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श्रेणी: हमारा पर्यावरण – आलेख

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    भू-जल स्तर में कैसे होगी वृद्धि ?

    पर्यावरण चेतना - 8

    भू-जल स्तर में आ रही निरंतर गिरावट को जल का सदुपयोग करने से रोका जा सकता है l इससे भूजल स्तर की पुनः वृद्धि हो सकती है l इसके लिए हमें आज ही से निरंतर जागरूक रहकर स्वयं कुछ प्रयास करने होंगे l

    जब भी पानी पीना हो, स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, पीने के लिए सदा गहरे हैण्ड पंप, नलकूप, प्राकृतिक चश्में और बावड़ियों के जल का ही प्रयोग करें l यह जल निरोग रहने तथा स्वास्थ्य के लिए हितकर है l रसोई में खाद्य पदार्थों की धुलाई एवं वर्तनों की सफाई के लिए प्रयोग किया गया जल जो गंदा हो जाता है, उसे सदा पौधों व क्यारियों में ही डालें l
    आइस ट्रे से बर्फ छुड़वाने के लिए मग से जल का प्रयोग करें l
    जल प्रयोग करने के पश्चात् नल अवश्य बंद कर दें l  अगर भूमिगत जल की टंकी में टोंटी लीक करे तो उसे तुरंत बदली करवा लें या उसका अभाव हो तो टोंटी लगवा लें l
    नल सदा अच्छी तरह बंद करके रखें l पुरानी जल पाइप जल का रिसाव करे तो उसे तुरंत बदलवा दें l
    घर या सार्वजनिक स्नान गृह में खुले नल या शावर के नीचे कभी स्नान न करें l खुले नल के आगे कपड़े न धोएं, ब्रुश न करें, दाढ़ी न बनायें l अच्छा है, बाल्टी में जल लेकर छोटे मग का ही प्रयोग किया जाये l घर या सार्वजनिक स्थान पर नल धीमे से खोलें और जल बैंकराशि की तरह उपयोग करने के पश्चात् उसे बंद कर दें l
    घर या सार्वजनिक शौचालयों में जितनी आवश्यकता हो, उतने ही पानी का प्रयोग करें l किसी के द्वारा खुले छोड़े हुए नल को देखते ही बंद कर दें l भूजल की हानि को अपनी हानि समझें l घर या सार्वजनिक स्थान पर भूजल संरक्षण के नियमों का पालन अवश्य करें l अगर भूजल आपूर्ति तंत्र में कहीं रिसाव होता हुआ दिखाई दे तो स्थानीय संबंधित कार्यालय को अवश्य सूचित करें ताकि कोई उचित कार्यवाई की जा सके l 
    घर, पशुशाला की साफ-सफाई करने के लिए झाड़ू और बाल्टी का तथा पशु और गाड़ी की सफाई हेतु बाल्टी और मग का ही प्रयोग करें ताकि जल का दरुपयोग न हो l
    आवश्यकता अनुसार मात्र फुहारे से क्यारी व पौधों की सिंचाई करें l फसलों में पानी की आवश्यकता का हिसाब अवश्य रखें l खेत में जितनी आवश्यकता हो नलकूप से उतना ही पानी लगायें l आवश्यकता से अधिक कभी भूजल दोहन न करें l फसल की बढ़ोतरी की दर से पानी के प्रयोग को घटाएं-बढ़ाएं l फसल, मिट्टी और जलवायु से अच्छी तरह मेल खाने वाली जल सिंचाई-प्रणाली ही का चुनाव करें और उसी के अनुसार खाली पड़ी भूमि पर फलदायक एवं भवन निर्माण संबंधी लकड़ी के लिए, नई पौध अवश्य लगायें l सिंचाई का समय बतलाने वाले सेंसरों का प्रयोग करें l ड्रिप एवं स्प्रिंकलर पद्धति का प्रयोग करें l उसमें रिसाव से बचने के लिए समय-समय पर जोड़ों और कप्लिंगों की जाँच करते रहें l सिंचाई प्रणाली का भली प्रकार रख-रखाव करें l सिंचाई के लिए सवेरे सूर्योदय से पहले लान पाट लें l उपयोगी जानकारी प्राप्त करके सिंचाई समय को ध्यान में रखें l सिंचाई समय सारिणी बनाएं और चयनित पद्धति से उचित समय पर सिंचाई करें l खेत क्यारी की पूर्ण सिंचाई से थोड़ा पहले पानी बंद कर दें ताकि पूरे पानी का प्रयोग हो सके l 
    निर्माण कार्यों में भूजल का कभी प्रयोग न करें l उसके स्थान पर जोहड़-पोखर, तालाब, नदी-नाले तथा संचित वर्षाजल का ही प्रयोग करें l समाज में टिड्डी दल की भाँती बढ़ती हुई जन संख्या पर नियंत्रण पाने के लिए परिवार नियोजन अपनाकर उसमें अपना योगदान दें और जहाँ तक संभव हो, कल के बच्चों के लिए भूजल पुनर्भरण अवश्य करें l
    भूजल पुनर्भरण हेतु सदाबहार नालों पर आवश्यकता अनुसार लघु चैक डैम बनाएं l उनसे छोटे बिजली घर, पन चक्कियों का निर्माण करके हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं l इससे बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम हो जाएगी और प्रतिवर्ष हमारे सिर पर मंडराने वाले बाढ़ के संकट भी कम होंगे l
    भूजल को प्रभावी बनाने हेतु गाँव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार भूजल पुनर्भरण हेतु गहरे, कच्चे तल के तालाब, पोखर-जोहड़ों का अधिक से अधिक निर्माण एवं उनका संरक्षण करके परंपरागत जल संचयन प्रणाली को बढ़ावा दें l अगर हम उपलिखित उपायों का अपने जीवन में चरित्रार्थ करें तो भविष्य में भूजल स्तर में अवश्य ही वृद्धि होगी l आइये ! हम सब मिलकर राष्ट्रीय भूजल संरक्षण अभियान को सफल बनाने में एक दुसरे को सहयोग दें l

