मानवता

मानवता सेवा की गतिविधियाँ



श्रेणी: स्व रचित रचनाएँ

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    ज्ञान उर्जा के चालीस स्रोत

    योग्य गुरु एवं योग्य विद्यार्थी के संयुक्त प्रयास से प्राप्त विद्या से विद्यार्थी का हृदय और मस्तिष्क प्रकाशित होता है। अगर प्रयत्नशील द्वारा बार-बार प्रयत्न करने पर भी असफलता ही मिले तो उसे कभी जल्दी हार नहीं मान लेनी चाहिए बल्कि ज्ञान संचयन हेतु अपनी सम्पूर्ण शक्ति और लग्नता के साथ और अधिक श्रम करना चाहिए ताकि उसमें किसी प्रकार की कोई कमी न रह जाए।
    1 लोक क भ्रमण करने से विषय वस्तु को भली प्रकार समझा जाता है।
    2 साहित्य एवं सद्ग्रंथ पढ़ने से विषय वस्तु का बोध होता है।
    3 सुसंगत करने से विषयक ज्ञान-विज्ञान का पता चलता है।
    4 अधिक से अधिक जिज्ञासा रखने से ज्ञान-विज्ञान जाना जाता है।
    5 बड़ों का उचित सम्मान और उनसे विश्व व्यवहार करने से उचित मार्गदर्शन मिलता है।
    6 आत्म चिन्तन करने से आत्म बोध होता है।
    7 सत्य निष्ठ रहने से संसार का ज्ञान होता है।
    8 लेखन-अभ्यास करने से आत्मदर्शन होता है।
    9 आध्यात्मिक दृष्टि अपनाने से समस्त संसार एक परिवार दिखाई देता है।
    10 प्राकृतिक दर्शन करने से मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
    11 सामाजिक मान-मर्यादाओं की पालना करने से जीवन सुगंधित बन जाता है।
    12 शैक्षणिक वातावरण बनाने से ज्ञान-विज्ञान का विस्तार होता है।
    13 कलात्मक अभिनय करने से दूसरों को ज्ञान मिलता है।
    14 कलात्मक प्रतियोगिताओं में भाग लेने से आत्मविश्वाश बढ़ता है।
    15 दैनिक लोक घटित घटनाओं पर दृष्टि रखने से स्वयं को जागृत किया जाता है।
    16 समय का सदुपयोग करने से भविष्य प्रकाशमय हो जाता है।
    17 कलात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण लेने से योग्यता में निखार आता है।
    18 उच्च विचार अपनाने से जीवन मेें सुधार होता है।
    19 आत्म विश्वास युक्त कठोर श्रम करने से जीवन विकास होता है।
    20 मानवी उर्जा ब्रह्मचर्य का महत्व समझ लेने और उसे व्यवहार में लाने से कार्य क्षमता बढ़ती है।
    21 मन में शुद्ध भाव रखने से विश्वास बढ़ता है।
    22 कर्म निष्ठ रहने से अनुभव एवं कार्य कुशलता बढ़ती है।
    23 दृढ़ निश्चय करने से मन में उत्साह भरता है।
    24 लोक परंपराओं का निर्वहन करने से कर्तव्य पालन होता है
    25 स्थानीय लोक सेवी संस्थांओं में भाग लेने से समाज सेवा करने का समय मिलता है।
    26 संयुक्त रूप से राष्ट्रीय पर्व मनाने से राष्ट्र की एकता एवं अखंडता प्रदर्शित होती है।
    27 मानव धर्म निभाने से संसार में अपनी पहचान बनती है।
    28 प्रिय नीतिवान एवं न्याय प्रिय बनने से सबको न्याय मिलता है।
    29 शांत मगर शूरवीर बनने से जीवन चुनौतियों का सामना किया जाता है।
    30 निडर और धैर्यशील रहने से जीवन का हर संकट दूर होता है।
    31 दुःख में भी प्रसन्न रहने से कष्ट दूर हो जाते हैं।
    32 निरंतर प्रयत्नशील रहने से कार्य में सफलता मिलती है।
    33 परंपरागत पैतृक व्यवसाय अपनाने से घर पर ही रोजगार मिल जाता है।
    34 तर्क संगत वाद-विवाद करने से एक दूसरे की विचारधारा जानी जाती है।
    35 तन, मन और धन से कार्य करने से प्रसंशकों और मित्रों की वृद्धि होती है।
    36 किसी भी प्रकार का अभिमान न करने से लोकप्रियता बढ़ती है।
    37 सदा सत्य परन्तु प्रिय बोलने से लोक सम्मान प्राप्त होता है।
    38 अनुशासित जीवनयापन करने से भोग सुख का अधिकार मिलता है।
    39 कलात्मक व्यवसायिक परिवेश बनाने से भोग सुख और यश प्राप्त होता है।
    40 निःस्वार्थ भाव से सेवा करने से वास्तविक सुख व आनंद मिलता है।
    16 नवंबर 2008 कश्मीर टाइम्स

