कश्मीर टाइम्स 4 अक्तूबर 2009
मकान, अस्पताल से बाहर आता प्रदूषण है,
इंडस्ट्रीज, फैक्ट्रीज से बाहर आता प्रदूषण है,
दुकान, गोदाम से बाहर आता प्रदूषण है,
पशुशाला, बूचड़खानों से बाहर आता प्रदूषण है,
डालते हैं कहां? हम उस प्रदूषण को,
फैंकते है हम कहां? उस प्रदूषण को,
क्या हम जलधारा में बहा देते हैं प्रदूषण?
या सीमा से बाहर फैंक देते हैं प्रदूषण?
अगर बहाते रहेंगे ऐसे ही प्रदूषण जलधारा में,
तो रह पाएंगे कैसे? जलचर जलधारा में,
फैलाते रहेंगे अगर प्रदूषण यहां वहां पर,
तो रह पाएंगे हम सब कैसे? धरा पर
चेतन कौशल "नूरपुरी"
श्रेणी: स्व रचित रचनाएँ
-
श्रेणी:कवितायें
प्रदूषण का उद्गम
-
श्रेणी:कवितायें
विषधर जानो
सितम्बर 2009 मातृवंदना
समझ सके, समझ ले भाई!
चापलूस सांप दोनों हैं सगे भाई,
चापलूस चापलूसी करता है,
जहर सांप उगला करता है,
चापलूस नहीं साथी किसी का,
मतलब निकाला करता है,
दूध पिलाओ चाहे जितना
सांप डंक मारा करता है,
बात जान ले, सारा यह जहान!
चापलूस और सांप दोनों एक समान,
चेतन कौशल "नूरपुरी"
-
श्रेणी:आलेख
आदर्श समाज की कल्पना
आलेख - सामाजिक चेतना कश्मीर टाइम्स 6 सितम्बर 2009
आओ हम ऊँच नीच का भेद मिटाएं
सब समान हैं, चहुं ओर संदेश फैलाएं
भारतीय समाज में कोई जाति से बड़ा है तो कोई धर्म से, कोई पद से ऊँचा है तो कोई धनबल से। प्रश्न उठता है कि क्या ऐसा पहले भी होता था? हां, होता था! पर अब उसमें अंतर आ गया है। पहले हमारी सोच विकसित थी, हम हृदय से विशाल थे, हम संसार का हित चाहते थे परंतु वर्तमान में हमारी सोच बदल गई है। हमारा हृदय बदल गया है, हम निजहित चाहने लगे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हम अध्यात्मिक जीवन त्यागकर निरंतर संसारिक भोग विलास की ओर अग्रसर हुए हैं। हमने योग मूल्य भुला दिए हैं जिनसे हमें सुख के स्थान पर दुख ही दुख प्राप्त हो रहे हैं।
देखा जाए तो यह बड़प्पन या ऊँचापन मिथ्या है। पर जो लोग इसे सच मानते हैं अगर उनमें से किसी एक बड़े को उसके माता-पिता के सामने ले जाकर यह पूछा जाए कि वह कितना बड़ा बन गया है तो उनसे हमें यही उत्तर मिलेगा – वह अभी बच्चा है। उसके जीवनानुभवों की उसके माता-पिता के जीवनानुभवों से कभी तुलना नहीं की जा सकती। माता पिता की निष्काम भावना की तरह उसकी सोच का भी जन कल्याणकारी होना अति आवश्यक है। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो ऐसी स्थिति में उसे बड़ा या ऊँचा स्थान कदाचित नहीं मिल सकता।
हमारा समाज मिथ्याचारी बड़प्पन और ऊँचेपन की दलदल में धंसा हुआ है। वह तरह-तरह के शोषण, अत्याचार, जातिवाद, छुआछूत, अमीर-गरीब और बाहुबली व्यक्तियों के द्वारा बल के दुरुपयोग से पीड़ित है, जो अत्याधिक चिंता का विषय है।