    प्रकाशित दिसम्बर 2013 मातृवंदना


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    पालीथीन प्रतिबंधित हुआ, परन्तु —

    पर्यावरण चेतना – 7 

    हिमाचल सरकार पालीथीन पर प्रतिबंध लगा चुकी है l जम्मू कश्मीर सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है l इन प्रांतीय सरकारों का यह कार्य प्रयास चहुँ ओर प्रशंसनीय रहा है l अब इन प्रान्तों के शहर व गाँव की गलियों व नालियों पालीथीन लिफ़ाफ़े तो कम अवश्य हुए हैं पर वह अभी समाप्त नहीं हुए हैं l उन पर मात्र प्रतिबंध लगा है l सरकार द्वारा लगाया गया यह प्रतिबन्ध, पूर्ण प्रतिबन्ध सार्थक तब होगा जब पालीथीन परिवार के अन्य हानिकारक उत्पादों का जन साधारण द्वारा विरोध किया जायेगा l पालीथीन का उत्पादन एवम प्रयोग होना बंद हो जायेगा l  

    देखने में आ रहा है कि अनाज, दालें, तिलहन, दूध, दही, पनीर, मक्खन, घी, सब्जी, टाफी, तथा श्रृंगार का सामान मोमी पारदर्शी लिफाफों, प्लास्टिक की बोतलों में सिले सिलाये वस्त्र प्रिंटिंग मोमी थैलों और डिब्बों में पैक करके बाजार में ग्राहकों को बेचे जाते हैं जो पर्यावरण हित में नहीं है l    

      गंदे पालीथीन, मोमी पारदर्शी लिफ़ाफों को खाकर पशु मर जाते हैं l नालियां गंदगी से अवरुद्ध हो जाती हैं l स्वाइन फ्लू जैसे भयानक जानलेवा घातक रोग पैदा होते हैं l गंदा पानी रिसकर पेयजल स्रोतों की उपयोगिता नष्ट करता है l पालीथीन, मोमी लिफ़ाफों से पेयजल स्रोत अवरुद्ध हो जाते हैं l वे अपना या तो जल प्रवाह की दिशा बदल लेते हैं, या नष्ट हो जाते हैं l

    पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे लम्बे समय तक नष्ट नहीं होते हैं l उनसे खेतों की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो जाती है l खेत बंजर हो जाते हैं l बरसात के दिनों में जगह-जगह पर गंदे पालीथीन, मोमी पारदर्शी लिफ़ाफों से गंदगी फ़ैल जाने से सफाई कर पाना अति कठिन हो जाता है l इसका यह अर्थ हुआ कि हम सफाई पससंड नहीं करते हैं l हम दूसरों का सफाई का कार्यभार कम करने की अपेक्षा उसे और अधिक बढ़ा देते हैं l