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    कब तक होती रहेगी राजभाषा की अनदेखी !

    क्या हिंन्दी ”हिन्द की राजभाषा“ को व्यावहारिक रूप में जन साधारण तक पहुंचाने में कोई वाधा आ रही है? अगर हां तो हम उसे दूर करने में क्या प्रयास कर रहे हैं? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढना ज्यादा जरूरी है।
    मुझे भली प्रकार याद है दिनांक 21 फरवरी 2008 को मैं अपार जन समूह में लघु सचिवालय धर्मशाला की सभागार में बैठा हुआ अति प्रसन्न था। हम सब वहां पर आयोजित केन्द्रीय भू जल बोर्ड व सिंचाई एवं जन स्वास्थय कर्मचारियों की संयुक्त बैठक में भाग लेने गए हुए थे। वहां पर विद्यमान गणमान्य अधिकारियों की अध्यक्षता सिंचाई एवं जन स्वास्थय मंत्री ने की थी।
    सभागार में हर कोई खामोश, कार्रवाई प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा कर रहा था। वह शुरू हुई और हमारे कान खड़े हो गए। आरम्भ में, राज्य के सिंचाई एवं जन स्वास्थय मंत्री माननीय रविन्द्र रवि और चिन्मय स्वामी आश्रम, संस्था की निदेशिका डा0 क्षमा मैत्रेय के संभाषण से भारतीयता की झलक अवश्य दिखाई दी। दोनों के भाषण हिन्दी भाषा में हुए जिनमें देश के गौरव की महक थी। मुझे पूर्ण आशा थी कि भावी कार्रवाई भी इसी प्रकार चलेगी परन्तु विलायती हवा के तीव्र झौंके से रुख बदल गया और देखते ही देखते सभागार से हिन्दी भाषा सूखे पत्ते की तरह उड़ कर अमुक दिशा में न जाने कहां खो गई। जिसका वहां किसी ने पुनः स्मरण तक नहीं किया – जो भी बोला, जिस किसीने किसी से पूछा या जिसने कहा, वह मात्र अंग्रेजी भाषा में था।
    उस समय मुझे ऐसा लगा मानों हम सब लघु सचिवालय धर्मशाला की सभागार में नहीं बल्कि ब्रिटिश संसद में बैठे हुए हैं और कार्रवाई देख रहे हैं, अंतर मात्र इतना था कि हमारे सामने गोरे अंग्रेज नहीं, बल्कि काले अंग्रेज – स्वदेशी अपने ही भाई थे। वो समाज को बताना चाहते थे कि वे गोरे अंग्रेजों से कहीं ज्यादा बढ़िया अंग्रेजी भाषा बोल और समझ सकते हैं। उनकी अंग्रेजी भाषा, हिन्दी भाषा से ज्यादा प्रभावशाली है। अंग्रेजी भाषा में उनका ज्ञान देश की आम जनता आसानी से समझ सकती है। मुझे तो वहां अंग्रेजी साम्राज्य की बू आ रही थी – भले ही वह भारत में कब का समाप्त हो चुका है।
    अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना बुरी बात नहीं है। उसे बोलने से पूर्व देश, स्थान और श्रोता का ध्यान रखना ज्यादा जरूरी है। वह लघु सचिवालय अपना था। वहां बैठे सब लोग अपने थे फिर भी वहां सबके सामने राज- भाषा हिन्दी की अवहेलना और अनदेखी हुई। बोलने वाले लोग हिन्दी भूल गए, जग जान गया कि सचिवालय में राजभाषा हिन्दी का कितना प्रयोग होता है और उसे कितना सम्मान दिया जाता है।
    ऐसा लगा मानों सचिवालय में मात्र दो महानुभावों को छोड़ कर अन्य किसी को हिन्दी या स्थानीय भाषा आती ही नहीं है। हां, वे सब पाश्चत्य शिक्षा की भट्टी में तपे हुए अंग्रेजी भाषा के अच्छे प्रवक्ता अवश्य थे। वे अंग्रेजी भाषा भूलने वाले नहीं थे क्योंकि उन्होंने गोरे अंग्रेजों द्वारा विरासत में प्रदत भाषा का परित्याग करके उसका अपमान नहीं करना था। वे हिन्दी भाषा बोल सकते थे पर उन्होंने सचिवालय में राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का प्रयोग करके उसे सम्मानित नहीं किया, कहीं गोरे अंग्रेज उनसे नाराज हो जाते तो…!
    भारत या उसके किसी राज्य का, चाहे कोई लघु सचिवालय हो या बड़ा, राज्यसभा हो या लोकसभा अथवा न्यायपालिका वहां पर होने वाली सम्मानित राजभाषा हिन्दी में किसी भी जन हित की कार्रवाई, बातचीत अथवा संभाषण के अपरिवर्तित मुख्य अंश मात्र उससे संबंधित विभागीय कार्यालय या अधिकारी तक सीमित न हो कर ससम्मान राष्ट्र की विभिन्न स्थानीय भाषाओं में, उचित माध्यमों द्वारा जन साधारण वर्ग तक पहुंचने अति आवश्यक हैं। उनमें पारदर्शिता हो ताकि जन साधारण वर्ग भी उनमें सहभागीदार बन सके और सम्मान सहित जी सके। उसके द्वारा प्रदत योगदान से क्या राष्ट्र का नवनिर्माण नहीं हो सकता? उसका लोकतंत्र में सक्रिय योगदान सुनिश्चित होना चाहिए जो उसका अपना अधिकार है। इससे वह दुनियां को बता सकता है कि भारत उसका अपना देश है। वह उसकी रक्षा करने में कभी किसी से पीछे रहने वाला नहीं है।
    9 नवंबर 2008 कश्मीर टाइम्स