वास्विकता तो यह है कि हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं, उसका दिव्यांश हैं। वह कण-कण में समाया हुआ है। प्राणियों में मानव हमारी जाति है। भले ही हमारे कार्य विभिन्न हैं पर हमारा धर्म मानवता है। इसलिए वश्विक भोग्य सम्पदा पर हम सबका अपनी-अपनी योग्यता एवं गुणों के अनुसार अधिकार होना चाहिए। किसान और मजदूर खेतों में कार्य करते हैं तो विद्वान उनका मार्गदर्शन भी करते हैं। जिस व्यक्ति का जितना ऊँचा स्थान होता है उसके अनुसार उसकी उतनी बड़ी जिम्मेदारी भी होती है। उसे पूरा करना उसका कर्तव्य होता है। उससे वह भ्रष्टाचार, किसी का शोषण, किसी पर अत्याचार करने हेतु कभी स्वतंत्र नहीं होता है। बलशाली मनुष्य द्वारा उसके बल-पराक्रम का वहीं प्रयोग करना उचित है जहां समाज विरोधी तत्व सक्रिय हों या अनियंत्रित हों।
मनुष्य का बड़प्पन या ऊँचापन उसके कार्य से दिखता है न कि उसके जन्म या खानदान से। मनुष्य को चाहिए कि वह मानव जाति के नाते सब प्राणियों के साथ मनुष्यता ही का व्यवहार करे। उससे न तो किसी का शोषण होता है न किसी से अन्याय, न किसी पर अत्याचार होता है और न किसी का अपमान। सबमें बिना भेदभाव के समानता बनी रहती है। वैश्विक संपदा पर यथायोग्यता अनुसार स्वतः अधिकार बना रहता है। प्रशासनिक व्यवस्था सबके अनुकूल होती है। लोग उसका आदर करते हैं। इससे लोक संस्कृति की संरचना, संरक्षण और संवर्धन होता है।
मनुष्य जाति में पाया जाने वाला अंतर मात्र मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कर्मों व उसके गुणों के अनुसार होता है। सद्गुण किसी में कम तो किसी में अधिक होते हैं। वे आपस में कभी एक समान नहीं होते हैं। इसलिए हमें एक दूसरे का सदा सम्मान करना चाहिए।
इससे हम छुआछूत, सामाजिक, आर्थिक एवं न्यायिक असमानता को बड़ी सुगमता से दूर कर सकते हैं। हमारा हर कदम राम-राज्य की ओर बढ़ता हुआ एक आदर्श समाज की कल्पना को साकार कर सकता है।चेतन कौशल “नूरपुरी”
-
श्रेणी:कवितायें
क्या तुम ———-?
कश्मीर टाइम्स 23 अगस्त 2009
जब निजहित तुम्हारा होगा देशहित से ऊँचा,
और निज सुख तुम्हें दिखने लगेगा महान,
तब क्यों कोई देशहित की बात करेगा?
क्यों देशहित में कोई करेगा काम?
जब देश नहीं रहेगा समृद्धि-सुरक्षा का अधिकारी,
तब तुम क्या कर लोगे? निजहित में,
जगह-जगह बनें हो नन्द भाई, भ्रष्टाचारी,
क्यों धंसे हो? तुम भोग विलासी दलदल में,
क्या जागेगा फिर कोई चाणक्य प्यारा?
गाँठ चोटी खोलकर भरेगा हुंकार,
क्या ढूंढेगा वह कोई चन्द्रगुप्त न्यारा?
और नेकदिल जननायक करेगा तैयार,
जब वह बजाएगा ईंट से ईंट तुम्हारी,
तब तुम क्या कर लोगे? निज सुख में,
जगह-जगह बनें हो नन्द भाई, भ्रष्टाचारी,
क्यों धंसे हो? तुम भोग विलासी दलदल में,
चेतन कौशल "नूरपुरी"
-
श्रेणी:कवितायें
मुफ्त प्रदूषण
2 अगस्त 2009 कश्मीर टाइम्स
कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में,
मानव ही प्रदूषण फैलाता है,
जगह-जगह ढेर लगाता है गंदगी के,
पास से नहीं निकला जाता है,
कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में
पॉलिथीन लिफाफे, प्लास्टिक सामान बनाती हैं फैक्ट्रियां,
बांधकर गांठे शहर-शहर पहुंचाती हैं फैक्ट्रियां,
शहरी प्रदुषण फैले तो फैले, उन्हें क्या?
कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में
अच्छा होता, अगर इनका प्रचलन न होता,
पॉलिथीन, प्लास्टिक सामान का कहीं निशान न होता,
हर कोई स्वस्थ होता, अगर मुफ्त प्रदूषण न होता,
कंकरीट, पत्थरों के इस शहर में
चेतन कौशल "नूरपुरी"