    बात स्पष्ट है कि पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे, प्लास्टिक की बोतलें व पैकिंग का सामान बनाने की वर्तमान वैज्ञानिक तकनीक पर्यावरण विरुद्ध है l वह पर्यावरण मित्र न होकर, शत्रु बन चुकी है l वैज्ञानिकों के द्वारा अब नई एक ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जो पर्यावरण की अविलम्ब निर्विघ्न सुरक्षा कर सके जिससे पर्यावरण विरोधी उत्पादों की वृद्धि न हो बल्कि पर्यावरण स्वच्छ एवं संतुलित बन सके l 

    पर्यावरण में बढ़ता हुआ तापमान और निरंतर पिघलते हुए ग्लेशियर इस बात का प्रमाण हैं कि हमारा भविष्य सुरक्षित नहीं है l हमें भविष्य में कल-कल करती नदिया, झर-झर करते झरने, मीठे-मीठे  जल के चश्मे और मनमोहक झीलें कहीं दिखाई नहीं देंगी l शुद्ध पेयजल स्रोत सुरक्षित न रहने के कारण हम रोग मुक्त एवं सुरक्षित नहीं रहेंगे, ऐसा जानते हुए भी हम पर्यावरण विरुद्ध कार्य कर रहे हैं l

    सावधान ! हमें पर्यावरण विरुद्ध किये जाने वाले ऐसे सभी कार्य तत्काल बंद कर देने होंगे और एक ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जिससे मानव जाति में पर्यावरण प्रेम जागृत हो l वह निजहित की चार दीवारी से बाहर निकलकर जनहित एवं समाज कल्याण के कार्य करे l उससे किसी जानमाल की हानि न हो l हर तरफ हर कोई सुख शांति से जी सके l 

    सरकार द्वारा पर्यावरण सुरक्षा बनाये रखने हेतु ऐसा विधेयक पारित किया जाना चाहिए जिससे उत्पादकों को विशेष निर्देश दिया गया हो कि वे अपने यहाँ उत्पादित उपयोगी पालीथीन, मोमी लिफ़ाफे, प्लास्टिक की बोतलें व पैकिंग के सामान पर वैधानिक चेतावनी लिखने के साथ-साथ उन्हें अनुपयोगी हो जाने पर, जल्द नष्ट करने या रिसाईकलिंग करने की विधि भी सुनिश्चित करें जिससे पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण रोकने में सरकार को जन साधारण का सहयोग मिल सके l

    अतः पालीथीन तो अभी प्रतिबंधित हुआ है l उस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना शेष है l  आइये ! हम सब वैज्ञानिक, उत्पादक, भंडार पाल, व्यापारी, दुकानदार, ग्राहक और गृहणिया सरकार द्वारा पालीथीन विरुद्ध लगाये गए प्रतिबंध को पूर्ण प्रतिबंध में परिणत करने हेतु रचनात्मक एवं सकारात्मक कार्य करें और उन सब वस्तुओं को सदा के भूल जायें जिनसे पर्यावरण असंतुलन और प्रदूषण बढ़ता और फैलता है l इन्हें भूल जाने में ही हमारी सबकी समझदारी और भलाई है l 

    प्रकाशित 12 जुलाई 2009 कश्मीर टाइम्स


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    पालीथीन का साम्राज्य

    पर्यावरण चेतना  – 6 

    अगर विश्व में कहीं प्राकृतिक संकट पैदा होता है तो मनुष्य द्वारा साहस के साथ उसका सामना किया जा सकता है परन्तु मनुष्य ही कोई भयानक संकट पैदा कर ले तो उसका सामना कौन और कैसे करे ? है ना समस्या गंभीर ! 

