ही साथ वे परिवार/समाज का निर्माण/कल्याण भी करते हैं । जिस प्रकार महिला अपने परिवार और समाज की आंतरिक जिम्मेदारियों को भली प्रकार संभालती है, ठीक उसी प्रकार पुरुष भी परिवार हित में बाह्य जिम्मेदारियों को संभालते हैं ।