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    विलुप्त होंगी राष्ट्रीय श्वेत धाराएं!

    ”अब आसान न होगा पषु को आवारा छोड़ना। विभाग ने बनाई योजना। पंचायतों के नुमाइंदों को किया जा रहा जागरूक।“ जी हां, यही है दैनिक पँजाब केसरी में दिनांक 14 जून 2008 का प्रकाशित समाचार। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात  भारतीय इतिहास में वर्तमान हिमाचल सरकार ने जन हित में लगाया एक और मील का पत्थर जो पडो़सी राज्य सरकारों को अवश्य  ही प्रेरणादायक सिद्ध होगा।
    समाचार के अनुसार – ”पशुओं को आवारा छोड़ना अब प्रदेश  के किसानों को भारी पड़ सकता है।“ संबंधित विभाग द्वारा शुरू की गई मुहिम में जहां किसानों को अपने पशु  आवारा छोड़ने पर जुर्माना भरना पड़ सकता है वहां दुबारा गलती करने पर उनके विरुद्ध विभाग द्वारा कड़ी कार्रवाई भी की जाएगी। विभाग ने विस्तृत योजना बना ली है। पशु  का रिजिस्ट्रेशन – उसके बाएं कान पर प्रांत व जिला कोड तथा दाएं कान पर ब्लाक, पंचायत व पशु  मालिक कोड सब मशीन द्वारा अंकित किए जाएंगे। इस प्रकार पशु  की पूर्ण पहचान होगी और पशु  मालिकों के द्वारा अपना पशु  कहीं आवारा छोड़ना आसान न होगा।
    प्रायः देखने में आया है कि पशु  मालिक दुधारु पशुओं का दूध निकाल लेने के पश्चात  या जब वे दूध देना बन्द कर देते हैं तो वे उन्हें घर से बाहर निकाल देते हैं। वे आवारा होकर गांव या शहर की सड़़कों व गलियों में भटकना आरम्भ कर देेते हैं जिन्हें वहां कूड़ा-कचरा के अम्बारों पर या कूड़ादानों से गन्दगी में सने हुए लिफाफे व सड़ी-गली साग-सब्जी के छिलके खाते हुए देखा जा सकता है। आहार की तलाश  में कभी-कभी उन्हें बस, ट्रक या रेल से टकरा कर अपनी जान भी गंवा देनी पड़ती है।
    कुछ सिर फिरे लोगों ने तो पशुओं का जीना हराम कर दिया है। वे उन्हें आए दिन आवारा छोड़ देते हैं या कसाइयों को बेच देते हैं। पशुचोरों को समय मिले तो वे पशु  चुराकर उन्हें बूचड़खानों में भी पहुंचा देते हैं। उनके लिए पशुओं का कोई महत्व नही होता है जिस कारण रोजाना बूचड़खानों में हजारों की संख्या में बड़ी क्रूरता पूर्ण पशुओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है। इससे लोगों को चमड़े की बनी वस्तुएं मिल जाती है।
    भारत देश  में जहां श्री कृष्णजी के द्वारा गौ-प्रेम से गौ-वंश  वर्धन हुआ था, देश  में दूध की नदियां बही थीं वहीं आज क्रूर मानव अपनी क्रूरता वश गौ-वध करके गौ-धनाभाव कर रहा है। प्रति दिन सुबह-शाम मन्दिरों में ”गौ माता की जय हो“ कहने वाला समाज आज स्वयं ही कथनी और करनी में समानता रखने में असमर्थ है।