    खुशनशीब है जम्मू क्षेत्र जो किसी प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित है पर वह बड़ा बदनशीब है, स्थानीय लोगों के द्वारा वह स्वयं ही पैदा किए हुए संकट से संकट ग्रस्त है l भौतिकवाद की अंधी दौड़ में स्थानीय लोग पालीथीन लिफ़ाफों, प्लास्टिक बोतलों व नायलन और रबड़ की बनी जीवनोपयोगी वस्तुओं का तो धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं पर अनुपयोगी हो जाने पर वह उनका उचित विसर्जन नहीं कर पा रहे हैं ताकि उन्हें तुरंत किसी अन्य उत्पाद में परिणत किया जा सके l

    जम्मू क्षेत्र में पालीथिन लिफाफों का प्रचलन इस हद तक बढ़ गया है कि उन्हें अब हर घर की नाली में और आस - पास के छोटे - बड़े नालों के किनारों पर पड़े देखा जाने लगा है l लोगों को उनमें बाजार से किसी भी समय घरेलू सामान की खरीददारी करते हुए और उसे घर ले जाते हुए देखा जा सकता है l ऐसा करना उन्हें जाने क्यों अच्छा लगता है ! वे यह तो भली प्रकार जानते हैं कि उनके द्वारा उन्हें नाली में या सड़क पर फैंकने से कितने भयानक दुष्परिणाम निकलते हैं ?

    वर्तमानकाल में जम्मु क्षेत्र के किसी मुहल्ले या कालोनी की कोई नाली, सड़क या नालों के किनारों पर फैले गंदगी युक्त पालीथीन लिफाफों, प्लास्टिक बोतलों और दुर्गन्ध युक्त कूड़ा-कचरा के अम्बार राह में चलते हुए और जाने - अनजाने उन लोगों के लिए  संकट बने हुए हैं जो पास ही के मार्ग से निकलते हैं l उन्हें साँस तक लेना दूभर हो जाता है l

    शुद्ध वायु के शुद्ध वातावरण में जीना व रहना हर कोई चाहता है पर वैसा वातावरण बनाये रखना भी हमारा अपना ही कार्य है l अगर हम यह कार्य स्वयं नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?

    समस्त मानव जाति का मात्र एक सफाई कर्मचारी वर्ग पर पूर्ण आश्रित हो जाने से तो काम नहीं चलेगा l उसके कार्य में हम सबको मिलकर सहयोग करना होगा l क्षेत्र को हरा-भरा और प्रदूषण व रोग मुक्त बनाये रखने हेतु जरूरी है स्थानीय लोगों द्वारा विभिन्न मुहल्लों में संबंधित समितियों का गठन किया जाना जो गंदगी फ़ैलाने वालों पर कड़ी नजर रखेंगी l वह हर घर से निकलने वाले अनुपयोगी घरेलू सामान व कूड़ा-कचरा की उचित निकासी, पौध-रोपण और सफाई के लिए लोगों का सही मार्ग दर्शन करेंगी l

    राज्य सरकार को चाहिए कि वह अपने पड़ोसी राज्य सरकारों की भांति जम्मू-कश्मीर राज्य में भी पालीथीन लिफाफों के उत्पाद पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दे, उसके स्थान पर किसी अन्य उत्पाद के निकालने हेतु प्रोत्साहन दे और अधिक से अधिक पौध-रोपण करवाए l वह अवहेलना करने वालों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे ताकि राज्य में व्याप्त पालीथिन का साम्राज्य समाप्त हो सके l

    इस प्रकार जम्मू-कश्मीर राज्य एक स्वच्छ और सुंदर राज्य बन सकता है l उसके आकर्षण से आकर्षित होकर दुनियां का कोई भी पर्यटक वर्ग ख़ुशी से उसकी ओर अधिक से अधिक की संख्या में ,आएगा और उसकी वादियों का मनचाहा आनंद भी ले सकेगा l

    29 जून 2008 दैनिक कश्मीर टाइम्स


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    पेयजल के चारों ओर फैली गंदगी

    पर्यावरण चेतना - 5 

    अक्सर दूसरों को हम साफ -सफाई का उपदेश देते हैं पर स्वयं उस पर कम अमल करते हैं l अपना घर साफ़ - सुथरा रखकर घर का सारा कूड़ा -कचरा ऐसी जगह फैंक देते हैं जो सार्वजनिक होती है l इसी तरह मनुष्य किसी पेयजल स्रोत या देवालय को दूषित करने से भी नहीं हिचकचाता है l देखने में आता है कि जहां से लोगों को पेयजल की आपूर्ति की जाती है उस जगह गंदगी फैली रहती है l ऐसे में गंदा व दूषित पानी पीने से  अनेकों बीमारियाँ फैलने का खतरा बना रहता है l

