मातृवन्दना अगस्त 2007
जय राष्ट्रीय निशान
रहे सदा तेरी पहचान
केसरिया वीरता उत्साह त्याग का सूचक
आन शान मान का पूजक
नहीं था तू अनादर करने के योग्य
जलते देखते हैं यहां वहां हमारे प्राण
जय राष्ट्रीय निशान
श्वेत सत्य पवित्रता शांति का प्रतीक
नहीं है आज यहां सब दिखता ठीक
गए कहां गुरु देते थे जो हमें सीख
कर्तव्य अपना भूल गए होता नहीं भान
जय राष्ट्रीय निशान
हरा श्रद्धा विश्वास वैभव का द्योतक
तू तो था दुखसुख का बोधक
ह्रास त्रास दिखता यहां वहां अत्याचार
अनाचार नहीं करना था परहित परत्राण
जय राष्ट्रीय निशान
काली छाया ने आ ढक लिया है
तुझे सहने हर संताप दिया है
फड़कती हैं भुजाएं हमारीे टकराने को
देकर भी शीश तेरा करेंगे त्राण
जय राष्ट्रीय निशान
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: स्व रचित रचनाएँ
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श्रेणी:कवितायें
जय राष्ट्रीय निशान
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श्रेणी:आलेख
जन हित विरोधी मानसिकता
आलेख - सामाजिक चेतना – मातृवंदना नवंबर 2007
“भारत देश महान” जैसी बातें अब नीरस और खोखली लगने लगी हैं l मन्दिर समान पवित्र घर और विद्यालयों में जहाँ कभी ज्ञान, श्रद्धा, प्रेम-भक्ति और विश्वास पाया जाता था, वहां पर अज्ञान, अश्रद्धा, अवज्ञा, अविश्वास होने के साथ-साथ अवैध संबंध, भ्रूण हत्याएं, बात-बात पर वाद-विवाद, मार-पीट, मन-मुटाव, अपमान, घृणा, द्वेष, आत्म तिरस्कार और आत्म हत्याएं होती हैं l
अध्यात्म प्रिय होने के कारण देश के अधिकांश परिवार प्रकृति प्रेमी होते थे l परन्तु वह भौतिकवादी हो जाने से जीवन देने वाले पर्यावरण के ही शत्रु बन गए हैं l इस कारण भौतिकवाद की अंधी दौड़ में वन-संपदा, प्राकृतिक सौन्दर्य और समस्त जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ लुप्तप्रायः होती जा रही हैं l मात्र मनुष्य जाति की भीड़ और उसका कंकरीट का जंगल ही बढ़ रहा है l पेयजल और कृषि योग्य भूमि का अस्तित्व संकट में है और प्राद्योगिकी प्रदूषण के साथ-साथ धरती का ताप भी बढ़ रहा है जिससे हिमनद और ग्लेशियर तेजी से पिघलते जा रहे हैं l
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति के लिए लगनशील, उद्यमी युवा-वर्ग में बल, बुद्धि, विद्या, वीर्य और सद्गुणों का सृजन, संवर्धन और संरक्षण करने के स्थान पर नशा-धुम्रपान करने, क्लब, वैश्यालय एवम् नृत्यशालाओं में जाने का प्रचलन बढ़ गया है l अध्यात्मिक उपेक्षा करने से वह एड्स जैसे भयानक रोगों का शिकार हो रहा है l
समाज में अज्ञानता, अपराध, अपहरण, यौन शोषण, बलात्कार, अन्याय, बाल-श्रम, बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी, अत्याचार, हत्यायें, अग्निकांड, उग्रवाद, अशांति, अराजकता होती है l स्थानीय क्षेत्र, समाज और राष्ट्र में जाति, भाषा, धर्म, क्षेत्र के नाम पर वाद-विवाद खड़ा करके आपसी फुट डाली जाती है और उन्हें स्वार्थ सिद्धि के लिए आपस में भी बांटा जाता है l
