मानवता

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श्रेणी: कवितायें

  • श्रेणी:

    प्रेम पुजारी

    दैनिक जागरण 2 मार्च 2007 

    प्रेम पुजारी बढ़ता चल
    सबका कष्ट हरता चल
    कभी खो देना न ध्येय
    किसी से खाना न भय
    पानी है मंजिल आज नहीं तो कल
    प्रेम पुजारी बढ़ता चल
    सहारा मिले तो ले लेना तू
    न मिले कदम बढ़ाना तू
    निर्भय प्रतिपल आगे बढ़ता चल
    प्रेम पुजारी बढ़ता चल
    मंजिल सामने एक दिन आएगी
    घड़ी इंतजार की खत्म हो जाएगी
    सफलता मिलेगी आज नहीं तो कल
    प्रेम पुजारी बढ़ता चल


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    जिन्दगी की राह

    दैनिक जागरण 25 नवंबर 2006

    अपने ही छूट जाते हैं बहुत दूर
    छोटी सी जिन्दगी की लम्बी राह पर
    सदा नहीं रहता साथ यहां स्वदेह का भी
    बस पानी बुलबुला है सत्य की राह पर
    साथ नहीं देता हर कोई हर कहीं
    हर पल और हर डगर पर
    राह में लगती हैं ठोकरें कदम कदम पर
    चलना पड़ता है अकेला ही संभल कर
    उठता नहीं गिर कर चलता नहीं जो संभल कर
    कठिन राह अपनी आगे की समझ कर
    गिर जाता है वह फिर अन्य कोई ठोकर खाकर
    और कोसने लगता है भाग्य अपना खुद दुख पाकर


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    संघर्ष की जिंदगी

    दैनिक जागरण 18 नवंबर 2006


    है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
    डगमगाना नहीं है प्रण से
    विचलित नहीं होना है पथ से
    आज का काम करना है आज
    कल पर नहीं छोड़ना है आज
    है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
    जिंदगी अपनी है ही क्या
    भयभीत रहे मंजिल मिलेगी क्या
    सामना करना है जीवन संघर्ष से
    जीवन संवारना है जीवन संघर्ष से
    है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी
    आशीर्वाद बड़ों का लेकर साथ
    हाथ छोेटों का भी थामकर हाथ
    हर कदम बढ़ाना है मंजिल की ओर
    पूर्व में देखो हो रही भोर
    है यही तो जिंदगी संघर्ष की है जिंदगी


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    शिक्षा-दीक्षा

    दैनिक जागरण 18 नवंबर 2006

    गधे सा बोझा उठाए हुए
    देखो विद्यार्थी विद्यालय जाता है
    किताबी ज्ञान है सारा थैले में
    पढ़कर बाबू बन जाता है
    हर साल बाबू ही बाबू बनते रहेंगे
    अगर देश के नौजवान
    खाद्यानों का काम चलेगा कैसे
    मिलेंगे खेतों के कहां से किसान
    मशीनों का चालक बनेगा कौन
    कलाओं का विकास करेगा कौन
    शिक्षा दीक्षा दी जाती है परिश्रम करने के लिए
    सभ्यता संस्कृति सुरक्षित रखने के लिए
    सन्मार्ग जो दिखा न सके वह ज्ञान है कैसा
    परिश्रम से जो तुडव़ा दे नाता वह ज्ञान है कैसा
    अमल हो न सके जिसका वह शिक्षा मिलती है कैसी
    जिससे समाज सेवा हो न सके वह दीक्षा मिलती है कैसी


    चेतन कौशल "नूरपुरी"

  • श्रेणी:

    जय भारत के नौजवान

    दैनिक जागरण 29 सितम्बर 2006

    जय भारत के नौजवान
    आओ सब मिल कर अपना कर्तव्य निभाएं
    करके काम कुछ जग हित खुशहाल कहाएं
    रश्मी शीतल मिल कर नहाएं
    देखे हमें सकल जहान
    जय भारत के नौजवान
    प्रतिज्ञा करके जहां भी ने सुखी बाप बनाया
    शूलों से बिंध कर जो नहीं प्रण से डगमगाया
    प्राण तज व्रतधारी ने सबको सच्चा मार्ग दिखाया
    करके प्रण निभाए भारत की सन्तान
    जय भारत के नौजवान
    थे यहां वीर वीरों की यह धरती है
    किससे तुम कम किससे तुम्हें भीति है
    नित अज्ञान से टकराना तुम करना ज्ञान से प्रीति
    बनना है तुम्हें भी महान
    जय भारत के नौजवान


    चेतन कौशल "नूरपुरी"