    सुल्याली गाँव में स्थित डिह्बकेश्वर महादेव मंदिर के साथ लगता कंगरनाला पर बने प्राकृतिक जल स्रोत के चारों ओर गंदगी का साम्राज्य है l जहाँ से पाइप द्वारा पेयजल का पास ही में जल भंडारण किया जाता है l वह कंगर नाला का एक छोर है l जब कि जल वितरण व्यवस्था के लिए दूसरी ओर जल भंडारण किया जाता है l यह जल न केवल सुल्याली गाँव की जल आपूर्ति करता है बल्कि उसके आस - पास के कई क्षेत्रों जैसे नेरा, लोहारपूरा, बारड़ी, बलारा, हटली, सोहड़ा और देव भराड़ी आदि को भी जल उपलब्ध करवाता है l   

    दुखद है कि कंगर नाला में स्थानीय लोग खुला शौच करते हैं जिससे कंगर नाला में स्थित पेय जल भंडार की शुद्धता और डिह्बकेश्वर महादेव मंदिर की पवित्रता अनवरत नष्ट हो रही है l हिमाचल सरकार द्वारा राज्य के हर गाँव में निर्धन परिवारों का ध्यान रखकर एक - एक शौचालय बनवाने में आर्थिक सहायता दी जाती है और बनवाये भी हैं फिर भी न जाने क्यों ? लोग खुला शौच करना अधिक पसंद करते हैं l

    सुल्याली गाँव से एक किलोमीटर की दूरी पर बने कंगर नाला पुल से नीचे पेय जल स्रोत तक हमें ऐसे ही गंदगी देखने को मिल जाएगी जो जल प्रदूषण के साथ - साथ  डिह्बकेश्वर महादेव मंदिर के लिए शुभ संकेत नहीं है l

    आज डिह्बकेश्वर महादेव मंदिर एक दर्शनीय मंदिर परिसर बन चुका है l यहाँ दूर - दूर से लोग दर्शन हेतु आते हैं और धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है l अगर समाज के जागरूक स्थानीय लोग इस ओर ध्यान दें, इसे रोकने का प्रयत्न करें तो तभी पेयजल स्रोत साफ सुथरे रह सकते हैं l

    प्रकाशित16 मार्च 2008 दैनिक जागरण


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    जल संग्रहण और उसकी उपयोगिता

    पर्यावरण चेतना  - 4 

    हर स्थान पर नहरें व समयानुकूल वर्षा न होने से एकमात्र नलकूप ही खेतों की सिंचाई करने के संसाधन होते हैं l खेतों की सिंचाई करने हेतु नलकूपों की आवश्यकता पड़ती है l उनसे सिंचाई की जाती है l आवश्यक है, भूजल दोहन नियमित और फसल की आवश्यकता अनुसार ही हो l ऐसा न होने पर भूजल का किया गया अधिक दोहन व्यर्थ हो जाता है l इस कारण वह आज एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है l

    वर्तमान में गाँव और शहरों के मकान, गलियां, सड़क, इत्यादि सब बड़ी तेजी से सिंमेंट पोश होते जा रहे हैं l स्थानीय संस्थाएं, संगठन, न्यास ही नहीं, देश का जन साधारण भी कुआँ, तालाब, पोखर-जोहड़ों की उपयोगिता भूल गया है l इससे स्थानीय कुओं, तालाबों, पोखर-जोहड़ों की संख्या में काफी कमी आई है l लोगों के सामने हर वर्ष देखते ही देखते वर्षाकालीन का समस्त वर्षा जल गाँव और शहरों की नालियों के माध्यम से नाला मार्ग द्वारा बाढ़ का भयानक रूप धारण करके उनसे दूर बहुत दूर यों ही व्यर्थ में बह जाता है l इस तरह धरती पर अपार वर्षाजल उपलब्ध होने पर भी धरती हर वर्ष प्यासी की प्यासी रह जाती है l इससे भूजल पुनर्भरण की प्राचीन संस्कृति को अघात पहुंचा है l देशभर में वर्षाकालीन भूजल पुनर्भरण व्यवस्था ठीक न होने के कारण गाँव और शहरों में भूजल पुनर्भरण प्रणाली संकट ग्रस्त है l भूजल, पेयजल पर संकट गहराता जा रहा है l