देश के सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों में आर्थिक भ्रष्टाचार, गबन, घोटाले होकर वे अग्निकांड के द्वारा अग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं l न्यायिक प्रणाली अधिक महंगी, दीर्घ प्रक्रियाओं में से निकलने वाली, दूरस्थ, दैनिक वेतन भोगी, कम वेतन मान पाने वाले एवं निर्धनों की पहुँच से दूर, आमिर-गरीब में असमानता रखने वाली और मात्र किताबी कानून तक अव्यवहारिक होने के कारण – राष्ट्रीय न्यायलयों से जन साधारण का विश्वास दिन-प्रतिदिन उठता जा रहा है l इस प्रकार परिवार, विद्यालय, समाज और राष्ट्र के प्रति जन साधारण में आस्था, विश्वास, प्रेम और जनहित का आभाव दिखाई देने लगा है जो एक विचारणीय विषय है l हमें इस ज्वलंत समस्या का समाधान निकालने के लिए ध्यान देने के साथ-साथ विचार अवश्य करना चाहिए l
चेतन कौशल “नूरपुरी”
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श्रेणी:आलेख
आस्था की दहलीज पर
आलेख - धर्म अध्यात्म संस्कृति दैनिक जागरण 1.8.2007
हमारे देश में ऐसे अनेकों धार्मिक व तीर्थ स्थल हैं जिनके साथ हमारी पवित्र आस्थाएं जुड़ी हुई हैं l हम वहां अपनी किसी न किसी कामना सहित देव दर्शनार्थ जाते हैं और अपनी कामना पूरी होने पर श्रद्धा सुमन भी अर्पित करते हैं l इससे हमें मानसिक शांति मिलती है l
पर दुर्भाग्य से इन्हीं धार्मिक व तीर्थ स्थलों पर समाज विरोधी तत्वों का साम्राज्य स्थापित हो गया है l मंदिर परिसरों में भारी भीड़, महिलाओं से छेड़-छाड़, दुर्व्यवहार, उनके कीमती जेवरों का छिना जाना और पुरुषों की जेब कट जाना प्रतिदिन एक गंभीर समस्या बनती जा रही है l ऐसा व्रत-त्योहार व मेलों में होता है l
इस समस्या से निपटने के लिए आवश्यक है कि मंदिर प्रशासन और मेला आयोजकों के कार्यक्रमों को सुव्यवस्थित व अनुशासित बनाने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं को भी आगे आने का सुअवसर दिया जाये l उन्हें प्रशासन की ओर से पूर्ण सहयोग मिले ताकि हमारे मंदिर और तीर्थ स्थान आस्था के केंद्र बने रहें और श्रद्धालु, भक्त जनों को वहां सदा भय एवम् तनाव मुक्त वातावरण मिलता रहे l पंजाब से सीखना चाहिए कि इन स्थलों की शुचिता कैसे बनाये रखी जाती है l
चेतन कौशल “नूरपुरी”
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श्रेणी:कवितायें
पानी बचाओ
दैनिक जागरण 15 जून 2007
पानी लेकर बंद करना है नल
भाई यों ही व्यर्थ नहीं बहाना है जल
सब्जी या फलों को धोकर
क्यारी में डाल देना है पानी
क्यारी में नमी रहेगी
नाली में नहीं जाने देना है पानी
शेष बचा बोतल या बाल्टी का पानी
है क्यारी के पौधों का पानी
कल के लिए ढक कर
आज रखना है पेयजल
संभलकर कल भी
प्रयोग करना है पेयजल
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
क्रांतिकारी
दैनिक जागरण 13 जून 2007
पल भर नहीं जो कर्महीन रहता
कुछ न कुछ करता रहता है
रखता अज्ञान शोषण अत्याचार पर कड़ी नजर
दहकते अंगारों पर बे खबर चलता है
राह में मुसीबतें आएं चाहे जितनी
वह नित आगे बढ़ता जाता है
मौत भी सामने क्यों न आए
वह खुशी से निज कण्ठ लगाता है
क्रांति कभी आ नहीं सकती
है यह तो उसमें दम नहीं
चाहे क्रांति होती है बलवान बहुत
पर देखा क्रांतिकारी भी कुछ कम नहीं
चेतन कौशल "नूरपुरी"