    सूरसा मां-मुख की भान्ति बढ़ रही भारतीय जन संख्या और कल-कारखानों के बढ़ रहे साम्राज्य के आगे जहां कृषि  प्रधान भारत की कृषि  भूमि और जंगल सिकुड़ रहे हैं वहां उसके पशु वंश  के भरण-पोषण  हेतु चारागाहों का भी क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है। इससे भारतीय परंपरागत पशु  पालन व्यवस्था चरमरा गई है।
    भारत में चिरकाल से ही पशुओं के मल-मूत्र का कृषि  उत्पाद पौष्टिक  खाद के रूप में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, के स्थान पर अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक खादों का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है। पौष्टिकता में भारी गिरावट आ रही है। किसान बैलों से हल जोतना भूल गए हैं। उसका स्थान ट्रैक्टरों और भारी मशीनों ने ले लिया है। इससे पशु वंश  नकारा हुआ है। पशु वंश  में कमीं आने के कारण पौष्टिक खाद प्रभावित हुई है।
    पाश्चात्य  संस्कृति से प्रभावित वर्तमान भारतीय युवा वर्ग पशु  प्रेम के अभाव में पशु  पालन व्यवसाय छोड़ता जा रहा है। वह लिफाफा बन्द दूध खरीदना सर्व श्रेष्ठ  समझता है। यह बात बुरी ही नही है बल्कि वह हनिकारक, रोग और दोष पूर्ण भी है। इससे उसे भविष्य  में सदैव जागरूक रहना होगा।
    राष्ट्रीय  परम्परागत पशु पालन व्यवसाय युवा वर्ग के लिए एक अच्छा रोजगार बन सकता है। इच्छुक, साहसी और पुरुषार्थी  युवा वर्ग को संगठित होकर एवं सहकारिता अन्दोलन के साथ जुड़कर पशु पालन के व्यवसाय को स्वरोजगार बनाना होगा। बाजार से लिफाफा बन्द, महंगा उपलब्ध दूध के स्थान पर वह स्थानीय पशुशालाओं के माध्यम से ताजा शुद्ध और सस्ता दूध उत्पादन करके स्थानीय लोगों की आवश्यकता  सहज में पूर्ण कर सकता है। इससे वह अच्छा आर्थिक लाभ कमा सकता है।
    उपरोक्त वर्तमान हिमाचल सरकार का निर्णय प्रान्त तथा राष्ट्र  हित में लिया गया एक सराहनीय और प्रंशसनीय फैसला है जो युवा वर्ग द्वारा राष्ट्र  का नव निर्माण करने में एक महत्व पूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके लिए युवा वर्ग को कल कारखानों व मशीनों पर पूर्णरूप से आश्रित न रह कर अधिक से अधिक स्वयं शरीर श्रम प्रारम्भ करना होगा।
    भारत में चिरकाल से श्वेत  धाराएं पशुवश  से प्राप्त हुई है, प्राप्त हो रही है और आगे भी प्राप्त होगी। स्मरण रहे अगर भविष्य  में हमने स्वस्थ रहना है तो हमे दूध की आवश्यकता अधिक  होगी। तब दूध पाने के लिए हमें मशीनों की नहीं पशुओं की आवश्यकता होगी। धरती पर पशु नही रहेंगे तो हमें दूध कहां से मिलेगा? जीवन की रक्षा पशु   धन की सुरक्षा पर निहित है। कल-कारखानें और मशीनें तो हमारे लिए भोग-विलास संबंधी वस्तुओं का उत्पादन करने वाले साधन मात्र हैं। इनका हमें सदैव विवेक पूर्ण और सीमित ही उपयोग करना होगा। इसी में हमारी और भारत की भलाई है।
    30 नवंबर  2008
    दैनिक कष्मीर टाइम्स