    घर मकान, सड़क, पुल, इंडस्ट्रियों, कारखानों तथा डैमों की वृद्धि और लोगों का निरंतर पलायन होने से उपजाऊ धरती और जंगलों का असीम क्षेत्र फल निरंतर सिकुड़ता जा रहा है l सिंचाई के जल संसाधनों में चैक डैम, नहरें, कुंएं तालाब, पोखर-जोहड़ जैसे वर्षा जल के कृत्रिम जल भंडार जो प्राचीन काल से ही परंपरागत सिंचाई के माध्यम रहे हैंSa & उन्हें गाँव और शहरों में स्थानीय लोगों द्वारा वर्षा जल चक्रीय प्रणाली के अधीन सक्रिय रखा जाता था l उनसे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण भी होता था l जनश्रुति के अनुसार जिला कांगड़ा के अकेले शहर नूरपुर में ही कभी 365 कुंएं और तालाब तथा बावड़ियाँ अलग सक्रिय हुआ करती थीं जो अब गिनती के रह गई हैं l  

    यह समय की विडंबना ही है कि विकास की अंधी दौड़ के अंतर्गत देश के समस्त गाँव और शहरों में जन साधारण द्वारा परंपरागत कृत्रिम जल संसाधनों का तेजी से अंत किया जा रहा है l उनकी उपयोगिता को तिलांजली दी जा रही है l उन्हें समतल करके उनके स्थान पर आलिशान मकान, भवन ही नहीं, देवालय तक बनाये जा रहे हैं और कृत्रिम भूजल पुनर्भरण की संस्कृति दिन–प्रतिदिन विलुप्त होती जा रही है l  

    भविष्य में वर्षा जल संग्रहण प्रणाली से लंबे समय तक भूजल पुनर्भरण की परंपरा स्थिर रखी जा सकती है जो वन्य संपदा, जलचर, थलचर, नभचर तथा समस्त जीव जन्तुओं के लिए अत्याधिक आवश्यक है भी l इसके लिए हम मात्र कृत्रिम भूजल पुनर्भरण के संसाधनों का उपयोग करके गिरते हुए भूजल स्तर को पुनः ऊपर ला सकते हैं l

    किसी घर या भवन की छत से धरती पर गिरने वाले वर्षाजल को यों ही व्यर्थ में न बहने देना, उसे घर या भवन के निकट धरातल के नीचे बनाया गया गड्ढा जो 5फुट लंबा 5फुट चौड़ा और 10फुट गहरा या उपलब्ध स्थान अथवा आवश्यकता अनुसार छोटा या बड़ा हो और जिससे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण भी सुलभ हो, में वर्षाजल एकत्रित किया जा सकता है l

    गाँव व शहर की गलियों तथा सड़कों के दोनों ओर जल बहाबदार नालियों में 4 फुट लंबाई, 3 फुट चौड़ाई और 3 फुट गहराई के गड्ढे जो भूजल पुनर्भरण में समर्थ हों, आवश्यकता अनुसार कम या अधिक दूरी पर बनाये जा सकते हैं l इनसे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण सुलभ हो सकता है l 

    खेतों में जिस ओर वर्षाजल का स्थाई बहाव हो, उस जल बहाव को रोकने हेतु सामने की उंचाई वाले किनारे से खेत की मिट्टी उखाड़कर, ढलान वाले किनारे पर डालकर ऊँचा किया जा सकता है और वहां पर फलदार, पशुचारा vkSj आवश्यकतानुसार जीवनोपयोगी पेड़-पौधे लगाकर भु-क्षरण रोका जा सकता है l इस प्रकार दूसरी ओर नव निर्मित गहराई के कारण जल अवरोध उत्पन्न होगा l वहां वर्षाजल एकत्रित होने से कृत्रिम भूजल पुनर्भरण प्रभावी हो सकता है l

    खेतों के उन भागों पर जहाँ वर्षाजल एकत्रित होता हो, वहां छोटे छोटे कुएं बनाकर उनमें वर्षाजल का संग्रहण किया जा सकता है l इससे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण में सहायता मिल सकती है l

    खेतों में जिस ओर वर्षाजल का बहाव हो, से भू-क्षरण रोकने के लिए जल बहाव वाले स्थान पर आवश्यकता अनुसार छोटे-छोटे कुएं बनाये जा सकते हैं l इनसे वर्षाजल के बहाव  को रोकने में सहायता मिलेगी और उनमें संग्रहित जल से भूजल पुनर्भरण भी होगा l

