श्रेणी: स्व रचित रचनाएँ
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श्रेणी:आलेख
भारतीय शिक्षा-प्रणाली
प्रिय होने के नाते आदि काल से ही भारतवर्ष महान पुरुषों का देश रहा है। उनमें श्री राम, श्री कृष्ण , गुरु नानक देव, आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानन्द जी का नाम सर्वोपरि है।
28 जून 2009
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श्रेणी:आलेख
बोलने की अपेक्षा
धर्म की जय हो। अधर्म का नाश हो। प्राणियों में सद्भावना हो। विश्व का कल्याण हो। गौ माता की जय हो। यह उद्घोष देश के गांव-गांव व शहर-शहर के मंदिरों में सुबह-शाम सुनाई देते हैं। यहां यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि हम वहां कौन सा उदघोष कितने जोर से उच्चस्वर में करते हैं बल्कि वह यह है कि हम उसे आत्मसात् भी करते हैं कि नहीं?
हम धर्म की जय के लिए क्या कर रहे हैं? हमसे कहीं अधर्म तो नहीं हो रहा? प्राणियों में सद्भाना कहां से आएगी? विश्व का कल्याण कौन करेगा? गौ माता की जय करने के लिए हमारे अपने क्या-क्या प्रयास हो रहे हैं?
धर्म और अधर्म दोनों एक दूसरे के विपरीतार्थक शब्द हैं। जहां धर्म होता है वहां अधर्म किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व जमाने का प्रयास अवश्य करता है पर जहां अधर्म होता है वहां धर्म तभी साकार होता है जब वहां के लोग स्वयं जागृत नहीं होते हैं। लोगों की जागृति के बिना अधर्म पर विजय कर पाना कठिन है। धर्म दूसरों को सुख-शांति प्रदान करता हैं। उनका दुःख-कष्ट हरता है जबकि अधर्म सबको दुःख, अशांति और पीड़ा ही पहुंचता है।
सद्भावना सत्संग करने से आती है। सत्संग का अर्थ यह नहीं है कि भजन, कीर्तन, और प्रवचन करने के लिए बड़े-बड़े पंडाल लगा लिए जाएं। लोगों की भारी भीड़ इकट्ठी कर ली जाए। स्पीकरों व डैकों से उच्च स्वर में सप्ताह या पंद्रह दिनों तक खूब बोल लिया और फिर उसे भूल गए। सत्संग अर्थात सत्य का संग या उसका आचरण करना जो हमारे हर कार्य, बात और व्यवहार में दिखाई दिया जाना अनिवार्य है। जहां सत्संग होता है वहां सद्भावना अपने आप उत्पन्न हो जाती है।
इस प्रकार जहां सद्भावना होेती है वहां दूसरों की भलाई के कार्य होना आरम्भ हो जाते हैं। इसी विस्तृत कार्य प्रणाली को परोपकार कहा गया है। जिस व्यक्ति में परोपकार की भावना होती है और वह परोपकार भी करता है, उससे उसका परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व प्रभावित अवश्य होता है। परोपकार से विश्व का कल्याण होना निश्चित है।
गौ माता की जय करने के लिए गाय के आहार हेतु चारा पीने के लिए पानी के साथ-साथ रहने के लिए गौशाला और उसकी उचित देखभाल भी करना जरूरी है। उसे बूचड़खाना और कसाई से बचाना धर्म है। जो व्यक्ति और समाज ऐसा करता है उसे उद्घोषणा करने की कभी आवश्यकता नहीं पड़ती है बल्कि वह उसे अपने कार्य प्रणाली से प्रमाणित करके दिखाता है।
वास्तव में धर्म की जय, अधर्म का नाश , प्राणियों में सद्भावना, विश्व का कल्याण और गौ माता की जय तभी होगी जब हम सब सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्य करेंगे। यदि विश्व में मात्र बोलने से सब कार्य हो जाते तो यहां हर कोई बोलने बाला होता, कार्य करने वाला नहीं किसी को कोई कार्य करने की आवश्यकता न पड़ती।28 जून 2009
कष्मीर टाइम्स
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श्रेणी:कवितायें
हमारी जिम्मेदारी
24 मई 2009 कश्मीर टाइम्स
कुछ ऐसी वस्तुओं का हमनें प्रयोग शुरू है करना,
दूसरी बार जिनका प्रयोग हो न सके,
प्लास्टिक, पॉलीथिन का प्रयोग बंद है करना,
जिन वस्तुओं से पर्यावरण प्रदूषण रुक न सके,
हटाना है हमने प्लास्टिक, पॉलीथिन वस्तुओं को,
पर्यावरण प्रदूषण, फैलता है जिन वस्तुओं से,
अपनाना है, हमनें फिर से उन वस्तुओं को,
पर्यावरण प्रदूषण न फैले, जिन वस्तुओं से,
पर्यावरण प्रदूषण की वस्तुओं का, हमने करना है उत्पादन
तो उन्हें हटाने की भी हम क्यों न जिम्मेदारी लें
उपभोक्ता नहीं चाहते पर्यावरण प्रदूषण और उत्पादन,
आओ! पर्यावरण प्रदूषण मिटाने की हम जिम्मेदारी लें
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
शिक्षा कहां मिलेगी ?
3 मई 2009 कश्मीर टाइम्स
कार्य प्रयास करें जो सबका भला,
सबके काम आएं जो विधि-विधान,
संस्कारों का आचरण सदा यथार्थ हो,
कार्य-व्यवहार करें जीवनोपयोगिता बयान,
ज्ञान बढ़े और हो जिससे आत्मरक्षा,
स्वास्थ्य वर्धन करे और रहे सामाजिक सुरक्षा,
देगा कौन? हमें ऐसी शिक्षा,
मिलेगी कहां? हमें ऐसी शिक्षा,
चेतन कौशल "नूरपुरी"
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श्रेणी:कवितायें
मेहनत का राज
12 अप्रेल 2009 कश्मीर टाइम्स
मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
बही कहें आँगन टेढा,
जो कभी नाचना न जाने,
मेहनत लगन से होती है,
दिल-दिमाग एक करना जो जाने,
मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
जबरन उनको काम पर न लगाना,
ध्यान जिन्होंने काम पर नहीं लगाना,
लगन से मुश्किल काम आसान हो जाते,
आओ चलें! कार्यकुशल मेहनती अपनाने,
मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
धनदौलत अर्जित होती है
और ठाटबाट भी, क्या कहने!
धनदौलत उन्हीं की दासी होती है,
धन सदुपयोग करना जो जाने,
मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
सारा बाजार उन्हीं का होता अपना,
जान लेते बाजार के सारे जो मायने,
मेहनत करना अपना धर्म वो समझते,
नहीं ढूंढते, नहीं करने के जो बहाने,
मेहनत करने वालों को काम बहुत हैं,
नहीं करने वालों को बहुत हैं बहाने,
चेतन कौशल "नूरपुरी"