  • श्रेणी:

    सार्थक दीपावली

    26 अक्तूबर 2008 मातृवंदना

    नगर देखो! सबने दीप जलाए हैं द्वार-द्वार पर,
    घर आने की तेरी ख़ुशी में मेरे राम!
    तुम आओगे कब? मेरे मन मंदिर,
    अँधेरा मिटाने मेरे राम!
    आशा और तृष्णा ने घेरा है मुझको,
    स्वार्थ और घृणा ने दबोचा है मुझको,
    सीता को मुक्ति दिलाने वाले राम!
    विकारों की पाश काटने वाले राम !
    दीप बनकर मैं जलना चाहूँ,
    दीप तो तुम्हीं प्रकाशित करोगे मेरे राम!
    अँधेरा खुद व खुद दूर हो जाएगा,
    हृदय दीप जला दो मेरे राम !
    सार्थक दीपावली हो मेरे मन की,
    घर-घर ऐसे दीप जलें मेरे राम!
    रहे न कोई अँधेरे में संगी-साथी दुनियां में,
    सबके हो तुम उजागर मेरे राम!


    चेतन कौशल "नूरपुरी"


  • श्रेणी:

    राजभाषा हिंदी

    5 अक्तूबर 2008 कश्मीर टाइम्स

    मेरे मन भाया तेरा विचार, भाषा हिंदी,
    इसकी लिपि बनी भाषा उसकी, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    फोन कन्याकुमारी से पहुंचता कश्मीर, भाषा हिंदी,
    फैक्स गुजरात से पहुंचती आसाम, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हर व्यक्ति की सांस, हिन्द की धड़कन, भाषा हिंदी,
    हर स्थान की बोली, हिन्द की पहचान, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हम बोल, लिख सकते, भाषा हिंदी,
    हम सीखकर कार्य कर सकते, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,
    हम मनाएंगे नहीं पखवाड़े, सब जानते, भाषा हिंदी,
    सरकारी, गैरसरकारी कार्य करेंगे पूरा साल, भाषा हिंदी,
    हिन्द की संम्पर्क भाषा, भाषा हिंदी,



    चेतन कौशल "नूरपुरी"