    चैक डैम का निर्माण कार्य ऐसे स्थान पर किया जाना उचित है जहाँ आवश्यकता अनुसार जल संचयन हो सके l उससे उपजाऊ धरती सुरक्षित रहे और संचित जल से स्थानीय फसल की आवश्यकता अनुसार जल सिंचाई भी की जा सके l यह छोटे छोटे चैक डैम सदाबहार नालों पर बनाये जा सकते हैं l इनसे बिजली पैदा करके स्थानीय बिजली की आपूर्ति करने के साथ-साथ वहां पनचक्कियां भी लगाकर उनसे आटा पिसाई की जा सकती है l इससे भविष्य में बड़े-बड़े डैमों पर हमारी निर्भरता कम होगी l एक दिन हमें इनकी आवश्यकता भी नहीं रहेगी l बरसात के दिनों में डैमों से नियंत्रित जल छोड़ने से नदियों में भयानक बाढ़ आने का भय/संकट उत्पन्न नहीं होगा और उससे हर वर्ष होने वाली जान-माल की तबाही भी नहीं होगी l

    प्रायः देखा गया है कि नहरों के दोनों किनारे समतल होने के कारण उनका सारा जल निश्चित क्षेत्र तक तो पहुँच जाता है पर मार्ग में पड़ने वाले समस्त क्षेत्र नहरों में जल होते हुए भी प्यासे रह जाते हैं l नहरों का निर्माण करते समय उनके दोनों किनारों की दीवारों में कुछ दूरी का अंतर रखकर जल रिसाव के लिए खाली स्थान रखा जा सकता है l इससे भूजल पुनर्भरण में सहायता मिलेगी और भूजल स्तर को गिरने से भी बचाया जा सकता है l

    देशभर में भूजल पुनर्भरण को प्रभावी बनाने हेतु गाँव व शहरी स्तर पर आवश्यकता अनुसार गहरे, तल के कच्चे जोहड़-पोखर और तालाबों का अधिक से अधिक नव निर्माण और पुराने जल स्रोतों का सुधार भी किया जाना अति आवश्यक है l उनमें वर्षाजल भराव के लिए, उन्हें कच्चे तल वाली छोटी नहरों अथवा नालियों द्वारा आपस में जोड़कर सदैव जल आवक-जावक प्रणाली अपनाई जा सकती है l इस माध्यम से वर्षा जल का कृत्रिम जल भंडारों में जल संचयन और उनसे भू-जल पुनर्भरण होना निश्चित है l नदियों की बहती जलधारा सबको प्रिय लगती है l उन्हें स्थाई रूप से कभी अवरुद्ध नहीं करना चाहिए l नदियों का सदा निरंतर बहते रहना अति आवश्यक है l वह सबकी जीवन दायनी है l

    देशभर में एक व्यापक राष्ट्रीय कृत्रिम भूजल पुनर्भरण नीति होनी चाहिए जिसके अंतर्गत स्थानीय जन साधारण से लेकर उनसे संबंधित विभिन्न सरकारी व  गैर सरकारी तथा धार्मिक संस्थाओं, संगठनों और नियासों को एक राष्ट्रीय अभियान बनाकर कार्य करना चाहिए l इससे देश में हरित, श्वेत और जल क्रान्ति लाने में सहायता मिलेगी l 

    जल संग्रहण किया जाना उस एटीएम के समान है जिसमें पहले धनराशि डालना अति आवश्यक है l अगर हम एटीएम से बार-बार मात्र पैसे निकलते जायेंगे, उसमें कभी धनराशि डालेंगे नहीं तो----? तो वह एक दिन खाली भी हो जायेगा l उससे हमें कुछ भी नहीं मिलेंगा l इसलिए भविष्य में भूजल दोहन करने हेतु हम सबको आज ही से भूजल पुनर्भरण के प्रति अधिक से अधिक सजग रहना चाहिए l हमें कृत्रिम भूजल भंडारों में जल संचयन और उनसे भूजल पुनर्भरण संबंधी निश्चित हर कार्य प्राथमिकता के आधार पर वर्षाकाल आरंभ होने से पूर्व समयबद्ध पूरा कर लेना चाहिए l

    प्रकाशित जनवरी 2020 मातृवंदना